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संपादकीय लेख


VOLUME-37,8-14 December, 2018

 

मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा के 70 वर्ष

 

डॉ. अपर्णा श्रीवास्तव और आदित्य अंशु

10 दिसंबर 2018, आज से 70 वर्ष पूर्व संयुक्त राष्ट्र महासभा ने आज ही के दिन मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को मंजूरी दी थी. मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा और इसके सिद्धांतों के प्रति राष्ट्रों की वचनबद्धता की बदौलत करोड़ों लोगों की गरिमा बचायी जा सकी, असंख्य लोगों के कष्ट दूर हुए और सर्वाधिक न्यायप्रिय विश्व की आधारशिला रखी जा सकी.

यूडीएचआर का परिचय

सार्वभौमिक घोषणा को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 दिसंबर, 1948 को मंजूरी प्रदान की थी. द्वितीय विश्वयुद्ध से जुड़े संत्रास और कष्टों की परिणति के रूप में सार्वभौमिक घोषणा को मंजूरी मिली और यह एक ऐसी वैश्विक परियोजना के विकास की नींव का पत्थर बनी, जो मानवाधिकारों के संरक्षण के प्रति वचनबद्ध थी. यह एक ऐसी परियोजना थी, जिसके बारे में सार्वभौमिक घोषणा की प्रस्तावना में कहा गया कि यहविश्व में स्वतंत्रता, न्याय और शांति की बुनियाद है’. सार्वभौमिक घोषणा पहली बार एक ऐसे अवसर के रूप में सामने आई, जब विश्व के देश किसी भी तरह से पृथक किए जाने वाले मानवाधिकारों के बारे में एक व्यापक वक्तव्य पर सहमत हुए. यह घोषित किया गया कि मानवाधिकार सार्वभौमिक है - जो सभी लोगों को मिलने चाहिएं, चाहे वे कोई भी हों, अथवा कहीं भी रह रहे हों. सार्वभौमिक घोषणा में नागरिक और राजनीतिक अधिकार शामिल हैं, जैसे जीवन, स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आजादी और निजता का अधिकार. इसमें आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार भी शामिल हैं, जैसे सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा.

सार्वभौमिक घोषणा कोई संधि नहीं है, इसलिए यह राष्ट्रों पर प्रत्यक्ष कोई कानूनी दायित्व नहीं डालती है. परंतु, यह  ऐसे मूलभूत मूल्यों की अभिव्यक्ति है, जो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सभी सदस्यों के साझा हैं और इसने अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों के विकास पर गंभीर प्रभाव डाला है. कुछ लोगों का कहना है कि 60 वर्ष से अधिक समय के दौरान राष्ट्रों द्वारा इस घोषणा को चूंकि निरंतर तलब किया जाता रहा है, अत: यह व्यावहारिक अंतर्राष्ट्रीय कानून का अभिन्न अंग बन गई है. इसके अतिरिक्त सार्वभौमिक घोषणा ने कई अन्य अंतर्राष्ट्रीय समझौतों को जन्म दिया है, जो पुष्टि करने वाले देशों पर कानूनी रूप में बाध्यकारी हैं। ये हैं -

नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के बारे में अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा और

आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा.

सार्वभौमिक घोषणा में वर्णित अधिकारों का विस्तार करने वाले अन्य बाध्यकारी समझौतों में निम्नांकित शामिल हैं:

सभी प्रकार के नस्लीय भेदभाव की समाप्ति से संबंधित समझौता 1965.

महिलाओं के प्रति सभी प्रकार के भेदभाव की समाप्ति संबंधी समझौता 1979

यातना और अन्य क्रूरता, अमानवीय या निकृष्ट व्यवहार या दंड के खिलाफ  समझौता 1984.

बाल अधिकारों के बारे में समझौता 1989.

विकलांगजनों के अधिकारों के बारे में समझौता 2006.

मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा में निहित मूल्य जितने 70 वर्ष पहले प्रासंगिक थे, वे आज भी उतने ही प्रासंगिक और शाश्वत हैं. मानवाधिकारों के समर्थकों के लिए आज एक चुनौतीपूर्ण घड़ी है, यह एक ऐसा समय है जब मानवाधिकारों से संबंधित अनेक नियम और मानदंड खतरे में पड़ गए हैं, विशेषकर जब हम जातीय और धार्मिक आधारों पर अज्ञातजनों के प्रति पैदा किए गए संशय के आधार पर अर्जित लोकप्रियता में बढ़ोतरी, मानवाधिकारों के रक्षकों पर हमले और इस परिषद सहित बहुराष्ट्रीय संस्थानों का विरोध देख रहे हैं.

ऐसे में यह उचित समय है कि पिछले 70 वर्षों के अनुभवों औरसार्वभौमिकताके अर्थ  और आज की चुनौतियों के संदर्भ में उसकी प्रयोज्यता पर एक बार फिर से विचार करें.

सार्वभौमिकता का अर्थ है, कि सभी मानव, बिना किसी अपवाद के, मानवाधिकारों को पूर्ण रूप में हासिल करने के हकदार हैं.

यूडीएचआर का विस्तृत ब्यौरा

मानवाधिकारों से सम्बद्ध सार्वभौमिक घोषणा की अद्भुत परंपरा रही है. इसका सार्वभौमिक नजरिया इस तथ्य से व्यक्त होता है कि गिनीज़ वल्र्ड रिकॉर्ड में यह घोषणा सर्वाधिक अनुदित दस्तावेज के रूप में दर्ज हुई है, जिसे अबखाज से ज़लु तक आज दिनांक तक 512 भाषाओं में अनुदित किया गया.

जैसा कि प्रस्तावना में कहा गया है, ‘अंतर्निहित गरिमा को मान्यता और मानव परिवार के सभी सदस्यों के समान और अपरिहार्य अधिकार विश्व में स्वतंत्रता, न्याय और शांति की बुनियाद हैं’. घोषणा हम सभी को स्वयं के मानवाधिकारों और अन्यों के मानवाधिकारों के समर्थन में खड़ा होने का अधिकार प्रदान करती है.

यह घोषणा एक जीवंत, सार्वभौमिक दायरे वाला और प्रत्येक व्यक्ति के लिए अत्यंत प्रासंगिक दस्तावेज है.

अनुच्छेद 1

सभी मानव स्वतंत्र पैदा हुए हैं और गरिमा एवं अधिकारों की दृष्टि से समान हैं. वे विवेक बुद्धि और अंत: करण से सम्पन्न हैं और उन्हें एक दूसरे के प्रति भाईचारे की भावना से काम करना चाहिए.

अनुच्छेद 2

प्रत्येक व्यक्ति, जाति, रंग, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीतिक या अन्य विचारधारा, राष्ट्रीय या सामाजिक मूल, संपत्ति, जन्म या अन्य स्थिति के, भेदभाव के बिना इस घोषणा में वर्णित सभी अधिकारों और स्वतंत्रताओं को पाने का हकदार है.

इसके अतिरिक्त, किसी व्यक्ति के साथ, उसके देश या भूभाग की राजनीतिक, अधिकार क्षेत्र विषयक या अंतर्राष्ट्रीय स्थिति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा, चाहे वह स्वतंत्र प्रदेश, ट्रस्ट, गैर-स्वशासित अथवा किसी अन्य तरह की सीमित संप्रभुता वाला क्यों हो.   

अनुच्छेद 3

प्रत्येक व्यक्ति को जीवन स्वतंत्रता और व्यक्तिगत सुरक्षा का अधिकार है.

अनुच्छेद 4

कोई व्यक्ति दास या गुलाम नहीं होगा; दासता और गुलामी कुप्रथा की सभी रूपों में मनाही होगी.

अनुच्छेद 5

कोई व्यक्ति यातना या क्रूरता, अमानवीय या निकृष्ट व्यवहार या दंड के अधीन नहीं होगा.

अनुच्छेद 6

प्रत्येक व्यक्ति को कानून के समक्ष एक व्यक्ति के रूप में सर्वत्र मान्यता का अधिकार होगा.

अनुच्छेद 7

कानून के समक्ष सभी समान होंगे और कानून के जरिए बिना किसी भेदभाव के समान संरक्षण के पात्र होंगे. इस घोषणा के उल्लंघन में किसी तरह के

भेदभाव और ऐसा भेदभाव भडक़ाने के खिलाफ  हर किसी को संरक्षण का समान अधिकार होगा.

अनुच्छेद 8

प्रत्येक व्यक्ति को संविधान या कानून द्वारा प्रदान किए गए मौलिक अधिकारों के उल्लंघनो के कृत्यों के लिए सक्षम राष्ट्रीय न्यायाधिकरणों से कारगर उपाय हासिल करने का अधिकार होगा.

