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संपादकीय लेख


Volume 14, 7-13 July, 2018

 
दुनिया भर में भारत की कूटनीति की सफलता

सौरभ शुक्ल

पिछले 48 महीनों के दौरान सरकार की सबसे बड़ी एक सफलता कूटनीति के क्षेत्र में रही है और आस पड़ौस से लेकर सुदूर देशों तक कूटनीति ने बहुत अच्छा काम किया है. यद्यपि उभरती वैश्विक स्थितियों के कारण कुछ निराशा भी रही हैं, परंतु भारत की बाह्य रूप रेखा और राष्ट्रों के समुदाय के मध्य इसका सम्मान कई गुणा बढ़ा है.
इसे बेहतर समझने के लिये, नीचे कुछेक प्रमुख महत्वपूर्ण क्षेत्रों के बारे में विवरण दिया गया है जिनमें सरकार की नीतियों को भारी सफलता मिली है:
पाकिस्तान के विरुद्ध सर्जिकल स्ट्राइक एक महत्वपूर्ण उपलब्धि रही है जो कि एक निर्णायक दृष्टिकोण था. भारत ने पाकिस्तान को एक कड़ा संदेश दिया कि यदि पाकिस्तान ने आतंकवादी घटनाओं के जरिए उसे उकसाया तो वह हाथ पे हाथ धरकर बैठा नहीं रहेगा. पाकिस्तानी सैन्य प्रशासन के लिये भी यह संदेश था कि भारत दखलंदाज़ी को कतई बर्दाश्त नहीं करेगा और जवाबी कार्रवाई करने से नहीं हिचकेगा. यद्यपि पाकिस्तान सकते में था, वैश्विक समुदाय ने भारत का ही समर्थन किया. दरअसल पाकिस्तान का समर्थन करने वाले भी उस पर आतंकवाद के मुद्दे को लेकर प्रश्नचिह्न लगाने लगे. दुनिया भर में भारत के निरंतर द्विपक्षीय और बहुपक्षीय प्रयासों के कारण पाकिस्तान वैश्विक पैमाने पर अलग-थलग पड़ गया.
सार्क देशों में से अधिकतर ने पाकिस्तान में होने वाले शिखर सम्मेलन का बहिष्कार कर दिया जिसके कारण सम्मेलन स्थगित करना पड़ा. यही नहीं, ट्रंप प्रशासन ने भी आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को एक कड़ी चेतावनी दे डाली.
इसके अलावा, सऊदी अरब का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार प्राप्त करने से लेकर संयुक्त अरब अमीरात, ओमान और कतर जैसे खाड़ी देशों तथा इस्राइल के साथ नज़दीकी सामरिक साझेदारी तक श्री नरेंद्र मोदी के अधीन भारत की कूटनीति को जबर्दस्त प्रोत्साहन मिला. सुरक्षा मुद्दों पर सहयोग और भारतीय भगौड़ों के प्रत्यावर्तन से अपनी संप्रभु निधियों में निवेश तक भारत की कूटनीतिक एकजुटता के ठोस सामरिक परिणाम सामने आये हैं.
आगे का मार्ग
नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में कूटनीति का एक सर्वोच्च स्थान रहा है जिसमें संयुक्त राष्ट्र में समर्थन, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) में जीत और अमरीकी राष्ट्रपति का आतंकवाद के मुद्दे पर मज़बूत समर्थन हासिल करना शामिल है. विश्व में भारत की ताक़त का बहुत तेज़ी के साथ विस्तार हुआ है.
भारत अमरीका संगम पर कार्य
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच जबर्दस्त तालमेल के कारण भारत और अमरीका के संबंध मज़बूत हुए हैं. इसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान अमरीका की अलग नजऱों में चढ़ गया है. रक्षा सहयोग के क्षेत्र में भी तेज़ी आई है. दोनों देशों के लिये व्यापार और आव्रजन मुद्दों को हल करने और इन संबंधों को परिणामोन्मुख बनाये जाने की आवश्यकता है.
चीन के साथ डोकलॉम गतिरोध के बाद सीमा मुद्दे को लेकर कुछ निराशाएं रही हैं परंतु भारत ने इनसे दृढ़ता के साथ निपटा, जिससे वैश्विक शक्ति के तौर पर भारत का दर्जा ऊपर उठा है. बदलते वैश्विक क्रम में, किसी देश की शक्ति की प्रोफाइल, इस बात के अलावा कि उसके नेता की ऐसी नेतृत्व योग्यता है जिसके दुनिया भर में अनेक मित्र हों, इसकी आर्थिक प्रोफाइल के संयोजन से होकर भी निकलती है. सरकार की एक महत्वपूर्ण सफलता यह रही है कि इसके दुनिया भर में बहुत से निकट मित्र हैं जिसने भारत की विश्व में उच्चतर कूटनीतिक प्रोफाइल बनाने में सहायता की है.
एक्ट ईस्ट नीति की मज़बूती
 मोदी सरकार की एक अन्य महत्वपूर्ण उपलब्धि भारत की लुक ईस्ट नीति को एक मज़बूत एक्ट ईस्ट नीति में सफलतापूर्वक तबदील करने को लेकर रही है. इसने भारत की वैश्विक प्रोफाइल के निर्माण में सहायता की है. प्रधानमंत्री की हाल की इंडोनेशिया यात्रा और शंगरिला वार्ता, सिंगापुर के नेतृत्व के साथ विचार-विमर्श में उनकी भागीदारी और बीच में मलेशिया में रुकने का उद्देश्य इन देशों के साथ संबंधों को लेकर भारत की सतत् प्रतिबद्धता को मज़बूती प्रदान करना ही था. इससे पहले गणतंत्र दिवस परेड में सभी आसियान नेताओं को मुख्य अतिथियों के तौर पर आमंत्रित करना उस विशेष साझेदारी की ही अभिव्यक्ति थी. यह साझेदारी तीन अनिवार्य स्तम्भों पर टिकी है, पहला है आर्थिक सहयोग, जहां भारत और ये देश गतिशील व्यापार संबंधों का लाभ उठा सकते हैं, दूसरा सामरिक सहयोग जहां ये रक्षा क्षेत्र में सहयोग करेंगे, जिससे समुद्री मार्ग का सम्प्रेषण सुनिश्चित होगा, समुद्री डकैती और आतंकवाद का ये सामना करेंगे. तीसरा स्तम्भ सांस्कृतिक संबंधों को लेकर है जहां भारत और ये देश भारतीय समुदाय के जरिये नये संपर्क को मज़बूत बनाते हुए सांस्कृतिक और परंपरागत संपर्कों में सहयोग करेंगे. यह इस बात को सुनिश्चित करने में भी एक अन्य बड़े सामरिक उद्देश्य को पूरा करता है कि एशिया में भारत की शांति और स्थिरता के पर्यवेक्षक के तौर पर प्रमुख भूमिका पुन: बहाल हो.
एशिया में एक मज़बूत गठबंधन ने भारत-प्रशांत के एक नये गठजोड़ में भी सहायता की है जिससे भारत की क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण देश के तौर पर पुन: पुष्टि हुई. इसने एशियाई क्षेत्र में किसी भी प्रकार का आधिपत्य कायम करने को लेकर भी प्रभावी प्रतिरोध साबित किया है.
भारत की मानवीय कूटनीति का विस्तार
सोशल मीडिया के युग और वैश्विक मुद्दों को लेकर बढ़ती जागरूता के बीच भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि विदेशों में रह रहे भारतीयों और जो भारत से जुड़े हैं, यहां की यात्रा करने वालों और वीजा चाहने वालों का मानवीय दृष्टिकोण के साथ स्वागत किया जाये. भारतीय मिशनों और भारतीय विदेशी कार्यालयों को अपने आस-पास इसके बारे में जागरूकता पैदा करनी चाहिये और भारतीय मिशनों तथा प्रतिनिधियों को स्वागत करने की प्रथम चौकी बन जाना चाहिये कि जब भी वे भारत आना चाहेंगे, इस देश में पर्यटकों का इंतज़ार रहेगा.
मानवीय कूटनीति का दूसरा हिस्सा जरूरतमंद देशों तक भारत की पहुंच कायम करना है, अब तक हमने भारत के सामरिक पड़ोसियों के साथ किया है परंतु हमें इससे आगे इसका विस्तार अवश्य करना चाहिये. अपनी वैश्विक आकांक्षाओं के लिये हम एक ऐसे देश के तौर पर देखे जाने चाहिये जो दुनिया के ज़रूरतमंद देशों के साथ खड़ा है. हमें अपने वैश्विक सद्भावना परिदृश्य को विस्तारित करना चाहिये और इसमें संलग्नता बढ़ानी चाहिये.
चीन की दीवार पर चढ़ाई
डोकलॉम गतिरोध के समाधान और वुहान शिखर बैठक के बाद दोनों देशों के बीच समझ बढ़ी है. दोनों देशों के मध्य परस्पर आर्थिक साझेदारी को लेकर बेहतर संबंध बने हैं. उनमें वैश्विक पर्यावरण तथा सतत मुद्दों पर तथा बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग की क्षमता है.
पड़ोसियों के साथ नरम रवैया
नेपाल, श्रीलंका से लेकर अफगानिस्तान और बांगलादेश तक भारत को सांस्कृतिक समानताओं पर नरम संलग्नता कार्य नीति तथा इन देशों के साथ सद्भाव का निर्माण करने की नीति पर काम करने की आवश्यकता है. इन देशों में भारत के लिये सद्भावना के निर्माण में युवाओं से निदेशित क्षेत्रीय विनिर्दिष्ट सार्वजनिक कूटनीतिक पहल की आवश्यकता है.
रूस और यूरोप के साथ संबंध
रूस भारत का एक पुराना मित्र है और हमें पुराने मित्रों को नहीं भूलना चाहिये, यह भारत के लिये अफगानिस्तान में तथा एक महत्वपूर्ण ऊर्जा और रक्षा साझेदार के तौर पर जरूरी है. सैन्य और कूटनीति सहित बहुत से विकल्पों के साथ एक सतत् प्रयास की आवश्यकता होगी जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि पाकिस्तान को आतंकवाद का समर्थन करने की भारी क़ीमत उठानी पड़े.
मानव-केंद्रित कूटनीति
किसी देश की सफल कूटनीति का आकलन इस बात को लेकर भी किया जाता है कि इसके नागरिक आश्वस्त हों कि उनकी सरकार उन्हें कठिन स्थितियों में विशेषकर जब वे विदेश में होंगे, अवश्य बचा लेगी. अमरीका जैसी वैश्विक शक्तियों को अपने नागरिकों को वापस सुरक्षित स्वदेश पहुंचाने के लिये दबाव कायम करने की रणनीति के लिये रोल मॉडल के तौर पर देखा जाता था. भारत में इस मुद्दे को लेकर जबर्दस्त बदलाव आया है क्योंकि सरकार अधिक ग्रहणशील हो गई है और विदेशों में भारतीय मिशनों ने कूटनीतिक प्रयासों के जरिए सरकार की विस्तारित पहुंच से हजारों भारतीयों को स्वदेश पहुंचाना सुनिश्चित किया है. अब समय बदल गया है और यह सुनिश्चित करने के लिये सोशल मीडिया एक महत्वपूर्ण माध्यम बन गया है, जब भी देश के नागरिक संकट में होते हैं तो वे सरकार से संपर्क कायम कर सकते हैं तथा भारतीय मिशनों को यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिये गये हैं कि वे उनकी तुरंत सहायता करें. यद्यपि पूर्व में भी भारत के बचाव अभियान सफल रहे हैं परंतु अब एक बड़ा बदलाव इसमें तीव्रता को लेकर आया है और दूसरा यह सुनिश्चित करने के लिये है कि एक आम नागरिक के पास भी अपनी आवाज़ उठाने का मौका होता है कि वह संकट के समय अपनी सरकार से सीधा संपर्क कायम कर सकता है.
सफल कूटनीतिक ताक़त
व्यक्तिगत समझबूझ कायम करना नरेंद्र मोदी सरकार की सफलता का एक महत्वपूर्ण कदम है और विश्व नेताओं के साथ अच्छे संपर्क कायम करने का श्रेय प्रधानमंत्री को दिया जाना चाहिये. अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से लेकर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीन के शी जिनपिंग, जापान के शिंजो आबे और फ्रांस के एमानुल मैक्रों के साथ भारतीय प्रधानमंत्री के निजी कूटनीतिक संबंधों के सफल परिणाम निकले हैं. कुछेक मामलों में मिली-जुली सफलता रही है, विशेषकर उस वक्त जब हाल में रूस के साथ गहरे आर्थिक और रक्षा सहयोग के लिये व्यापार और आव्रजन से संबंधित मतभेद सामने आये. यूरोपीय संघ और भारत के विविध दृष्टिकोण रहे हैं और हमें अपनी यूरोप तथा ब्रिटेन के साथ प्रमुख साझेदारियों के साथ संबंधों को विस्तारित करने के लिये नवाचार, कौशल विकास और एरोस्पेस के क्षेत्र में काम जारी रखना चाहिये.
नये भारत के लिये कूटनीति
भारत के वैश्विक दायरे में वृद्धि के साथ ही इसे अपनी कूटनीति में सोशल मीडिया और इंटरनेट के युग में आधुनिक और नवीनतम औज़ारों को शामिल करना होगा. भारतीय कूटनीति के लिये अब अधिक विषयागत विशेषज्ञों को लगाये जाने, युवा लोगों को एकजुट करके डिजिटल और सोशल मीडिया के इस्तेमाल की एक रणनीति का निर्माण करने की आवश्यकता है क्योंकि कूटनीति और विदेश नीति भी सार्वजनिक कूटनीति की अवधारणाओं के सृजन के बारे में होती हैं. 
(लेखक एक सामरिक विशेषज्ञ और www.news mobile.in के संस्थापक तथा प्रधान संपादक हैं.) लेखक के विचार उनके अपने हैं.