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संपादकीय लेख


अंक संख्या 51, 19-25 मार्च 2022

जल संसाधनों के स्थायित्व की ओर

ज्योति एस वर्मा

सरकार ने 2019 में जल मंत्रालय नाम से एक नए मंत्रालय की स्थापना के साथ, हर घर में स्वच्छ पेयजल पहुंचाने, भूजल तथा नदियों के प्रदूषण पर काबू पाने और अपने विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से जल संरक्षण तथा प्रबंधन को प्राथमिकता देने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है.

हर साल, लाखों लोग, जिनमें अधिकतर बच्चे हैं, अपर्याप्त जल आपूर्ति और अस्वच्छता से जुड़ी बीमारियों से मर जाते हैं. दुनियाभर में जल संसाधनों और जरूरतों का मूल्यांकन करने और पानी की कमी पर जलवायु परिवर्तन और सामाजिक अर्थशास्त्र के संभावित प्रभावों पर विचार करने के बाद, एमआईटी शोधकर्ताओं का कहना है कि 2050 तक दुनिया के अनुमानित 9.7 बिलियन लोगों में से लगभग 52 प्रतिशत को पानी की कमी का सामना करना पड़ेगा.अधिक जनसंख्या वाले विकासशील देशों में, पानी की कमी और प्रदूषण के साथ-साथ स्वच्छता की कमी और ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते दबाव की सार्वभौमिक समस्या के कारण संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2015 में निर्धारित सभी के लिए 'स्वच्छ पानी और स्वच्छताको 17 सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी 6) में शामिल किया है. इसके तहत वैश्विक भागीदारी  में सभी देशों- विकसित और विकासशील की संयुक्त कार्रवाई के साथ 2030 तक इस लक्ष्य को प्राप्त करने का आह्वान किया गया है.

भारत में विश्व की 18 प्रतिशत आबादी है, लेकिन जल संसाधन केवल 4 प्रतिशत है, इसलिए पानी के लिए उसका संघर्ष वास्तविक है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक टी. महापात्रा ने इंगित किया है कि प्रतिव्यक्ति पानी की वार्षिक उपलब्धता 1951 में 5,177 क्यूबिक मीटर से घटकर 2014 में 1508 क्यूबिक मीटर रह गई है. यह 1700 क्यूबिक मीटर की अंतरराष्ट्रीय मान्यता से नीचे है और प्रतिव्यक्ति 1000 क्यूबिक मीटर की जल संकट सीमा के पास है. आगे चलकर पानी की वार्षिक उपलब्धता के 2025 में 1465 क्यूबिक मीटर तथा 2050 में 1235 क्यूबिक मीटर तक घटने का अनुमान है. यदि यह आगे 1000-1100 के आस पास पहुंचती है, तब भारत पानी की कमी वाला देश घोषित किया जा सकता है.2019 में एक बड़ा बदलाव आया, जब केंद्र की नई सरकार ने देश में पानी की कमी और इससे उत्पन्न होने वाली समस्याओं के समाधान के लिए एक विशेष मंत्रालय का गठन किया. जल शक्ति मंत्रालय का गठन पिछले दो मंत्रालयों, जल संसाधन, नदी विकास तथा गंगा कायाकल्प मंत्रालय और पेयजल तथा स्वच्छता मंत्रालय को मिलाकर किया गया था. नए मंत्रालय का मुख्य उद्देश्य गंगा नदी को साफ करना, अंतरराज्यीय जल निकायों के विवादों को सुलझाना और प्रत्येक ग्रामीण परिवार को सुरक्षित तथा पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराना था. पिछले दो वर्षों में, इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अन्य हितधारकों को जोड़ने और भागीदार बनाने के लिए लक्ष्य, धन, प्रौद्योगिकी सहायता और मंच प्रदान किये गये हैं. अब तक किए गए कार्यों पर नियमित अपडेट देने के लिए समर्पित वेबसाइटों, डैशबोर्ड और मोबाइल एप्लिकेशन जैसे उपाय इन कार्यक्रमों को तत्काल, कुशल और पारदर्शी बनाते हैं.

