रोज़गार समाचार
सदस्य बनें @ 530 रु में और प्रिंट संस्करण के साथ पाएं ई- संस्करण बिल्कुल मुफ्त ।। केवल ई- संस्करण @ 400 रु || विज्ञापनदाता ध्यान दें !! विज्ञापनदाताओं से अनुरोध है कि रिक्तियों का पूर्ण विवरण दें। छोटे विज्ञापनों का न्यूनतम आकार अब 200 वर्ग सेमी होगा || || नई विज्ञापन नीति ||

संपादकीय लेख


Edition-22

ब्लू इकॉनोमी अर्थात् नीली अर्थव्यवस्था  रोजग़ार सृजन का उभरता क्षेत्र

डॉ. ए. एस. निनावे

सतत विकास पर संयुक्त राष्ट्र की कार्यसूची (2030 तक प्रस्तावित एसडीजी लक्ष्य-14) लघु द्वीपीय विकासशील राष्ट्रों और कम विकसित देशों को मात्स्यिकी, जलजीवों और पर्यटन के स्थाई प्रबंधन सहित समुद्री संसाधनों के सतत इस्तेमाल के आर्थिक लाभों में वृद्धि के वास्ते महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों के संरक्षण, स्थिरता और इस्तेमाल के संबंध में है. ‘‘ब्लू इकॉनोमी अर्थात् नीली अर्थव्यवस्था वह आर्थिक गतिविधि है जो कि प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से महसागरों और समुद्रों में उत्पादन, वस्तुओं और सेवाओं के संबंध में महासागर और स्थल आधारित गतिविधियों के तहत संचालित होती है. नीली अर्थव्यवस्था में आर्थिक वृद्धि, रोजग़ार और अर्थव्यवस्था की निर्भरता में तेज़ी लाने की व्यापक क्षमता है. यह खाद्य सुरक्षा, समुद्री पर्यावरण के प्रबंधन और संरक्षण, उच्च मूल्य के रोजग़ारों के सृजन और ऊर्जा के लिये नये संसाधनों, नई औषधियों और कीमती रसायनों, प्रोटीन फूड, गहरे समुद्री खनिजों, सुरक्षा, मानव कल्याण के नये अवसरों का पता लगाने के लिये वैविध्यकरण तथा जलवायु परिवर्तन से उबरने की क्षमता के लिये उपायों की खोज़ में सहयोग प्रदान करती है.
 इसके मूल्यवान संसाधनों की व्यापक प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, नीली अर्थव्यवस्था के प्रति हिंद महासागर क्षेत्र में आर्थिक विकास और मानव कल्याण के प्रति रुचि बढ़ती जा रही है. हिंद महासागर जैव-विविधता और पारिस्थितिकी संसाधनों का व्यापक क्षेत्र है जिसमें मैंग्रोव्स, कोरल रीफ्स और समुद्री घास क्षेत्र से लेकर गहरा समुद्री क्षेत्र शामिल है, जिससे आर्थिक रूप से मूल्यवान उत्पाद और अत्यधिक पोषक खाद्य पदार्थ और आजीविका जैसी सेवाएं उपलब्ध होती हैं. भारत की तटीय रेखा 7500 कि.मी. से अधिक की है जिसमें मुख्य भूमि में पडऩे वाले नौ समुद्री राज्य और दो संघ शासित प्रदेश तथा दो द्वीपीय संघ शासित प्रदेशों के 12 बड़े तथा 187 मझौले बंदरगाह शामिल हैं, जो कि व्यापार और वाणिज्य के सतत विकास में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. तटीय रेखा अंतर्देशीय जलमार्गों और बंदरगाह आधारित गतिविधियों को समर्थन प्रदान करती है. नीली अर्थव्यवस्था समुद्री परिवहन, तेल और पेट्रोलियम संसाधनों के 95 प्रतिशत व्यापार को समर्थन प्रदान करती है जिसमें हिंद महासागर का एक आर्थिक हब के तौर पर इस्तेमाल होता है. यद्यपि हिंद महासागर प्राकृतिक संसाधनों का धनी है परंतु इसका अभी आर्थिक विकास के लिये पूर्ण दोहन किया जाना है.
भारत का विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र 2.02 मिलियन वर्ग कि.मी. और महाद्वीपीय शेल्फ एरिया 0.18 मिलियन वर्ग कि.मी. है. भारतीय तट सवा सौ करोड़ भारतीय जनसंख्या में से करीब 30 प्रतिशत को समर्थन प्रदान करता है और पारिस्थितिकी प्रणाली को उच्च जैविकीय उत्पादकता और समृद्ध जीव और वनस्पति के लिये जाना जाता है. तटीय क्षेत्र से उत्पादित मात्स्यिकी संसाधन का उत्पादन मात्स्यिकी क्षेत्र से वर्तमान में अधिकतम 200 मी. की गहराई तक दजऱ् किया गया है. यद्यपि शहरीकरण और मानवजनित गतिविधियों के कारण तटीय मत्स्यपालन को अनेक ख़तरों का सामना करना पड़ रहा है जिससे अंधाधुंध मछली पकडऩे, जीवों के आवास क्षेत्र में गिरावट और प्रदूषण का गंभीर ख़तरा भी उत्पन्न हो रहा है.
महसागर से जुड़ी आर्थिक गतिविधियां तीव्रता से विस्तारित हो रहे सामुद्रिक उद्योगों के साथ-साथ बड़े उद्योगों जैसे कि समुद्र और तटीय पर्यटन, अपतटीय तेल और गैस, जहाज निर्माण तथा सामुद्रिक उपकरणों पर आधारित हैं. समुद्री जलजीव पालन, मछली पकडऩे, मत्स्य प्रसंस्करण, अपतटीय पवन ऊर्जा, और बंदरगाह आधारित गतिविधियों में, विशेषकर समुद्री जीव पालन, मत्स्य प्रसंस्करण, अपतटीय पवन क्षेत्र आदि में   रोजग़ार उपलब्ध करवाने की व्यापक संभावनाएं हैं. वैश्विक तौर पर प्रमाणित टिकाऊ समुद्री भोजन में प्रति वर्ष 35 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही है और फ्रोजऩ झींगा तथा अन्य उत्पादों के निर्यात के जरिये लगातार इसमें इज़ाफा हो रहा है. तटीय राज्यों में गुजरात, आंध्र प्रदेश, केरल गुणवत्ता और निर्यात मूल्य में उच्च योगदान कर रहे हैं और उत्पादों का अमरीका, दक्षिण पूर्व एशिया तथा यूरोपीय संघ में विपणन किया जाता है. समुद्री खाद्य संसाधनों, ऊर्जा, खनिजों और ताज़ा उत्पादों की मांग में लगातार वृद्धि हो रही है.
नीली अर्थव्यवस्था मात्स्यिकी, समुद्रीय ऊर्जा, बंदरगाहों और नौसेना समुद्री क्षेत्र, महासागर अध्ययनों और समुद्री जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान में सहायता प्रदान करती है. यह विभिन्न अन्य क्षेत्रों जैसे कि मछली पकडऩे, मात्स्यिकी और एक्वाकल्चर, उच्च मूल्य के समुद्री उत्पादों, औषधियों, रसायनों और जैव-उत्पादों, तेल और गैस के लिये खनिज संसाधनों, गहरे समुद्र में खनन और हाईड्रोकार्बन, तरंग ऊर्जा परियोजनाओं के लिये नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों और अपतटीय पवन ऊर्जा को भी समर्थन प्रदान करती है. विनिर्माण क्षेत्र में यह नौकाओं, मछली पकडऩे के जालों, पानी के भीतर इस्तेमाल होने वाले उपकरणों/औज़ारों और मेरीकल्चर संरचनाओं जैसे कि राफ्टस, पिंजरे, पैन आदि के लिये समर्थन प्रदान करती है. तट और समुद्र तथा मुख्य भूमि में निर्माण कार्य भी रोजग़ार सृजन के लिये नीली अर्थव्यवस्था का व्यापक अवसर वाला क्षेत्र है.
यह मछली पकडऩे वाले बंदरगाह क्षेत्रों और शिपयार्ड्स के लिये नौवहन और बंदरगाहों के लिये एक शक्तिशाली इंजन है. वैज्ञानिक समुदाय और जनता के लिये समुद्री खज़ाना बहुत आकर्षक बना रहा है. यह कोरल डाइव और मात्स्यिकी के लिये पर्यटन के अवसर प्रदान करता है जिसके  लिये नौकायन और सर्फिंग, तैराकी और गोताखोरी संचालित की जाती हैं. विभिन्न अन्य आर्थिक क्षेत्रों में तटीय समुदाय के लिये आर्थिक सेवा, मौसमविज्ञान संबंधी परामर्श और जिओ-इन्फारमेटिक्स, सब-मॅरीन में बेहतरीन अवसर उपलब्ध हैं. उपग्रहों और इमेजिंग सिस्टम के जरिये संसाधनों की खोज़ और मानचित्रीकरण के डिजिटलीकरण से मात्स्यिकी क्षेत्रों की पहचान करने और आईसीटी संपर्कों के साथ जलवायु चेतावनी प्रणालियों से प्रचालन प्रबंधन के लिये संगत डाटाबेस तैयार किया जा सकता है.
21वीं सदी में नीली अर्थव्यवस्था पर विभिन्न देशों -आस्ट्रेलिया, यूरोपीय संघ, चीन और भारत द्वारा वैश्विक पहलें संचालित की जा रही हैं तथा कई अन्य देश भी समुद्र आधारित संसाधनों के सामुद्रिक क्षेत्र और सतत विकास में विशेषकर तटीय सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और पर्यावरणीय गतिविधियों पर नीली अर्थव्यवस्था के तहत ज़ोर देते हुए समुद्री संसाधनों के दोहन की दौड़ में शामिल हो गये हैं. भारत पड़ोसी देशों के सहयोग से हिंद महासागर में पर्यावरणीय और सतत विकास के मुद्दों पर ज़ोर देते हुए नीली अर्थव्यवस्था आधारित गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है. वर्तमान में यह निर्जीव संसाधनों पर फ़ोकस के साथ खनिजों और धातुओं सहित, समुद्री उत्पादों तक सीमित है. यह क्षेत्र नौवहन सेवाओं और अवसंरचना सृजन में विकासात्मक गतिविधियों को समर्थन प्रदान कर सकता है जो कि भूमि पर बुनियादी ढांचे, यंत्रीकृत फ्लोटिंग पोर्ट, जियो-इंजीनियरिंग, पर्यावरण अनुकूलता के साथ-साथ अंतर्देशीय जलमार्गों के जरिये आंतरिक क्षेत्रों के विकास में योगदान कर सकता है जिससे ट्रकों या रेलवे पर निर्भरता से छुटकारा मिल सकता है.
तटीय, मुहाने और समुद्र से जुड़ी अभिनव और अन्वेषण संचालित परियोजनाओं के जरिए अनुसंधान एवं विकास पर फ़ोकस से नये समुद्री जीव संसाधनों, ऊर्जा और वैकल्पिक ईंधन, खनिजों और धातु जैव-सामग्रियों और नये प्रोटीनयुक्त तथा पोषक खाद्य पदार्थों के अन्वेषण में अवसरों का सृजन हो रहा है. आधुनिक सामुद्रिक जीवविज्ञान और जैव-प्रौद्योगिकी में भारत की अनुसंधान क्षमताओं से व्यापक सामुद्रिक जैव-विविधता से स्थाई तौर पर पूंजी जुटाई जा सकती है. समुद्री जीवविज्ञान, समुद्री पारिस्थितिकी और समुद्री जैव प्रौद्योगिकी के साथ बहुविषयक विज्ञान में मौलिक और अनुप्रयुक्त अनुसंधान पर फ़ोकस से नैदानिक एन्जाइम्स, हार्मोन्स, जैव-प्लास्टिक्स, मेटोबोलाइटस आदि के लिये महत्वपूर्ण बायो-मोलेक्यूल्स और प्रक्रियाओं का सृजन किया जा सकता है.
रोजग़ार के अवसर:
महासागर में आर्थिक विकास, रोजग़ार और स्थाई आजीविका के व्यापक अवसर मौजूद हैं. भारत की तटीय और समुद्री जैवविविधता में तटीय और सामुद्रिक पारिस्थितिकी, मैंग्रोव पारिस्थितिकी, समुद्री घास पारिस्थितिकी, समुद्रतल पारिस्थितिकी, समुद्री पारिस्थितिकी प्रणाली और बेन्थिक पारिस्थितिकी प्रणाली आदि के अध्ययन के अवसर मौजूद हैं. पर्यटन, अपतटीय गैस और तेल, जहाज निर्माण और समुद्री उपकरणों सहित सामुद्रिक और तटीय गतिविधियों में तीव्र विस्तार नीली अर्थव्यवस्था के जरिये रोजग़ार सृजन का एक प्रमुख स्रोत उभर सकता है. आशाजनक नीली अर्थव्यवस्था से जुड़ी प्रौद्योगिकियां मात्स्यिकी और जलजीव खेती, समुद्री परिवहन, अपतटीय तेल और गैस, समुद्री नवीकरणीय ऊर्जा, समुद्री मनोरंजन गतिविधियां, रक्षा और सुरक्षा, तटीय और समुद्री प्रबंधन, सुनामी पूर्व चेतावनी प्रणाली से स्थाई रोजग़ार सृजन हो सकता है. इसमें बड़े पैमाने पर कार्यबल, विशेषकर समुद्री जलजीव पालन, मत्स्य प्रसंस्करण, अपतटीय पवन और बंदरगाह गतिविधियों में जुड़ा जा सकता है और यह समावेशी विकास और गरीबी उन्मूलन में योगदान कर सकती है. महासागर को नौवहन सेवाओं और अवसंरचना सृजन जैसी समर्थित गतिविधियों के लिये खनिजों और धातुओं सहित समुद्री उत्पादों पर फ़ोकस करते हुए एक हब क्षेत्र के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है जिससे भूमि पर बुनियादी ढांचे, यंत्रीकृत फ्लोटिंग पोर्ट, जियो-इंजीनियरिंग का सृजन होता है. अंतर्देशीय जलमार्गों के जरिये आंतरिक क्षेत्र में पर्यावरण अनुकूल गतिविधियां कुशल और अकुशल रोजग़ारों के सृजन में सहायक हो सकती हैं. इससे तटीय क्षेत्र के लोगों के लिये विभिन्न प्रकार की विकासात्मक परियोजनाओं से जुडऩे के लिये प्रौद्योगिकीय सुधार में तेज़ी आ सकती है. संभावित रोजग़ार क्षेत्र में जलीय कृषि और मात्स्यिकी, फसल प्रसंस्करण, जलीय कृषि इंजीनियरिंग और मूल्यवद्र्धन आदि शामिल हैं. हिंद महासागर के उच्च उत्पादक और पारिस्थितिकी प्रणाली में समृद्ध होने से यह कौशल विकास, उद्यमशीलता विकास और समुद्री अर्थव्यवस्था आधारित विकासात्मक गतिविधियों के उन्नयन के लिये व्यावसायिक मानवशक्ति के सृजन के लिये व्यापक अवसरों का निर्माण कर रहा है. सरकारी संस्थानों, अनुसंधान संस्थानों, फाउण्डेशनों और ट्रस्टों में वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिकीविद अनुसंधान और विकास क्षेत्र में नीली अर्थव्यवस्था के मार्ग के जरिये अच्छे रोजग़ार अवसर प्राप्त कर सकते हैं. उच्च क्षमतावान वैज्ञानिक और विशेषज्ञों को उनके विशेषज्ञता क्षेत्रों में सरकारी विभागों में जैसे कि पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, सीएसआईआर, डीएसटी और डीबीटी में स्वायत्त संस्थाओं और संस्थानों में नीति प्रबंधकों के तौर पर प्रयोगशाला वैज्ञानिक के तौर पर नियुक्त किया जाता है. महासागर विज्ञान और प्रौद्योगिकी में अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहयोग को बढ़ावा देने और विविध समुद्री और महासागरीय गतिविधियों में नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय आदान प्रदान कार्यक्रम की स्थापना में प्रशिक्षण मानव संसाधनों की नियुक्ति हेतु व्यापक अवसर मौजूद हैं. जैव-व्यवसाय के उन्नयन के लिये समुद्र-आधारित उद्योगों के विकास के लिये उद्यमियों के लिये भी अवसर मौजूद हैं. समुद्री क्षेत्र युवाओं को भी तटों पर और समुद्रों में काम करने के लिये आकृष्ट करता है तथा उन्हें समुद्रों तथा तटों पर सतत विकास के लिये संभावनाओं का पता लगाने के लिये संलग्न करता है. समुद्री जीवविज्ञान, समुद्री इंजीनियरिंग और समुद्र विज्ञानों में मास्टर्स शिक्षा प्राप्त छात्रों की समुद्री खज़ाने के अन्वेषण और अपतटीय तेल संसाधनों के अन्वेषण के लिये भारी मांग है. इसके अलावा बंदरगाह आधारित गतिविधियों और क्यूरेटर के तौर पर महासागर क्षेत्र में उनकी संलग्नता के भी अवसर हैं. उन्हें जहाजों के प्रचालन और प्रबंधन में तकनीकी कार्मिक भर्तियों सहित रोजग़ारों के लिये आकर्षक वेतन का भुगतान किया जाता है.
(लेखक: वर्तमान में जैव प्रौद्योगिकी विभाग में वैज्ञानिक ‘‘जी’’ और सलाहकार के तौर पर कार्यरत हैं और वे एक्वॉकल्चर तथा मॅरीन बायोटेक्नोलॉजी के कार्यक्रम क्षेत्र से जुड़े हैं)
उनके द्वारा व्यक्त किये गये विचार अपने हैं.