रोज़गार समाचार
सदस्य बनें @ 530 रु में और प्रिंट संस्करण के साथ पाएं ई- संस्करण बिल्कुल मुफ्त ।। केवल ई- संस्करण @ 400 रु || विज्ञापनदाता ध्यान दें !! विज्ञापनदाताओं से अनुरोध है कि रिक्तियों का पूर्ण विवरण दें। छोटे विज्ञापनों का न्यूनतम आकार अब 200 वर्ग सेमी होगा || || नई विज्ञापन नीति ||

संपादकीय लेख


Volume-30, 27 October - 2 November, 2018

 

राष्ट्रीय एकता के सूत्रधार: सरदार पटेल

प्रवीण दत्त शर्मा

सरदार पटेल भारत के महानतम नेताओं में से एक थे. महात्मा गांधी यदि भारत की स्वतंत्रता के सूत्रधार थे, तो सरदार पटेल भारत की एकता के. कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैला विशाल भारत आज हम देख रहे हैं, वो सरदार पटेल की ही देन है. उनकी प्रशासनिक क्षमता, सूझ-बूझ और दृढ़ता के कारण ही 562 देशी रियासतों का भारत में विलय संभव हो सका. उनके इस महान कार्य के लिए राष्ट्र उनका सदा ऋणी रहेगा.

लौह पुरुष वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के गांव करमसद में एक किसान परिवार में हुआ. बचपन से ही वे कर्मठ, स्वाभिमानी व दृढ़ विचारों वाले थे. यह उनके दृढ़ निश्चय का ही परिणाम था कि एक साधारण घर में जन्म लेने के बावजूद वे वकालत की डिग्री प्राप्त करने विदेश गए और वहां से प्रथम श्रेणी में वकालत पास करके भारत लौटे. धीरे-धीरे अपनी मेहनत और कुशाग्र बुद्धि के चलते उनका नाम गुजरात के प्रसिद्ध वकीलों में शुमार हो गया. कहते हैं कि व्यक्ति के जीवन में एक समय ऐसा भी आता है, जो उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट साबित होता है. जिससे जीवन में बदलाव आता है. जो लोग इस बदलाव को सकारात्मक रूप में लेते हैं, वे इस बदलाव के माध्यम से देश और समाज को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. पटेल के जीवन में भी ऐसा समय तब आया, जब वे महात्मा गांधी के सानिध्य में आए. महात्मा गांधी से एक मुलाकात ने उनके जीवन और देश के परिदृश्य दोनों को बदल दिया.

यह वर्ष 1918 का समय था, जब भारत में स्वतंत्रता आंदोलन अपने चरम पर था. देश के राजनीतिक पटल पर उन दिनों महात्मा गांधी की आंधी चल रही थी. ऐसे में पटेल गांधीजी के संपर्क में आए. उसके बाद गांधी और पटेल की जोड़ी ने अपने कार्यों के जरिए भारतीय आजादी के आंदोलन की स्वर्णिम गाथा लिखी. गांधीजी पटेल की प्रतिभा से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने अपने हर बड़े कामों में पटेल को आगे रखा. चाहे व 1918 का खेड़ा सत्याग्रह हो या 1919 में रॉलेट एक्ट बिल का विरोध या फिर 1928 का बारदोली सत्याग्रह, पटेल ने गांधीजी के सहयोगी के रूप में हर जगह अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

बारदोली के आंदोलन में वल्लभभाई पटेल ने जिस तरह ब्रिटिश सरकार की धज्जियां उड़ाई, वह कमाल है. तमाम मौसमी आपदाओं के बाद भी ब्रिटिश सरकार ने बारदोली के किसानों पर 30 प्रतिशत लगान बढ़ा दिया. सरकार की नीतियों से लोग तंग आ गए थे, उन्होंने पटेल से सहयोग देने का आग्रह किया. एक किसान परिवार में जन्म लेने के कारण सरदार किसानों की पीड़ा भली-भांति समझते थे. इसलिए उन्होंने सन् 128 में बारदोली आंदोलन का नेतृत्व किया. उनके मन में किसानों के लिए कितना प्रेम था, यह उनके इस कथन को देखकर पता चलता है. वे कहते हैं, ‘किसान डरकर दुख उठाए और जालिमों की लातें खाए, इससे मुझे शर्म आती है. मेरे जी में आता है कि किसानों को कंगाल न रहने देकर खड़ा कर दूं और स्वाभिमान से सिर ऊंचा करके चलने वाला बना दूं. इतना करके मरूं तो अपना जीवन सफल समझूं.सरदार पटेल ने बारदोली के किसानों की समस्या सुलझाने के लिए जी-तोड़ मेहनत की. ब्रिटिश शासकों से संवाद किया, घर-घर जाकर लोगों को सत्यागह में भाग लेने के लिए प्रेरित किया. उनकी मुहिम के आगे अंतत: सरकार ने घुटने टेके और लगान को माफ  करने व सत्याग्रहियों पर दर्ज मुकदमे खत्म करने का आश्वासन दिया. सरकार ने सरदार की सभी मांगें मान लीं. इस प्रकार अक्टूबर, 1928 में बारदोली का सत्याग्रह सफलापूर्वक संपन्न हुआ.

बारदोली में उल्लेखनीय कार्य और सुयोग्य नेतृत्व के चलते बम्बई की एक सार्वजनिक सभा में उन्हें प्रथम बार सरदारनाम से संबोधित किया गया. गांधीजी को यह संबोधन खूब पसंद आया. गांधीजी की रजामंदी के बाद तब से वल्लभभाई को सरदार के नाम से जाना जाने लगा. प्रसिद्ध विचारक के.एल. पंजाबी ने इस संबंध में कहा, ‘इस संघर्ष से बारदोली के सरदार देश के सरदार बन गए.

इधर भारत की आजादी का संघर्ष अब उफान पर था. गांधीजी और उनके शिष्य सरदार पटेल की जुगलबंदी ने अंग्रेज सरकार को हिलाकर रख दिया था. एक ओर गांधीजी लोगों को अहिंसा व शांतिपूर्ण तरीके से लोगों को आंदोलित कर रहे थे, दूसरी ओर वल्लभभाई पटेल अपनी ओजपूर्ण वाणी और आक्रामक शैली से लोगों में उत्साह और जोश का संचार कर रहे थे. गांधीजी ने 12 मार्च 1930 को नमक कानून भंग करने के लिए दांडी यात्रा प्रारंभ की. पटेल ने इस मौके पर कहा, ‘ अब एक ऐसा धर्मयुद्ध आरंभ होता है, जैसा संसार ने पहले कभी नहीं देखा होगा. यह ऐसा युद्ध है, जिसमें एक ओर समग्र सात्विक शक्तियों का... उपयोग होगा. इस संग्राम में आपका क्या योगदान रहेगा और आप किसका पक्ष लेंगे, इसका निर्णय आपको करना है. गुजरात की जनता स्वतंत्रता के इतिहास का प्रथम पृष्ठ लिख रही है. ईश्वर उसे शक्ति प्रदान करे. ईश्वर सबका कल्याण करे.

उनके इस भाषण ने जनता पर गहरा असर छोड़ा. जब गांधीजी ने दांडी में नमक कानून तोडक़र सविनय अवज्ञा का आंदोलन छेड़ा तो पटेल को बंदी बना लिया गया. उस समय साबरमती के तट पर 75 हजार लोगों के समूह ने एक संकल्प लिया. इस संकल्प में कहा गया, ‘ हम अहमदाबाद के नागरिक यह संकल्प करते हैं कि जिस मार्ग पर वल्लभभाई गए हैं, हम भी उसी पर जाएंगे और ऐसा करते हुए स्वाधीनता को प्राप्त करके छोड़ेंगे. हम देश को स्वतंत्र किए बिना न तो स्वयं ही चैन से बैठैंगे और न ही सरकार को चैन से बैठने देंगे.

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बनी पं. नेहरू की सरकार में सरदार पटेल भारत के गृहमंत्री बने. इधर अंग्रेज भारत से चले तो गए, लेकिन जाते-जाते वे देश को बांटने की कुटिल चाल चल गए. मुस्लिम लीग और जिन्ना की महत्वाकांक्षाओं के कारण भारत का बंटवारा हो गया और पाकिस्तान बना. देश सांप्रदायिक दंगों और अराजकता का शिकार हो गया. ये पटेल ही थे, जिन्होंने इस असाधारण स्थिति का बड़ी सूझबूझ और बु़िद्धमता से सामना किया. उन्होंने देश में शांति व्यवस्था स्थापित करवाकर ही दम लिया. लेकिन ब्रिटिश सरकार ने एक और चालाकी भरी चाल भारत को क्षत-विक्षत करने के लिए चल दी थी. जाते-जाते वह यहां की देसी रियासतों को सर्वोच्चता का अधिकार सौंप गई. इसके तहत यह रियासतों के शासकों की इच्छा पर निर्भर था कि वे चाहें तो भारत अथवा पाकिस्तान में मिलें या स्वतंत्र रहें. भारत में शामिल होने वाली 562 रियासतें थीं, जिनकी आबादी 8 करोड़, 65 लाख थी, व क्षेत्रफल पांच लाख वर्गमील था, ब्रिटिश सरकार की इस चाल से ये सभी रियासतें भारत से अलग होने का सपना देखने लगीं. उस समय भारत की एकता को बड़ा खतरा पैदा हो गया था.

इस खतरे को भांपकर पं. नेहरू ने 13 जून 1947 को एक मीटिंग बुलाई. इस मीटिंग में बहुत वाद-विवाद के बाद यह निश्चय किया गया कि देसी रियासतों से बात करने के लिए एक नए विभाग की स्थापना की जाए. सरदार वल्लभभाई पटेल की अगुवाई में 5 जुलाई, 1947 को इस विभाग की स्थापना हुई और श्री वी.पी. मेनन को इस विभाग का सचिव बनाया गया. सरदार पटेल ने तुरंत रियासती राजाओं से बात की और उनकी समस्याओं को भी सुना. यह उनका राजनीतिक कौशल ही था कि उन्होंने अधिकांश राजाओं को भारत में शामिल होने के लिए तैयार कर लिया. 1 जनवरी, 1948 को 23 रियासतें उड़ीसा में शामिल हुईं. लेकिन कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़ की रियासतें भारत में शामिल होने से इंकार करती रहीं. कश्मीर के विलय का मुद्दा पं. नेहरू ने अपने हाथों में लिया हुआ था. सरदार पटेल ने सबसे पहले जूनागढ़ का मुद्दा सुलझाने का काम किया. उन्होंने अपने देशभक्तिपूर्ण भाषणों से जूनागढ़ की जनता के मन में जगह बनाई. जूनागढ़वासियों ने भारत के साथ जाने का मन बना लिया, लेकिन वहां का नवाब इसके लिए तैयार नहीं हुआ. वह प्रजा की भावनाओं के विपरित पाकिस्तान के साथ जाना चाहता था. नवाब ने पाकिस्तान को विलय का आश्वासन भी दे दिया था. इसके चलते जूनागढ़ में जनविद्रोह हो गया, नवाब को पाकिस्तान भागना पड़ा और जूनागढ़ भारत में शामिल हुआ. इधर हैदराबाद का निजाम भी भारत में शामिल होने को तैयार नहीं था. पटेल ने बार-बार उनसे आग्रह और तमाम राजनीतिक तरीके अपनाए, लेकिन हैदराबाद का निजाम टस से मस नहीं हुआ. ऐसे में सरदार पटेल ने अपना लौहपुरुषत्व दिखाते हुए हैदराबाद पर सैन्य कार्रवाई आरंभ करवाई. सितंबर, 1948 को भारतीय फौजों ने हैदराबाद पर आक्रमण कर दिया और निजाम को घुटने टिकवा दिए. इस प्रकार करीब 83000 वर्ग मील क्षेत्र वाला हैदराबाद भारत का अंग बना.

पटेल ने हैदराबाद विजय के साथ ही सभी 562 रियासतों का भारत में विलय करवाने में सफलता हासिल की. यह एक ऐसी सफलता थी, जिससे सरदार वल्लभभाई पटेल की ख्याति देश की सीमाओं से बाहर निकलकर पूरे विश्व में छा गई. उनकी तुलना जर्मनी का एकीकरण करवाने वाले प्रिंस बिस्मार्क से की जाने लगी. पटेल के इस महान कार्य पर कृतज्ञता प्रकट करते हुए पं. नेहरू ने संविधान सभा में कहा था, ‘यह काम सरदार के बूते का ही था, मेरा देसी रियासतों के आंदोलन से सीधा संबंध रहा है. पर 6 महीने पहले मैं भी यह नहीं कह सकता, जो आज सैंकड़ों साल पुरानी सामंतशाही उखड़ रही है, वह इतनी आसानी से उखड़ जाएगी. मैं समझता हूं कि टेढ़ी और कठिन स्थिति से निबटने के विषय में यह सभा मुझसे सहमत होगी कि हम पर मेरे मित्र तथा सहयोगी उपप्रधानमंत्री सरदार पटेल का आभार है.

इस प्रकार सरदार पटेल अपने महान कार्यों के माध्यम से भारत की धरा को आजादी से पहले और आजादी के बाद भी गौरवान्वित करवाते रहे. दुर्भाग्य से 15 दिसंबर, 1950 को उनकी मृत्यु हो गई, जिससे देश में अंधकार सा छा गया. उनकी मृत्यु पर लंदन के प्रसिद्ध समाचार पत्र मानचेस्टर गार्जियनने लिखा था, ‘पटेल के बिना न तो गांधीजी के विचार ही क्रियात्मक रूप से इतना प्रभावशाली प्रमाणित होते और न ही नेहरू के आदर्शवाद को इतना विस्तृत क्षेत्र प्राप्त होता. वे स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में इसका संगठन करते रहे और उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नवभारत का निर्माण तथा संगठन किया. इतिहास में बहुत थोड़े ऐसे व्यक्ति मिलते हैं, जिनमें पटेल की तरह एक ही साथ एक सफल विद्रोही तथा राजनीतिज्ञ के गुण विद्यमान हों.

यों तो पटेल स्वतंत्रता प्राप्ति के करीब ढाई साल तक ही जीवित रह सके, लेकिन इन ढाई सालों में उन्होंने देश को अखंड व अक्षुण्ण रखने के लिए जो सराहनीय कार्य किया, उसे अब तक याद किया जाता है. वे सच्चे अर्थों में देश की एकता के सूत्रधार थे.

सम्प्रति-वरिष्ठ पत्रकार नई दिल्ली मेल-swadesh171@gmail.com