जल जीवन मिशन

पेयजल और स्वच्छता विभाग की केंद्र प्रायोजित योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम को 2019 में पुनर्निमित किया गया और जल जीवन मिशन  में शामिल किया गया ताकि 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण घर में कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन प्रदान किया जा सके. अगले दो वर्षों में, हर घर जल के उद्देश्य से शुरू किए गए मिशन ने महामारी की चुनौतियों के बावजूद लोगों के जीवन में बड़ा बदलाव किया है. 2019 में, ग्रामीण क्षेत्रों के लगभग 18.93 करोड़ घरों में से लगभग 3.23 करोड़ (17 प्रतिशत) के पास नल के पानी के कनेक्शन थे. 8 मार्च, 2022 तक, मिशन ने लक्षित ग्रामीण परिवारों में से 47 प्रतिशत से अधिक को कवर किया.

जल जीवन मिशन के तहत, पेयजल स्रोतों को मजबूत करने और घरेलू अपशिष्ट जल के शोधन और पुन: प्रयोग के माध्यम से सभी मौजूदा जल आपूर्ति प्रणालियों और नल कनेक्शनों की कार्यक्षमता सुनिश्चित की जानी है. इस कार्यक्रम से ग्रामीण-शहरी अंतर को पाटने और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार से 19 करोड़ से अधिक ग्रामीण परिवारों को सीधे लाभ होगा. इस परिकल्पना को साकार करने के लिए मिशन को पर्याप्त धन दिया गया है.राज्यों की भागीदारी के साथ लागू किया गया, जल जीवन मिशन, 3.60 लाख रुपये करोड़ के फंड के साथ भारत सरकार के सबसे अधिक परिव्यय वाले सामुदायिक बुनियादी ढांचे में से एक है. यह केवल जल सुरक्षा की दिशा में काम करता है, बल्कि विनिर्माण उद्योग की भी मदद करता है, रोज़गार के अवसर पैदा करता है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सहायता प्रदान करता है. लंबे समय तक पेयजल सुरक्षा से लोगों को गांवों में टैंकर या ट्रेन या हैंडपंप लगाने जैसी आपात व्यवस्था करने से भी राहत मिलेगी.जल जीवन मिशन की अगली प्राथमिकता घरेलू स्तर पर सुनिश्चित और नियमित जलापूर्ति है. लंबे समय तक और नियमित आधार पर निर्धारित गुणवत्ता वाले पानी (भारतीय मानक ब्यूरो के अनुसार) की पर्याप्त मात्रा (55 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन) की आपूर्ति नल या जल आपूर्ति प्रणालियों की कार्यक्षमता को सुनिश्चित करेगी. घरों में पीने के पानी की सुनिश्चित उपलब्धता महिलाओं और लड़कियों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जो पीने के पानी को लाने के लिए लंबी दूरी तय करती हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.

जल जीवन मिशन को जन आंदोलन बनाने के लिए सरकार ने स्थानीय लोगों में स्वामित्व की भावना पैदा करने के वास्ते कार्यक्रम को विकेन्द्रीकृत, मांग-संचालित और समुदाय-प्रबंधित बनाया है. सरकार ने बड़े पैमाने पर पानी की कमी और पानी से संबंधित गंभीर समस्याओं जैसे आर्सेनिक तथा फ्लोराइड प्रभावित बस्तियों, अनुसूचित जाति/जनजाति बहुसंख्यक गांवों, सूखा प्रवण तथा रेगिस्तानी इलाकों, और जापानी एन्सेफलाइटिस (जेई/एईएस) प्रभावित जिलों से पीड़ित क्षेत्रों से शुरुआत की.सरकार ने यह भी महसूस किया कि पाइप जलापूर्ति योजनाओं को चालू करने में दो से तीन साल लग सकते हैं, और इसलिए राज्यों को सलाह दी गई कि वे विशेष रूप से आर्सेनिक और फ्लोराइड प्रभावित बस्तियों में पीने और खाना पकाने के प्रयोजनों के लिए 8-10 एलपीसीडी पानी उपलब्ध कराने के लिए एक अंतरिम (अल्पकालिक) उपाय के रूप में सामुदायिक जल शोधन संयंत्र (सीडब्ल्यूपीपी), स्थापित करें.

नमामि गंगे

एक एकीकृत संरक्षण मिशन, नमामि गंगे कार्यक्रम को प्रदूषण के प्रभावी उन्मूलन, और राष्ट्रीय नदी गंगा के संरक्षण तथा कायाकल्प कार्य को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार के एक प्रमुख कार्यक्रम के रूप में अनुमोदित किया गया है. सरकार प्रवेश स्तर की गतिविधियों (तत्काल दृश्यमान प्रभाव के लिए), मध्यम अवधि की गतिविधियों (पांच साल की समय सीमा के भीतर लागू की जाने वाली) और लंबी अवधि की गतिविधियों (10 साल के भीतर लागू की जाने वाली) के माध्यम से कार्यक्रम को लागू कर रही है.नमामि गंगे के तहत, 70 सीवेज प्रबंधन परियोजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैं, 73 सीवेज परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं, 11 सीवेज परियोजनाएं निविदा प्रक्रिया में हैं, छह नई सीवेज परियोजनाएं शुरू की गई हैं और 5023.98 (एमएलडी) की सीवरेज क्षमता निर्माण का कार्य किया जा रहा है.

स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन गंगा कायाकल्प के लिए दुनियाभर में उपलब्ध सर्वोत्तम ज्ञान और संसाधनों को इस्तेमाल करने का प्रयास किया जा रहा  है. कार्यक्रम का उद्देश्य नदी के किनारे विकास, नदी तल की सफाई, जैव विविधता संरक्षण, वनीकरण, जन जागरूकता, औद्योगिक अपशिष्ट निगरानी और गंगा ग्राम (नदी के किनारे 4,470 गांवों के स्वच्छता आधारित एकीकृत विकास की परियोजना) का निर्माण करना है. गंगा ग्राम परियोजना के लिए मंत्रालय एनएमसीजी, मंत्रालयों, राज्य सरकारों और जिलों के साथ मिलकर काम करता है.

अटल भूजल योजना

केंद्रीय क्षेत्र की योजना-अटल भूजल योजना के अंतर्गत सात राज्यों के चुनिंदा जल की कमी वाले क्षेत्रों में स्थायी भूजल प्रबंधन के लिए सामुदायिक भागीदारी और मांग से संबंधित उपायों पर जोर दिया गया  है. इस योजना में जल जीवन मिशन के लिए बेहतर स्रोत स्थिरता, 'किसानों की आय को दोगुना करनेके सरकार के लक्ष्य में सकारात्मक योगदान और समुदाय में इष्टतम जल उपयोग की सुविधा के लिए आदतों में बदलाव लाने की भी परिकल्पना की गई है.

इस वर्ष के विश्व जल दिवस का विषय भूजल: अदृश्य को दृश्यमान बनाना, भारत के लिए महत्वपूर्ण, भूजल से जुड़ा है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार यह एक महत्वपूर्ण संसाधन है जो दुनियाभर में पीने के पानी का लगभग आधा, सिंचित कृषि के लिए लगभग 40 प्रतिशत पानी और उद्योगों के लिए आवश्यक पानी का लगभग एक तिहाई पानी प्रदान करता है. दशकों से, यह भारत में पीने के पानी की कमी का सामना कर रहे लोगों के लिए एक समाधान रहा है. हालांकि, मानव गतिविधियां, जनसंख्या तथा आर्थिक विकास, जलवायु परिवर्तना और अन्य कारणों से भूजल संसाधनों पर दबाव डालती हैं, जिससे उनका ह्रास और प्रदूषण होता है.अटल भूजल योजना हरियाणा, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की जल की कमी वाली 8,353 ग्राम पंचायतों में शुरू की जा रही है. इसके लिए परिव्यय राशि 6,000 करोड़ रुपये है, जिसमें 3,000 करोड़ रुपये विश्व बैंक और 3,000 करोड़ रुपये केंद्र से ऋण है. यह राशि राज्यों को सहायता अनुदान के रूप में दी जाती है.

इस योजना के दो घटक हैं, संस्थागत मजबूती और क्षमता निर्माण (1,400 रुपये करोड़) तथा प्रोत्साहन (4,600 रुपये करोड़). पहला घटक मजबूत डेटा बेस, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और सामुदायिक भागीदारी को सुगम बनाकर भूजल  के लिए संस्थागत व्यवस्था को मजबूत करता है ताकि राज्यों को अपने संसाधनों का स्थायी प्रबंधन करने में सक्षम बनाया जा सके. दूसरा घटक भूजल प्रबंधन में सुधार के लिए केंद्र और राज्य दोनों की योजनाओं के बीच सामुदायिक भागीदारी, मांग प्रबंधन और अभिसरण पर जोर देते हुए पूर्व-निर्धारित परिणाम प्राप्त करने के लिए राज्यों को प्रोत्साहित करता है.

नदियों को आपस में जोड़ना

नदियों को आपस में जोड़ना भारत सरकार का एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम है और इसका उद्देश्य देश की जल समस्याओं का समाधान करना है. सूखाग्रस्त तथा वर्षा सिंचित क्षेत्रों और इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए राहत के रूप में यह कार्यक्रम पानी की उपलब्धता को बढ़ाकर पानी के वितरण में अधिक समानता लाने में सहायक है.वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा बजट भाषण में केन-बेतवा लिंक परियोजना के कार्यान्वयन की घोषणा के बाद, केंद्र ने 44,605 रुपये करोड़ की अनुमानित लागत से, नदियों को जोड़ने की नीति के तहत इसके कार्यान्वयन के लिए केन-बेतवा लिंक परियोजना प्राधिकरण का गठन किया. इस परियोजना में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के शुष्क बुंदेलखंड क्षेत्र में लगभग 11 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचाई के तहत लाया जाएगा.तत्कालीन सिंचाई मंत्रालय (अब जल शक्ति मंत्रालय) की राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के तहत, 1980 में तैयार क्षेत्र सर्वेक्षण और जांच तथा विस्तृत अध्ययन के आधार पर अंतरघाटी अंतरण के लिए 30 लिंक की पहचान की गई है, जिनमें हिमालयी नदियों के तहत 14 लिंक और प्रायद्वीपीय नदियों के घटक के तहत 16 लिंक इंटर-बेसिन के लिए हैं. प्रायद्वीपीय नदियों के तहत 14 लिंक और हिमालयी नदियों के तहत सात लिंक (भारतीय भाग) की व्यवहार्यता रिपोर्ट तैयार की गई है, और हिमालयी घटक की तीन लिंक परियोजनाओं (भारतीय भाग) की व्यवहार्यता रिपोर्ट का मसौदा तैयार किया गया है.केन-बेतवा लिंक परियोजना में केन नदी से बेतवा नदी तक यमुना की दोनों सहायक नदियों में पानी स्थानांतरित करने की परिकल्पना की गई है. केन-बेतवा लिंक नहर 221 किमी लंबी होगी, जिसमें सुरंग का 2 किमी लंबा हिस्सा भी शामिल है. नदियों को जोड़ने की परियोजना आठ साल में पूरी होगी.

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना

कृषि मंत्रालय का कार्यक्रम, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई), जल संरक्षण और प्रबंधन पर काम करने वाला एक महत्वपूर्ण सरकारी कार्यक्रम है.कृषि, पानी पर अत्यधिक निर्भर है और पानी की कमी से तेजी से प्रभावित हो रही है, जिसका देशभर के कई किसान परिवारों पर असर पड़ रहा है. जल-गहन खेती में कई लीटर पानी की खपत होती है जिसका उपयोग इस महत्वपूर्ण वर्ग की जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जा सकता है. विशेषज्ञों के अनुसार भारत के लिए सिंचाई विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहां तेजी से भूजल की कमी और खराब सिंचाई प्रणाली के कारण कृषि में 90 प्रतिशत पानी का उपयोग होता है.2015 में शुरू हुई पीएमकेएसवाई के तहत सरकार ने जल संरक्षण और प्रबंधन को प्राथमिकता दी है. स्रोत निर्माण, वितरण, प्रबंधन, क्षेत्र अनुप्रयोग और विस्तार गतिविधियों पर शुरू से अंत तक समाधान के साथ, केंद्रित तरीके से सिंचाई कवरेज बढ़ाने और जल उपयोग दक्षता में सुधार  के लिए कार्यक्रम तैयार किया गया है.जल संसाधन मंत्रालय, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय, भूमि संसाधन विभाग और कृषि तथा सहकारिता विभाग के फार्म जल प्रबंधन विभाग के एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम (आईडब्ल्यूएमपी) की योजनाओं और त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (एआईबीपी) को मिलाकर सिंचाई योजना तैयार की गई है. मंत्रालय का कहना है कि पीएमकेएसवाई को पांच साल में 50,000 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ देशभर में लागू करने की मंजूरी दी गई है. दिसंबर 2021 में, सरकार ने चल रही परियोजनाओं को पूरा करने के लिए कृषि उत्पादकता सुधार करने की योजना को चार साल के लिए 2025-26 तक बढ़ाया है और इसके लिए 93,068 करोड़ रुपये की अतिरिक्त परिव्यय राशि दी गई है.

पीएमकेएसवाई के प्रमुख उद्देश्य हैं- क्षेत्र स्तर पर सिंचाई में निवेश के अभिसरण को पूरा करना, सुनिश्चित सिंचाई के तहत खेती योग्य क्षेत्र को चौड़ा करना, पानी की बर्बादी को कम करने के लिए खेत में जल उपयोग दक्षता में सुधार करना, समुचित सिंचाई और अन्य जल-बचत प्रौद्योगिकियां अपनाने को बढ़ावा देना, जलभृतों के पुनर्भरण को बढ़ाना, शहरों से लगे कृषि क्षेत्रों के लिए उपचारित नगरपालिका अपशिष्ट जल के पुन: उपयोग की व्यवहार्यता का पता लगा कर स्थायी जल संरक्षण उपाय करना और सिंचाई प्रणाली में निजी निवेश को आकर्षित करना है.

केंद्र का प्रमुख सिंचाई कार्यक्रम, 'विकेन्द्रीकृत राज्य-स्तरीय योजना और अनुमानित निष्पादन मॉडलपर काम करता है, जिससे राज्य, जिला सिंचाई योजना और राज्य सिंचाई योजना के आधार पर अपनी सिंचाई विकास योजनाएं तैयार कर सकते हैं. पेयजल तथा स्वच्छता सहित सभी जल क्षेत्र गतिविधियां, मनरेगा, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग, और अन्य सहित सभी जल क्षेत्र की गतिविधियों के लिए एक अभिसरण तंत्र, पीएमकेएसवाई को एक व्यापक योजना बनाता है. राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय मंजूरी समिति (एसएलएससी), राज्य स्तर पर कार्यान्वयन और प्रतिबंधों की देखरेख करती है. केंद्र में, संबंधित मंत्रालयों के केंद्रीय मंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गठित एक अंतर-मंत्रालयी राष्ट्रीय संचालन समिति द्वारा कार्यक्रम की निगरानी और निरीक्षण किया जाता है. कार्यक्रम के कार्यान्वयन, संसाधनों के आवंटन, अंतर-मंत्रालयी समन्वय, निगरानी तथा प्रदर्शन मूल्यांकन, प्रशासनिक मुद्दों और अन्य कार्यों को संबोधित करने के लिए नीति आयोग के उपाध्यक्ष के नेतृत्व में एक राष्ट्रीय कार्यकारी समिति का गठन किया गया है.

सरकार उक्त कार्यक्रमों के लक्ष्यों को प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है. वह लोगों को जल सुरक्षा तथा स्थिरता के अपने दृष्टिकोण का हिस्सा बनाने और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों से लेकर देशों, कॉर्पोरेट, नागरिक समाज संगठनों तथा अन्य लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम भी चला रही है. हर घर जल और प्रति बूंद अधिक फसल जैसे संदेशों का उपयोग, लोगों को समझाने, सम्मान करने और उन्हें कार्यक्रमों का हिस्सा बनाने के लिए किया जा रहा है. जल, राज्य सूची का विषय होने के नाते, समान समर्पित राज्य कार्यक्रमों के साथ, पानी को सभी के लिए प्राथमिकता बनाया जा रहा है.

लेखक दिल्ली में वरिष्ठ पत्रकार हैं, उनसे jyotisverma2912@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.

व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं.