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संपादकीय लेख


Volume-23

 
कौशल भारत
चुनौतियां, उपलब्धियां और भविष्य का मार्ग

डॉ. के पी कृष्णन एवं
डॉ. दिव्या नाम्बियार

कौशल आधुनिक अर्थव्यवस्था के प्रमुख संचालक हैं. व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण का उद्देश्य व्यक्ति विशेष को श्रम बाज़ार में संक्रमण में सुविधा प्रदान करना है. बदलती कौशल आवश्यकताओं, नई प्रौद्योगिकियों और नये प्रकार के रोजग़ारों से कौशल प्रशिक्षण पर अधिक ज़ोर दिया गया है-जो कि जीवनपर्यन्त शिक्षण की प्रक्रिया बनने की दिशा में अग्रसर है.
कौशल विकास को कारकों के संयोजन ने भारत के लिये एक महत्वपूर्ण नीतिगत प्राथमिकता बना दिया है.
यह जनसांख्यिकी के साथ शुरू होता है. भारत अपने जनसांख्यिकी लाभांश की परिपक्वता के उभार पर है. अगले दशक के दौरान इसकी जनसंख्या के 15-59 आयु वर्ग में परिवर्तित होने की आशा है. 2020 तक भारतीय जनसंख्या की औसत आयु 29 वर्ष होगी, जबकि अमरीका में यह 40 वर्ष, यूरोप में 46 वर्ष और जापान में 47 वर्ष है. भारत की युवा जनसंख्या की क्षमता के दोहन का मार्ग बहुत संकीर्ण है.
लेकिन, भारत की प्रशिक्षण क्षमता सीमित है. यद्यपि सही संख्या को लेकर सर्वसम्मति नहीं है, यह अनुमान लगाया जाता है कि करीब 50 लाख युवा लोग हर वर्ष कार्यबल में प्रवेश करते हैं. फिर भी, भारत की मौजूदा औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों की क्षमता, जो कि अभी तक भारत की व्यावसायिक प्रशिक्षण पारिस्थितिकी की रीढ़ है, प्रति वर्ष केवल 25 लाख है. अत:, कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों की क्षमता और पैमाने में वृद्धि करना, भारत के लिये तात्कालिक नीतिगत प्राथमिकता है.
मांग की तरफ, राष्ट्रीय कौशल विकास निगम द्वारा शुरू किये गये कौशल अंतर अध्ययनों में सुझाव दिया गया है कि 2022 तक 24 उच्च विकास क्षेत्रों में 10.9 करोड़ वृद्धिशील मानव संसाधनों की आवश्यकता होगी. अत:, जहां उद्योग में कुशल कामगारों की मांग है, यह महत्वपूर्ण है कि प्रशिक्षण उच्च गुणवत्ता वाला और उद्योग की आवश्यकताओं के संगत होना चाहिये.
प्रशिक्षण की गुणवत्ता का मुद्दा रोजग़ार योग्यता के मुद्दे से निकट से जुड़ा है. प्रशिक्षित कामगारों की रोजग़ार योग्यता सुनिश्चित करने का एक मार्ग उद्योग के साथ संपर्क स्थापित करना अथवा बड़े पैमाने पर प्रशिक्षुता कार्यक्रम संचालित करना है. लेकिन, इस तथ्य का कि भारत में कार्यबल का 90 प्रतिशत से अधिक असंगठित क्षेत्र से जुड़ा है, अर्थ है कि औपचारिक क्षेत्र में रोजग़ार के अवसर सीमित हैं और प्लेसमेंट हासिल करना कठिन होता है. अत:, भारत के कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम न केवल युवाओं को बाज़ार के अनुरूप कौशलों से युक्त करें बल्कि उन्हें रोजग़ार के योग्य भी बनाएं. इसमें युवाओं को स्वरोजगार के लिये अथवा उद्यमशीलता हासिल करने के लिये भी प्रशिक्षित किया जाना चाहिये.
