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संपादकीय लेख


Volume-26, 29 September to 5 October, 2018

 

 

 स्वच्छ भारत अभियान और गांधीवादी रचनात्मक कार्यक्रम

प्रोफेसर एन. राधाकृष्णन

किसी महान व्यक्ति के दर्शन या दृष्टि की ताकत, महत्व और प्रासंगिकता को किस तरह मापा जा सकता है? आम मान्यता के अनुसार उसे सामाजिक बदलाव के लिये बौद्धिक विस्फोट की उसकी क्षमता के आधार पर मापा जाता है. अरस्तू और प्लेटो के अनुसंधान, श्री रामकृष्ण और विवेकानंद की आध्यात्मिक आत्मीयता तथा कार्ल माक्र्स और लेनिन का राजनीतिक सहयोग अपने गुरुओं और पथ प्रदर्शकों के दर्शन की पुनव्र्याख्या और अनुकूलन के बेखौफ  और साहसिक प्रयासों के सबसे विलक्षण उदाहरणों में से कुछेक हैं. भारत में भूदान आंदोलन के जरिये विनोबा भावे की कोशिशों ने कुछ समय तक गांधीवादी क्रांति का जादू फिर से जगाया. सामान्य तौर पर मान लिया गया है कि गांधीजी अब किताबों तक सिमट चुके ऐसे आदर्श हैं जिनकी पूजा की जानी चाहिये मगर रोजमर्रा की जिंदगी में जिनका अनुसरण करना मुश्किल है.

राष्ट्र महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाने की तैयारी कर रहा है. ऐसे में हमें हर किसी के अंदर गांधीजी को तलाशने के तौर-तरीकों के बारे में सोचना चाहिये. हमें विचार करना चाहिये कि गांधीजी की विरासत का खास तौर से राष्ट्र के लिये क्या मायने है.

स्वच्छ भारत अभियान ने स्वस्थ राष्ट्र की गांधीजी की परिकल्पना को फिर से प्रज्वलित किया है. यह एक बेहद कल्पनाशील और रचनात्मक राष्ट्रीय पहलकदमी है. यह उन अनेक अनुत्तरित प्रश्नों का जवाब देता है जिन्हें गांधीजी के बाद के समय में भारतीय समय-समय पर उठाते रहे हैं.

स्वच्छ भारत अभियान समूचे राष्ट्र की कल्पना को तेजी से अपनी ओर खींचते हुए एक जन आंदोलन में तब्दील हो चुका है. इसमें जनता की जबर्दस्त भागीदारी नीचे से ऊपर तक स्वच्छ और स्वस्थ भारत की ओर एक साहसिक और विस्तृत कदम के रूप में उसकी स्वीकार्यता का परिचायक है. बड़ी संख्या में नागरिकों ने आगे आकर गांधीजी के सपने के स्वच्छ भारत के लिये शपथ ली है.

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नयी दिल्ली में राजपथ पर स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत करते हुए कहा, ‘‘एक साफ-सुथरा भारत 2019 में महात्मा गांधी के 150वें जन्म दिवस पर देश की ओर से उन्हें सबसे अच्छी श्रद्धांजलि होगा.’’ स्वच्छ भारत मिशन को 2 अक्टूबर, 2014 को समूचे देश में एक राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में शुरू किया गया. इस अभियान का लक्ष्य स्वच्छ भारत के मुकाम को 2 अक्टूबर, 2019 तक हासिल करना है. श्री मोदी ने इंडिया गेट पर स्वच्छता शपथ का नेतृत्व किया जिसमें देश भर के लगभग 30 लाख सरकारी कामगार कर्मचारी शामिल हुए. उन्होंने राजपथ पर वॉकेथनको हरी झंडी दिखायी और हर किसी को हैरान करते हुए रस्मी तौर पर सिर्फ  कुछेक कदम नहीं बल्कि काफी लंबी दूरी तक भागीदारों के साथ चले.

स्वच्छता के इस जनआंदोलन में समाज के विभिन्न तबकों के लोग आगे आकर शामिल हुए हैं. सरकारी अधिकारियों से लेकर जवानों तक, बॉलीवुड के अभिनेताओं से लेकर खिलाडिय़ों तक तथा उद्योगपतियों से लेकर धार्मिक नेताओं तक हर कोई इस महान कार्य में शरीक है. समूचे देश में लाखों लोग भारत को स्वच्छ बनाने के लिये सरकारी विभागों, गैरसरकारी संगठनों और स्थानीय समुदायों की पहलकदमियों में दिन-ब-दिन शामिल हो रहे हैं. प्रधानमंत्री ने स्वच्छता के लिये जनआंदोलन की अगुवाई करते हुए देशवासियों को स्वच्छ और स्वास्थ्यकर भारत के महात्मा गांधी के सपने को साकार करने के लिये प्रेरित किया.

श्री नरेंद्र मोदी ने नयी दिल्ली के मंदिर मार्ग पुलिस स्टेशन परिसर में स्वच्छता अभियान की खुद शुरुआत की. उन्होंने गंदगी हटाने के लिये खुद झाडू उठा कर स्वच्छ भारत अभियान को देश भर में जनआंदोलन बना दिया. उन्होंने कहा कि हम न तो गंदगी फैलायें और न ही दूसरों को ऐसा करने दें. प्रधानमंत्री द्वारा स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत के बाद झाडू से सडक़ों को बुहारना, कचरा हटाना, स्वच्छता पर ध्यान देना और स्वास्थ्यकर माहौल बरकरार रखना एक आदत बन गयी है. लोगों ने स्वच्छता के संदेश को फैलाने के काम में हिस्सा लेना और सहयोग करना शुरू कर दिया है.

गांधी के साथ अग्रसर

गांधी ने सुझाव दिया था कि उनके बाद उनके लेखन को भी दफना दिया जाये. इसके बावजूद विश्व के बदलते परिदृश्य में उनके कार्य, विचारों और दृष्टि के महत्व के गंभीर परीक्षण के लिये अब ज्यादा बहस चल रही है. जिसे आज हम गांधीजी के दर्शन के नाम से जानते हैं वह उनके जीवन, कार्य और जिंदगी, मनुष्य, वस्तु और समाज के बारे में उनके विचारों से पनपा है.

गांधीजी के जीवन, कार्य और दृष्टि से पता चलता है कि वह विचारों का महान संगम हैं. अपनी परंपरा से गहराई से जुड़े होने के बावजूद उन्होंने पश्चिम से काफी सीखा तथा विश्व के प्रमुख क्षेत्रों में से ज्यादातर के  परिज्ञान और शिक्षाओं को दिलोजान से आत्मसात किया. उन्होंने अनेक भारतीय गुरुओं और दूरद्रष्टाओं के अलावा टॉल्सटॉय, रस्किन और कई अन्य पश्चिमी विचारकों के विचारों को ग्रहण किया. इस प्रक्रिया में वह अनेक विचारों का मिलन बिंदु और जानी-मानी हस्ती बन गये. खुद को एक व्यावहारिक आदर्शवादी बताने वाले गांधीजी अपने पीछे मानव उद्धार और संवहनीय जीवन की एक संपन्न परंपरा छोड़ गये हैं. निस्संदेह गांधीजी का जीवन के बारे में अपना एक दर्शन था. लेकिन वह कहते थे- ‘‘मेरा जीवन ही मेरा संदेश है.’’ लिहाजा उन्हें पारंपरिक अर्थों में दार्शनिक कहना गलत होगा.

गांधीजी ने एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था की कल्पना की थी जिसमें सब बराबर और समान अवसरों के हकदार हों. उनकी दृष्टि को आज सर्वोदय समाज के नाम से जाना जाता है. गांधीजी ने ऐसे समाज को राम राज्य कहा था. दुर्भाग्य से राम राज्यके धार्मिक मकसद हासिल कर लेने की वजह से गैर हिंदू इसे संदेह की नजर से देखने लगे हैं. गांधीजी ने स्पष्ट किया था कि उनकी कोशिशों का उद्देश्य एक न्यायसंगत समाज सुनिश्चित करना है. उनके सपनों का राम राज्य सचाई और न्याय का साम्राज्य था जिसमें किसी के भी साथ भेदभाव नहीं होगा. यह धरती पर ईश्वर का साम्राज्य था.

रचनात्मक कार्यक्रम

गांधीजी ने विकास के जिन मॉडलों का सुझाव दिया तथा अहिंसक सामाजिक परिवर्तन और व्यक्तिगत उद्धार एवं सशक्तीकरण के लिये जिन रणनीतियों को अपनाया वे समय की जरूरतों से निर्देशित या आवेगशील किसी भी मायने में नहीं थे. गांधीजी ने राष्ट्र के पुनर्निर्माण और उसके गौरव की पुनस्र्थापना के लिये जो रचनात्मक कार्यक्रम सामने रखा उससे पता चलता है कि अहिंसक सामाजिक बदलाव के लिये उनकी पहलकदमियां कितनी विस्तृत और समग्र थीं. हालांकि उन्होंने खुद संकेत दिया था कि ये कार्यक्रम सिर्फ  उदाहरण हैं.  

अब हम इन कार्यक्रमों पर तेजी से एक निगाह डालते हैं जिनके सुपरिचित विद्वान और कार्यकर्ता प्रोफेसर जीन शार्प के अनुसार तीन मुख्य हिस्से हैं:

1.व्यक्तियों की जिंदगी और जीने के तौर-तरीकों में सुधार

2.पुरानी के मौजूद रहते नयी सामाजिक व्यवस्था के निर्माण की शुरुआत के लिये रचनात्मक कार्यक्रम और

3.सामाजिक बुराइयों के खिलाफ  कार्रवाई के विभिन्न अहिंसक स्वरूपों का प्रयोग

जीन शार्प ने विभिन्न कार्यक्रमों के सावधानीपूर्वक विश्लेषण के बाद गांधीजी के दृष्टिकोण की इस तरह व्याख्या की है:

‘‘वह मानते थे कि आत्मनिर्भरता और स्वतंत्रता पर आधारित एक न्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था एक ऐसे आंदोलन से लायी जाये जिसमें इसी तरह के गुण मौजूद हों. इसलिये गांधीजी ने एक नयी सामाजिक व्यवस्था के ऐसे स्वैच्छिक रचनात्मक कार्यक्रम के जरिये निर्माण का विचार रखा जो शासन और पुरानी व्यवस्था के अन्य प्रतिष्ठानों से आजाद होकर काम करे. उनकी कोशिशें प्रायोगिक थीं और उन्हें पर्याप्त बताने वाले वह आखिरी व्यक्ति होते.’’

1. सभी धर्मों की समानता

गांधीजी सामाजिक मूल्यों को जोडऩे में धर्मों की रचनात्मक भूमिका से भली-भांति वाकिफ थे. एक नये नजरिये की वकालत करते हुए उन्होंने लोगों को याद दिलाया कि सभी धर्म एक ही मंजिल तक जाने वाले अलग-अलग रास्ते हैं. अगर हम एक ही मंजिल पर पहुंच रहे हैं तो अलग-अलग रास्ते अपनाने से कोई फर्क नहीं पड़ता. सभी धर्म शांति का संदेश देते हैं. इसके बावजूद अपने धर्म के गुणों की प्रशंसा करने और दूसरों के धर्मों को नीचा मानने की प्रवृत्ति हर ओर बढ़ती दिखायी दे रही है. कईयों में यह बुनियादी समझ तक नहीं है कि विविधता की स्थिति में सहिष्णुता चुंबक की तरह काम करते हुए समाज के ताने-बाने को जोड़ कर रखती है. वे इस सरल सच को भूल जाते हैं कि सहिष्णुता हमें एक आध्यात्मिक अंर्तदृष्टि देती है. वह हमें विश्वास का साहस प्रदान करती है जो अंतत: मतों के बीच अवरोधों को तोड़ देगा. इससे मानवीय समझ के दायरे का भी विस्तार होगा. इसलिये गांधीजी ने सर्वधर्म सम्भाव के नये दृष्टिकोण की हिमायत की.

2. छुआछूत निवारण

गांधीजी ने कहा कि आबादी के किसी भी हिस्से को जन्म, रंग या पेशे के आधार पर अलग करना मानवाधिकारों का हनन और मानवता के खिलाफ  पाप है. इसलिये वंचित तबकों के खिलाफ  नाइंसाफी को खत्म करने के लिये साहस और विश्वास के साथ व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर प्रयास किये जाने चाहिये. उन्होंने कहा कि इन दलित लोगों को रूढि़वाद और अमानवीय प्रथाओं से आजाद कराया जाना है.

दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी के 21 साल के कामकाज को मानवाधिकारों को सुनिश्चित करने के लिये अभियान के तौर पर जाना जाता है. गांधीजी का दक्षिण अफ्रीका प्रवास उनके लिये काफी महत्वपूर्ण रहा और इस दौरान वह एक नौजवान अधिवक्ता से महात्मा में तब्दील हो गये. गांधीजी के भारत लौटने के बाद गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें महात्मा की उपाधि से विभूषित किया. नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने गांधीजी के योगदान की सराहना करते हुए उन्हें राष्ट्रपिता करार दिया.

3. शराबबंदी

शराब के सेवन की बुराई तथा इससे पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के जीवन के आने वाली तबाही ने गांधीजी का ध्यान अपनी ओर खींचा. उन्होंने देखा कि किस तरह अपनी गाढ़ी कमाई शराब में लुट जाने और स्वास्थ्य पर इसके दुष्प्रभाव की वजह से परिवार बरबाद हो जाते हैं. वह इस बुराई पर मुकम्मल ढंग से हमला करना चाहते थे. उन्होंने शराबबंदी परिषद की स्थापना की और उसकी बुराइयों की ओर ध्यान खींचने के लिये वृहत प्रचार अभियान चलाया जिससे आम जागरूकता में काफी इजाफा हुआ. इसके बाद गांधीजी के नेतृत्व में देश के सभी हिस्सों में शराबबंदी लागू करने के लिये जबर्दस्त अभियान चलाया गया.

4. खादी

खादी को गांधीवादी क्रांति की आत्मा मानना सही ही है. गांधीजी के लिये खादी व्यक्ति और राष्ट्र दोनों की ही आजादी का प्रतीक थी. उनकी राय में ‘‘खादी समूचे देश की आर्थिक आजादी और समानता की शुरुआत है. सचाई को उसे अपनाकर ही जाना जा सकता है. हर कोई आजमाकर देखे तो उसे मेरे कथन के सच का पता चलेगा. खादी को उसके तमाम प्रभावों के साथ अपनाया जाना चाहिये. यह एक समग्र स्वदेशी मानसिकता तथा जीवन की सभी जरूरतों को ग्रामवासियों के श्रम और बुद्धिमता के जरिये भारत में ही तलाशने के संकल्प का परिचायक है. इसका मतलब मौजूदा प्रक्रिया के विपरीत जाना है.’’

5. ग्राम उद्योग

गांधीजी आम जन द्वारा उत्पादन को विकास, समानता और शांति के लिये जरूरी शर्त मानते थे. वह हर गांव को एक स्वतंत्र और आत्म निर्भर इकाई मानने के हिमायती थे जिसमें दस्तकारों, शिल्पकारों और श्रमिकों को आजीविका की पुश्तैनी और अर्जित गतिविधियों को जारी रखने के पर्याप्त अवसर हासिल हों. इन गतिविधियों से रोज़गार पैदा होने के साथ ही गांवों में ऊंची व्यक्तिगत आय भी सुनिश्चित की जा सकेगी. गांवों में बुनाई, तेल पिराई, शहद, पापड़, कागज और साबुन उत्पादन तथा धान की हाथ से कुटाई जैसे असंख्य ग्रामोद्योग शुरू किये जा सकते हैं.

6. बुनियादी शिक्षा

गांधीजी का शिक्षा के बारे में पारंपरिक नजरिये से कोई विरोध नहीं था. मगर वह मानते थे कि शिक्षा से बच्चों को खुद को पहचानने का सृजनात्मक अवसर मिलना चाहिये. इससे उन्हें वे उपादान मिलने चाहिये जिनसे खुद को समाज और सामाजिक जरूरतों से जोड़ सकें. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा प्रणाली बच्चों को मशीनी औजार बनाने के बजाय उनकी सर्वश्रेष्ठ प्रतिभा को उभारे. बुनियादी शिक्षा या नयी तालीम में तीन एच (हेड, हार्ट तथा हेंड) यानी सिर, हृदय और हाथ के तालमेल पर जोर दिया गया है. बच्चा अपने दिमाग से सोचे और विचारों पर दिल से अमल करते हुए हाथ से काम करे. इन तीनों के बीच तालमेल से ही बच्चे की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभा उभरेगी तथा वह स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और रचनाशील बनेगा.

7. वयस्क शिक्षा

किसी देश के बालिगों का अपने दायित्वों और अधिकारों से अनजान तथा निरक्षर और अज्ञानी होना शर्मनाक है. गांधी ने इस बात को समझते हुए वयस्क शिक्षा के मूल्य पर जोर दिया. उन्होंने वयस्क शिक्षा को हर व्यक्ति की सामाजिक जिम्मेदारी बताया. वह नहीं चाहते थे कि वयस्क शिक्षा कार्यक्रम सरकार चलाये. इसके विपरीत वह मानते थे कि समाज के हर शिक्षित सदस्य को वयस्क शिक्षा से संबंधित गतिविधियों में खुद को शामिल करने की जिम्मेदारी उठानी चाहिये.

8. महिला

गांधी ने न्याय, स्वतंत्रता और मानव गरिमा के लिये अपने हर अभियान में महिलाओं को योद्धाओं के अग्रिम मोर्चे पर रखा. महात्मा गांधी के शंखनाद से पहले महिलाओं ने भारतीय इतिहास में कभी भी सार्वजनिक गतिविधियों में इस आनंद के साथ हिस्सेदारी नहीं निभायी थी. यहां कस्तूरबा गांधी के इस अद्र्ध परिहास का उल्लेख अप्रासंगिक नहीं होगा कि गांधीजी को पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा बेहतर ढंग से समझती थीं. महिलाओं के लिये गांधीजी के मन में अनंत सम्मान था. वह मानते थे कि महिलाओं के अंदर अहिंसा के लिये बेहतर आंतरिक क्षमता है. गांधीजी ने वैसे समय में दक्षिण अफ्रीका और भारत में मानवाधिकारों को सुनिश्चित करने के लिये महिलाओं को केन्द्र में रखते हुए जागरूकता अभियान और राजनीतिक संघर्ष शुरू किया जब इस समय बेहद प्रचलित और अक्सर इस्तेमाल किया जाने वाला मानवाधिकार शब्द प्रचलन में नहीं था. इससे पता चलता है कि महिलाओं के बारे में उनका बर्ताव कैसा था और सामाजिक जीवन में नारी की रचनात्मक भूमिका के संबंध में उनकी उम्मीदें क्या थीं. दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह तथा उसमें फीनिक्स और टॉल्सटॉय बहनों की भूमिका का उनका वर्णन दिल को छू लेने वाला है. महिलाओं ने इस सत्याग्रह में उत्साह से भाग लेते हुए पुरुषों के साथ बराबरी का किरदार अदा किया.

9. स्वास्थ्य और स्वच्छता की शिक्षा

भारत के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में निजी और सार्वजनिक स्वच्छता उपेक्षित रही है. गांधीजी ने इस बात पर जोर दिया कि खास तौर से ग्रामीणों को अपने आसपास और गांव को साफ  रखते हुए स्वच्छता का माहौल विकसित करने की तुरंत जरूरत के बारे में शिक्षित किया जाये. घरों, गलियों और सार्वजनिक स्थलों को साफ  रखे बिना गांव स्वच्छ नहीं रहेंगे. कचरे के ढेर, भरी हुई नालियां, इधर-उधर घूमते कुत्ते और सुअर, भिन-भिनाती मक्खियां तथा आवारा गायें और भैंसें बेहद घिनौना माहौल पैदा करती हैं. इनकी वजह से कई गांव हर तरह की बीमारियों के प्रजनन स्थल में तब्दील

हो गये हैं.

10. प्रांतीय भाषाएं

अपनी कई भाषाओं पर गर्व करने में सक्षम किसी आजाद देश को विभिन्न भाषाओं को विकास के लिये प्रेरित करना चाहिये. गांधीजी के विचार में प्रांतीय भाषाएं विद्वता और साहित्य के ऐसे भंडार हैं जिन्हें सामाजिक जीवन का आइना माना जा सकता है. कोई भी स्वतंत्र देश अपनी जनता की नियति को संवारने में भाषाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को नजरंदाज करने का जोखिम नहीं उठा सकता.

11. राष्ट्रीय भाषाएं

भारत विश्व की सबसे पुरानी जीवित सभ्यताओं में से एक है. इस जैसे देश की एक राष्ट्रभाषा होनी चाहिये जो राष्ट्रीय भावनाओं को सही मायनों में प्रतिबिंबित करे. उसे प्रांतीय भाषा के साथ भेदभाव के बिना सांस्कृतिक जीवन और रोजमर्रा के प्रशासन में बराबरी का दर्जा दिया जाना चाहिये. एक भाषा का बहुमत की सहमति से राष्ट्रभाषा के तौर पर उदय नैसर्गिक रूप से देश की सेहत का पैमाना होगा.

12. आर्थिक समानता

गांधीजी का दृढ़ विश्वास था कि आर्थिक समानता के बिना किसी भी देश के विशाल जनसमूह के लिये आजादी कोई मायने नहीं रखती. आम आदमी को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिये अकेला नहीं छोड़ा जाना चाहिये. किसी संप्रभु गणराज्य में भोजन, कपड़ा और आवास की उसकी जरूरतों को पूरा किये बिना आजादी की बात निरर्थक और खोखली हो जाती है. किसी लोकतंत्र की स्थिरता इस पर निर्भर करती है कि वह आम आदमी को विकास, रोज़गार और शासन की सभी कडिय़ों तक बराबर पहुंच के अवसर मुहैया कराते हुए उसकी कितनी चिंता करता है.

13. किसान

पांच लाख से ज्यादा गांवों के इस देश में निश्चित तौर पर खेती ही सबसे बड़ा रोज़गार और आय का स्रोत होगी. भारत कृषि प्रधान देश है लेकिन इसमें भोजन पैदा करने वाले किसानों के साथ गरिमापूर्ण बर्ताव नहीं किया जाता. उन्हें विकास के समुचित अवसर मुहैया नहीं कराये जाते हैं. बड़ी तादाद में किसान जानकारी और सुविधाओं के अभाव में अब भी खेती के पुराने औजारों और तरीकों का ही इस्तेमाल कर रहे हैं. आधुनिक प्रौद्योगिकी और उत्पादों के प्रतिस्पर्धी मूल्यों के जरिये किसानों के उत्थान के सतत् प्रयास करना जरूरी है. ऐसा किये बिना कृषि के क्षेत्र में क्रांति एक सपना ही बनी रहेगी.

14. श्रम

कई अन्य विकासशील देशों की तरह भारत में भी श्रम को पश्चिमी मॉडलों का अनुसरण करने के बजाय अहिंसक आचार-व्यवहार विकसित करना चाहिये. इससे उन्हें अपने आम बर्ताव में दृढ़ता और सरोकार के साथ बदलाव लाने में मदद मिलेगी. श्रम का शोषण पाप है जो समाज में वैमनस्य और अविश्वास को जन्म देगा.

15. आदिवासी

गांधी के अनुसार आदिवासी के नाम से पहचाने जाने वाले जनजातीय लोग हमारी संपन्न संस्कृति के वारिस हैं और उन्हें किसी भी तरह दरकिनार नहीं किया जाना चाहिये. उन्हें विकास के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये. लेकिन प्रगति और सभ्यता के नाम पर उनके शोषण का प्रयास तथा आधुनिकता का झांसा देकर उन्हें उनकी आजीविका से दूर करना अपराध होगा.

16. कुष्ठ उन्मूलन

गांधी ने कहा, ‘‘कोढ़ी एक खराब शब्द है. भारत में कुष्ठ रोगियों की संख्या मध्य अफ्रीका के बाद शायद सबसे ज्यादा है. वे बाकी लोगों की तरह ही हमारे समाज के अंग हैं. बड़ी संख्या में कुष्ठ रोगियों को हमारी ओर से ध्यान दिये जाने की जरूरत है मगर वे उपेक्षा का शिकार हैं. मैं इसे अहिंसा के लिहाज से हृदयहीनता के रूप में देखता हूं.’’

17. छात्र

गांधीजी ने भारत और दक्षिण अफ्रीका में युवाओं के साथ जिस तरह संवाद किया वह वाकई उल्लेखनीय है. गांधीजी के आह्वान पर युवा पूरे विश्वास के साथ बदलाव के प्रेरित दूतों के रूप में उनके इर्द-गिर्द एकत्र हो गये. गांधीजी चाहते थे कि पुरानी पीढ़ी युवाओं पर भरोसा करे और उन्हें नेतृत्व दे. वह निस्संदेह छात्रों के राजनीति में कूदने के खिलाफ  थे. वह मानते थे कि इससे छात्र अपने अभिभावकों की गाढ़ी कमाई को बरबाद करेंगे और उनका बेशकीमती समय भी जाया होगा. लेकिन वह छात्रों को किताबी कीड़ा बनाये जाने के भी खिलाफ  थे. उन्होंने छात्रों को सामाजिक बदलाव को मापने का पैमाना बताया. लेकिन उन्होंने साथ ही कहा कि यह पैमाना बनने के लिये छात्र को सही दृष्टिकोण विकसित करना चाहिये.

कई विद्वानों को गांधीजी के रचनात्मक कार्यक्रमों में एक ऐसी नयी सामाजिक व्यवस्था का खाका दिखायी देता है जिसमें गरीबी, निरक्षरता और सामाजिक असमानताएं अतीत का हिस्सा हो जायेंगी. जीन शार्प ने इन कार्यक्रमों की सराहना करते हुए इन्हें ‘‘ऐसा चबूतरा बताया जिस पर नये समाज का ढांचा खड़ा किया जायेगा.’’ उन्होंने कहा, ‘‘रचनात्मक कार्यक्रम पुरानी के मौजूद रहते नयी सामाजिक व्यवस्था की शुरुआत की कोशिश है. इस तरह खुद को अहिंसक क्रांतिकारी बताने वाले गांधीजी ने पुराने के साथ संघर्ष करते हुए ही नये के निर्माण की शुरुआत की.’’

मौजूदा समय में उभरते राष्ट्रीय और वैश्विक परिदृश्य में सामाजिक बदलाव और व्यक्तियों के सशक्तीकरण के लिये रचनात्मक कार्यक्रम की प्रासंगिकता ज्यादा बड़ी दिखायी देती है. चिंतित मानवता वैश्वीकरण के विकल्पों की तलाश कर रही है. ऐसे में सभी के लिये न्याय सुनिश्चित करने वाली गांधीजी की पर्यावरण के अनुकूल, समग्र और संवहनीय सामाजिक व्यवस्था की दृष्टि को विश्व के अनेक भागों में बाजार आधारित अर्थव्यवस्था और वैश्वीकरण के क्रांतिकारी विकल्प के रूप में मान्यता मिल रही है. संभवत: जरूरत इस बात की है कि इसके अंधानुकरण के बजाय इसे उभरती राष्ट्रीय और वैश्विक स्थिति की वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए रचनात्मक और व्यावहारिक ढंग से अपनाया जाये.

स्वच्छता अभियान, निस्संदेह भारत में साफ-सफाई की अब तक की सबसे बड़ी मुहिम है. समूचे भारत के शहरों, कस्बों और उनसे जुड़े ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी कर्मचारी तथा स्कूलों और कॉलेजों के छात्र इस अभियान में हिस्सेदारी निभा रहे हैं. प्रधानमंत्री ने 10 अप्रैल, 1917 को शुरु किये गये गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह के संदर्भ में इस अभियान को ‘‘सत्याग्रह से स्वच्छाग्रह’’ करार दिया है. श्री मोदी ने इस अभियान की शुरुआत करते हुए ‘‘न गंदगी करेंगे, न करने देंगे’’ का मंत्र दिया है.

स्वच्छता ही सेवा का संदेश: अब आम नागरिक देशभर में स्वच्छता की गतिविधियों में सक्रिय हिस्सेदार बन गये हैं. वे स्वच्छता ही सेवाके संदेश को अपना रहे हैं. महात्मा गांधी ने स्वच्छ भारतका जो सपना देखा था वह मूर्त रूप लेने लगा है.

(लेखक गांधी शांति मिशन के अध्यक्ष हैं. उनका ईमेल है- drnradhakrishnan@ gmail. com) इस लेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं.