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संपादकीय लेख


volume-41,12-18 January 2019

स्वामी विवेकानंद और उनके विचार

शंतेश कुमार सिंह और

शुभ कीर्ति सिंह

स्वामी विवेकानंद जी 1893 से भारत और विदेश में एक प्रसिद्ध व्यक्तित्व हैं. वे 1893 में शिकागो में आयोजित धर्म संसद में हिंदू धर्म पर अपने भाषण के ठीक बाद पूर्व और पश्चिम दोनों देशों में एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व बन गए. उनके विचार एक दर्शन बन गए हैं, जिसे  दुनिया भर में लोगों ने अपनाया है.21 वीं सदी में, भारत की युवा और उत्साही आबादी, जो आज अपने कार्यों से कल को बदल रही है, एक उद्देश्यपूर्ण संत नरेंद्रनाथ दत्ता (स्वामी विवेकानंद) केे सपनेे को जी रही है. 13 साल की अल्पायु में सभी रचनाओं के मूल में निहित सत्य को जानने की दृढ़ प्रतिबद्धता के साथ वेे एक ऐसी यात्रा पर निकले जो एक किंवदंती बन गई.

विवेकानंद के विचार

आज के भारत के लिए विवेकानंद के योगदान को 3 सी यानी कम्युनिटी, करेज और कंट्री  (समुदाय, साहस और देश) के रूप में वर्णित किया जा सकता है. जीवन की दुविधाओं में फंसा, कोई भी  युवा व्यक्ति, भारत के महान संत से एक विचार उधार ले सकता है और साहस के साथ कठिनाइयों से लडऩा सीख सकता है और अपने देश और समुदाय की सेवा कर सकता है. उनका जीवन और शिक्षाएं, पश्चिम के लिए एशिया के दिमाग को समझने में  सर्वाधिक महत्वपूर्ण मूल्य हैं. हार्वर्ड  के दार्शनिक,  विलियम जेम्स, ने स्वामी को वेदांतवादियों का आदर्शकहा. उन्नीसवीं सदी के प्रसिद्ध प्राच्यविद् मैक्स मूूलर और पॉल डूसन ने उन्हें वास्तविक सम्मान और स्नेह प्रदान किया. ‘‘उनके शब्द’’, रोमेन रोलैंड लिखते हैं, ‘‘महान संगीत, बीथोवेन की शैली में वाक्यांश हैं, हेंडेल कोरस के मार्च की तरह ताल मिलाते हैं. मैं उनकी इन बातों को नहीं छू सकता, क्योंकि वे बिजली के झटके की तरह मेरे शरीर के माध्यम से एक रोमांच प्राप्त किए बिना, 30 वर्षों की दूरी पर पुस्तकों के पन्नों के माध्यम से बिखरे हुए हैं. और मैं इसकी परिकल्पना नहीं कर सकता कि जब वे नायक के होंठों से ज्वलंत शब्दों में अभिव्यक्त  हुए होंगे, तो कितनेे कंपन और कितनेे प्रभाव उत्पन्न हुए होंगे.’’

अपने समुदाय आधारित दृष्टिकोण को व्यक्त करके, स्वामी विवेकानंद एक मजबूत और आत्मनिर्भर समुदाय के रूप  में भारत का उत्थानदेखते हैं. इसे प्राप्त करने के लिए, वेे भारत के लोगों को एकजुट होने के लिए प्रेरित करते हैं और समाज से अंधविश्वासों, सामाजिक बुराइयों और जातिगत श्रेष्ठता को जड़ से उखाड़ फेंकने की बात करते हैं. जाति व्यवस्था को देश की एकता और अखंडता में सबसे बड़ी बाधा मानते हुए, उन्होंने सभी भारतीयों से इसे त्यागने और जाति आधारित सामाजिक पदानुक्रम की नीरस प्रकृति को तोडऩे की अपील की. अपने कार्यकर्ताओं के लिए एक बार उन्होंने कहा था कि मैैं भारतीयों में ताकत, मर्दानगी, क्षत्रियत्व, या एक योद्धा और ब्रह्म-तेज या एक ब्राह्मण की चमक देखना चाहता हूं .... ये लोग दुनिया से अलग खड़े होंगे, अपना जीवन समर्पित करेंगे,  सत्य की लड़ाई लडऩे के लिए तैयार होंगे,  देश-देश जाकर अलख जगाएंगे. भारत के बाहर लगा एक झटका उसके भीतर एक सौ हजार झटकों के बराबर होगा. ठीक है, प्रभु इच्छा होगी तो सब ठीक होगा.’’ उनके ये विचार अपने देशवासियों और राष्ट्र के प्रति उनके प्यार और स्नेह को दर्शातेे हैं.

युवाओं को अपने संबोधन में उन्होंने उन्हें अनुकरणीय साहस दिखाने और निस्वार्थ सेवा में अपना जीवन समर्पित करने का निर्देश दिया.

‘‘उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए’’

 नव-वेदांत के अपने सिद्धांत में वेे स्पष्ट करते हैं कि मनुष्य की सेवा ईश्वर की सेवा है, इसलिए जीवन में पूर्ण त्याग को अपनाने के बजाय समाज के प्रति निस्वार्थ कर्म के पथ पर बढऩा चाहिए. वह आगे कहते हैं कि यह प्रत्येक व्यक्ति की प्रमुख जिम्मेदारी है कि वह अपने ज्ञान का संचार करके जनता को जगाने का काम करे और एकता की भावना को आत्मसात करे. समाज के प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्र के लिए बलिदान के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए.

 ‘‘दिन में एक बार अपने आप से बात करें, अन्यथा आप इस दुनिया में एक उत्कृष्ट व्यक्ति से मिलने से चूक सकते हैं’’

विवेकानंद का पूरा दर्शन देश की धुरी पर चलता है. एक महान राष्ट्रवादी होने के नाते, समुदाय, साहस, नव-वेदांत, सामाजिक परिवर्तन और लोकतंत्र की उनकी सभी अवधारणाएं पुनरुत्थानवादी भारत के उनके सपने के चारों ओर घूमती हैं और इसे एक महान और शक्तिशाली राष्ट्र में परिवर्तित करती हैं. इसके लिए, वे धर्म को राष्ट्रीय एकता के आधार के रूप में और समर्पित युवाओं को मजबूत राष्ट्र के इस विचार को प्राप्त करने के लिए एक साधन के रूप में मानतेे हैं. यूरोप में, राजनीतिक विचारों ने राष्ट्र की नींव रखी, लेकिन भारत के मामले में, धर्म राष्ट्रीय एकीकरण का आधार होगा. यह एक विशेष धर्म नहीं है जो राष्ट्रीय चेतना को प्राप्त करने में सहायता करेगा, बल्कि सभी धर्म राष्ट्रीय एकता के लिए एक आधार के रूप में काम करेंगेे क्योंकि आध्यात्मिकता सभी भारतीयों के रक्त में  है और यहां तक कि अतीत के भारतीय भी विविधता में एकता के इस विचार को पहले ही सिद्ध कर चुके हैं. स्वामी विवेकानंद की शिक्षाएं

स्वामी विवेकानंद की शिक्षाएं

·         हमारा पहला दायित्व है कि हम स्वयं से नफरत न करें; क्योंकि प्रगति के लिए हमें सबसे पहले अपने ऊपर और फिर ईश्वर पर भरोसा अवश्य होना चाहिए. जो व्यक्ति अपने पर भरोसा नहीं करता, वह ईश्वर पर कभी भरोसा नहीं कर सकता.

·         प्रत्येक कर्तव्य पवित्र है और कर्तव्य के प्रति समर्पण ईश्वर के प्रति सबसे बड़ी पूजा है.

·         समाज सबसे बड़ा है, जहां सर्वोच्च सत्य व्यवहारिक बनते हैं.

·         अपने पर भरोसा, भरोसा और भरोसा, ईश्वर में आस्था - यही महानता की कुंजी है............. स्वयं पर भरोसा रखें, और उस भरोसे के सहारे खड़े हों, और सुदृढ़ बने; यही हमारी जरूरत है.

·         हिंदू सुदृढ़ थे, उनके श्रेय के लिए यह कहा जाता है, वे अपने समस्त विचारों में सुदृढ़ चिंतक थे, इतने सुदृढ़ कि उनकी एक चिंगारी पश्चिम के तथाकथित सुदृढ़ विचारकों को भयभीत कर देती थी.

·         मेरे विचार में, किसी भी जाति को विवाह के पवित्रीकरण और अनुल्लंघनीयता के जरिए मातृभूमि के लिए अत्यंत सम्मान पैदा करना चाहिए.

·         भारत में सीता वह नाम है, जिसके लिए सब कुछ नेक, शुद्ध और पवित्र है; वह सभी कुछ जिसमें हम औरत को औरत कहते हैं.

·         त्याग और सेवा भारत के दो आदर्श हैं. इन दो मुद्दों को गहनता दें और बाकी सभी चीजें खुद ठीक हो जाएंगी.

·         मेरे आदर्श को वास्तव में कुछ शब्दों में रखा जा सकता है और वह है: मानव जाति को अपनी दिव्यता का उपदेश देना, और जीवन के प्रत्येक क्षण में इसे प्रकट करना.

·         जीवन में मेरी पूरी महत्वाकांक्षा एक ऐसी मशीन को गति में स्थापित करना है, जो हर किसी के द्वार पर नेक विचार लाएगी, और फिर पुरुषों और महिलाओं को अपना भाग्य तय करने का अवसर प्रदान करेगी. उन्हें यह जानने दें कि हमारे और अन्य देशों के पूर्वजों ने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण सवालों पर क्या सोचा है. उन्हें विशेष रूप से देखने दें कि अन्य अब क्या कर रहे हैं और फिर निर्णय लें. हमें रसायनों को एक साथ रखना है, क्रिस्टलीकरण उनके नियमों के अनुसार प्रकृति द्वारा किया जाएगा.

·         सत्य मेरा ईश्वर है, ब्रह्मांड मेरा देश है.

·         मुझे ऐसे धर्म पर गर्व है, जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौम स्वीकृति, दोनों बातें सिखाई हैं. हम न केवल सार्वभौमिक सहिष्णुता में विश्वास रखते हैं, बल्कि हम सभी धर्मों को सच मानते हैं. मुझे ऐसे राष्ट्र से सम्बद्ध होने पर गर्व है, जिसने धरती के सभी धर्मों और सभी राष्ट्रों के उत्पीडि़तों और शरणार्थियों को शरण प्रदान की. मुझे आपको यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने इस्राइलियों के सबसे शुद्ध अवशेषों को अपनाया, जो दक्षिण भारत में आए थे और उन्होंने उसी वर्ष हमारे साथ शरण ली थी, जिस वर्ष उनका पवित्र मंदिर रोमन अत्याचार से टुकड़े-टुकड़े हो गया था. मुझे उस धर्म से सम्बद्ध होने पर गर्व है, जिसने महान पारसी राष्ट्र के अवशेष को शरण प्रदान की और अभी भी उसे मजबूती प्रदान कर रहा है.

·         हमारा जयघोष, स्वीकृति होगी, और बहिष्करण नहीं. मैं, न केवल सहिष्णुता में .......... बल्कि स्वीकृति में विश्वास रखता हूं. मुझे क्यों बर्दाश्त करना चाहिए? सहिष्णुता का अर्थ है, कि मुझे लगता है कि आप गलत हैं और मैं सिर्फ  आपको जीने की अनुमति दे रहा हूं. क्या यह सोचना ईश निंदा है कि आप और मैं दूसरों को जीने की अनुमति दे रहे हैं.

·         दुनिया के धर्म बेजान मखौल बन गए हैं. दुनिया चरित्र चाहती है. दुनिया को उन लोगों की जरूरत है, जिनका जीवन निस्वार्थ प्रेम से संचालित है. वह प्रेम हर शब्द को वज्र जैसा बना देगा.

·         वेदांत धर्म उच्चतम सामान्यीकरण और विकास के नियम का हवाला देकर वैज्ञानिक जगत की मांगें पूरी कर सकता है. वेदांत ने इस बात को पूरी तरह सिद्ध किया है कि किसी भी वस्तु का स्पष्टीकरण उसके भीतर से आता है. वेदांत के देव, ब्राह्मण के पास स्वयं के बाहर से कुछ भी नहीं है, कुछ भी नहीं.

·         एक विचार, जो मुझे दिन के उजाले के रूप में स्पष्ट दिखाई देता है, वह है कि दुख अज्ञानता के कारण होता है, और किसी वजह से नहीं. दुनिया को रोशनी कौन देगा? अतीत में बलिदान एक नियम के रूप में रहा है, अफसोस कि यह आने वाले युगों के लिए भी बना रहेगा. सभी के कल्याण के लिए, पृथ्वी के सबसे अच्छे और सर्वश्रेष्ठ को अनेक लोगों की भलाई के लिए खुद को बलिदान करना होगा. अनंत प्रेम और दया के साथ सैकड़ों बुद्ध आवश्यक हैं.

·         क्या ईश्वर ऐसा करेंगे कि सभी पुरुष इतने सुदृढ़ हों, कि उनके दिमाग में दर्शन, रहस्यवाद, भावना और कर्म के सभी तत्व समान रूप से मौजूद हों! यह मेरा आदर्श है, एक आदर्श इंसान का मेरा आदर्श.

·         भारत में नारीत्व का आदर्श मातृत्व है- जिसका अर्थ है, अद्भुत, नि:स्वार्थ, सर्व दुखहरण और सदा क्षमा कर देने वाली मां.

o   शिक्षा के बारे में

·         शिक्षा मानव में पहले से निहित पूर्णता का प्रकटीकरण है.

·         शिक्षा से मेरा तत्पर्य वर्तमान प्रणाली से नहीं है, बल्कि रचनात्मक शिक्षण के साथ है. केवल किताबी शिक्षा काम नहीं करेगी. हमें ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है, जो चरित्र का निर्माण करे, मन की शक्ति बढ़ाए, बुद्धि का विस्तार करे और जिसके द्वारा व्यक्ति अपने पैरों पर खड़ा हो सके.

·         जो शिक्षा आम लोगों को जीवन के संघर्ष के लिए खुद को तैयार करने में मदद नहीं करती है, जो चरित्र की ताकत, परोपकार की भावना और एक शेर की हिम्मत नहीं लाती है - क्या वह शिक्षा कहलाने योग्य है? वास्तविक शिक्षा वह है, जो किसी को अपने पैरों पर खड़े होने में सक्षम बनाती है.

·         कर्म करने मात्र से व्यक्ति को वह जगह मिल सकती है, जहां पहुंचने के लिए बुद्ध को लंबे समय तक ध्यान लगाना पड़ा या ईसा मसीह को प्रार्थना करनी पड़ी.

अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करते हुए, उन्होंने हिंदू धर्म के बारे में दुनिया को जगाया. 21वीं सदी में वैश्विक युवाओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इनमें पहचान के संकट से लेकर वित्तीय बोझ तक, संकुचित सामाजिक मानदंडों से लेकर बहुसांस्कृतिक सामाजिक व्यवस्था की चुनौतियों तक शामिल हैं. विवेकानंद के पास आज के युवाओं के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश था. यह हमारे दिलों में मानव मन और करुणा की ताकत थी. विवेकानंद का दर्शन ‘‘जीव ही सेवा है’’ उनका मूल मंत्र था, जो महात्मा गांधी से लेकर हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक के आधुनिक भारतीय बौद्धिक विचारों का आधार बन गया. महात्मा ने एक बार लिखा था मैंने स्वामी विवेकानंद के कार्यों का भली-भांति अध्ययन किया है, और उनको समझने के बाद, मेरे मन में देश के लिए जो प्यार था, वह हजार गुना हो गया. उनके लेखन को किसी  परिचय की आवश्यकता नहीं है.

‘‘यदि मैं अपने अनंत दोषों के बावजूद खुद से प्यार करता हूं, तो मैं कुछ दोषों की झलक से कैसे किसी से नफरत कर सकता हूं’’

 वह अपनी छाप छोड़ता है.स्वामी विवेकानंद ने स्वतंत्र भारतीय विचारधारा को आकार दिया और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के आध्यात्मिक अग्रदूत के रूप में योगदान दिया. उनके इस योगदान को इंडियन अनरेस्टके लेखक वेलेंटाइन चिरोल ने कलमबद्ध किया. उन्होंने विवेकानंद की शिक्षाओं को भारत में राष्ट्रवादी आंदोलन के प्रमुख कारणों में से एक बताया.

समसामयिक युग में  विवेकानंद की प्रासंगिकता

समसामयिक युवा ज्यादातर दूसरी पीढ़ी के शिक्षार्थी होते हैं जो व्यावहारिक रूप से जीवन की चुनौतियों से निपटते हैं. वे अपने पूर्ववर्तियों के विपरीत समाज की शक्ति संरचनाओं पर सवाल उठाने के लिए बेहतर तरीके से सुसज्जित हैं. हालांकि, रोज़गार, सामाजिक मान्यता और किसी राष्ट्र विशेष  के साथ उनकी संबद्धता के बड़े सवाल की तरह उनकी दुविधाएं अभी भी बरकरार हैं. ये दुविधाएं  इस महान राष्ट्र में उपलब्ध मानवीय संसाधनों को कट्टरपंथी समूहों के गुटीय प्रचार के प्रति कमजोर बनाती हैं. विश्व स्तर पर आईएसआईएस जैसे  गुुुट और राष्ट्रीय स्तर पर नक्सलियों  द्वारा इस प्रचार को अंजाम दिया जा रहा है. स्वामी विवेकानंद ने राष्ट्र को एक संघनित संपूर्ण के रूप में माना, जहां रोज़गार केवल आय का स्रोत होने के बजाय दूसरों की सेवा करने का माध्यम होगा. इसके अतिरिक्त, विवेकानंद युवाओं की क्षमताओं को भारतीय राष्ट्र की मजबूती में सबसे बड़े निर्धारक के रूप में भी देखते हैं. उनके लेखन और उनके इस विश्वास ने, कि हिंदू धर्म का केंद्रीय संदेश जरूरतमंदों और दलितों की सेवा करना है, पंडित दीन दयाल उपाध्याय और वीर सावरकर जैसे महान दार्शनिकों को जन्म दिया. आधुनिक भारतीय दर्शन में अंत्योदय, वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा उनके मंत्र तुष्टिकरण के बिना सशक्तिकरणके माध्यम से भी परिलक्षित होता है.

ब्रह्मांड में पहले से ही सभी शक्तियां हमारी हैं. यह हम ही हैं, जिन्होंने अपनी आंखों पर हाथ रखे हैं और रो रहे हैं कि अंधेरा है’’

विवेकानंद का तर्क है कि हमारा लक्ष्य पूरे समाज की सेवा करना है और वे इसेे हासिल करने के लिए व्यक्ति को सशक्त बनाने के एक दर्शन का निर्माण करते हैं. उनके विचारों को एक कर्मयोगी के रूप में वर्णित किया जा सकता है. भारत के नागरिक उनके संदेशों से बहुत कुछ सीख सकतेे हैं. दृढ़ निश्चय और समर्पण के साथ शुरूआत करना, व्यक्तिगत आकांक्षाओं के साथ-साथ सामाजिक प्रगति हासिल करने के लिए एक पूर्वशर्त है.

21 वीं सदी में भारतीयों के लिए विवेकानंद का सबसे महत्वपूर्ण संदेश है- आत्म विश्वास. उन्होंने पश्चिम की सर्वोच्चता को चुनौती दी और 1893 की धर्म संसद में साबित किया कि हिंदू धर्म जीवन का सबसे प्राचीन और पूर्ण दर्शन है. उनका भाषण आधुनिकता के संस्थापक सिद्धांतों के लिए एक वास्तविकता की जांच भी थी, जो उत्पादन को मानव के समक्ष रखकर उसे अलग कर देता है. उनका संदेश बुलंद और और स्पष्ट था कि करुणा और प्रेम सामाजिक और वैश्विक सद्भाव तक पहुंचने का माध्यम हैं. उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक जागृति के बिना आर्थिक सशक्तिकरण एक आधा अधूरा लक्ष्य होगा. वेदान्तिक शिक्षाएं पश्चिम को एक तर्कसंगत और मानवतावादी उद्यम के रूप में धर्म की उपयोगिता समझाती हैं. उनके संदेश आधुनिक भारतीय राष्ट्र और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की मूल विशेषताओं के आधार थे.

लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए बड़े पैमाने पर समर्थन स्वामी विवेकानंद का राष्ट्र के लिए एक और महत्वपूर्ण योगदान है जो अभी भी कई मायनों में प्रासंगिक है. चिंतन एवं विचार-विमर्श की स्वतंत्रता पर उनके विचार वर्तमान परिस्थितियों में पथ प्रदर्शक हैं, जिसमें मीडिया कर्मियों, आरटीआई कार्यकर्ताओं और स्वतंत्र लेखकों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर कई तरह के दबाव हैं. जाति और वर्ग  विभाजन केे सर्वनाश और अधिक समानता के लिए विवेकानंद का आह्वान उन सभी देशवासियों के लिए वरदान साबित हो सकता है जो हमारे देश में जाति और वर्ग श्रेणीबद्ध व्यवस्था के अपमानजनक रूपों के चंगुल में बुरी तरह से फंसे हुए हैं.

विवेकानंद जी के अनुसार, सहिष्णुता सद्भाव की गारंटी नहीं है, इससे समुदायों के बीच परस्पर संघर्ष कम हो सकता है. परन्तु, करुणा आम सहमति और सद्भाव की गारंटी दे सकती है, यदि उसका पालन सच्ची भावना के साथ किया जाये. दिन-प्रतिदिन के जीवन में यह संदेश सार्वजनिक नीति और समाज में लोकतंत्रीकरण के लिए मार्गदर्शक हो सकता है. हम अक्सर दुनिया की अन्य संस्कृतियों के प्रति असहिष्णुता के बारे में समाचार देखते हैं, इस संबंध में विवेकानंद आधुनिकता से अधिक आधुनिक थे क्योंकि उन्होंने दावा किया था कि सभी धर्म सच्चे हैं और किसी धर्म की अन्य धर्म से श्रेष्ठता के कारण प्राच्य धर्मों की प्रतिष्ठा कम नहीं होगी.

राष्ट्र और व्यक्ति

स्वामी विवेकानंद ने एक राष्ट्र की कल्पना सशक्त मानवों की एक समेकित इकाई के रूप में की, जहां प्रगति का अर्थ है दबे-कुचले लोगों की मदद करने की क्षमता और  विकास में  का अर्थ है आध्यात्मिक उद्देश्य के साथ भौतिक उपलब्धियां. उनके विचार में राष्ट्र एक  संघनितइकाई है, जो दुनिया भर में मानवता की सेवा के लिए हमेशा तैयार रहे. राष्ट्र के उनके विश्लेषण में व्यक्तिगत चेतना सबसे महत्वपूर्ण कारक थी. उनके लिए, अंतरात्मा परमेश्वर की आवाज है जो कभी गलत नहीं हो सकती. विवेकानंद को मानवीय क्षमताओं में दृढ़ विश्वास था. उनका मानना था कि मानव मन ईश्वर की सबसे शक्तिशाली रचना है. लेकिन इसके साथ ही वे कारण और जुनून के बीच द्विभाजन के प्रति सजग थे. उन्होंने उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में संघर्षों को धर्म, विश्वास, और मानव तर्क संगतता की गलत व्याख्या के परिणामस्वरूप देखा. उन्होंने कभी भी सतही दृष्टिकोण का तर्क नहीं दिया, बल्कि उन्होंने  पश्चिमी देशों को उनके सीमित विश्व दृष्टिकोण के बारे में जगाने की कामना की. यही कारण है कि उन्होंने कहा ‘‘दूसरों को न्याय करने में हम हमेशा उन्हें अपने आदर्शों द्वारा न्याय प्रदान करते हैं. यह स्थिति वह नहीं है, जो होनी चाहिए. सभी को उनके आदर्श के अनुसार न्याय मिलना चाहिए, किसी अन्य के आदर्श के अनुरूप  नहीं.’’ उन्होंने एक बार कहा था कि पश्चिम में सामाजिक जीवन हंसी के ढेर की तरह है, लेकिन इसके नीचे एक अपशकुन है. सारी बात एक झटके में खत्म हो जाती है. मजेदार और तुच्छता सभी सतह पर है, वास्तव में, यह दुखद तीव्रता से भरा है. यहां यह दु:खद है और बाहर की ओर उदास है, लेकिन, इसके तले अनासक्ति और उदासी है’.

विवेकानंद ने आध्यात्मिक कल्याण से उत्पन्न राष्ट्रीय कल्याण को महसूस किया, क्योंकि वे जानते थे कि राष्ट्रीय चरित्र एक दिन में नहीं बनाया जा सकता, यह इतिहास, धर्म, संस्कृति और विभिन्न अन्य घटकों द्वारा आकार ग्रहण करता है. उन्होंने कहा कि  राष्ट्रीय कल्याण के लिए, हमें सबसे पहले दौड़ के लिए सभी आध्यात्मिक बलों की तलाश करनी चाहिए, जैसा कि योर के समय में किया गया था और आने वाले समय में किया जाएगा.

‘‘अपने जीवन में जोखिम उठाइए. यदि आप जीतते हैं, तो आप नेतृत्व कर सकते हैं, यदि आप हार जाते हैं, तो मार्गदर्शन कर सकते हैं’’

 उपर्युक्त तर्कों की पंक्ति में एक बार उन्होंने कहा था कि ‘‘कोई भी राष्ट्र जनता के बीच  शिक्षा और बुद्धि के प्रसार के अनुपात में उन्नत होता है.’’ वेे हमेशा चाहतेे थेे कि राज्य लोगों के अनुकूल आर्थिक और सामाजिक नीतियों को लागू करने और लागू करने के द्वारा सार्वजनिक कल्याण के लिए काम करे.

निष्कर्ष

भारतीय राजनीतिक पुनर्जागरण परंपरा के एक महान दार्शनिक, रामकृष्ण मिशन के संस्थापक,  स्वामी विवेकानंद को देश के प्रति उनके अविस्मरणीय योगदान के लिए हमेशा याद किया जाएगा. उन्हें पश्चिमी दुनिया में हिंदू धर्म के सच्चे चेहरे और भारतीय सभ्यता की महानता के बारे में भारतीयों में जागरूकता फैलाने का श्रेय दिया जाता है. वे औपनिवेशिक भारत के दौरान एक प्रमुख हस्ती थे, लेकिन भारतीय संस्कृति और राष्ट्र के पुनरुद्धार के लिए उनका दृष्टिकोण, समय की सीमा से परे है. नौजवानों को उनका संबोधन, लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए समर्थन, वेदान्तिक दर्शन को धता बताना और नव-वेदांत दर्शन, राष्ट्रीय एकता के आधार के रूप में धर्म, जाति और वर्ग विभाजन को तोडऩेे, सार्वभौमिक सद्भाव, समुदाय के प्रति समर्पित होने की  लोगों से अपील करनेेे, आदि उनके आदर्श हैं, जो  21 वीं सदी में उभरती समस्याओं के समाधान में भारतीय राज्य का मार्ग प्रशस्त करेंगे और वे आने वाली पीढिय़ों के लिए हमेशा मार्गदर्शक रहेंगे.

कुल मिलाकर,  उन्होंने न केवल पुनरुत्थानशील भारत की कामना की बल्कि उसे एक मजबूत और स्वतंत्र राष्ट्र में बदलने का रोडमैप प्रदान किया. विवेकानंद सभी भारतीयों और दुनिया भर के लोगों के लिए एक प्रेरणा हैं और हमेशा  बने रहेंगे.

(शंतेश कुमार सिंह, पोस्ट डॉक्टरल फेलो यूनाइटेड नेशन्स यूनिवर्सिटी, कुआलालंपुर, मलेशिया.

शुभ कीर्ति सिंह, पीएच.डी. रिसर्च स्कॉलर, स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टॅडीज, जेएनयू, नई दिल्ली.

ई-मेल आईडी: imanna@metal.iitkgp.ac.in