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संपादकीय लेख


volume 52, 23 - 29 March,2019

डिजिटीकरण विकास और रोजग़ार को

पुनर्जीवित करने की कुंजी

डॉ. एस.पी. शर्मा और

मेघा कौल

डिजिटीकरण से तात्पर्य समाज के विभिन्न क्षेत्रों, जैसे कि उत्पादकों, वितरकों, खुदरा विक्रेताओं, श्रमिकों और उपभोक्ताओं के बीच रोज़मर्रा के जीवन में संबंध स्थापित करने के लिये डिजिटल प्रौद्योगिकी के एकीकरण से है. इसका आर्थिक गतिविधियों की बढ़ती गति, वृद्धिशील क्षमता और बेहतर विकास की संभावनाओं के संदर्भ में अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव पडऩे की आशा है. अंतर्देशीय अनुभवों से पता चलता है कि कृषि, उद्योग, बुनियादी ढांचा, खनन, विनिर्माण, व्यापार और वित्त जैसे आर्थिक क्षेत्रों में डिजिटीकरण के सकारात्मक परिणाम देखे गये. उत्पादन की बढ़ती संभावनाओं और अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि में डिजिटीकरण ने उद्यमियों के लिये कार्यबल का विस्तार करने और अधिक उत्पादन करने के अवसर प्रदान किये हैं.

भारत में डिजिटल क्रांति

भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रौद्योगिकीय बदलाव देखे गये हैं क्योंकि हाल के वर्षों में प्रौद्योगिकी को अपनाने में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. आने वाले समय में एक लाख गांवों का डिजिटीकरण ग्रामीण कनेक्टिविटी में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी करेगा और लोगों के जीवनस्तर में सुधार करेगा. डिजिटीकरण में वृद्धि से अर्थव्यवस्था पर व्यापक आर्थिक, सामाजिक प्रभाव के साथ-साथ सतत् विकास का प्रभाव भी पडऩे की आशा है. विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, विकासशील देशों में मोबाइल और ब्रॉडबैंड के क्षेत्र में 10 प्रतिशत की वृद्धि होने से प्रति व्यक्ति जीडीपी में क्रमश: 0.81 प्रतिशत और 1.38 प्रतिशत की वृद्धि होती है. इस प्रकार, डिजिटीकरण में सुधारों से अर्थव्यवस्था में डिजिटल क्रांति आने की आशा है और इसके परिणामस्वरूप आने वाले समय में विकास और रोजग़ार को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है.

डिजिटल अर्थव्यवस्था, रोजग़ार और आर्थिक वृद्धि

भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व आर्थिक व्यवस्था में सबसे तेज़ी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था है. संयुक्त राष्ट्र के 2018 के वैश्विक बहुआयामी गऱीबी सूचकांक (एमपीआई) के अनुसार, भारत में 270 मिलियन से अधिक लोग गऱीबी की रेखा से बाहर आ गये हैं. आगे बढ़ते हुए, वृद्धिशील जनसंख्या को अपने जीवन स्तर में सुधार करने और अर्थव्यवस्था में सभी समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिये अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराना अनिवार्य हो गया है. वृद्धिशील जनसंख्या का समर्थन करने के लिये प्रौद्योगिकी उत्पादकता बढ़ाने, घाटे को कम करने और अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों-कृषि और संबद्ध गतिविधियां, उद्योग और सेवाओं में कार्यकुशलता में सुधार के लिये प्रमुख भूमिका निभाती है. यह आशा की जाती है कि डिजिटीकरण में वृद्धि से आर्थिक गतिविधियों की दक्षता और प्रभावकारिता में उल्लेखनीय सुधार होगा और वृद्धिशील आर्थिक गतिविधियों में भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में हर वर्ष अतिरिक्त रोजग़ार सृजित करने की क्षमता है. वर्धित आर्थिक गतिविधि में अगले पांच वर्षों में आर्थिक वृद्धि दर में कम से कम 2 प्रतिशत की बढ़ोतरी करने की क्षमता है.

कृषि और संबद्ध गतिविधियां

सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 1950 के शुरू में कऱीब 50 प्रतिशत थी जो 2017-18 में लगभग 17 प्रतिशत रह गई है. हालांकि, आजीविका के स्रोत के तौर पर कृषि पर निर्भरता बहुत ज़्यादा, अर्थात 42 प्रतिशत है. अत: कृषि क्षेत्र के विकास में तेज़ी लाने की आवश्यकता है ताकि इसमें संलग्न कार्यबल के लिये रोजग़ार के पर्याप्त अवसरों का सृजन हो सके. डिजिटीकरण उत्पादकता बढ़ाने और उच्चतर आर्थिक पैमाने के लिये क्षेत्र में खाद्य पदार्थों की बर्बादी की चुनौती से निपटने में प्रमुख भूमिका निभा सकता है. डिजिटीकरण नैनो टेक्नोलॉजी में अनुसंधान के जरिये आपूर्ति शृंखला में सुधार के साथ हानि में कमी लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. इससे खाद्य वस्तुओं को अधिक समय तक संरक्षित रखने और कृषि उपज को ताज़ा रखने में सहायता मिलेगी. कृषि में आपूर्ति शृंखला प्रबंधन के डिजिटीकरण से समय पर वितरण और गोदामों में खाद्यान्न की पुन: आपूर्ति की सुविधा होगी. इससे किसानों के साथ-साथ वितरकों और अन्य स्टेक होल्डर्स को खाद्यान्नों के स्टॉक के बारे में महत्वपूर्ण सूचनाएं उपलब्ध होंगी जिससे उचित योजना बनाने और प्रचुर मात्रा में उत्पादन होने के कारण घाटे को कम किया जा सकेगा.

कृषि क्षेत्र मानसून पर बहुत अधिक निर्भर है. सामान्य वर्षा होने से अधिक कृषि उत्पादन होता है जिससे आर्थिक वृद्धि को मज़बूती मिलती है तथा मंहगाई पर अंकुश लगता है. दूसरी तरफ, कमज़ोर मानसून से सहायक सामग्री की लागत बढऩे के कारण खेती के उत्पादन की लागत में वृद्धि होती है. लागत में वृद्धि होने से निवल लाभ में कमी आती है और इससे किसानों की ख़र्च करने की क्षमता कम हो जाती है तथा इसका संपूर्ण ग्रामीण मांग पर असर पड़ता है.

डिजिटीकरण मौसम में आने वाले बदलावों का पूर्वानुमान लगाकर किसानों की सहायता कर सकता है ताकि किसान फसलों की बुआई और अन्य गतिविधियों की योजना बना सकें. इसके अलावा, सूचना की पहुंच के जरिए बेहतर मृदा उत्पादकता और मृदा संरचना की जानकारी से किसानों को सही फसलों के उत्पादन में सहायता मिल सकती है, जो उनकी भूमि और जलवायु की परिस्थितियों में उपयुक्त हैं.

डिजिटीकरण किसानों को अपने उत्पाद के सही दाम दिलाने में भी सहायता कर सकता है. कई बार किसान अपने उत्पाद के मूल्य से अनभिज्ञ होते हैं और कुछ मामलों में, अत्यधिक उत्पादन के कारण उन्हें अपने उत्पाद के अच्छे मूल्य नहीं मिल पाते हैं.   डिजिटीकरण बाज़ार से ही मूल्य प्राप्त करने के लिये उनकी उपज की कीमतों का आकलन करने के लिये उपकरण प्रदान करके उनकी सहायता करेगा. इसके अलावा, डिजिटीकरण वित्तपोषण के विभिन्न स्रोतों की सूचना प्रदान करते हुए किसानों को अपने खेती संबंधी कार्यों के लिये ऋण के औपचारिक स्रोतों का लाभ प्राप्त करने में भी सहायता करेगा.

डिजिटल अर्थव्यवस्था से पशुपालन, मत्स्य पालन जैसी संबद्ध गतिविधियों को भी अत्यधिक लाभ होगा. डिजिटल उपकरणों के अनुप्रयोग से समुद्र के ज्वार, मछली पकडऩे के संभावित क्षेत्र, समुद्र की स्थिति और बाज़ार से संबंधित सटीक जानकारी मिल सकेगी. इससे क्षेत्र की उत्पादकता में और वृद्धि होगी. इन सभी फायदों से क्षेत्र में आर्थिक वृद्धि होने की आशा है. इसलिये यह अनुमान है कि डिजिटीकरण से कृषि क्षेत्र में प्रच्छन्न बेरोजग़ारी का खाद्य प्रसंस्करण और मत्स्य, डेयरी और मत्स्य पालन जैसी संबद्ध गतिविधियों के प्रति बदलाव होने से लाखों की संख्या में अतिरिक्त रोजग़ारों का सृजन होगा.

प्रौद्योगिकी सक्षम विकास

वर्तमान आर्थिक प्रणाली को तेज़, मज़बूत और स्थाई विकास हासिल करने के लिये कुछ तकनीकों की आवश्यकता है. इनमें अन्य के साथ-साथ उन्नत तेल और गैस की खोज़, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, उन्नत भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस), क्लाउड कम्प्यूटिंग, इंटरनेट ऑफ  थिंग्स, मोबाइल इंटरनेट, अगली पीढ़ी के जीनोमिक्स और 3डी प्रिंटिंग और उन्नत सामग्री शामिल है.  

उद्योग

भारतीय उद्योग रोबोटिक्स के साथ ऑटोमेशन का प्रयोग कर रहा है. रोबोटिक्स मशीन लर्निंग एल्गोरिदम से लैस कंप्यूटर सिस्टम से दूर से जुड़ा होता है जो रोबोट को न्यूनतम मानव समर्थन के साथ नियंत्रित कर सकता है. यह साइबर भौतिक उत्पादन प्रणालियों पर आधारित है जो संचार, आईटी, डेटा और भौतिक तत्वों को एकीकृत करता है. ये प्रणालियां परंपरागत संयंत्रों को स्मार्ट निर्माणियों में परिवर्तित करती हैं. उम्मीद है कि डिजिटल अर्थव्यवस्था जैसे कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, बिग डेटा एनालिटिक्स, इंटरनेट ऑफ  थिंग्स (द्यशञ्ज) और रोबोटिक्स में निवेश के साथ, विनिर्माण चक्र का समय घटकर आधा हो सकता है जो आगे जाकर महत्वपूर्ण व्यापारिक लाभ प्रदान करेगा.

विनिर्माण क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. वर्तमान में, भारत के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण का हिस्सा लगभग 17 प्रतिशत है. यह कई उन्नत और उभरी अर्थव्यवस्थाओं के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र के हिस्से से कम है.

 

कुछ चयनित अर्थव्यवस्थाओं के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी

देश

2017 में सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी

 

चीन

29.3%

थाईलैंड

27.1%

 

जापान

21%

 

जर्मनी

20.7%

 

इंडानेशिया

20.2%

                                                       

स्रोत: पीएच.डी रिसर्च ब्यूरो-विश्व बैंक के वर्ष 2016 से संबंधित डेटा* के आधार पर संकलित 

डिजिटीकरण प्रक्रियाओं के आधुनिकीकरण और व्यावसायिक चक्रों के अनुकूलन से विनिर्माण क्षेत्र के विकास में उल्लेखनीय योगदान दे सकता है, जिससे क्षेत्र के विकास को प्रोत्साहित करने के लिये उच्चतर मूल्य और नये व्यापार की संभावनाएं होती हैं. इससे सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ेगी. यह अनुमान है कि कारखाने के संपूर्ण डिजिटीकरण से उत्पादकता में कऱीब 12त्न से 20त्न की वृद्धि होगी. इस प्रकार, उत्पादकता में वृद्धि से औद्योगिक गतिविधि बढ़ेगी जो इस क्षेत्र में रोजग़ार में वृद्धि के प्रति योगदान करेगा. यह अनुमान है कि उद्यमों की बढ़ी हुई कार्यकुशलता, मूल्य लागत अंतर में वृद्धि, उत्पादन संभावनाओं के विस्तार और कारखानों में कार्यबल के विस्तार के साथ लाखों की संख्या में अतिरिक्त रोजग़ारों का सृजन होगा.

सेवाएं

तकनीकी विकास और व्यापार वृद्धि ने सेवाओं में व्यापार की संरचना में महत्वपूर्ण परिवर्तन किया है. भारतीय अर्थव्यवस्था एक विकासशील देश का प्रमुख उदाहरण है जिसने बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (बीपीओ) और कम्प्यूटर सेवाओं जैसे क्षेत्रों में निर्यात क्षमता का निर्माण किया है. भारत का साफ्टवेअर सेवाओं का कुल निर्यात (पारगमन वाणिज्यिक उपस्थिति के जरिये निर्यातों को छोडक़र) 2017-18 में बढक़र 108.4 अमरीकी डॉलर हो गया, जो कि 11.6त्न की वृद्धि है. विश्व सेवाओं का निर्यात 2008 में 2.6त्न से बढक़र 2017 में 3.4त्न हो गया.

