जीएसटी: एक व्यापक सांख्यिकीय विश्लेषण
लवी चौधरी
वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) 01 जुलाई, 2017 से लागू हो गया है. ‘‘एक राष्ट्र, एक कर’’ के लक्ष्य के साथ प्रारंभ किए गए इस कर को रूपांतरकारी, क्रांतिकारी और ऐतिहासिक समझा जा रहा है. सामान्य शब्दों में कहें तो इसका लक्ष्य परोक्ष करों को एक कर के तत्वावधान में समाहित करना और भारतीय व्यापार को तेजी से वैश्विक रूप में व्यवहार्य बनाना है. भारतीय जीएसटी का उद्देश्य कर वसूली को कारगर बनाना, भ्रष्टाचार रोकना और एक राज्य से दूसरे राज्य में वस्तुओं आदि की आवाजाही को सुगम बनाना है. जीएसटी के लागू होने की उद्घोषणा 30 जून की मध्य रात्रि को संसद के ऐतिहासिक केंद्रीय कक्ष में की गई, जो हमें 14 अगस्त, 1947 की मध्य रात्रि को भारत की नियति से किए गए समझौते की याद दिलाता है. जीएसटी का उद्घोष राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषणों के साथ हुआ.
जीएसटी चार स्तरीय कर प्रणाली है, जिसमें वस्तुओं और सेवाओं के लिए 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत के चार कर स्लैब निर्धारित किए गए हैं. सभी केंद्रीय और राज्य करों को एकल राष्ट्रीय कर में समाहित किया गया है. करों की 6 दरें निर्धारित की गई हैं और फिर भी कई ऐसे छिटपुट अंतराल और रिक्त स्थान रह गए हैं, जिन्हें राज्यों और केंद्र को जोडऩा है. प्रमुख राजस्व उत्सृजित करने वाली वस्तुएं जैसे पेट्रोलियम और अल्कोहल, जिनकी सरकारी राजस्व में 40 प्रतिशत हिस्सेदारी है, को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है, जिन पर राज्य सरकारें अपनी मन मर्जी से कर लगा सकेंगी.
जीएसटी वस्तु और सेवाओं की आपूर्ति पर लगाया जाने वाला खपत आधारित कर है, जो इनपुट टैक्स क्रे क्रेडिट पद्धति पर आधारित है; इसे वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री अथवा खरीद के प्रत्येक चरण पर लगाया और वसूल किया जाएगा. जीएसटी की गणना अनिवार्यत: वस्तु एवं सेवाओं के प्रदाता द्वारा की जाएगी. परंतु, कुछ मामलों में कर अदा करने की जिम्मेदारी क्रेता पर भी होगी. हालांकि यह रिवर्स चार्ज केवल कुछ स्थितियों में संगत होगा.
जीएसटी का प्रमुख हिस्सा एक स्वत: शासित व्यवस्था के जरिए संचालित होगा, जिससे कर अपवंचन रोकने में मदद मिलेगी और इस कर व्यवस्था में कुछ खंडों के जरिए कर का जाल व्यापक बनाया जाएगा. कार्मिकों की कमी की वजह से कर अदा न करने वाले लोगों तक पहुंचने में कठिनाई कर विभाग की एक बहुत बड़ी समस्या रही है. छोटे कर चोरों पर रोक लगाना एक चुनौती रही है. अब ऐसा कर पाना मुमकिन होगा. जीएसटी के जरिए कम से कम 17 राज्य और संघीय करों को समाप्त किया गया है. जहां तक वैचारिक पक्ष की बात है, जीएसटी कोई एक रात में तैयार की गई व्यवस्था नहीं है. यह अभी तक का स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा आर्थिक सुधार है. वस्तु और सेवा कर अनेक संशोधनों के बाद अमल में लाया गया है. यह एक व्यापक अभियान था, जिसे देश में परोक्ष कर को एकीकृत करने के लिए 17 वर्ष से चलाया जा रहा था. भारत में जीएसटी के बीज सबसे पहले वर्ष 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा रोपित किए गए थे. इसे 2005 में तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम की संसद के बजट सत्र में की गई उस घोषणा से बल मिला, जिसमें कहा गया था कि भारत में करों में सुधार लाना अत्यंत आवश्यक है. 2010 में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने अपने बजट भाषण में कहा था कि जीएसटी अप्रैल, 2011 में पेश किया जाएगा. 2011 के बजट सत्र में 115वां संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया गया, जिसमें कुछ निश्चित वस्तुओं को छोड़ कर सभी वस्तुओं और सेवाओं पर जीएसटी लगाने का प्रावधान था. कुछ वस्तुएं जीएसटी के दायरे से बाहर रखी गई थीं. आखिरकार 2014 में जीएसटी विधेयक संविधान के 122वें संशोधन के रूप में लोकसभा ने पारित कर दिया. 2016 में राजनीतिक दलों ने वस्तु एवं सेवा कर के लिए अपना समर्थन दिया और उनके सहयोग से राज्य सभा में भी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) विधेयक पारित किया जा सका. यह सवाल किया जा रहा है कि भारत जीएसटी के अनुप्रयोग के बाद कैसे अपनी सफलता का उदाहरण विश्व के समक्ष पेश करेगा. लंबे समय से प्रतीक्षित जीएसटी के लागू होने से कई संघीय और राज्य शुल्क समाप्त हो गए हैं और भारत की 1.3 अरब की आबादी एकल बाजार के दायरे में आ गई है.
भारत ने संघीय और राज्य स्तर पर दोहरा जीएसटी ढांचा अपनाया है. भारत के जीएसटी फ्रेमवर्क को कनाडा के मॉडल पर तैयार किया गया है, लेकिन कई मायनों में उसमें अंतर भी है. यदि हम कनाडा में जीएसटी लागू करने के उदाहरण की जांच करें, तो पता चलता है कि जीएसटी के प्रथम चरण में कनाडा के तत्कालीन राजनीतिक दलों ने कड़ा विरोध किया था. लेकिन उस विरोध के बावजूद जीएसटी लागू हो सका. कनाडा की सरकार ने युक्तिसंगत ढंग से काम लिया और जीएसटी के कार्यान्वयन के बाद कर की दरों में कमी की. इसके विपरीत कई ऐसे उदाहरण भी मिलते हैं, जहां जीएसटी लागू होने के बाद करों की दरों में तेजी से बढ़ोतरी हुई. परंतु, कनाडा के एक प्रांत ब्रिटिश कोलम्बिया ने जीएसटी लागू किया परंतु उसके दो वर्ष बाद ही वहां पुरानी व्यवस्था बहाल करनी पड़ी.
फ्रंास ऐसा पहला देश है जिसने कर चोरी रोकने के लिए जीएसटी प्रणाली को लागू किया. अभी तक विभिन्न प्रारूपों में 140 से अधिक देश जीएसटी लागू कर चुके हैं. भारतीय जीएसटी भी सीवनरहित नहीं है, क्योंकि सभी करों को समाप्त नहीं किया गया है. भारत के जीएसटी और अन्य देशों के जीएसटी में बुनियादी अंतर यह है कि भारत में दो प्रकार का जीएसटी (दोहरा जीएसटी) लगाया गया है. सरकार के दोनों स्तरों को संसाधन जुटाने के लिए कर लगाने के अलग-अलग अधिकार दिए गए हैं और तद्नुरूप संविधान में अधिकारों का विभाजन किया गया है.
जीएसटी करीब 50 वर्षों तक यूरोपीय कर व्यवस्था का एक घटक रहा है. यह एशिया प्रशांत क्षेत्र में परोक्ष कर का सर्वाधिक स्वीकृत और समर्थित रूप रहा है. यह बड़ी दिलचस्प बात है कि विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाएं जीएसटी के 40 से अधिक मॉडल संचालित कर रही हैं. प्रत्येक प्रणाली की अपनी विशिष्टताएं हैं. सिंगापुर और न्यूजीलैंड जैसे देश लगभग प्रत्येक वस्तु पर एक समान और सतत दर से कर लगाते हैं. इंडोनेशिया में 5 सकारात्मक दरें, 1 शून्य दर और करीब 30 से अधिक कर मुक्त श्रेणियां हैं. परंतु चीन में केवल वस्तुओं पर तथा सेवाओं के अंतर्गत केवल मरम्मत, प्रोसेसिंग और स्थानापन्न सेवाओं पर कर का प्रावधान है. इसकी वसूली केवल उत्पादन प्रक्रिया में प्रयुक्त वस्तुओं पर की जाती है. जबकि स्थिर आस्तियों पर जीएसटी वसूली योग्य नहीं है.
ऑस्ट्रेलिया में जीएसटी एक संघीय कर है, जो केंद्र द्वारा वसूल किया जाता है और बिना किसी संघर्ष के राज्यों को वितरित कर दिया जाता है. दूसरी तरफ अन्य देशों की तुलना में ब्राजील का जीएसटी मॉडल अधिक सम्प्रभुतापूर्ण है, जहां राज्यों और केंद्र के बीच कर विभाजित किए जाते हैं. सभी मामलों में जीएसटी की दरें 16 से 20 प्रतिशत निर्धारित की जाती हैं. भारत ने ब्राजील की प्रणाली से कुछ संकेत ग्रहण किए हैं और लगभग समान पद्धति अपनाई है.
जीएसटी अपनाने वाले अधिकतर देशों की व्यवस्थाओं से एक अतिरिक्त पहलू का पता चलता है कि जीएसटी को महंगाई बढ़ाने वाला समझा गया है. विशेषकर ऐसी स्थिति में जबकि किन्हीं वस्तुओं पर कर की दरें वर्तमान से अधिक निर्धारित की गई हों. उदाहरण के तौर पर सिंगापुर में 1994 में जीएसटी लागू होने के बाद महंगाई में बढ़ोतरी हुई. इसे देखते हुए प्रशासकों के लिए यह जरूरी हो गया है कि वे कर लागू होने के बाद मूल्यों में उतार-चढ़ाव पर निगरानी रखें. मलेशिया ने जीएसटी लागू होने के बाद एक मूल्य नियंत्रण प्रणाली लागू की, जिससे वह महंगाई को नियंत्रित करने में सफल रहा.
मलेशिया से एक और कार्यनीतिक बिंदु यह भी सीखने को मिलता है कि जीएसटी के कार्यान्वयन की तैयारी के लिए व्यापार को शीघ्र शुरू करने की आवश्यकता होती है. मलेशिया की सरकार को 1.5 वर्ष तक जीएसटी की तैयारी में लगे रहने के बावजूद कड़े विरोध का सामना करना पड़ा था. भारत में संयुक्त जीएसटी मॉडल लागू किए जाने और व्यापारियों को जीएसटी व्यवस्था के अनुकूल बनने का समय देने के बावजूद सरकार के लिए स्थिति से निपटना चुनौतीपूर्ण रहा है.
जीएसटी लेन-देन पर लगाया जाता है, जो अधिकतर व्यापारिक संगठनों के बीच में होता है. जीएसटी के अनुपालन के लिए अपेक्षित क्रमित वृद्धि और अंतराल के लिए एक व्यवस्था और आईटी प्रणाली आवश्यक है. यह पता चला है कि कई बड़े व्यापारिक घरानों ने आईटी व्यवस्था कायम करने का विरोध किया अथवा उसके बारे में अपील की, क्योंकि उनके साथ पहले से सम्पर्क नहीं किया गया. यह कहना सही नहीं होगा कि भारतीय दोहरे जीएसटी मॉडल की विशिष्टताओं के कारण अन्य देशों से जीएसटी प्रवीणता के लिए आईटी सॉफ्टवेयर प्राप्त करने से भारत में कोई भेदभाव पैदा होगा.
इतना ही नहीं, भारतीय जीएसटी प्रणाली में कर के भेदभाव के बिना छूट के दायरे को अत्यंत प्रतिस्पर्धात्मक रखते हुए छोटे और मझोले उद्यमों तथा बड़े उद्योगों को एक ही स्तर पर रखा गया है. छोटे और मझोले उद्यमों के समक्ष एक बड़ा कार्य है कि उन्हें बड़े उद्योगों के समान निवेश में सक्षम होना है और तद्नुरूप अपने नए बदलाव लाने हैं.
अध्ययन किए गए नमूनों के आधार पर इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता कि आम जनता, व्यापारी और कंपनियां जीएसटी को स्वीकार करने में शुरूआती विरोध प्रकट करें. परंतु, उच्च स्तरीय आयोजना, तैयारी और उद्योग को पर्याप्त समय देकर इस समस्या से निपटने के प्रयास के तहत व्यापारियों और प्रशासकों के बीच निरंतर वार्तालाप किया गया और कार्यान्वयन में उद्योग को शामिल करने से अनेक देशों में जीएसटी के सुचारू कार्यान्वयन में मदद मिली. नि:संदेह प्रारंभिक कार्यान्वयन अवधि में कुछ समस्याओं के बावजूद जीएसटी को कर संग्रह की एक सुचारू प्रणाली के रूप में मान्यता मिली है.
(लेखिका नई दिल्ली स्थित श्रमजीवी पत्रकार हैं. ईमेल loveeyyy@gmail.com आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं)
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