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संपादकीय लेख


Volume-34, 24-30 November, 2018

 

 
प्रधानमंत्री मोदी का सिंगापुर दौरा
भारत का ‘‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’’ पर जोर

डॉ. रघुबंश सिन्हा

पूर्वी एशिया, आसियान-भारत और क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) की शिखर बैठकों में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सिंगापुर के दो दिनों के दौरे के अवसर पर भारत ‘‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’’ के हिस्से के रूप में इसके वृहद पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने पर विशेष जोर दिया गया. प्रधानमंत्री ने १३वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के दौरान एक मुक्त और समावेशी भारत-प्रशांत क्षेत्र के लिए आह्वान करते हुए १० सदस्यों वाले आसियान समूह के साथ बहुपक्षीय सहयोग बढ़ाने के लिए भारत के दृष्टिकोण के बारे में चर्चा की. सिंगापुर फिनटेक समारोह में अपने मुख्य भाषण में उन्होंने प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में अभूतपूर्व क्रांति के परिणामस्वरूप वैश्विक अर्थव्यवस्था में मौजूदा ऐतिहासिक बदलाव के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि इससे नये विश्व में प्रतिस्पर्धा और शक्ति की अधिकाधिक व्याख्या की जा रही है.
श्री मोदी ने अमरीकी उपराष्ट्रपति माइक पेंस और सिंगापुर, थाईलैंड और आस्ट्रिया के अपने समकक्षों के साथ विभिन्न द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दे पर विचारों का भी आदान प्रदान किया.
भारत-आसियान शिखर सम्मेलन
भारत-आसियान अनौपचारिक बैठक के दौरान आसियान नेताओं से मिलकर प्रधानमंत्री मोदी ने आर्थिक समूह के साथ आर्थिक और कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता दोहराई. यह समूह ८१.३३ बिलियन अमरीकी डॉलर से भी अधिक मूल्य के द्विपक्षीय व्यापार के साथ भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. भारत की ‘‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’’ के तहत सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों में संपर्कता, सतत विकास, आतंकवाद से मुकाबला सहित समुद्री और साइबर सुरक्षा शामिल हैं. बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (बिम्सटेक) के लिए बंगाल की खाड़ी नामक पहल से जुड़े आसियान और उप-क्षेत्रीय समूह के साथ संपर्कता बढ़ाकर पूर्वोत्तर राज्यों का विकास करना भी इसमें शामिल है. बंगाल की खाड़ी के समीपस्थ सात देशों बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्यामां, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड से बना बिम्सटेक को पूर्वोत्तर भारत से लेकर इसकी पड़ोसी प्रथम नीतिके तहत दक्षिण-पूर्व एशिया में वृहद पड़ोस के साथ संबंधों को मजबूत करने में निर्णायक माना जाता है.
अपने संबंधों में निहित व्यापक आर्थिक संभावना का लाभ लेने में अपनी सदियों पुरानी सभ्यता के बल पर भारत ने अब आसियान और क्षेत्र के अन्य देशों के साथ कूटनीतिक संबंध बढ़ाये हैं. वर्ष १९९२ में भारत जबसे क्षेत्रीय स्तर पर साझेदार बना है, तब से आसियान के साथ इसके संबंध बढ़े हैं. भारत की आर्थिक सुधार प्रक्रिया के साथ-साथ ऐसा संभव हुआ है.
पिछले दो दशकों में, भारत-आसियान संबंध भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसीका आधार बन गया है. सोवियत संघ के विघटन के बाद १९९० के दशक के पूर्वाद्र्ध में वैश्विक राजनीति और भू-रणनीतिक परिदृश्य में नाटकीय बदलाव के बाद अर्थिक क्षेत्र के लिए भारत की तलाश के आधार पर, भारत की लूक-ईस्ट पॉलिसीअब एक सशक्त और कार्यान्मुखी एक्ट ईस्ट पॉलिसीके रूप में परिपक्व हो चुकी है.
पिछले दशक में, भारत ने उप-क्षेत्रीय स्तर पर पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन, बिम्सटेक, हिन्द महासागर रिम एशोसिएशन और मेकोंग-गंगा सहयोगी जैसी आसियान-केन्द्रित प्रक्रियाओं के साथ अपने आर्थिक संबंधों को मजबूत करने के लिए कई नीतिगत पहल की हैं.
आसियान-भारत की वार्ता साझेदारी के २५ वर्ष, शिखर-सम्मेलन स्तर की वार्ता के १५ वर्ष और कूटनीतिक साझेदारी के पांच वर्ष को यादगार बनाने के लिए एक वर्ष तक चलने वाले, समारोह को इसके संबंधों की मजबूती के प्रतीक के रूप में देखा जाता है. एक ऐतिहासिक अवसर पर ६९वें गणतंत्र दिवस पैरेड में सभी १० आसियान नेताओं के भाग लेने के साथ इसकी समाप्ति हुई.
पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन
पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भारत की भागीदारी आसियान देशों के साथ इसके बढ़ते बहुपक्षीय संबंधों तथा पूर्वी एशिया में आर्थिक सहयोग और सुरक्षा सहयोग बढ़ाने की साझा इच्छा के बीच स्वाभाविक भी है. प्रधानमंत्री श्री मोदी ने १३वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भाग लिया. यह भारत प्रशांत क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मंच है. इसमें १० आसियान सदस्य देश ब्रुनेई, कम्बोडिया, इंडोनेशिया लाओस, मलेशिया, म्यामां, सिंगापुर, थाईलैंड, फिलीपिंस और वियतनाम तथा इसके आठ वार्ता साझेदार-भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, अमरीका और रूस शामिल  हैं.
इससे पहले, इस वर्ष जून में, प्रधानमंत्री श्री मोदी ने सिंगापुर में आयोजित शांग्री-ला वार्ता में अपने भाषण में भारत-प्रशांत के बारे में भारत  के दृष्टिकोण की व्यापक चर्चा की थी. उन्होंने सिंगापुर में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन का इस्तेमाल इस मूल विषय को और अधिक मजबूती प्रदान करने के लिए किया. उन्होंने भारत-प्रशांत क्षेत्र में शांति और समृद्धि के लिए आसियान देशों के महत्व पर जोर दिया, जो अफ्रीका के पूर्वी समुद्रतट से जापान के पूर्वी समुद्रतट तक फैला है.
उन्होंने एक ऐसी नियम-आधारित व्यवस्था की जरूरत पर जोर दिया, जो राष्ट्रों की सम्प्रभुता और राष्ट्रों की क्षेत्रीय एकता का सम्मान करे, नौवहन और उड़ानों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करे तथा बाधामुक्त वैध व्यापार सुनिश्चत करने के साथ ही धमकी अथवा बल प्रयोग के बिना व्यापक तौर पर मान्य अंतर्राष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों के अनुसार वैधानिक और राजनयिक प्रक्रियाओं के लिए पूरे सम्मान के साथ विवादों का शांतिपूर्ण समाधान प्रस्तुत करे.
दक्षिण चीन सागर के द्वीप समूहों के लिए बढ़ते क्षेत्रीय दावे के परिणामस्वरूप दक्षिण पूर्व एशिया में बढ़ते तनाव से  यह चिंता बढ़ रही है कि इसके परिणामस्वरूप बेवजह सैन्य विवाद हो सकता है. कई विशेषज्ञ यह आशंका जताते हैं कि चीन ने जबसे दक्षिण चीन सागर में कई विवादित द्वीपों पर आधारभूत निर्माण तथा सैन्य बेस कायम किया है, इसके कारण तनाव इस क्षेत्र में बढ़ा है.
फिलीपिंस से जुड़े सकार्बोरो शोल और ब्रुनेई, मलेशिया, ताइवान और वियतनाम से जुड़े स्प्राटली द्वीपसमूह के मामले में चीन एक विवादित पक्ष है. अपनी सुविधा के मुताबिक चीन अब अपने पड़ोसी देशों को नीचा दिखाने के लिए एक आचार संहिता बनाना चाहता है.
क्वाड बैठक
इस क्षेत्र के  देशों और कई अन्य देशों ने चीन के एकपक्षीय और आक्रामक व्यवहार के बारे में चिंता व्यक्त की है. पिछले कई महीनों में, चीन के पड़ोसियों और क्वाड्रीलेटरल सिक्यूरिटी डायलॉग अथवा क्वाड के सदस्यों ने चीन के इस बर्ताव के बारे में चिंता व्यक्त की है. इन देशों में भारत, अमरीका, जापान और आस्ट्रेलिया शामिल हैं. इन देशों का मानना है कि चीन के बर्ताव से कई राष्ट्र ऋण के मकडज़ाल में फंसेंगे और आधारभूत परियोजनाओं को तैयार करने के नाम पर विश्वभर में भू-रणनीतिक शक्ति का असंतुलन बढ़ेगा.
पहली बार वर्ष २००७ में जापान के प्रधानमंत्री शिंजा आबे ने समान विचारों वाले इन चार लोकतांत्रिक देशों का एक समूह बनाने पर जोर दिया था. चीन ने इसका विरोध किया था. चीन के अनुसार क्वाड देशों को साम्यवादी देशों के विकास और प्रभाव को रोकने के लिए एकजुट किया गया है.
पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के साथ-साथ सिंगापुर में क्वाड देशों के अधिकारियों ने विचार-विमर्श किए. हालांकि भारत सैन्य सहयोग पर जोर देने के प्रति अनिच्छुक है, किंतु क्वाड के अन्य देश, विशेषकर अमरीका और जापान इस बात पर जोर दे रहे हैं कि बल प्रयोग द्वारा भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन के दबदबे को रोकना चाहिए.
समाचारों से पता चला है कि चार देशों की साझेदारी में श्रीलंका और मालदीव की स्थिति सहित साझा हितों से जुड़े क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दे पर विचार-विमर्श किया गया. मालदीव के निर्वाचित राष्ट्रपति इब्राहीम मोहम्मद सोलिह के शपथ लेने पर मालदीव में शांतिपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन अवश्यम्भावी प्रतीत होता है, परंतु भारत इन दोनों दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों में अस्थायित्व के लक्षणों से चिंतित रहा है, जहां पिछले दशक में चीन ने अपना प्रभाव बढ़ा लिया है. समाचार माध्यम की रिपोर्ट से पता चलता है कि आपस में जुड़े भारत-प्रशांत क्षेत्र में शांति, स्थायित्व और समृद्धि को बढ़ावा देने के विचार से इनके बीच संपर्कता, सतत विकास, आतंकवाद से मुकाबला, अप्रसार तथा समुद्री एवं साइबर सुरक्षा के बारे में विचार-विमर्श किया गया. ये चार देश अन्य साझेदारों के साथ इसे साझा करते हैं.
आरसीईपी समझौता
सेवा क्षेत्र में वार्ताओं की प्रगति में ठहराव आना भारत के लिए निराशाजनक है. एक व्यापक, संतुलित और परस्पर लाभदायक आर्थिक संबंधों के महत्व पर जोर देते हुए, प्रधानमंत्री श्री मोदी ने आरसीईपी समझौते के शीघ्र समापन की जरूरत के बारे में चर्चा की. जिंसों के  लिए बाजार पहुंच पर आधारित वार्ताओं की प्रगति का महत्व देते हुए भारत ने सेवा-क्षेत्र में ऐसे परिणामों की जरूरत पर जोर दिया, अधिकांश आरसीईपी देशों के सकल घरेलू उत्पाद के ५० प्रतिशत से अधिक है और ऐसी संभावना है कि भविष्य में वैश्विक आर्थिक क्रियाकलापों में इसकी प्रमुख भूमिका होगी.
सिंगापुर में आरसीईपी पर समझौता नहीं हो सका. अब इसके लिए समय-सीमा २०१९ तक बढ़ा दी गयी है. इसमें आसियान और छ: एशिया-प्रशांत देशों के बीच एक मुक्त व्यापार समझौते का प्रस्ताव किया गया है, जिसमें चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं. आरसीईपी पर वर्ष २०१२ से वार्ताएं चल रही हैं. विश्व की लगभग आधाी जनसंख्या, कुल विश्व व्यापार का लगभग ४० प्रतिशत हिस्से और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के एक-तिहाई से अधिक हिस्से को एक एकल व्यापार जोन में शामिल करना इसका लक्ष्य है.
सिंगापुर से थाईलैंड को आसियान की अध्यक्षता मिली है, किंतु इसके सामने आरसीईपी वार्ताओं की समाप्ति से जुड़ी बड़ी चुनौतियां हैं.
मोदी की पेंस से मुलाकात
पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के साथ-साथ प्रधानमंत्री श्री मोदी और अमरीकी उप-राष्ट्रपति पेंस की मुलाकात भारत के अमरीका के साथ द्विपक्षीय सहयोग  पर केंद्रित थी. भारत और अमरीका ने भारत-प्रशांत क्षेत्र में अपनी भूमिका और रक्षा तथा व्यापार क्षेत्रों में सहयोग के साथ-साथ तेहरान से भारत द्वारा तेल के आयात तथा रूस से एस-४०० ट्रम्फ मिसाइल प्रणाली की खरीद के बारे में उत्पन्न मतभेदों के बारे में चर्चा की.
बैठक के दौरान द्विपक्षीय व्यापार के विस्तार और ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग के बारे में भी चर्चा की गयी, क्योंकि भारत अमरीका से तेल और गैस का आयात बढ़ाने की योजना बना रहा है. ऐसी संभावना है कि यह इस वर्ष लगभग ४ बिलियन अमरीकी डालर मूल का होगा. चूंकि आतंकवाद दोनों देशों की साझा चुनौती है. दोनों नेताओं ने वर्ष २००८ में मुम्बई में आतंकी हमले में शामिल लोगों के विरुद्ध कार्रवाई के बारे में चिंता व्यक्त की. पाकिस्तान के आतंकवादी सरगना हाफिज सईद की पार्टी के जुलाई में पाकिस्तान के आम चुनावों में शामिल होने के बारे में चर्चा की गयी.
ट्रम्प प्रशासन ने कईं बार पाकिस्तान की यह कहते हुए आलोचना की है कि इसने अपने देश के भीतर और पड़ोस में आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष के लिए पर्याप्त कार्य नहीं किया है. ट्रम्प ने वर्ष २०१८ के अपने पहले ट्वीट में लिखा था ‘‘अमरीका ने फूहड़ अंदाज में पाकिस्तान को पिछले १५ वर्षों के दौरान ३३ बिलियन अमरीकी डालर से भी अधिक मूल्य की सहायता दी है, किंतु उन्होंने हमें झूठ और फरेब के अलावा कुछ नहीं दिया है, उन्होंने हमारे नेताओं को फूहड़ समझा है. हम अफगानिस्तान में जिन आतंकवादियों को ढूंढ रहे थे, उन्होंने उन्हें सुरक्षित ठिकाना प्रदान किया, हमारी कोई मदद नहीं की. अब ऐसा नहीं चलेगा.’’
फिनटेक समारोह
प्रधानमंत्री ने भारत को शीर्ष फिनटेक देशों के रूप में दर्शाया. सिंगापुर फिनटेक समारोह में सुरक्षित तथा सुनिश्चित ऑनलाइन लेनदेनों के लिए साइबर सुरक्षा के महत्व के बारे में चर्चा करते हुए, श्री मोदी ने आसियान और भारतीय बैंकों तथा फिनटेक कंपनियों के साथ फिनटेक फर्मों और वित्तीय संस्थाओं को जोडऩे वाले एक वैश्विक मंच-एपिक्स अथवा एपीआई की शुरूआत की.
श्री मोदी ने विश्व के सबसे बड़े वित्तीय प्रौद्योगिकी समारोह में कहा, ‘‘वित्तीय समावेशन के साथ शुरूआत करना.
३ बिलियन भारतीय लोगों के लिए एक वास्तविकता बन गई है. हमने पिछले कुछेक वर्षों में ही आधार नामक १.२ अरब से अधिक बायोमैट्रिक पहचान तैयार किए हैं.’’ इस समारोह की शुरूआत २०१६ में की गयी थी. भारत ने कंपनियों की अधिक संख्या वाली इस प्रदर्शनी में एक पेविलियन लगाया.
हैकाथॉन
श्री मोदी ने अब तक के सबसे पहले भारत-सिंगापुर हैकाथॉन ‘‘ग्रैंड फिनाले’’ में भाग लिया. यह एक ऐसा मंच है, जिससे प्रौद्योगिकी, नवाचार और युवा शक्ति को बल मिलने की संभावना है. भारतीय नेता ने छ: विजेता टीमों - भारत और सिंगापुर में से प्रत्येक तीन-तीन को पुरस्कार प्रदान किए. भारतीय विजेताओं में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खडग़पुर, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, तिरुचिरापल्ली और एमआईटी अभियंत्रण महाविद्यालय, पुणे की टीम शामिल थीं.
सिंगापुर की विजेता टीमों में नान्यांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी और सिंगापुर यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी एंड डिज़ाइन शामिल थीं.
यह स्पष्ट है कि भारत अपने ‘‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’’ के तहत आसियान देशों के साथ आर्थिक एवं सुरक्षा से जुड़े संबंधों को मजबूती प्रदान करने के लिए दृढ़ है. एक मुक्त और समावेशी भारत-प्रशांत क्षेत्र का निर्माण करना इसका लक्ष्य है. भारत की ‘‘पड़ोसी प्रथम नीति’’ के तहत दक्षिण-पूर्व एशिया में वृहद पड़ोस के साथ संबंधों के मुख्य स्तम्भ के रूप में मुख्यत: व्यापार और निवेश, संपकर्ता, सतत विकास, समुद्री तथा साइबर सुरक्षा और आतंकवाद से मुकाबला का स्थान है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और अंतर्राष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ हैं, ई-मेल: raghubansh@hotmail)
व्यक्त विचार उनके निजी हैं