अनुच्छेद 9

किसी व्यक्ति को निरंकुश गिरफ्तारी, हिरासत अथवा निर्वासन के अधीन नहीं रखा जाएगा.

अनुच्छेद 10

प्रत्येक व्यक्ति को उसके अधिकारों और दायित्वों के निर्धारण तथा किसी प्रकार के आपराधिक आरोप में किसी स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायाधिकरण द्वारा पूर्ण समानता के साथ स्वतंत्र और सार्वजनिक सुनवाई का अधिकार होगा.

अनुच्छेद 11

दंडनीय अपराध के आरोपी प्रत्येक व्यक्ति को तब तक निर्दोष समझे जाने का अधिकार होगा, जब तक कि किसी सार्वजनिक सुनवाई में कानून के अनुसार वह दोषी सिद्ध नहीं हो जाता और ऐसी सुनवाई में उसे अपने बचाव के लिए सभी अनिवार्य गारंटियां प्रदान की जाएंगी.

किसी व्यक्ति को ऐसे कार्य या त्रुटि के लिए दंडनीय अपराध का दोषी नहीं ठहराया जाएगा, जो कारित किए जाने के समय किसी राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय कानून के अंतर्गत दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता हो.

अनुच्छेद 12

किसी व्यक्ति की निजता, परिवार, घर या पत्राचार में कोई निरंकुश हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा, और ही उसके सम्मान अथवा प्रतिष्ठा पर कोई हमला किया जाएगा. प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे हस्तक्षेप या हमलों के खिलाफ  कानूनी संरक्षण का अधिकार प्राप्त है.

अनुच्छेद 13

प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी राष्ट्र में उसकी सीमाओं के भीतर स्वतंत्र रूप से आने जाने और रहने का अधिकार प्राप्त है.

प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं के राष्ट्र सहित किसी देश को छोड़ कर जाने और स्वदेश में वापस आने का अधिकार है.

अनुच्छेद 14

प्रत्येक व्यक्ति को उत्पीडऩ से बचने के लिए अन्य देशों में आश्रय की मांग करने और शरण में रहने का अधिकार प्राप्त है.

यह अधिकार ऐसे उत्पीडऩों के मामले में तलब नहीं किया जा सकता, जो गैर-राजनीतिक अपराधों अथवा संयुक्त राष्ट्र के प्रयोजनों और सिद्धांतों के विपरीत कार्यों से उचित ढंग से उत्पन्न हुए हों.

अनुच्छेद 15

प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्रीयता का अधिकार प्राप्त है.

किसी व्यक्ति को निरंकुश ढंग से राष्ट्रीयता से अथवा राष्ट्रीयता बदलने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता.

अनुच्छेद 16

प्रत्येक वयस्क पुरुष और महिला को जाति, राष्ट्रीयता या धर्म के भेदभाव के बिना विवाह करने और परिवार पाने का अधिकार है. उन्हें विवाह करने, वैवाहिक जीवन के दौरान और विवाह भंग किए जाने के मामले में समान अधिकार प्राप्त हैं.

विवाह केवल इच्छुक पति/पत्नी की स्वतंत्र और पूर्ण सहमति से ही किया जा सकेगा.

परिवार किसी समाज की प्राकृतिक और मूलभूत समूह  इकाई है और यह समाज और राष्ट्र द्वारा संरक्षण प्राप्त करने की हकदार है.

अनुच्छेद 17

प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं के नाम पर और अन्यों के साथ मिल कर संपत्ति रखने का अधिकार है.

किसी व्यक्ति को निरंकुश ढंग से उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा.

अनुच्छेद 18

प्रत्येक व्यक्ति को विचार, अंत:करण और धर्म की स्वतंत्रता है; इस अधिकार के अंतर्गत धर्म या मान्यता बदलने की स्वतंत्रता शामिल है, और उसे अपने धर्म या मान्यता की शिक्षाओं, पद्धतियों, पूजा और अनुपालन का सार्वजनिक या निजी तौर पर प्रचार करने का अधिकार है.

अनुच्छेद 19

प्रत्येक व्यक्ति को विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है; इस अधिकार के अंतर्गत बिना किसी हस्तक्षेप के राय रखने और जानकारी और विचाार मांगने, प्राप्त करने और प्रदान करने का अधिकार शामिल है, जो किसी भी माध्यम से और सीमाओं के बंधन से मुक्त है.

अनुच्छेद 20

प्रत्येक व्यक्ति को शांतिपूर्ण सभा करने और संगठन बनाने की स्वतंत्रता है.

किसी व्यक्ति को किसी संगठन से जुडऩे के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा.

अनुच्छेद 21

प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्यक्ष अथवा स्वतंत्र रूप से चुने गए प्रतिनिधियों के जरिए अपने देश की सरकार में शामिल होने का अधिकार है.

प्रत्येक व्यक्ति को देश में सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंच का समान अधिकार प्राप्त है.

सरकार के प्राधिकार का आधार लोगों की इच्छा होगी; लोगों की यह इच्छा सावधिक और समुचित चुनावों के जरिए व्यक्त की जाएगी, जो सार्वभौमिक और समान मताधिकार पर आधारित होंगे तथा गुप्त मतदान अथवा समकक्ष स्वतंत्र मतदान प्रक्रियाओं के जरिए कराए जाएंगे.

अनुच्छेद 22

प्रत्येक व्यक्ति को, समाज के एक सदस्य के रूप में सामाजिक सुरक्षा का अधिकार है और वह राष्ट्रीय प्रयासों तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के जरिए उसे पाने का हकदार है और प्रत्येक राष्ट्र के संगठन और संसाधनों के अनुसार उसे ऐसे आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार प्राप्त हैं, जो उसकी गरिमा, और व्यक्तित्व के स्वतंत्र विकास के लिए अपरिहार्य हैं.

अनुच्छेद 23

प्रत्येक व्यक्ति को काम करने, स्वतंत्र रूप से रोज़गार चुनने, न्यायोचित और अनुकूल कार्य स्थितियों और बेरोज़गारी के खिलाफ  संरक्षण का अधिकार प्राप्त है.

प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के समान कार्य के लिए समान वेतन पाने का अधिकार है.

काम करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपने लिए और अपने परिवार के लिए न्यायोचित और अनुकूल पारिश्रमिक सुनिश्चित करने का अधिकार प्राप्त है, जो मानव गरिमा के अनुकूल हो, और यदि आवश्यक हो, तो सामाजिक संरक्षण के अन्य माध्यमों से परिपूरित हो.

प्रत्येक व्यक्ति को अपने हितों के संरक्षण के लिए व्यापार संघ बनाने और व्यापार संघों में शामिल होने का अधिकार है.

अनुच्छेद 24

प्रत्येक व्यक्ति को, कार्य घंटों की उचित सीमा और समय समय पर सवेतन अवकाश सहित आराम करने और छुट्टी पाने का अधिकार है.

अनुच्छेद 25

प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं और परिवार के स्वास्थ्य एवं खुशहाली के लिए समुचित जीवन स्तर का अधिकार है, जिसमें भोजन, वस्त्र, आवास और चिकित्सा देखभाल तथा आवश्यक सामाजिक सेवाएं और बेरोज़गारी, बीमारी, अपंगता, वैधव्य, वृद्धावस्था या नियंत्रण से बाहर की परिस्थितियों में आजीविका के अभाव की स्थिति में सुरक्षा का अधिकार शामिल है.

सभी माताएं और शिशु विशेष देखभाल और सहायता के हकदार हैं. सभी बच्चे चाहे वे विवाह से पैदा हुए हों या अन्यत्र स्थिति से, समान सामाजिक संरक्षण के हकदार होंगे.

अनुच्छेद 26

प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा प्राप्त करने का हक प्राप्त है. कम से कम प्राथमिक और मूलभूत स्तर पर शिक्षा नि:शुल्क होगी. प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य होगी. तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा आमतौर पर उपलब्ध कराई जाएगी और उच्चतर शिक्षा मैरिट के आधार पर सभी के लिए समान पहुंच योग्य होगी.

शिक्षा का उद्देश्य मानव व्यक्तित्व का पूर्ण विकास और मानवाधिकारों एवं मूलभूत स्वतंत्रताओं के प्रति सम्मान सुदृढ़ करना होगा. शिक्षा सभी राष्ट्रों, जातिगत या धार्मिक समूहों के बीच समझबूझ, सहिष्णुता और मैत्री तथा शांति बनाए रखने की संयुक्त राष्ट्र की गतिविधियों को बढ़ावा देने वाली होगी.

माता पिता को अपने बच्चों के लिए शिक्षा का प्रकार चुनने का प्राथमिक अधिकार होगा.

अनुच्छेद 27

प्रत्येक व्यक्ति को समुदाय के सांस्कृतिक जीवन में स्वतंत्र रूप से भागीदारी, कलाओं का आनंद उठाने और वैज्ञानिक प्रगति तथा उसके लाभों में हिस्सेदारी का अधिकार होगा.

प्रत्येक व्यक्ति को वैज्ञानिक, साहित्यिक या कलात्मक उत्पादन, जिसका वह लेखक हो, के बारे में नैतिक और भौतिक हितों के संरक्षण का अधिकार होगा.

अनुच्छेद 28

प्रत्येक व्यक्ति को ऐसी सामाजिक और अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था पाने का अधिकार होगा, जिसमें  इस घोषणा में निर्धारित अधिकार और स्वतंत्रताएं पूर्ण रूप में हासिल की जा सकें.

अनुच्छेद 29

प्रत्येक व्यक्ति के उस समुदाय के प्रति दायित्व होंगे, जिसमें उसके व्यक्तित्व का स्वतंत्र और पूर्ण विकास संभव हो. 

प्रत्येक व्यक्ति अपने अधिकारों और स्वतंत्रताओं के अनुपालन में केवल उन सीमाओं के अधीन होगा, जो अन्यों के अधिकारों और स्वतंत्रताओं के सम्मान तथा पहचान के लिए और नैतिकता, सार्वजनिक व्यवस्था और लोकतांत्रिक समाज में सामान्य कल्याण की जरूरतें पूरी करने के लिए कानून द्वारा निर्धारित की गई हों.

ये अधिकार और स्वतंत्रताएं संयुक्त राष्ट्र के प्रयोजनों और सिद्धांतों के विपरीत इस्तेमाल नहीं की जाएंगी.

अनुच्छेद 30

इस घोषणा में किसी बात का कोई अर्थ किसी राष्ट्र, समूह या व्यक्ति के लिए इस अर्थ में नहीं लिया जाना चाहिए कि उसे किसी ऐसी गतिविधि में संलग्न होने अथवा किसी ऐसे कार्य को अंजाम देने का अधिकार है, जिससे इस घोषणा में तय किए गए किन्हीं अधिकारों और स्वतंत्रताओं को नष्ट किया जा सके.

मानवाधिकार और भारत

भारत ने मानवाधिकारों के सार्वभौमिक की घोषणा का प्रारूप तैयार करने में सक्रिय भूमिका निभाई थी. संयुक्त राष्ट्र में भारतीय शिष्टमंडल ने घोषणा का मसौदा तैयार करने में, विशेष रूप से, स्त्री-पुरुष समानता को व्यक्त करने वाले सिद्धांतों पर जोर देते हुए महत्वपूर्ण योगदान किया था. भारत छह मूलभूत मानवाधिकार प्रसंविदाओं का हस्ताक्षरी है और बाल अधिकारों से सम्बद्ध दो वैकल्पिक समझौतों पर भी भारत ने हस्ताक्षर किए हैं.

भारतीय संविधान ने प्रारंभ से ही सार्वभौमिक घोषणा में वर्णित ज्यादातर अधिकारों को दो भागों में अपने में समाहित किया - मौलिक अधिकार और राज्यनीति के निर्देशक तत्व. इन दोनों भागों में

लगभग सभी सार्वभौमिक मानवाधिकार कवर कर लिए गए हैं.

अधिकारों का पहला समूह सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद 2 से 21 तक वर्णित किया गया है, जो भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के रूप में - अनुच्छेद 12 से 35 तक शामिल किए गए हैं. इनमें समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने का अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार, विभिन्न कानूनों को बचाने का अधिकार और संवैधानिक समाधान पाने का अधिकार शामिल हैं.

अधिकारों का दूसरा समूह सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद 22 से 28 तक वर्णित किया गया है, जो भारतीय संविधान में राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों के अंतर्गत अनुच्छेद 36 से 51 तक शामिल किए गए हैं. इनमें सामाजिक सुरक्षा का अधिकार, काम का अधिकार, स्वतंत्र रूप से रोज़गार चुनने का अधिकार, न्यायपूर्ण और अनुकूल कार्य स्थितियां प्राप्त करने का अधिकार और बेरोज़गारी के खिलाफ संरक्षण का अधिकार, समान काम के लिए समान वेतन का अधिकार, मानव गरिमा के अनुकूल अस्तित्व का अधिकार, आराम करने और अवकाश बिताने का अधिकार, समाज के सांस्कृतिक जीवन में स्वतंत्र रूप से भागीदारी का अधिकार, नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा पाने का अधिकार, लोगों के कल्याण को प्रोत्साहित करने, समान न्याय और नि:शुल्क कानूनी सहायता तथा राज्य द्वारा अपनाई जाने वाली नीति के सिद्धांतों के अधिकार शामिल हैं.

परंतु, सामाजिक दर्शन के हिस्से के रूप में मानवाधिकारों का सम्मान भारतीय लोकाचार में प्राचीनकाल से ही विद्यमान रहा है.

मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 (यथा 2006 में संशोधित) में केंद्र के स्तर पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के गठन का प्रावधान है, जो राज्यों में राज्य मानवाधिकार आयोगों और मानवाधिकारों के बेहतर संरक्षण और तत्संबंधी या अनुषंगी मामलों की देख-रेख के लिए मानवाधिकार अदालतों का संचालन करता है.

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राज्य मानवाधिकार आयोग अब राष्ट्र के जीवन का बेहतर हिस्सा बन चुके हैं और देश में शासन की गुणवत्ता में निरंतर सुधार लाने में योगदान कर रहे हैं.

संविधान द्वारा गारंटीकृत अधिकारों और मानवाधिकारों से सम्बद्ध अंतर्राष्ट्रीय कानून, जिसका भारत एक हस्ताक्षरी है, के प्रति जागरूकता देश में तेजी से बढ़ी है.

निष्कर्ष

मानवाधिकार घोषणा के 30 अनुच्छेदों में वर्णित सार्वभौमिक आदर्शों में सर्वाधिक बुनियादी-जीवन के अधिकार-से लेकर जीवन को जीने योग्य बनाने जेसे आदर्श शामिल हैं, जिनमें भोजन, शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य और स्वतंत्रता के अधिकार शामिल हैं. प्रत्येक मानव की अंतर्निहित गरिमा पर बल देेते हुए प्रस्तावना में कहा गया है कि मानवाधिकारविश्व में स्वतंत्रता, न्याय और शांति की आधारशिलाहैं.

दोनों विश्व युद्धों और भीषण आर्थिक मंदी की याद अपने जेहन में रखते हुए मानवाधिकारों का मसौदा तैयार करने वालों ने इस बात को ध्यान में रखा कि मानवमात्र के साथ क्या नहीं किया जा सकता और क्या अवश्य किया जाना चाहिए.

मसौदा तैयार करने में प्रतिभागी चिली के एक विशेषज्ञ हेरनन सांताक्रूज ने महसूस किया था कि संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन 58 सदस्य देशों ने सहमति व्यक्त की थी कि मानवाधिकार किसी राष्ट्र द्वारा प्रदत्त नहीं हैं, बल्कि वेअस्तित्व के तथ्य से निष्कासित हैं’. उनके अनुसार इस मान्यता नेअभाव और शोषण से मुक्त जीवन तथा मानव को अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास करने के अविभाज्य अधिकार को जन्म दिया’. 

30 अनुच्छेदों में सूचीबद्ध अधिकार चूंकि प्रत्येक महिला, पुरुष और बच्चे में अंतर्निहित हैं अत: वे अविभाज्य हैं. वे सभी समान रूप से महत्वपूर्ण हैं और उनमें कोई श्रेणीबद्धता नहीं की जा सकती. कोई भी एक मानवाधिकार अन्य अधिकारों को हासिल किए बिना पूरी तरह हासिल नहीं किया जा सकता. दूसरे शब्दों में किसी एक अधिकार का उल्लंघन होने से अन्य अधिकारों का आनंद उठाना कठिन है.

मानवाधिकार आंदोलन ने पिछले 7 दशकों में महत्वपूर्ण प्रगति की है लेकिन उनके हनन की दुखद खबरें भी लगातार आती रहती हैं.

मानवाधिकारों की घोषणा की वर्षगांठ हमें यह अवसर प्रदान करती है कि हम इस दिशा में हासिल सफलताओं का उत्सव मनाएं और घोषणा के 30 अनुच्छेदों में वर्णित सिद्धांतों के प्रति अपने को पुन: समर्पित करें.

(डॉ. अपर्णा श्रीवास्तव स्कूल ऑफ लिबरल आर्ट्स की प्रमुख तथा नोएडा अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान और मानवाधिकार विभाग में एसोशिएट प्रोफेसर हैं. आदित्य अंशु अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय नोएडा में राजनीति विज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं. -मेल: aditya.anshu@ niu.edu.in)

व्यक्ति विचार निजी हैं.