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संपादकीय लेख


Editorial Article

राष्ट्रीय नागर विमानन नीति का रोज़गार
सृजन में योगदान

जितेन्द्र भार्गव

विमानन उद्योग को विश्वभर में आर्थिक विकास के प्रेरक के रूप में देखा जाता है. अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन संगठन (आईसीएओ) के अनुसार इस क्षेत्र का रोजगार गुणांक 6.10 रहा है, जो प्रभावशाली माना जाता है. ऐसे में यह आश्चर्यजनक बात है कि 1932 में देश में नागर विमानन का शुभारंभ किए जाने के बाद, भारत को राष्ट्रीय नागर विमानन नीति (एनसीएपी) का अनुमोदन करने में 83 वर्ष लगे. ज्ञातव्य है कि भारत में पहली उड़ान 1932 में जेआरडी टाटा ने कराची और मुम्बई क्षेत्र में वाया अहमदाबाद प्रारंभ की थी.

ऐसा नहीं है कि नीति निर्माताओं को देश में उड्डयन क्षेत्र के व्यापक विकास की संभावनाओं का ज्ञान नहीं था, परंतु उन्होंने भारतीय विमानन उद्योग यानी विमान सेवाओं और हवाई अड्डों के विकास पर जोर

देने की बजाय विदेशी कंपनियों को इस बात की अनुमति प्रदान की

कि वे भारतीय बाजार की संभावनाओं का लाभ उठा सकें. हमारे आकाश में चूंकि विदेशी विमान कंपनियां छाई रहीं, और विभिन्न भारतीय शहरों में अधिक से अधिक उड़ानों का प्रचालन करते हुए भारतीय नागरिकों को उनके गंतव्य तक पहुंचाती रहीं, अत: पायलट, केबिन स्टाफ, हवाई अड्डा कार्मिक, रख-रखाव इंजीनियर और तकनीशियनों के रूप में रोजगार के अवसर भी भारत की बजाय संयुक्त अरब अमीरात, कतर, सिंगापुर आदि, विदेशों में ही अधिक पैदा हुए.

इससे न केवल हमारे युवाओं को रोजगार के उन अवसरों से वंचित रहना पड़ा, जो हमारा बाजार उपलब्ध करा रहा था, बल्कि इससे विदेशी विमान कंपनियों को भारतीय यात्रियों से अर्जित विशाल विदेशी मुद्रा अपने देश भेजने की सुविधा भी प्राप्त हुई. पिछले दो दशकों के बारे में केवल इतना कहा जा सकता है कि देश के दीर्घावधि हितों की कीमत पर विदेशी विमान कंपनियों को प्रोत्साहित किया गया.

परंतु, कहावत है कि देर आयद दुरुस्त आयद’, अब मोदी सरकार की नागर विमानन नीति के रूप में अंतत: राष्ट्र को 15 जून, 2016 को पहली बार एक राष्ट्रीय नागर विमानन नीति (एनसीएपी) प्राप्त हुई है. करीब दो दशक के विचार विमर्श के बाद तैयार हुई यह नीति इस उद्योग को अपेक्षित दिशा देने वाली सिद्ध होनी चाहिए.

इस नीति के लक्ष्य संबंधी वक्तव्य में कहा गया है कि इससे ‘‘एक ऐसी पारिस्थितिकी-प्रणाली विकसित होगी, जो उड़ानों को जन-जन के लिए वहनीय बनाते हुए 2022 तक 30 करोड़ और 2027 तक 50 करोड़ घरेलू यात्रियों को अपने दायरे में शामिल कर सकेगी और साथ ही अंतर्राष्ट्रीय टिकटों की संख्या भी बढ़ा कर 20 करोड़ पर पहुंचा सकेगी. नीति के उद्देश्यों में निम्नांकित बातें प्रमुख हैं:-

*एकीकृत पारिस्थितिकी प्रणाली की स्थापना करना, जिससे नागर विमानन क्षेत्र का महत्वपूर्ण विकास हो सके और साथ ही पर्यटन प्रोत्साहन, रोजगार संवर्धन और संतुलित क्षेत्रीय विकास जैसे लक्ष्य भी हासिल किए जा सकें.

*प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल और कारगर निगरानी के जरिए विमानन क्षेत्र की सुरक्षा, संरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करना.

*राजकोषीय सहायता और ढांचागत विकास के जरिए क्षेत्रीय संचार व्यवस्था में बढ़ोतरी करना.

*विनियमन, सरलीकृत प्रक्रियाओं और ई-गवर्नेंस के जरिए व्यापार करने की प्रक्रिया को अधिक आसान बनाना.

*कार्गो, एमआरओ, सामान्य विमानन, एरोस्पेस विनिर्माण और कौशल विकास जैसे क्षेत्रों को कवर करते हुए समूची विमानन क्षेत्र शृंखला को संतुलित ढंग से प्रोत्साहित करना.

अपने में सर्व समाहित करते हुए एनसीएपी इस उद्योग के सभी पहलुओं जैसे क्षेत्रीय कनेक्टिविटी, सुरक्षा, हवाई परिवहन ऑपरेशन्स, मार्ग प्रसार दिशा निर्देश, अंतर्राष्ट्रीय प्रचालनों के लिए 5/20 की शर्त, द्विपक्षीय यातायात अधिकार, कोड-शेयर अनुबंध, राजकोषीय सहायता, राज्य सरकार, निजी क्षेत्र या पीपीपी मोड के अंतर्गत विकसित हवाई अड्डे, विमान नौवहन सेवाएं, रख-रखाव, मरम्मत और जीर्णोद्धार (एमआरओ), ग्राउंड हैंडलिंग आदि के बारे में सरोकार व्यक्त करती है.

क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और एमआरओ, दो ऐसे महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं, जिनका विमानन क्षेत्र को सुदृढ़ करने में विशेष योगदान है. ये दोनों क्षेत्र ऐसे हैं, जो रोजगार के व्यापक अवसर पैदा करेंगे. हम यहां उन क्षेत्रों पर प्रकाश डालने का प्रयास कर रहे हैं.

क्षेत्रीय कनेक्टिविटी में इस बात पर बल दिया गया है कि टियर-2 और टियर-3 शहरों के बीच हवाई संपर्क कायम किया जाए और एक घंटे की यात्रा के लिए 2,500 रुपये और आधा घंटे से कम की उड़ान के लिए 1,200 रुपये अधिकतम किराया वसूल किया जाए. अनेक व्यक्ति यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या इतना कम किराया व्यवहार्य है? इसका उत्तर जोरदार हां के रूप में दिया जा सकता है. राज्य सरकारों को अब आदेश दिया गया है कि वे मौजूदा हवाई पट्टियों का विकास करें, टर्मिनल भवन के रख-रखाव की लागत वहन करें, सुरक्षा और अग्निशमन सेवाएं प्रदान करें और विमान टर्बाइन ईंधन पर बिक्री कर में रियायतें दें. ऐसा करने से उड़ानों की प्रचालन लागत में महत्वपूर्ण कमी आएगी. इस संदर्भ में इस तथ्य की अनदेखी भी नहीं की जानी चाहिए कि एक घंटे से कम अवधि के अनेक वर्तमान मार्गों पर सब मिला कर किराया अभी भी 2,500 रुपये से कम है.

इस बारे में एक संगत प्रश्न यह पूछा जा रहा है कि कोई राज्य सरकार क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को प्रोत्साहित करने के लिए खर्च क्यों उठाएगी और रियायतें क्यों प्रदान करेगी? इसका उत्तर अत्यंत सरल है. विमानन क्षेत्र आर्थिक विकास का प्रेरक है. इसलिए, राज्य के किसी दूर दराज के क्षेत्र तक उड़ान प्रचालित करने से पर्यटन में वृद्धि होगी, होटलों का विकास होगा, स्थानीय उत्पादों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाया जा सकेगा और साथ ही क्षेत्र के लोगों को तीव्र यात्रा में मदद मिलेगी. चूंकि किराए की सीमा 2,500 रुपये निर्धारित की गई है, जिसे अनेक लोग वहन कर सकेंगे, अत: क्षेत्रीय कनेक्टिविटी संबंधी नीति को आने वाले महीनों में सफलता मिलनी चाहिए. क्षेत्रीय कनेक्टिविटी पर वांछित बल देने के लिए राष्ट्र को आवश्यकता इस बात की है कि हमारे सरकारी प्रशासक कुछ दूर दृष्टि अपनाएं. यह बात दोहराने की आवश्यकता नहीं है कि हवाई संपर्क में वृद्धि और प्रत्येक नई उड़ान के प्रचालन के साथ आनुषंगिक गतिविधियों के रूप में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे.