डिजिटल अर्थव्यवस्था बढऩे से सेवा क्षेत्र में महत्वपूर्ण आर्थिक लाभ मिलने की उम्मीद है क्योंकि उच्च वैश्विक संपर्क सेवा निर्यात को मज़बूती प्रदान करेगा और दुनिया के निर्यात में भारत की हिस्सेदारी और बढऩे की उम्मीद है. इंटरनेट ऑथ थिंग्स वस्तुओं और सेवाओं की आवाजाही को अनुकूल करेगा. इसके अलावा, यातायात प्रबंधन, मौसम संबंधी आपात स्थिति पर वास्तविक समय डेटा आसानी से उपलब्ध होगा जिससे देरी और प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकेगा. यह न केवल व्यापार को सुविधाजनक बनाएगा बल्कि सुरक्षा को बढ़ावा देगा और आपदाओं तथा कामचलाऊ प्रबंधन के कारण संसाधनों को होने वाली क्षति से बचायेगा. वैश्विक स्तर पर इंटरनेट कनेक्टिविटी बढऩे के कारण ई-कामर्स में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी जायेगी. यह न केवल ई-कामर्स में बल्कि संबद्ध गतिविधियों जैसे कि संभारतंत्र, विपणन और अन्य गतिविधियों में रोजग़ार के व्यापक अवसर खोलेगा. डिजिटीकरण से वित्तीय सेवाओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव पडऩे की आशा है.

इस प्रकार, डिजिटीकरण से सेवा क्षेत्र में जबर्दस्त उछाल आयेगा क्योंकि यह प्रत्येक उप क्षेत्र में रोजग़ार के व्यापक अवसर खोल देगा.

डिजिटीकरण एक नया गेम चेंजर है और एक नई पहचान बनाने के लिये तैयार है क्योंकि इसमें समाज के हर वर्ग में बदलाव हासिल करने तथा अर्थव्यवस्था में सभी समावेशी विकास और वृद्धि को बढ़ावा देने की अपार क्षमता है. प्रत्येक क्षेत्र के मूल्यवर्धन से जबरदस्त आर्थिक लाभ होने की उम्मीद है. आर्थिक गतिविधि में बढ़ोतरी से अगले पांच वर्षों में आर्थिक विकास दर कम से कम 2 प्रतिशत अंकों के साथ आगे बढऩे की क्षमता है. 

आगे जाकर, लोगों को डिजिटल रूप में प्रतिस्पर्धी बनाने के लिये देश में डिजिटल साक्षरता में सुधार करने की आवश्यकता है. डिजिटीकरण को स्कूली पाठ्यक्रम में शुरुआती दौर में ही जगह प्रदान की जानी चाहिये. प्रौद्योगिकी आधारित सेवाएं ऐसी भाषा में तैयार की जानी चाहियें जिसे उपयोगकर्ता आसानी से समझ सके. यह समय भारत के लिये प्रौद्योगिकीय विकास को गति प्रदान करने और इसे लाखों की संख्या में रोजग़ार सृजन करने के लिये अवसरों में बदलने का सबसे उपयुक्त समय है. यह अर्थव्यवस्था में परंपरागत नौकरियों से रोजग़ार सृजन के नये इंजनों के तौर  पर उभरने के लिये रोजग़ार परिदृश्य में बदलाव का दौर है. रोजग़ार सृजन में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी घटी है जबकि उद्योग और सेवाओं में तेज़ी से वृद्धि हो रही है. कार्यबल को बड़े पैमाने पर कौशल और पुन: कौशल प्रदान करने की ज़रूरत है ताकि उन्हें रोजग़ार के लिये तैयार किया जा सके. उद्योग को प्रौद्योगिकीय विकास में वृद्धि की पृष्ठभूमि के अधीन अपने व्यापारिक तौर तरीकों के पुनर्निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने और वर्तमान कार्यबल को पुन: कौशल प्रदान करने की आवश्यकता है. आगे बढ़ते हुए, हम डिजिटीकरण को बढ़ावा देने और देश में बढ़ते कार्यबल के लिये व्यापक रोजग़ार अवसरों के सृजन के लिये सभी स्टेक होल्डर्स की भागीदारी के लिये सरकार की ओर से और अधिक सुधारात्मक उपायों को लेकर उत्सुक हैं.

(डॉ. एस.पी. शर्मा और मेघा कौल पीएच.डी. चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री नई दिल्ली में क्रमश: मुख्य अर्थशास्त्री और अर्थशास्त्री हैं, ई-मेल:spsharma@phdcci.in)

व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं