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संपादकीय लेख


Editorial volume-22

नई खनन नीति का प्रभाव

शिखा सिंह

भारत खनिजों की दृष्टि से समृद्ध है। भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) के अनुसार देश के मापन योग्य 31.4 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में से करीब 5.71 लाख वर्ग किलोमीटर की पहचान गैर-ईंधन और गैर-कोयला प्रमुख अनुसूचित खनन क्षेत्र के रूप में की गई है। वर्तमान में करीब 4550 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र देशभर में पट्टे पर दिया जा चुका है, जिसमें ईंधन, परमाणु और लघु खनिज शामिल नहीं हैं।

हाल ही में, सरकार ने राष्ट्रीय खनन अन्वेषण नीति (एनएमईपी) का अनुमोदन किया है। इस नीति की मुख्य बातें इस प्रकार हैं:-

*सरकार सर्वोच्च मानकों के प्रतिस्पर्धापूर्ण बेसलाइन भू-वैज्ञानिक आंकड़े नि:शुल्क सार्वजनिक क्षेत्र में प्रकट करेगी।

*सरकार एक मिशन के रूप में भारत का हवाई-भू-भौतिक सर्वेक्षण कराएगी। इसके अंतर्गत संभावितक्षेत्रों के आठ वर्ग किलोमीटर इलाके को शामिल किया जाएगा और इसके बाद देश के अन्य क्षेत्रों में सर्वेक्षण कराया जाएगा।

*विभिन्न केंद्रीय और राज्यों की एजेंसियों तथा खनिज रियायतधारकों द्वारा एकत्र की गई बेसलाइन और खनिज अन्वेषण जानकारी एक डिजिटल भूस्थानिक आंकड़ा आधार में संगृहीत की जाएगी, जिसे नेशनल जियोसाइंटिफिक डेटा रिपोजिटरी (एनजीडीआर) अर्थात् राष्ट्रीय भू-वैज्ञानिक आंकड़ा संग्रह के रूप में जाना जाएगा।

*भूमि के भीतर छिपे और अत्यंत गहरे स्थित खनिज भंडारों की खोज और उन्हें उजागर करने के उद्देश्य से सरकार एक राष्ट्रीय खनिज प्रयोजन केंद्र (एनसीएमटी) की स्थापना करेगी, जो शैक्षिक जगत, उद्योग और अन्य भू-वैज्ञानिक संगठनों के साथ मिल कर काम करेगा।

*सरकार चुने हुए अन्वेषण ब्लॉकों की नीलामी निजी क्षेत्र को करेगी। यदि अन्वेषण की परिणति नीलामी योग्य संसाधनों के रूप में होती है, तो उन्हें उपयुक्त राजस्व भागीदारी मॉडल प्रस्तावित किया जाएगा। अन्यथा अन्वेषण पर किए गए खर्च की अदायगी नियामक कटौती आधार पर की जाएगी। सरकार ने खनन क्षेत्र की सहायता के स्तंभों के रूप में दो कानून भी बनाए हैं। ये हैं:

खान एवं खनिज (विकास एवं नियमन) संशोधन अधिनियम, 2015

एमएमडीआर संशोधन अधिनियम, 2015 में निर्दिष्ट किया गया है कि प्रमुख खनिजों के लिए खनिज रियायतें नीलामी या प्रतिस्पर्धात्मक बोली के जरिए प्रदान की जाएंगी। इसमें यह भी कहा गया है कि खानों का अनुबंध नियत कार्यावधि के लिए मंजूर किया जाएगा और वह आसानी से अंतरणीय होगा; अवैध खनन की रोकथाम के लिए कड़े दंडात्मक प्रावधान किए जाएंगे; और एक राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण न्यास (एनएमईटी-नेशनल मिनरल एक्सप्लोरेशन ट्रस्ट) की स्थापना की जाएगी, ताकि क्षेत्रीय आधार पर विस्तृत अन्वेषण किया जा सके।

परमाणु खनिज रियायत नियम, 2016

खान, विद्युत, कोयला और नए एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने यह भी कहा कि राज्य सरकारें अब ऐसे क्षेत्रों में खनिज सुविधाएं नीलामी अथवा प्रतिस्पर्धात्मक बोली के जरिए निजी क्षेत्र को मंजूर करेंगी, जहां परमाणु खनिक निर्धारित न्यूनतम मूल्य से कम होंगे।

2030 के लिए लक्ष्य

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) ने क्रिटिकल नोन-फ्यूल मिनरल रिसोर्सिज फॉर इंडियाज़ मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर: ए विजन फॉर 2030’ अर्थात् भारत के विनिर्माण क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण गैर-ईंधन खनिज संसाधन: 2030 के लिए लक्ष्यनाम की एक रिपोर्ट जारी की है। इसमें भारत के लिए 12 महत्वपूर्ण खनिजों (बेरिलियम, जर्मेनियम, रेयर अथ्र्स (भारी और हल्के), रेनियाम, टेंटालुम आदि सहित) की पहचान हेतु अपनी तरह का प्रथम फ्रेमवर्क प्रदान किया गया है, जो मेक इन इंडिया कार्यक्रम में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है और विनिर्माण क्षेत्र पर इन महत्वपूर्ण खनिजों के प्रभाव का मूल्यांकन करता है। रिपोर्ट में इन खनिजों के आर्थिक महत्व और उनसे सम्बद्ध आपूर्ति जोखिमों का मूल्यांकन भी किया गया है।

इस रिपोर्ट में पहचान किए गए महत्वपूर्ण खनिजों का इस्तेमाल एरोस्पेस वाहन, ऑटोमोबील्स, कैमरों, रक्षा, मनोरंजन प्रणालियों, लैटपटॉप्स, मेडिकल इमेजिंग, परमाणु ऊर्जा और स्मार्ट फोनों के विनिर्माण संबंधी अनेक उद्योगों में किया जाता है। वे सरकार की कार्बन कम करने की योजनाओं में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। इसके अंतर्गत हाईब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों के विनिर्माण में उनका महत्वपूर्ण योगदान शामिल हो सकता है। उनकी आवश्यकता सरकार को 100 जीडब्ल्यू सौर ऊर्जा का लक्ष्य हासिल करने में पड़ेगी, जिससे राष्ट्रीय घरेलू विद्युत सक्षमता कार्यक्रम के लक्ष्य हासिल किए जा सकेंगे। इन खनिजों की भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा में भी महत्वपूर्ण भूमिका होगी।

रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि आने वाले वर्षों में, भारत 2030 में देश के विनिर्माण क्षेत्र की सहायता के लिए इन महत्वपूर्ण खनिजों की भरोसेमंद आपूर्ति सुनिश्चित करने में वर्तमान वैश्विक प्रतिभागियों में शामिल हो जाएगा। अपनी जरूरत को देखते हुए, हम वैश्विक प्रतिभागियों की पहचान करने और उनके साथ सहयोग करने में सक्षम होंगे और साथ ही अपने अनुसंधान एवं विकास प्रयासों को अधिक आसानी से आगे बढ़ा सकेंगे।

यह देखा गया है कि पिछले वर्षों में भारत सरकार ने खनन उद्योग के विकास को बढ़ावा देने के लिए अनेक प्रयास किए हैं, जैसे तेजी से मंजूरियां देना, अन्वेषण निधि की स्थापना, और निष्पक्ष तथा पारदर्शी नीलामी प्रक्रियाएं शुरू करना। देश के खनन उद्योग को सुदृढ़ बनाने हेतु सरकार द्वारा किए गए अन्य उपायों में 50 वर्षों (पूर्व निर्धारित 30 वर्षों की बजाए) के लिए खान आवंटित करना, जिला खनिज फाउंडेशनों (डीएमएफ) की स्थापना शामिल है, जो खानों द्वारा प्रभावित लोगों के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए जिम्मेदार होंगी। इस क्षेत्र में विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए सरकार द्वारा जल्द ही विशेष आर्थिक क्षेत्र अपतट रियायत नियमों की भी घोषणा किए जाने की संभावना है।

वर्तमान परिदृश्य

वर्तमान में खनन क्षेत्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 24 प्रतिशत का योगदान करता है। खान मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि सरकार का लक्ष्य इस योगदान में अगले दो-तीन वर्षों में एक प्रतिशत बढ़ोतरी करने का है। अभी तक जीएसआई द्वारा पहचान किए गए स्वभाविक भू-वैज्ञानिक संभवना क्षेत्रों में से मात्र 10 प्रतिशत क्षेत्रों में अन्वेषण किया जा सका है। इसमें से केवल 15 से 2 प्रतिशत तक क्षेत्र में खनन किया जा रहा है। निजी अन्वेषकों (जिनका चयन एक पारदर्शी ई-नीलामी प्रक्रिया के जरिए किया जाएगा) को शामिल करने से सरकार को उम्मीद है कि विस्तृत क्षेत्रीय अन्वेषण का काम शुरू किया जा सकेगा। 

भारत के विनिर्माण क्षेत्र और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण 12 खनिजों में से, 7 खनिजों के मामले में भारत शत प्रतिशत आयात पर निर्भर है। इन खनिजों के लिए हमारे देश में कोई घोषित संसाधन नहीं हैं। अत: हमारी यह प्राथमिकता है कि महत्वपूर्ण खनिजों की घरेलू स्तर पर खोज की जाए। समुद्रपारीय खानों को कार्यनीतिक दृष्टि से हासिल किया जाए और किसी प्रकार  के आपूर्ति जोखिमों को कवर करने हेतु व्यापार और कूटनीतिक समझौतों पर हस्ताक्षर किए जाएं। प्राथमिकता वाले खनिजों के बेहतर विकल्प तलाश करने के लिए हमें अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने तथा रीसाइकलिंग एवं धातु वसूली क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देने की भी आवश्यकता है।

खनन क्षेत्र के समक्ष चुनौतियां एवं अवसर

विकास के उच्च स्तर के बावजूद, भारत में खनन क्षेत्र अपनी पूर्ण संभावनाएं हासिल नहीं कर पाया है। इसका कारण यह है कि हम इस क्षेत्र के लिए पुरानी प्रौद्योगिकी पर निर्भर हैं। अभी तक हम केवल 300 मीटर की गहराई तक खनन कर सकते हैं। इन दिनों उपलब्ध अद्यतन तकनीकों और प्रक्रियाओं का इस्तेमाल करते हुए भूमि में छिपे भंडारों की खोज करने के व्यापक अवसर उपलब्ध हैं।

निजी प्रतिभागियों और विदेशी निवेश के लिए खनन क्षेत्र खोले जाने से अब प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है। भारत के असंख्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान पहले से ही ऊर्जा आधारित अनुसंधान एवं विकास पर कार्य कर रहे हैं और कई अन्य ऐसे पहलू हैं, जिनका अधिक बारीकी से अध्ययन करने की आवश्यकता है।

वर्तमान में खनन उद्योग में 11 लाख से अधिक लोगों को रोजग़ार प्राप्त है और यह क्षेत्र रोजगार के व्यापक अवसर उपलब्ध कराता है। इनमें खनन इंजीनियरों से लेकर अकुशल श्रमिकों तक के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध हैं। इस क्षेत्र में दिहाड़ी की दर ऊंची है और इससे अन्य उद्योगों के लिए कच्चा माल प्राप्त होता है तथा इसका भारत के कुल निर्यात में करीब 16 प्रतिशत योगदान है।

भारत माइका (अभ्रक) के उत्पादन में विश्व का सबसे बड़ा, कोयला और लिग्नाइट के मामले में विश्व का तीसरा सबसे बड़ा और खनिज लोहा, बॉक्साइट, अल्युमीनियम और मैगनीज़ के शीर्ष उत्पादकों में शामिल है। भारत के पास करीब 20,000 ज्ञात खनिज भंडार हैं, और यहां श्रम की लागत सस्ती है। अत: भारत में खनन क्षेत्र में काम करने वाले लोगों का भविष्य एकदम सुरक्षित है।

एनएमईपी के लिए धन की व्यवस्था

अनुमान है कि अगले 5 वर्षों में राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण नीति के कार्यान्वयन के लिए करीब 2116 करोड़ रुपये की आवश्यकता पड़ेगी। उम्मीद है कि यह धन जीएसआई, खान मंत्रालय के नियमित वार्षिक बजट और अतिरिक्त अनुदानों (जैसे एनएमईटी से धन और केंद्र सरकार द्वारा बजटीय सहायता) से जुटाया जा सकेगा।

जीएसआई ने प्रथम चरण में नीलामी किए जाने के लिए 100 ब्लॉकों की पहचान की है, जिनमें निम्नांकित शामिल हैं:

*बेस मैटल यानी आधारभूत धातुएं (जैसे अल्युमीनियम, तांबा, सीसा, टिन और जिंक),

*सोने के 21 ब्लॉक,

*लाइमस्टोन के 8 ब्लॉक,

*प्लेटिनम गु्रप एलिमेंट्स (पीजीई) जैसे पल्लाडियम (पीडी), इरिडियम (आरडी), ओस्मिम (ओएस), रोडियम (आरएच) और रूथेनियम (आरयू), निकल और क्रोमियम,

*लौह अयस्क, और डायमंड में प्रत्येक के 6 ब्लॉक,

*मैग्नीज़ और टिन एवं टंगस्टन में प्रत्येक के 5 ब्लॉक,

*      रेयर अथ्र्स एलिमेंट्स और दुर्लभ धातुओं (जैसे कोलमबाइट-टेंटालाइट, बेरिल, लेपिडोलाइट, बेटाफाइट, जिरकोन, रुटाइल, स्फीने और जेनोटाइम आदि) के 3 ब्लॉक,

*बॉक्साइट, फास्फेट एंडालुसाइट, डुनाइट, वैनाडियम, बेरियम, ग्लूकोनाइट, और डोलोनाइट में प्रत्येक का एक-एक ब्लॉक।

प्रथम चरण में 8 राज्यों में इन प्रमुख खनिजों के 43 ब्लॉकों को नीलामी के लिए अधिसूचित किया गया है। इनमें आंध्र प्रदेश में चूना पत्थर के 6 ब्लॉक; छत्तीसगढ़ में सोने के 3 ब्लॉकों सहित पांच ब्लॉक; कर्नाटक में लौह अयस्क के 14 ब्लॉक; महाराष्ट्र में बॉक्साइट का एक, लौह अयस्क का एक, चूना पत्थर का एक और टंगस्टन का एक सहित कुल 4 ब्लॉक; ओडिशा में चूना पत्थर के 2 और लौह अयस्क का 1 सहित 3 ब्लॉक और राजस्थान में चूना पत्थर के 3 ब्लॉक शामिल हैं।

नई खनन नीति का रोजग़ार सृजन पर प्रभाव

नई खनन नीति से उम्मीद की जा रही है कि 2025 तक देश में कम से कम 60 लाख रोजग़ार के नए अवसर पैदा होंगे। प्रत्येक खान में सैंकड़ों या हजारों की संख्या में कुशल एवं अकुशल लोगों की भर्ती की जाती है। किसी खान के 50-100 किलोमीटर के दायरे में, स्थानीय रोजग़ार सेवा क्षेत्र को बढ़ावा मिलता है और यह देखा गया है कि गरीबों के पोषण स्तर में काफी सुधार होता है। खनिजों की खोज और बड़े पैमाने पर उनके खनन से निश्चित रूप से खनन प्रसंस्करण और उपयोग में भी रोजग़ार के लाखों अवसर पैदा होंगे।

खनन क्षेत्र की व्यापक संभावनाओं की अनदेखी नहीं की जा सकती। प्रति व्यक्ति खनिज एवं ऊर्जा की खपत समृद्धि के महत्वपूर्ण संकेतकों में से एक है। अभी तक हम कोयला और लौह अयस्क जैसे बुनियादी खनिजों का आयात करते रहे हैं, हालांकि हमारे यहां इन खनिजों के कुछ सबसे बड़े ज्ञात भंडार हैं। नई खनन और खनिज नीति इस क्षेत्र में बदलाव लाने का प्रयास करेगी।

खनिज अन्वेषण उच्च जोखिमयुक्त उद्यम है। नई खनन नीति कार्यान्वित होने से इस क्षेत्र की लाभप्रदता और सक्षमता सुनिश्चित की जा सकेगी और खनन क्षेत्र को अधिक सुचारू बनाया जा सकेगा। खनिज भंडारों का पूर्ण मापन होने के बाद नीति के जरिए यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि खनन संबंधी लाइसेंस समुदाय की पर्यावरण संरक्षण संबंधी जरूरतों का अनुपालन करते हुए दिए जाएंगे।

विशेषज्ञों के अनुसार खनन लाइसेंसों का सरल अंतरण इस नीति के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है। उनका विश्वास है कि यदि खनन अन्वेषण कंपनियां शेयर बाजार में सूचीबद्ध कर दी जाएं, तो मुक्त बाजार से बेईमान कंपनियों को निश्चित रूप से बाहर किया जा सकेगा।

खनिज संसाधनों के बड़े पैमाने पर मापन से संभावित निवेशकों को भी प्रोत्साहित किया जा सकेगा, क्योंकि इससे ऐसे उद्यमों में व्याप्त अनिश्चितताकम होगी। इसके साथ ही खनन क्षेत्र में रोजग़ार को भी व्यापक बढ़ावा मिलेगा।

नई खनन नीति में अन्वेषणपर ध्यान केंद्रित किया गया है, जो खनन और तेल एवं गैस के उत्पादन के जीवन चक्र में पहला कदम है। चीन से भिन्न भारत को यह लाभ प्राप्त है कि यहां लौह अयस्क के अच्छे से मध्यम ग्रेड के पर्याप्त भंडार मिलते हैं, जिसका अर्थ है, कि हमारे निर्यातमें सुधार होने की पर्याप्त संभावनाएं हैं। भारत में ढांचागत बढ़ोतरी और विकास का अर्थ है कि देश में इस्पात और अल्युमीनियम की खपत बढ़ रही है।

(लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ईमेल:singhset@gmailcom )