उपभोक्ताओं में बढ़ती जागरूकता
डॉ. शीतल कपूर
‘‘यदि आप ग्राहकों को भौतिक दुनिया में असंतुष्ट करते हैं, तो प्रत्येक उपभोक्ता अपने छह मित्रों को इसकी जानकारी दे सकता है. यदि आप ग्राहकों को इंटरनेट पर नाखुश करते हैं, तो प्रत्येक उपभोक्ता 6,000 लोगों को आगाह कर सकता है’’-जेफ बेजॉस (संस्थापक और सीईओ, अमेजॅन).
उपभोक्तावाद, बाजार में उपभोक्ताओं का महत्व, उपभोक्ताओं के बीच बढ़ती जागरूकता, आदि ऐसेे क्षेत्र हैं, जो भारत में समकालीन उपभोक्ता आंदोलन की बढ़ोतरी में मील का पत्थर कहे जा सकते हैं. उपभोक्ताओं के रूप में हम उद्योग और व्यापार जगत द्वारा अपनाए जाने वाले कई अनुचित और अनैतिक तौर-तरीकों के शिकार होते हैं. हम दोषपूर्ण वस्तुओं, सेवा में कमी, खाद्य अपमिश्रण, नकली सामान, जमाखोरी, कपटपूर्ण और अनुचित भार, वितरण में देरी, पैक की सामग्री में भिन्नता, बिक्री के बाद की सेवाओं का अभाव, भ्रामक विज्ञापन, छिपी हुई कीमत से संबंधित घटक, मूल्य भेदभाव, एटीएम और क्रेडिट कार्ड संबंधी धोखाधड़ी, वित्तीय धोखाधड़ी, अचल संपत्ति की समस्याएं और सार्वजनिक सेवाओं से संबंधित अनेक समस्याओं से रू ब रू हो रहे हैं. चूंकि विक्रेता और व्यापारी जिम्मेदारी से कार्य नहीं करते हैं, इसलिए उपभोक्ताओं के बीच स्वयं-सहायता की इस आदत को विकसित करना और उन्हें उनके उपभोक्ता अधिकारों और जिम्मेदारियों के बारे में शिक्षित करना आवश्यक है ताकि वे खरीददारी करते समय सतर्क रहें.
नए उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2018 में उपभोक्ता विवाद निवारण तंत्र को पुख्ता बनाने की परिकल्पना की गई है. केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना से आम आदमी के उपभोक्ता अधिकारों के संरक्षण में मदद मिलेगी और उनकी शिकायतों का त्वरित, कम लागत पर और सरलता से निवारण किया जा सकेगा तथा अनुचित व्यापार पद्धतियों को रोका जा सकेगा. नया विधेयक उपभोक्ता संरक्षण में उत्पाद दायित्व की अवधारणा को भी शामिल करेगा और मध्यस्थता विवाद समाधान (एडीआर) व्यवस्था के रूप में मध्यस्थता को सक्षम बनाएगा. भारत में बढ़ते डिजिटल बाजार और विभिन्न हित धारकों के बीच ज्ञान की विषमता को ध्यान में रखते हुए, यह आशा की जाती है कि नया उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम मौजूदा कानून की खामियां दूर करेगा और यह उपभोक्ता आंदोलन को जबरदस्त बढ़ावा देगा.
भारतीय अर्थव्यवस्था और भारतीय उद्योग के तीव्र विकास और सीमाओं तथा बाजार के बदलते माहौल के साथ भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) अधिनियम, 2016 लागू किया गया है. बीआईएस ने ‘केयर’ नामक एक उपभोक्ता-अनुकूल ऐप भी विकसित किया है, जिसका उपयोग सूचना को एक्सेस करने और आईएसआई से चिह्न्ति उत्पाद/हॉलमार्क किए गए आइटम के खिलाफ शिकायत दर्ज करने के लिए किया जा सकता है. रियल एस्टेट या भूमि एवं संपदा क्षेत्र (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 उपभोक्ताओं के अधिकारों और हितों की रक्षा और व्यावसायिक पद्धतियों और लेन-देन में एकरूपता और मानकीकरण को बढ़ावा देने के लिए पारित किया गया. इसके अलावा सरकार ने सभी हितधारकों को एक मंच के तहत लाने के लिए इनग्राम -अर्थात् इंटिग्रेटिड ग्रिवांस रीड्रेसल मैकेनिज्म पोर्टल यानी समेकित शिकायत निवारण तंत्र पोर्टल शुरू किया है. एक तरफ राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन अपने टोल फ्री नंबर 1800-11-4000 या 14404 के साथ सलाह और मार्गदर्शन प्रदान करती है और उपभोक्ताओं को सशक्त बनाती है. वहीं दूसरी ओर, उपभोक्ताओं को बार कोड को स्कैन करने और उत्पाद के बारे में सभी विवरण प्राप्त करने में सक्षम बनाने के लिए एक स्मार्ट उपभोक्ता एप्लिकेशन लॉन्च किया गया है.
24 दिसंबर 2018 को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के अवसर पर उपभोक्ता मामलों के विभाग ने ‘उपभोक्ता मामलों का समय पर निपटान’ विषय को अपना लक्ष्य बनाया. कंज्यूमर्स इंटरनेशनल ने विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस 2019 के लिए ‘विश्वसनीय स्मार्ट उत्पाद’ को लक्ष्य बनाने की घोषणा की है. इतना ही नहीं, कंज्यूमर्स इंटरनेशनल ने इससे पहले ‘डिजिटल विश्व की स्थापना और उपभोक्ता विश्वास’ को अपना लक्ष्य बनाया था ताकि ऑनलाइन शॉपिंग करते समय उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक बनाया जा सके. ऑनलाइन शॉपिंग करते समय उपभोक्ताओं को मजबूत पासवर्ड का उपयोग करना चाहिए, ई-पोर्टल के बारे में पूरी जानकारी लेनी चाहिए, ई-मर्चेंट की गोपनीयता नीति के बारे में पता करना चाहिए, व्यक्तिगत जानकारी को गोपनीय रखना चाहिए, केवल ज्ञात ई-मर्चेंट के साथ खरीददारी करें और मासिक बैंक और क्रेडिट कार्ड विवरण की समीक्षा करें.
भारत सरकार ने उपभोक्ता संरक्षण के लिए बड़े उपाय किए हैं. अभी तक बाजार में क्रेता-विक्रेता संबंधों को नियंत्रित करने के लिए 24- उपभोक्ता समर्थक अधिनियम बनाए गए हैं. उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के तहत उपभोक्ता मामलों का विभाग भारत में उपभोक्ता कल्याण के लिए नीतियों के निर्माण के लिए जिम्मेदार है. ‘जागो ग्राहक जागो’ वर्ष 2005 में शुरू किया गया मल्टी मीडिया अभियान एक बहुत बड़ी सफलता है और यह नारा अब एक घरेलू नाम बन गया है. वर्ष 2015 में सरकार ने आम आदमी को सशक्त बनाने के लिए गामा पोर्टल और ग्राहक सुवधिा केन्द्र का शुभारंभ किया.
भारत के डिजिटल होते जाने को देखते हुए उपभोक्ताओं को सशक्त बनाने के लिए सरकार द्वारा कई नई योजनाएं शुरू की गई हैं. विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस के संदर्भ में इस लेख में मैं उपभोक्ता संरक्षण के क्षेत्र में दो महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा करता चाहती हूं.
ई कॉमर्स नीति और उपभोक्ता संरक्षण
भारत शीर्ष वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेजी से बढ़ता ई-कॉमर्स बाजार है और ऑनलाइन रिटेलिंग ने भारत में व्यापार के स्वरूप को बदल दिया है. खबरों के अनुसार ई-रिटेल बाजार 5३ प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है और 2026 तक ई-कॉमर्स के 200 अरब डॉलर तक बढऩे की उम्मीद है. ई वाणिज्य गतिविधियों को सरकार के विभिन्न विनियमों और अधिनियमों द्वारा नियंत्रित किया जाता है. सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000, इलेक्ट्रॉनिक डेटा इंटरचेंज और इलेक्ट्रॉनिक संचार के अन्य माध्यमों से किए गए लेनदेन के लिए कानूनी मान्यता प्रदान करता है, जिसमें संचार और सूचना के भंडारण के कागज आधारित तरीकों के लिए विकल्पों का उपयोग शामिल है. ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए यह जरूरी है कि वे कंपनी अधिनियम, 2013 और देश के अन्य प्रयोज्य कानूनों का अनुपालन करें. एफडीआई के साथ ऐसी कंपनियां केवल उन गतिविधियों में काम कर सकती हैं जिनकी विशेष रूप से अनुमति है. एफडीआई नियमों के किसी भी उल्लंघन को फेमा के दंडात्मक प्रावधानों द्वारा कवर किया जाता है. भारतीय रिजर्व बैंक फेमा का प्रबंधन करता है और वित्त मंत्रालय के अधीन प्रवर्तन निदेशालय फेमा के प्रवर्तन के लिए प्राधिकरण है. इसके अलावा, ई-कॉमर्स की गतिविधियों में अन्य बातों के साथ संबंधित राज्य के दुकान और प्रतिष्ठान अधिनियम का अनुपालन भी शामिल है.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 उपभोक्ताओं के हितों की बेहतर सुरक्षा के लिए लागू किया गया है जिसमें सभी वस्तुओं और सेवाओं और ई-कॉमर्स सहित सभी प्रकार के लेनदेन शामिल हैं. इस अधिनियम के तहत, उपभोक्ता विवादों का सरल, त्वरित और किफायती समाधान प्रदान करने के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग और फोरम नामक तीन स्तरीय अर्ध-न्यायिक तंत्र स्थापित किया गया है. उपभोक्ताओं को अपनी शिकायत दर्ज करने के लिए एक मंच प्रदान करने के वास्ते अगस्त 2016 से, एक पोर्टल www.consumerhelpline.gov.in विकसित किया गया है. इसके अलावा, उपभोक्ता मामलों के विभाग द्वारा स्थापित राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन (एनसीएच) उन उपभोक्ताओं की शिकायतें प्राप्त करती है, जिन्होंने ऑनलाइन या ऑफ लाइन मोड में खरीददारी की है. इसने उपभोक्ताओं की शिकायतों को हल करने के लिए 400 कंपनियों के साथ सहयोग किया है और उपभोक्ताओं के लिए एक वैकल्पिक शिकायत निवारण व्यवस्था उपलब्ध करायी है.
इसके अलावा, भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) के अंतर्गत बीआईएस प्रमाणित उत्पादों की गुणवत्ता के संबंध में दर्ज शिकायतों पर त्वरित ध्यान देने और उपभोक्ताओं को त्वरित समाधान प्रदान करने के लिए एक उपभोक्ता मामलों का विभाग है.
तालिका 1.1 ई-कॉमर्स के बारे में राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन (एनसीएच) पर प्राप्त शिकायतों का ब्यौरा
वर्ष प्राप्त शिकायतों समन्वय के लिए निपटान की निपटान
की संख्या भेजी गई शिकायतों गई शिकायतों उपलब्धि
की संख्या की संख्या प्रतिशत
मई 2014-मार्च 2015* 15168 5806 4510 77.7
अप्रैल 2015- मार्च 2016 28331 13959 11585 83
अप्रैल 2016-मार्च 2017 54872 38315 34852 91
अप्रैल 2017-मार्च 2018 78562 508
स्रोत: वार्षिक रिपोर्ट, उपभोक्ता मामले मंत्रालय
हाल ही में ऑनलाइन शॉपिंग के बारे में हुए एक शोध में पता चला है कि ई-रिटेलर्स द्वारा बेचे जाने वाले 5 उत्पादों में से 1 जाली और नकली पाया गया है और सुगंध, सौंदर्य प्रसाधन, खेल के सामान और बैग के मामले में नकली उत्पादों की आशंका सबसे अधिक रहती है. दिल्ली उच्च न्यायालय ने, यह सुनिश्चित करने के लिए कि लोकप्रिय ब्रांडों के डुप्लीकेट उत्पाद ऑनलाइन मार्केट प्लेस पर न बेचे जायें, एक ऑनलाइन पोर्टल कंपनी को निर्देश दिया कि वह इस बात की पुख्ता व्यवस्था करे कि उसकी साइट पर बिक्री के लिए प्रदर्शित प्रत्येक आइटम प्रामाणिक हो. सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम के अनुसार बिचौलियों में ई-कॉमर्स साइटें शामिल हैं क्योंकि वे विक्रेताओं की ओर से ग्राहकों को सेवाएं प्रदान करती हैं. अदालत ने यह भी कहा कि वेबसाइटों को सभी विक्रेताओं से एक प्रमाणपत्र लेना चाहिए कि वेबसाइट पर प्रदर्शित उत्पाद वास्तविक हैं और डुप्लीकेट और नकली नहीं हैं. इसके अलावा, साइटों को विक्रेताओं से इस आशय का प्रमाण पत्र या गारंटी प्राप्त करने का भी निर्देश दिया गया कि उनके मंच पर बेची जा रही वस्तुएं असली हैं, और उनके संदर्भ में ब्रांड की वारंटी और गारंटी लागू होंगी तथा उनका सम्मान किया जाएगा. किसी भी विक्रेता के उत्पाद जो इस तरह की गारंटी देने में असमर्थ हैं, उन्हें प्लेटफॉर्म पर प्रस्तुत नहीं किया जाएगा.
हॉलमार्किंग योजना
भारत में सोने की कुल खपत 800-850 टन है, जिसमें से 60 प्रतिशत ग्रामीण बाजारों से आता है. उपभोक्ताओं को तृतीय पक्ष आश्वासन और संतुष्टि प्रदान करने के लिए कि उन्हें दिए गए मूल्य (पैसे के लिए मूल्य) के लिए सोने (या चांदी) की सही शुद्धता मिल रही है, बीआईएस द्वारा हॉलमार्किंग योजना शुरू की गई है. हॉलमार्किंग कीमती धातुओं के आनुपातिक सामग्री का सटीक निर्धारण और आधिकारिक रिकॉर्डिंग है. इस तरह, हॉलमार्क कई देशों में उपयोग किए जाने वाले आधिकारिक निशान हैं जो कीमती धातु के लेखों की शुद्धता या सुंदरता की गारंटी के रूप में उपयोग किए जाते हैं. भारत में, वर्तमान में सोने और चांदी की दो कीमती धातुओं को हॉलमार्किंग के दायरे में लाया गया है.
हॉलमार्क तीसरे पक्ष के आश्वासन के रूप में कार्य करता है. उपभोक्ता किसी भी बीआईएस मान्यताप्राप्त परख और हॉलमार्किंग केंद्र से अपने गहने/नमूने का परीक्षण करवा सकते हैं. परख और हॉलमार्किंग केंद्र शुल्क वसूल कर प्राथमिकता के आधार पर उपभोक्ताओं के आभूषण/नमूने के परीक्षण का कार्य करते हैं. परख और हॉलमार्किंग केंद्रों के लिए सामान पर चिह्न्ति अनुसार सामान रिपोर्ट जारी करना अनिवार्य है. यदि उपभोक्ता द्वारा लाया गया हॉलमार्क किया हुआ आभूषण गहनों पर अंकित होने की तुलना में कम शुद्धता का पाया जाता है, तो परीक्षण शुल्क उस उपभोक्ता को वापस कर दिया जाएगा जिसने गहने हॉलमार्क किए थे. उपभोक्ता को संतुष्ट करने के लिए जौहरी को प्रतिस्थापन के माध्यम से बाध्य किया जाएगा जैसा कि मौजूदा योजना में परिकल्पित है. स्वर्ण पर हॉलमार्क लेख पाने के लिए शुल्क रु. 35/- प्रति लेख और प्रति खेप के लिए न्यूनतम शुल्क रु. 200/- (सेवा कर और लागू होने पर अन्य शुल्क अतिरिक्त होंगे). चांदी के सामान पर हॉलमार्किंग प्राप्त करने के लिए हॉलमार्किंग शुल्क रु. 25/-प्रति वस्तु है और प्रति खेप पर न्यूनतम शुल्क रु.150/-है (सेवा कर और लागू होने पर अन्य शुल्क अतिरिक्त होंगे).
1 जनवरी, 2017 से आपको सोने के आभूषण खरीदते समय निम्नांकित चिन्हों की जांच करनी चाहिए.
क. बीआईएस चिन्ह
ख. कैरट में शुद्धता और उत्कृष्टता (निम्नांकित में से कोई एक हो सकती है)
1) 22 कैरट 916 22 कैरट के समनुरूप
2) 18 कैरट 750 18 कैरट के समनुरूप
3) 14 कैरट 585 14 कैरट के समनुरूप
क. परख करने वाले/हॉलमार्किंग करने वाले केन्द्र के चिन्ह/संख्या की पहचान.
ख. आभूषण निर्माता के चिन्ह/संख्या की पहचान.
1 जनवरी, 2017 से उपभोक्ताओं को चांदी के आभूषण खरीदते समय निम्नांकित चिन्हों की जांच करनी चाहिए.
· बीआईएस चिन्ह सिल्वर
· शुद्धता ग्रेड/उत्कृष्टता (निम्नांकित में से कोई एक हो सकती है)
ग्रेड उत्कृष्टता
9999 999.9
9995 फाइन सिल्वर 999.5
999 999.0
990 990.0
970 970.0
925 925.0
900 सिल्वर मिश्रधातु 900.0
835 आभूषणों के लिए 835.0
800 शिल्पकृति 800.0
· परख करने वाले/हॉलमार्किंग करने वाले केन्द्र के चिन्ह/संख्या की पहचान.
· आभूषण निर्माता के चिन्ह/संख्या की पहचान.
सोने और चांदी के आभूषणों में धोखाधड़ी से बचने के लिए उपभोक्ताओं को हॉलमार्क वाले आभूषण खरीदने चाहिए और प्रमाणीकरण प्रमाणपत्र को सुरक्षित रखना चाहिएं.
निष्कर्ष: देश में उपभोक्ता आंदोलन की सफलता लोगों, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ताओं के बीच उनके अधिकारों के बारे में जागरूकता पर निर्भर करती है. विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस के आयोजन से उपभोक्ताओं के बीच उनके अधिकारों और उनकी समस्याओं का समाधान करने वाली एजेंसियों के अस्तित्व के बारे में जागरूकता पैदा करने में काफी मदद मिलती है. उपभोक्ता आंदोलन को मजबूत करने में स्वैच्छिक उपभोक्ता संगठन और शैक्षणिक संस्थान महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. नया उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2018, पहले से ही कानून बनने के रास्ते पर है, लेकिन उपभोक्ताओं का भी यह दायित्व है कि वे बाजार में स्वयं के हितों की रक्षा के लिए ऑफलाइन और ऑनलाइन खरीद के दौरान पर्याप्त सावधानी बरतें और अपने अधिकारों के प्रति सजग रहें.
(लेखक कमला नेहरू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षक हैं.
ईमेल: sheetal_kpr@hotmail.com
व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं
(छायाचित्र: गूगल से साभार)