क्षेत्रीय मार्गों पर प्रचालन के लिए एयरलाइन प्रारंभ करने के इच्छुक उद्यमियों में विश्वास की भावना पैदा करने के लिए संभवत: एनसीएपी में क्षेत्रीय कनेक्टिविटी के अंतर्गत संचालित की जाने वाली उड़ानों के लिए वाइबिलिटी गैप फंडिंग (वीजीएफ) का भी प्रावधान किया गया है. इसे महत्वपूर्ण समझा जा रहा है, क्योंकि यदि कोई ऑपरेटर किसी क्षेत्रीय मार्ग पर, 2,500 रुपये के परिसीमित किराए पर प्रचालनगत लागत वसूल करने में विफल रहेगा, तो सरकार घाटा दूर करने के लिए धन प्रदान कर सकती है. इससे न केवल एयरलाइन के प्रचालनों को लाभदायक बनाना सुनिश्चित हो सकेगा, बल्कि उड़ानों में स्थिरता भी आएगी.

इसी प्रकार, सरकार ने नीति में हवाई संपर्क नेटवर्क के विस्तार और यात्रियों की संख्या में बढ़ोतरी की जो परिकल्पना की है, उसे देखते हुए यह स्वाभाविक है कि अधिक संख्या में विमान खरीदने होंगे. सुरक्षित प्रचालनों के लिए विमान की समय-समय पर मरम्मत आवश्यक होती है अत: इसके लिए देश को अधिक इंजीनियरों और तकनीशियनों की आवश्यकता पड़ेगी. मौजूदा कानून भारत में विमान के रख-रखाव को महंगा बनाते हैं, इसे देखते हुए ज्यादातर विमान कंपनियां अपने विमानों को मरम्मत के लिए श्रीलंका, सिंगापुर और दुबई भेजती हैं. अब एनसीएपी में करों में रियायतें एवं प्रोत्साहन के साथ-साथ एमआरओ  (रख-रखाव, मरम्मत और जीर्णोद्धार) कार्यों को बुनियादी ढांचा उद्योग का दर्जा देने से विमान रख-रखाव की लागत में कमी आएगी. इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि भारत में संचालित विमान कंपनियां अपने विमानों का रखरखाव भी भारत में ही करेंगी. क्षेत्रीय कनेक्टिविटी के लिए खरीदे गए नए और छोटे विमान भी एमआरओ कार्यों के लिए व्यापार के अधिक अवसर प्रदान करेंगे. इस प्रक्रिया में राष्ट्र विमानों को मरम्मत के लिए विदेश भेजे जाने की प्रवृत्ति को बदल पाने में सफल होगा, जिससे हमारे एमआरओ प्रतिष्ठानों को मरम्मत के लिए विदेशी एयरलाइन्स के विमान भी मिल सकेंगे.

इसकी परिणति क्या होगी? देश में एमआरओ सुविधाओं के विकास से स्थिर और भरोसेमंद व्यापार का विकास होगा, जिससे रोजगार के अवसर पैदा होंगे. एनसीएपी के अभाव में यदि अतीत में भारत को नुकसान हुआ है, तो भविष्य निश्चित रूप से उज्ज्वल समझा जा सकता है. वास्तव में बाजार के आकार के आधार पर वैश्विक प्रतिष्ठा हासिल नहीं होनी चाहिए. भारत का वर्तमान में विश्व में नौंवा स्थान है, लेकिन उसका प्रयास है कि 2022 तक वह अपने नागर विमानन क्षेत्र को सुदृढ़ बनाते हुए अमरीका और चीन के बाद विश्व में तीसरे स्थान पर पहुंच जाएगा. एनसीएपी का लक्ष्य निकट भविष्य में इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद पहुंचाना है.

(लेखक एयर इंडिया के पूर्व कार्यकारी निदेशक हैं. उन्होंने द डिसेंट ऑफ एयर इंडियानामक पुस्तक लिखी है. आलेख में व्यक्त विचार उनके निजी विचार हैं. ई-मेल:

 

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