जबकि कौशल प्रशिक्षण को सरकार और इसके निजी क्षेत्र तथा उद्योग सहयोगियों द्वारा सक्रियता से प्रोत्साहित किया जा रहा है-यह युवाओं के बीच आकांक्षाओं वाला कॅरिअर विकल्प नहीं है. इसे मुख्य रोजग़ार विकल्प की बजाए एक पीछे हटने वाला विकल्प माना जाता है. युवाओं के लिये औपचारिक शिक्षा अब भी सर्वोच्च पसंद मानी जाती है. इस झुकाव को नियोक्ताओं के बीच भी देखा जाता है जो कि अनुभवी वर्करों की तुलना में, जिन्होंने व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त किया हुआ होता है, एंट्री स्तर के इंजीनियरों को उच्चतर वेतन का भुगतान करते हैं.
अत: क्षमता, गुणवत्ता और रोजग़ार योग्यता से संबंधित मुद्दों के साथ-साथ संभाव्य प्रशिक्षुओं और नियोक्ताओं दोनों द्वारा कौशल प्रशिक्षण कैसे अनुभव किया जाता है, इसके बारे में व्यावहारिक कारकों का भी समाधान किये जाने की आवश्यकता है.
अनेक बाज़ार विफलताओं के साथ जोडक़र  इन चुनौतियों की गंभीरता, जो कि भारत के व्यावसायिक प्रशिक्षण पारिस्थितिकी का चित्रण करती है (जैसे कि सूचना विषमता; अल्प कौशल संतुलन, कौशल प्रशिक्षण में अल्प निजी क्षेत्र निवेश और व्यावहारिक जोाखि़म), इस क्षेत्र में सरकारी हस्तक्षेप के लिये मज़बूत मामला बनाती है. यद्यपि सरकारी कौशल प्रशिक्षण पारिस्थितिकी भी अत्यधिक खंडित है. उदाहरण के लिये 2014 के शुरू में 20 से अधिक केंद्रीय मंत्रालय भिन्न शर्तों, मानदंडों और प्रमाणन प्रणालियों के साथ अनेक प्रकार के कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित करते थे. इन कौशल चुनौतियों से पार पाने के लिये नीति एकजुटता और ठोस कार्यक्रमों की तत्काल आवश्यकता थी.   
इन विविध चुनौतियों को हल करने के दृष्टिगत, नवंबर, 2014 में भारत का पहला कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (एमएसडीई) बनाया गया. महत्वपूर्ण रूप से, मंत्रालय को कौशल प्रशिक्षण और उद्यमिता दोनों की जि़म्मेदारी दी गई. (जिसे पहली बार एक पूरक गतिविधि के रूप में चित्रित किया गया था). परिणामस्वरूप, मंत्रालय का दायित्व भारत के युवाओं को दिहाड़ी रोजग़ार से स्वरोजगार के बहुल आजीविका मार्गों को हासिल करने के लिये आवश्यक कौशलों से लैस करना था.
मंत्रालय को प्रारंभ में भारत के जटिल व्यावसायिक प्रशिक्षण और कौशल प्रशिक्षण पारिस्थितिकी के बीच समन्वय, एकजुटता और भूमिका की स्पष्टता की जि़म्मेदारी सौंपी गई.
अत: कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय कौशल विकास और उद्यमशीलता के लिये एक छत्र मंत्रालय के तौर पर उभरकर सामने आया. इस विषय से जुड़े अन्य मंत्रालयों के प्रमुख संस्थानों को कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय के अधीन कर दिया गया. उदाहरण के लिये प्रशिक्षण महानिदेशालय, भारत सरकार का एक प्रमुख व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रभाग, पूर्व में श्रम एवं रोजग़ार मंत्रालय के अधीन था उसे अप्रैल 2015 में कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय के अधीन कर दिया गया. प्रशिक्षण महानिदेशलय केंद्रीय प्रशिक्षण संस्थानों और आईटीआईज (जो कि 1-2 वर्ष लंबे प्रशिक्षण पाठ्यक्रम संचालित करते हैं) के नेटवर्क के जरिए प्रदान किये जाने वाले प्रशिक्षणों की देखरेख करता है. अन्य एजेंसियों जैसे कि राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (जिसे कौशल प्रशिक्षण के क्षेत्र में सार्वजनिक निजी भागीदारी के तौर पर निजी क्षेत्र की संलग्नता जुटाने के लिये सृजित किया गया था) भी मंत्रालय का एक प्रमुख कार्यान्वयन अंग बन गया. एनएसडीसी ने निजी प्रशिक्षण प्रदाताओं को लघु अवधि कौशल प्रशिक्षण पाठ्यक्रम उपलब्ध करवाने में वित्तपोषण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. एनएसडीसी मंत्रालय एक फ्लैगशिप कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम (प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना अथवा पीएमकेवीवाई) के कार्यान्वयन और निगरानी में भी सहायता प्रदान करता है. इसी प्रकार, राष्ट्रीय कौशल विकास एजेंसी (जो कि प्रशिक्षण मानदंडों तथा गुणवत्ता आश्वासन पर कार्यों का विनियमन करती है) भी मंत्रालय के अधीन आ गई.
पिछले ढाई वर्षों के दौरान कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय ने एक केंद्रित नीतिगत हस्तक्षेपों के जरिए मज़बूत कौशल प्रशिक्षण पारिस्थितिकी के निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं.
प्रमुख नीतिगत उपायों में शामिल हैं:
*कौशल विकास और उद्यमिता के लिये राष्ट्रीय नीति 2015, जिसमें कौशल भारत के लिये व्यापक दृष्टिकोण की रूपरेखा प्रदान की गई है.
*राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन 2015, जिसमें कौशल भारत कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिये एक ढांचा प्रस्तुत किया गया है.
*कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिये सामान्य नियम
*उद्योगों को प्रशिक्षुओं को लेने के लिये प्रोत्साहित करने के वास्ते प्रशिक्षुता अधिनियम 1961 में संशोधन किया गया है.
इन नीतिगत हस्तक्षेपों ने किस प्रकार ऊपर बताई गई कौशल चुनौतियों का समाधान किया है? अब तक क्या हासिल हुआ है?
कौशल चुनौतियों का समाधान
कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय के नीतिगत हस्तक्षेप ठोस कार्रवाई कार्यक्रमों में तबदील हुए हैं-जो चार प्रमुख कौशल चुनौतियों-नामत: पैमाना, गुणवत्ता, रोजगारयोग्यता और आकांक्षाएं का समाधान करते हैं. इस खण्ड में इन प्रत्येक क्षेत्रों में मंत्रालय की कुछ प्रमुख उपलब्धियों का सारांश है.
दीर्घावधि और अल्पावधि कौशल प्रणालियों में पैमाना हासिल करना
मई 2014-मई 2017 के बीच औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआईज) में दीर्घावधि प्रशिक्षणों के लिये कुल मिलाकर महत्वपूर्ण क्षमता विस्तार हुआ है. उदाहरण के लिये आईटीआई की संख्या में मई 2014 में 10750 से मई 2017 में 13353 की 24 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. आईटीआईज में कुल सीटों की संख्या में 44 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. यह संख्या 2014 में 19.82 लाख थी जो कि मई 2017 में 28.52 लाख हो गई. आईटीआईज में छात्रों के दाखिले में भी 26 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. 2013-2014 में यह संख्या 17.80 लाख थी जो कि 2016-17 में बढक़र 22.4 लाख हो गई.
एनएसडीसी के जरिये अल्पावधि फीस आधारित प्रशिक्षण के पैमाने में भी विस्तार हुआ है. मई 2014 और मई 2017 के बीच प्रशिक्षण केंद्रों की संख्या में 85.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. 2013-14 से 2016-17 तक के बीच प्रशिक्षित कुल उम्मीदवारों की संख्या में भी पर्याप्त वृद्धि (71 प्रतिशत) हुई है. इसी अवधि के दौरान प्लेसमेंट दर में भी फीस आधारित पाठ्यक्रमों के लिये 65 प्रतिशत और पीएमकेवीवाई पाठ्यक्रमों के लिये 12 प्रतिशत का सुधार हुआ है.
गुणवत्ता वृद्धि
प्रशिक्षण की गुणवत्ता में सुधार के लिये अल्पावधि और दीर्घावधि दोनों कौशल प्रशिक्षण प्रणालियों में अनेक कदम उठाये गये हैं. इनमें शामिल हैं:
*ग्रेडिंग: कार्यशील और गैऱ कार्यशील आईटीआईज के बीच अंतर स्थापित करने के लिये एक पुष्ट ग्रेडिंग प्रणाली (43 ग्रेडिंग पैरामीटर्स पर आधारित) शुरू की गई है. ग्रेडिंग पैरामीटर्स में प्रशिक्षण परिणामों, अवसंरचना की गुणवत्ता, उद्योग संपर्क आदि पर फ़ोकस किया गया है. अल्पावधि कौशल प्रशिक्षण पारिस्थितिकी के लिये भी एक ग्रेडिंग प्रणाली शुरू की गई है. इसे नवस्थापित कौशल प्रबंधन और प्रशिक्षण केंद्रों की मान्यता (स्मार्ट) पोर्टल के जरिये संचालित किया जायेगा.
*मान्यता और संबद्धता नियमों का सुदृढ़ीकरण: पहली बार समग्र आईटीआई मान्यता और संबद्धता नियम बनाये और जारी किये गये हैं.
*सघन पाठ्यक्रम सुधार शुरू किये गये हैं: उद्योग जगत के साथ सक्रिय परामर्श के जरिये 63 पाठ्यक्रमों को उन्नत किया गया है. उभरते क्षेत्रों जैसे कि नवीकरणीय ऊर्जा, मेकाट्रॉनिक्स और इंस्ट्रूमेंटेशन पर केंद्रित 35 नई ट्रेडें शुरू की गई हैं जिनकी भविष्य में काफी मांग होने की संभावना है. इसी प्रकार अल्पावधि प्रशिक्षण पारिस्थितिकी में 405 पाठ्यक्रमों के लिये आदर्श पाठ्यक्रम गतिविधियों और 252 पाठ्यक्रमों के लिये सामग्री का मानकीकरण किया गया है.
रोजग़ार योग्यता में सुधार (उद्योग संपर्क के जरिए)
कौशल प्रशिक्षण चक्र के प्रत्येक चरण में उद्योग संपर्क महत्वपूर्ण होता है जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि युवा लोग जो कि कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल होते हैं वे रोजग़ार के योग्य हो जायें और बने रहे हैं. इस क्षेत्र में कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय की कुछेक पहलों में शामिल हंै:-
*प्रशिक्षुता सुधार:
वैधानिक स्तर पर, प्रशिक्षुता अधिनियम, 1961 के अधीन समग्र सुधार लागू किये गये हैं (22 दिसंबर, 2014 से प्रभावी).
प्रमुख सुधारों में शामिल हैं:
*प्रशिक्षुता के लिये ऊपरी आयु सीमा में 10 प्रतिशत की वृद्धि करना
*वैकल्पिक ट्रेड मार्ग की शुरूआत
*सेवा क्षेत्र में प्रशिक्षुता की संभावना का विस्तार करना
*नियोक्ताओं के लिये पेनाल्टीज को युक्तिसंगत बनाना
*राष्ट्रीय प्रशिक्षुता प्रोत्साहन योजना (एनएपीएस) की शुरूआत: इस नई योजना का उद्देश्य प्रशिक्षुता को उत्प्रेरित करना हैै. योजना की प्रमुख विशेषताओं में शामिल हैं:
*नियोक्ताओं को ऑनबोर्ड प्रशिक्षुता के लिये संवेदनशील करना
*प्रचालनों की ऑनलाइन और पारदर्शी प्रणाली
*अन्य कौशल विकास कार्यक्रमों के साथ एकीकरण
*बेहतर सम्प्रेषण और पहुंच कार्यनीति
एनएपीएस ने प्रशिक्षुता के प्रति उद्योग और प्रशिक्षुओं दोनों की रूचि को उत्प्रेरित किया है.
कौशल प्रशिक्षण को युवाओं के बीच आकांक्षात्मक बनाना
मंत्रालय दो कार्यनीतियों के जरिए युवाओं के मध्य कौशल प्रशिक्षण को आकांक्षात्मक कॅरिअर विकल्प बनाने की दिशा में भी काम कर रहा है.
पहली कार्यनीति में संस्कृति मनोवृत्ति पर ध्यान केंद्रित किया गया है जो कि कौशल प्रशिक्षण को युवाओं के मध्य एक सक्रिय विकल्प की बजाए एक डिफाल्ट विकल्प बनाता है. इसमें कौशल प्रतिस्पर्धाएं, रोजग़ार मेले, एकजुटता शिविर, पुरस्कार आदि शामिल हैं. युवाओं की आकांक्षाओं के अनुरूप नई प्रशिक्षण पहलें भी शामिल की गई हैं. उदाहरण के लिये मंत्रालय का भारत अंतर्राष्ट्रीय कौशल केंद्र कार्यक्रम में युवाओं को वैश्विक मानदंडों के अनुरूप कौशल प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है जो कि विदेशों में काम करने के इच्छुक हैं. प्रधानमंत्री कौशल केंद्र पहल का उद्देश्य देश भर में युवाओं को उच्च गुणवत्ता की प्रशिक्षण सुविधाओं का मार्ग खोलने के लिये देश के प्रत्येक जिले में आदर्श, आकांक्षात्मक, अत्याधुनिक कौशल प्रशिक्षण केंद्रों का सृजन करना है.
दूसरी कार्यनीति में औपचारिक और व्यावसायिक शिक्षा क्षेत्रों में सीधे और क्षैतिज प्रगतिशील मार्गों का निर्माण करने पर ज़ोर दिया गया है (समकक्षता ढांचे के जरिए). यह औपचारिक और व्यावसायिक शिक्षा क्षेत्रों को जोड़ेगा-जिससे युवाओं के लिये नये रोजग़ार मार्गों का सृजन होगा.
उद्यमशीलता को औपचारिक रूप देना
भारत की उद्यमशीलता की भावना सुपरिचित है और इसके दो प्रमुख स्वरूप हैं. प्रथम, यहां पर उद्यमशीलता का गुण मौजूद है जो कि आवश्यकता से सृजित हुआ है और किफायती नवोन्मेष का रूप ले लिया. अक्सर इस प्रकार की उद्यमशीलता औपचारिक क्षेत्र में देखी जाती है, जो कि अब भी अर्थव्यवस्था का 93 प्रतिशत हिस्सा है. दूसरी उद्यमशीलता है जो कि उच्च प्रौद्योगिकी स्टार्ट-अप्स से उभरती है जो कि प्रमुख चुनौतियों के समाधान ढूंढऩे के लिये प्रौद्योगिकीय नवोन्मेष तैयार करती है. ये स्टार्ट-अप्स औपचारिक रूप से पंजीकृत उद्यम हैं और बेंगलूर तथा हैदराबाद में कलस्टरों में तेज़ी से बढ़ रहे हैं.
यह बिल्कुल महत्वपूर्ण है कि भारत मितव्ययी नवाचार और उद्यमशीलता के जुगाड़मॉडल्स से उद्यमशीलता स्वरूपों की तरफ बढ़ा है जो कि औपचारिक हैं. आधार, विमुद्रीकरण और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) सहित हाल के विनियामक सुधार भारत की अर्थव्यवस्था को अनौपचारिक से औपचारिक क्षेत्र में तबदील करने के प्रयास हैं ताकि भारत के उद्यमी, बड़े और लघु, भारत के विकास क्षेत्र में योगदान कर सकें. अनौपचारिक क्षेत्र में उभरते उद्यमियों को सक्रिय समर्थन और संगठित क्षेत्र में उनके बदलाव में सहायता प्रदान करके उद्यमशीलता को औपचारिक बनाना उद्यमशीलता के क्षेत्र में कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय के कार्य का प्रमुख फोकस है.
एमएसडीई के उद्यमशीलता विकास कार्यक्रम, प्रधानमंत्री युवा योजना में नये उद्यमियों को विशेषकर जो कि अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं, उद्यमिता शिक्षा और प्रशिक्षण विभिन्न कारकों के संयोजन के साथ प्रदान किये जाने का प्रावधान हैं जिसमें ऋण की आसान उपलब्धता, इन्क्युबेशन सहायता और मेंटरशिप शामिल है जिससे कि वे औपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन सकें. हमारा लक्ष्य 5 वर्षों में 3050 शिक्षण संस्थानों के जरिए-जिनमें स्कूल, कालेज, प्रशिक्षण संस्थान शामिल हैं, व्यापक ओपन ऑनलाइन पाठ्यक्रमों के साथ 7 लाख छात्रों तक पहुंच कायम करना है. इस योजना में पैनलबद्ध संस्थानों को वित्तीय और दूसरी सहायता भी उपलब्ध कराई जायेगी.
आगे का मार्ग: भविष्य के कार्यस्थलों के लिये तैयारी करना
उद्योग की मांग गतिशील है. अत: कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय का फ़ोकस यह सुनिश्चित करने पर है कि युवा लोग न केवल आज के रोजग़ारों के लिये बल्कि भविष्य के रोजग़ारों के लिये भी लैस हों.
उद्योग-विशेषकर विनिर्माण क्षेत्र बदलाव के दौर में है, जो कि एक नये औद्योगिक युग की तरफ बढ़ रहा है जिसे उद्योग 4.0 के तौर पर जाना जाता है. हमारी समझ में उद्योग 4.0 वस्तुओं का इंटरनेट (आईओटी) का सेकेंडरी सेक्टर अर्थात विनिर्माण के प्रति  प्रतिच्छेदन और अनुप्रयोग है. विनिर्माण (विशेषकर ऑटोमोटिव सेक्टर में) में कुछेक क्षेत्र प्रोसेस ऑटोमेशन, सिक्स सिग्मा जैसे पद्धतियों के प्रयोग और आपूर्ति शृंखला प्रबंधन से संचालित दक्षता के जरिए परंपरागत रूप से आधुनिकीकरण के किनारे पर हैं. अन्य क्षेत्र जैसे कि वस्त्र निर्माण, एमएमईज और नये तथा उभरते क्षेत्र जैसे कि इलेक्ट्रॉनिक्स, विमानन आदि ऐसे प्रौद्योगिकियों के आमेलन के लिये तैयार हैं. नई विध्वंसकारी प्रौद्योगिकियां कार्य के नये स्वरूपों और फलेक्सिबल रोजग़ार के नये स्वरूपों का सृजन कर रही हैं. अकादमिक, उद्योग और नीतिगत सर्कलों में बहस का एक प्रमुख विषय इस बात से संबंधित है कि किस प्रकार ऑटोमेशन और औद्योगिक बदलाव का भारत में हमारे कार्य और कौशलों पर प्रभाव पड़ेगा. भविष्य के कार्यस्थलों के लिये किस प्रकार के कौशलों की आवश्यकता होगी? हम अपने युवाओं को इन परिवर्तनों के प्रति लचीले और अनुकूल किस प्रकार बनायेंगे? किस प्रकार हम जीवनपर्यन्त शिक्षण, उन्नत कौशल और पुन:कौशल को हमारी कौशल पारिस्थितिकी का एक प्रमुख घटक बनायेंगे? मंत्रालय इन प्रश्नों के उत्तर तलाशने के लिये एक ठोस प्रामाणिक आधार तैयार करने के वास्ते अनेक विशेषज्ञों की सेवाएं ले रहा है.
(लेखक: डॉ. के. पी. कृष्णन, कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय में सचिव हैं तथा डॉ. दिव्या नाम्बियार, कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय में वरिष्ठ कन्सलटेंट हैं. ई-मेल: kpk1959@gmail.com)
चित्र: गूगल के सौजन्य से