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संपादकीय लेख


Volume-3

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी): उच्चतर वृद्धि में सहायक


सुषमा रामचन्द्रन

संसद में चार पूरक जीएसटी विधेयकों के पारित होने के साथ ही देश में आगामी जुलाई से ऐतिहासिक वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने का मार्ग प्रशस्त हो गया है. ये विधेयक हैं - केंद्रीय जीएसटी (सीजीएसटी), समेकित जीएसटी (आईजीएसटी), संघ शासित प्रदेश जीएसटी (यूटी जीएसटी) और क्षतिपूर्ति कानून विधेयक. इन विधेयकों के प्रभावशाली परिवर्णी शब्दों से पता चलता है कि चिर प्रतीक्षित नए कर का कार्यान्वयन ऐसे ढंग से किया जा रहा है, जिसकी योजना मूल रूप में कुछ अलग से तैयार की गई थी. एकल स्तरीय कर की बजाए, यह अंतर-राज्य कर और राज्य स्तरीय कर सहित अनेक स्तरीय करारोपण के रूप में होगा. शुरू में इसकी परिकल्पना एकल बिंदु कर के रूप में की गई थी, जो मौजूदा अधिसंख्य करों का स्थान लेने वाला था. फिर भी, यह कहा जा सकता है कि जीएसटी का अर्थ है, वर्तमान में प्रचलित कराधान की विभिन्न परतों के स्थान पर गिने चुने करों की प्रणाली का कार्यान्वयन.
मुख्य वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) अधिनियम इस वर्ष संसद द्वारा पारित किया गया था. जीएसटी की मूल धारणा प्रस्तुत किए जाने के 15 वर्ष बाद और तत्संबंधी वार्ताएं शुरू होने के करीब एक दशक बाद यह कानून पारित हुआ है. सबसे पहले, राज्यों के बीच वार्ता शुरू हुई जिसमें वित्त मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह ने सभी सम्बद्ध पक्षों की संतुष्टि के लिए एक समझौता फार्मूला तैयार करने का प्रयास किया. यह लक्ष्य हासिल करने के लिए न केवल मोलभाव की कड़ी प्रक्रिया से गुजरना पड़ा बल्कि केंद्र सरकार को यह सहमति भी देनी पड़ी कि नए कर के लागू होने की स्थिति में संभावित राजस्व की हानि के लिए वह राज्यों को क्षतिपूर्ति करेगा. अगला कदम राजनीतिक पार्टियों के बीच बातचीत का था, जो समान रूप से कठिन था. जब इस विधेयक को वास्तव में पारित करने का वक्त आया, तो शासन बदल गया और एनडीए ने सरकार बनाई. एनडीए सरकार को विधेयक के बारे में विपक्ष के संशोधनों पर गंभीरतापूर्वक विचार करना था, क्योंकि विपक्ष के समर्थन के बिना राज्यसभा में विधेयक को पारित कराना संभव नहीं था. यह प्रक्रिया की शुरुआत मात्र थी क्योंकि जीएसटी विधेयक एक संविधान संशोधन विधेयक है और तदनुसार इसे कम से कम आधी राज्य विधानसभाओं द्वारा दो तिहाई बहुमत से अनुमोदित किया जाना अनिवार्य था. यह कठिन कार्य पूरा करने के लिए संसद द्वारा विधेयक के अनुमोदन के बाद 30 दिन का लक्ष्य रखा गया था, परंतु इसे 23 दिन के भीतर पूरा कर लिया गया.
जीएसटी के बारे में प्रश्न यह है कि यह किस तरह से ऐतिहासिक है और इसे क्यों भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए गेम-चेंजर या निर्णायक कहा जा रहा है? मूलत: इसका अर्थ है कि अधिकतर मौजूदा कर समाप्त हो जाएंगे और उनका स्थान एकल बिंदु कर लेगा. इससे नौकरशाही विषयक ढेर सारे कागजी कार्य समाप्त होंगे. यह खपत के इस अंतिम बिंदु पर एकल कर होगा. इससे विनिर्माण से लेकर बिक्री बिंदु तक आपूर्ति शृंखला के प्रत्येक स्तर पर लगने वाले अधिसंख्य कर समाप्त हो जाएंगे.
जीएसटी जिन करों का स्थान लेगा, उनमें केंद्रीय आबकारी शुल्क, अतिरिक्त सीमा शुल्क, जिसे सीवीडी के नाम से जाना जाता है, विशेष अतिरिक्त सीमा शुल्क (एसएडी) और सेवा कर शामिल है. ये कर वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा लगाए और वसूल किए जा रहे हैं. जीएसटी कुछ ऐसे करों का भी स्थान लेगा, जो राज्यों द्वारा लगाए जा रहे हैं जैसे राज्य वैट (मूल्य संवर्धित कर), केंद्रीय बिक्री कर, मनोरंजन और विलासिता कर (स्थानीय निकायों द्वारा लगाए जाने को छोडक़र) और लॉटरी, पण और जुआ कर.
यह कष्टदायक चुंगी कर को भी समाप्त करेगा, जिसके लिए ट्रकों को एक राज्य से दूसरे राज्य में प्रवेश करते हुए घंटों इंतजार करना पड़ता है. इस तरह वास्तव में यह भारत को एक विस्तृत एकल बाजार बनाएगा. भारतीय संघीय ढांचे में, चूंकि राज्य स्वयं के कर लगाते हैं, जो असंख्य हैं, अत: जीएसटी की तुलना यूरोपीय संघ से की जा रही है. अधिसंख्य कर प्रणाली से नागरिकों पर कराधान का बोझ बहुत अधिक बढ़ जाता है. जीएसटी की आदर्श स्थिति में अनेक केंद्रीय और राज्य करों के स्थान पर मात्र कुछ कर लगाने से लोगों पर कराधान का बोझ कम होना चाहिए.
भारत सही दिशा में आगे बढ़ रहा है. इसकी पुष्टि इस तथ्य से होती है कि 140 देश एकल वस्तु एवं सेवा कर को अपना चुके हैं. अध्ययनों से पता चलता है कि इन देशों में न केवल सरकारी राजस्व में बेतहाशा वृद्धि हुई है, बल्कि उनके सकल घरेलू उत्पाद में भी इजाफा हुआ है. 
आम जन द्वारा यह सवाल पूछा जा रहा है कि जीएसटी से अर्थव्यवस्था को क्या लाभ होगा? सबसे पहली बात यह है कि उद्योग और सेवा उत्पादकों, दोनों को ही प्रचालन में आसानी होगी. विनिर्माताओं का काम भी आसान होगा, क्योंकि उन्हें असंख्य आबकारी, चुंगी और अन्य करों के स्थान पर केवल एकल बिंदु पर कर अदा करना होगा. पूर्ववर्ती करों का भुगतान उत्पादन प्रक्रिया के प्रत्येक स्तर पर करना होता था. दूसरी बात यह है कि देशभर में सामान की आवाजाही आसान हो जाएगी, क्योंकि सामान को एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाते समय चुंगी अदा करने के लिए रुकना नहीं पड़ेगा. तीसरे, सेवाएं महंगी हो जाएंगी, क्योंकि प्रस्तावित नई व्यवस्था में उन पर मौजूदा दर से अधिक दर पर कर लगाया जाएगा. चौथे, कर भुगतान में आसानी के चलते कर से बचने या कर अदा न करने की प्रवृत्ति पर विराम लगेगा, जिससे सरकार के राजस्व में वृद्धि होनी चाहिए. इससे व्यापार में सुगमता की स्थिति में सुधार आएगा, जिसकी परिणिति अधिक निवेश में होगी और इस तरह आर्थिक विकास में तेजी आएगी.
परंतु, ज्यादातर राज्यों की चिंताओं में से एक समस्या जीएसटी के कार्यान्वयन को लेकर है, चूंकि जीएसटी लागू होने से राज्य स्तर पर लगाए जाने वाले शुल्कों से राज्यों को प्राप्त होने वाले राजस्व में कमी आने का अंदेशा है. परिणाम स्वरूप जीएसटी प्रारंभ करने के बारे में मोलभाव करने वाली राज्य के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति ने राज्यों को व्यापक राजस्व सुरक्षा प्रदान की है. इनमें सबसे महत्वपूर्ण वास्तविक क्षतिपूर्ति है, जो कुछ राज्यों, जिनकी पहचान ‘‘उत्पादक राज्यों’’ के रूप में की गई हो, को एक निर्दिष्ट समय के भीतर की जाएगी. दूसरे शब्दों में यह सुरक्षा उन क्षेत्रों को मिलेगी, जहां औद्योगिकरण हो चुका है और जो देश के अन्य भागों को अनेक उत्पाद निर्यात करते हैं. यह स्थिति ‘‘खपत’’ वाले उन राज्यों के प्रतिकूल है, जो अधिक विनिर्माण नहीं करते हैं, बल्कि अन्य क्षेत्रों से वस्तुएं आयात करते हैं. स्वाभाविक है कि आबकारी और अन्य राज्य करों की बदौलत उत्पादक राज्यों को खपत करने वाले राज्यों की तुलना में अधिक राजस्व मिलेगा. अत: यदि कोई हानि होगी, तो खपत करने वाले राज्यों की तुलना में उनकी हानि अधिक होगी. अत: राज्य शुल्कों को जीएसटी में समाहित किए जाने के कारण राज्यों को राजस्व में परिकल्पित हानि के लिए उन्हें क्षतिपूर्ति करने का निर्णय किया गया. यह क्षतिपूर्ति प्रथम पांच वर्षों के दौरान विलासिता वस्तुओं और तम्बाकू जैसी पातक वस्तुओं पर जीएसटी क्षतिपूर्ति उप-कर लगाए जाने के जरिए की जाएगी. पांच वर्ष की अवधि समाप्त होने के बाद जीएसटी क्षतिपूर्ति निधि में सृजित होने वाली किसी भी अतिरिक्त राशि को केंद्र और राज्यों के बीच बांट दिया जाएगा.
इस तरह, नया क्षतिपूर्ति कानून जीएसटी के प्रचालन के प्रथम पांच वर्षों के दौरान हानि वाले राज्यों के लिए व्यवस्था करेगा. पिछले वर्ष संसद द्वारा जीएसटी विधेयक पारित किए जाने के बाद मुआवजे का मुद्दा प्रमुख विचारणीय विषयों में से एक था. केंद्र और राज्यों के बीच अनेक मुद्दों पर विचार किया गया, जैसे कर प्रशासन का विभाजन, मुक्त समुद्री व्यापार पर कर और क्षतिपूर्ति की समस्या. सौभाग्य से इन मुद्दों का समाधान समय रहते कर लिया गया और जीएसटी इस वर्ष पहली जुलाई को लक्षित तारीख से प्रारंभ हो जाएगा.
जहां तक समेकित जीएसटी (आईजीएसटी) का प्रश्न है, इसे वस्तुओं की अंतर-राज्य आवाजाही पर कर लगाना संभव बनाने के लिए पारित किया गया है. दूसरे शब्दों में, अन्य अंतर-राज्य कर हटाए जाने के बावजूद जीएसटी कानून के अंतर्गत एक नया कर लगाया जा रहा है. यह उन राज्यों को एक और रियायत है, जो जीएसटी के लागू होने के बाद अंतर-राज्य कर समाप्त किए जाने से चिंतित थे. इतना ही नहीं, एक राज्य वस्तु एवं सेवा कर का भी प्रावधान है, जो राज्यों द्वारा राजस्व प्रोदभूत करने के लिए लगाया जा सकता है. संघ शासित प्रदेश अधिनियम केंद्र शासित प्रदेशों को भी ऐसा कर लगाने में सक्षम बनाता है. इस तरह, जीएसटी दो स्तरों पर लगाया जाएगा. एक केंद्र द्वारा, जो इसके जरिए राजस्व वसूल करेगा और दूसरा, राज्यों द्वारा, जो इससे राजस्व प्रोदभूत करेंगे. आईजीएसटी या वस्तुओं की अंतर-राज्य आवाजाही से प्राप्त राजस्व केंद्र सरकार के खजाने में जमा होगा.
दूसरे शब्दों में, रिटेल स्तर पर एकल बिंदु कर की मूल धारणा की बजाए, अब करीब तीन कर होंगे. इस प्रकार अब यह कहा जा सकता है कि एक कर के रूप में जीएसटी तीन स्तरीय कर को छोड़ कर सभी करों का स्थान लेगा, जिनमें सामान की अंतर-राज्य आवाजाही पर कर शामिल है.
कराधान के इन अधिसंख्य स्तरों को युक्तिसंगत बनाने का एक ही तरीका है कि इस देश में जीएसटी संघीय ढांचे में राज्य सरकारों के दबाव के कारण अपूर्ण ढंग से शुरू करना होगा. इसी वजह से कुछ क्षेत्रों में कर ढांचा वास्तविक रूप से वांछित स्तर से ऊंचा होगा. जीएसटी परिषद ने चार स्तरीय कर संरचना - पांच, बारह, अठारह और अ_ाइस प्रतिशत, की अनुशंसा की है. उच्चतम दर पर विलासिता वस्तुओं पर एक उप-कर लगाया जाएगा ताकि जीएसटी कार्यान्वयन के प्रथम पांच वर्षों के दौरान राजस्व में हानि के लिए राज्यों की क्षतिपूर्ति की जा सके. परंतु, केंद्रीय जीएसटी कानून में पीक दर को 20 प्रतिशत पर सीमित कर दिया है और राज्य जीएसटी में एक समान दर निर्धारित की गई है. इससे कर की अधिकतम दर 40 प्रतिशत पर जा सकती है, जो केवल वित्तीय आकस्मिकताओं के समय प्रवृत्त होगी.
समस्या यह है कि अधिकतर राज्य राजस्व की कमी का सामना कर रहे हैं और वे निश्चित रूप से यह चाहेंगे कि जीएसटी कानून के प्रावधानों के अंतर्गत कर का स्तर बढ़ाया जाए और अपने बजटीय घाटे कम किए जा सकें. वे शराब को जीएसटी के दायरे से बाहर रखने में सफल रहे हैं. पेट्रोलियम उत्पादकों को भी जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है, चूंकि वे केंद्र सरकार के लिए नकदी का भारी स्रोत हैं. इस तरह राज्यों द्वारा धन की जरूरत महसूस होने पर वित्तीय आकस्मिकताओं का बहाना किसी भी समय लागू किया जा सकता है. कोई भी राज्य सरकार अवांछित रूप में ऊंचे कर नहीं लगाना चाहेगी, जो उन्हें अलोकप्रिय बना सकते हैं. परंतु, ऐसे उत्पादों पर उच्च कर लगाना संभव होगा, जो व्यापक खपत वाले न हों. इससे अर्थव्यवस्था पर महंगाई का दबाव फिर भी पडऩे की संभावना रहेगी. अत: 28 प्रतिशत की उच्चतम दर में वास्तव में पर्याप्त कमी आनी चाहिए, ताकि केंद्र या राज्यों में से किसी के भी द्वारा उसे असुविधाजनक उच्च स्तर तक न पहुंचाया जाए. इस संदर्भ में पहले दिए गए एक प्रस्ताव का हवाला दिया जा सकता है, जिसमें स्वयं कानून के भीतर एक राजस्व की दृष्टि से तटस्थ कर की दर समाविष्ट करने की बात कही गई थी. इसका अनेक पक्षों द्वारा विरोध किया गया था, परंतु तथ्य यह है कि इससे राज्यों द्वारा केंद्र पर डाले जाने वाले दबाव से राहत मिलेगी.
उम्मीद की जा सकती है कि जीएसटी से बाहर रखे गए पेट्रोलियम उत्पादों और शराब जैसे प्रमुख राजस्व अर्जक स्रोतों को धीरे धीरे जीएसटी के दायरे में लाया जाएगा. इसके अतिरिक्त दीर्घावधि में केंद्र और राज्यों के बीच जीएसटी के विभाजन को भी दूर करने की आवश्यकता होगी. राज्यों को पुन: आश्वासन देना होगा कि उनकी सीमाओं के भीतर लगाए जाने वाले एकल कर से उन्हें पर्याप्त राजस्व प्राप्त होगा ताकि उनकी सरकारों को चलाना सुनिश्चित हो सके. यह भी उम्मीद की जा रही है कि एकल कर की बजाए तीन कर लागू करने की प्रवृत्ति इस देश में जीएसटी फार्मेट की स्थायी विशेषता नहीं बनेगी. साथ ही, जैसा कि पहले कहा जा चुका है, देश के संघीय स्वरूप को देखते हुए नए कर के राजस्व पहलू के संदर्भ में राज्य सरकारों की चिंताओं की अनदेखी करना संभव नहीं है.
अर्थव्यवस्था में अनेक बुराइयों के लिए जीएसटी को रामबाण के रूप में देखा जा रहा है. अनुमान है कि इससे सकल घरेलू उत्पाद में कम से कम एक से दो प्रतिशत के बीच इजाफा होगा और साथ ही देश में व्यापार करना अधिक आसान हो जाएगा. परंतु, यह तथ्य है कि मौजूदा फार्मेट में जीएसटी संभवत: तत्काल वांछित प्रभाव नहीं दे पाएगा. अनेक उत्पादों पर कर का स्तर ऊंचा होने के कारण यह समझा जा रहा है कि इससे महंगाई बढ़ेगी, लेकिन यह भी सही है कि भले ही मूल फार्मेट में लागू न किया जा रहा हो, जीएसटी एक साहसिक अनुभव है. लागू होने के बाद यह उम्मीद की जा सकती है कि इसकी अनेक कमजोरियां दूर की जाएंगी ताकि जीएसटी एक वरदान सिद्ध हो और इससे आम लोगों के जीवन में गुणवत्ता में सुधार आए.
(लेखक दिल्ली स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं. ईमेल sushma.ramachandran@gmail.com लेख में व्यक्त विचार उनके निजी विचार हैं).
चित्र: गूगल के सौजन्य से