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संपादकीय लेख


Volume-13, 30 June- 6 July, 2018

 
देश में खेल-कूद की संस्कृति का विकास

विधांशु कुमार

एक बार भारत के प्रख्यात क्रिकेट खिलाड़ी कपिल देव से पूछा गया कि आखिर भारत को खेल प्रतियोगिताओं में उसकी जनसंख्या के अनुपात में पदक क्यों नहीं मिलते? कपिल देव ने इस पर अनोखी सूझ-बूझ भरा उत्तर दिया. उन्होंने कहा कि भारत देश में खेल-संस्कृतिकी कमी की वजह से अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग नहीं कर पा रहा है. इसी बात की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा: खेल-संस्कृति का मतलब यह नहीं है कि कुछ नौजवान रोज़ाना खेल-कूद का अभ्यास करते रहें. उनके अनुसार जिस रोज देश में दादा-दादी, नाना-नानी अपने नाती-पोतों के साथ सुबह को जॉगिंग करने जाने लगेंगे उसी दिन देश में खेल-संस्कृति का शुभागमन हो जाएगा. नौजवान और बुजुर्ग, सभी लोगों को खेल-कूद को आदत की तरह अपनाना चाहिए, तभी भारत खेल-कूद का सुपरपावर बन पाएगा जिसका वह वास्तविक हकदार है.
पिछले चार वर्षों में इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि सरकार खेल-कूद पर जोर देना चाहती है. उसका जोर अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में सिर्फ पदक जीतने तक के लिए सीमित नहीं है बल्कि वह सभी लोगों को किसी न किसी तरह के खेल-कूद और शारीरिक गतिविधि में लगाए रखने को प्रेरित करना चाहती है. सबसे ज्यादा उत्साहवर्धक बात तो यह है कि प्रधानमंत्री स्वयं इसमें बड़ी दिलचस्पी ले रहे हैं और देश की जनता को चुस्त-दुरुस्त रखने और शारीरिक श्रम वाले खेल-कूद में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करने में राष्ट्र का नेतृत्व कर रहे हैं.
खेलो इंडिया
केन्द्र सरकार की कई पहलों में खेलो इंडियाएक ऐसी पहल है जिसकी ओर सबका ध्यान गया है. खेलों इंडिया स्कूली खेल-कूद एक ऐसी अवधारणा है जो ओलिम्पिक के मॉडल पर आधारित है. इसका शुभारंभ इसी साल जनवरी में किया गया. यह देश के 17 साल से कम उम्र के स्कूली विद्यार्थियों के लिए राष्ट्रीय स्तर की वार्षिक खेल-कूद प्रतियोगिता है जिसमें कई खेल शामिल हैं. दिल्ली के इंदिरा गांधी स्टेडियम में इसका शुभारंभ करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि देश के युवाओं को खेल-कूद को जीवन में महत्वपूर्णस्थान देना चाहिए. प्रधानमंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि खेलो इंडिया अभियान का मकसद सिर्फ मैडल जीतना नहीं है, बल्कि इसका मकसद खेल-कूद को एक जनांदोलन का रूप देना और ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस तरह की गतिविधियों में संलग्न करना भी है. प्रधानमंत्री ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि जहां तक खेल प्रतिभा का सवाल है, भारत में इसकी कोई कमी नहीं है. मगर जनता के लिए यह बहुत बड़ी बात है कि वे खेल-कूद को अपनाएं और अपना कुछ वक्त खेलने में लगाएं तथा खेल-कूद को अपने जीवन की प्राथमिकता बना लें. खेल-कूद के जरिए व्यक्तित्व का भी शानदार तरीके से विकास किया जा सकता है.    
खेलो इंडिया से राष्ट्रमंडल खेल पदक तक
खेलो इंडिया स्कूल खेल-कूद प्रतियोगिता में कई रिकार्ड टूटे और अनेक उपलब्धियां हासिल की गयीं. 16 खेल स्पर्धाओं में 209 स्वर्ण पदक दिये गये. इन प्रतिस्पर्धाओं में तीरंदाजी, बैडमिंटन, बास्केटबॉल, बॉक्सिंग, फुटबॉल, जिमनास्टिक्स, हॉकी, जूडो, कबड्डी, खो-खो, निशानेबाजी, तैराकी, बॉलीबॉल, वेट लिफ्टिंग, कुश्ती और ट्रैक एंड फील्ड स्पर्धाएं शामिल थीं.
हरियाणा ने सबसे अधिक पदक जीते जिनमें 38 स्वर्ण और 102 अन्य पदक शामिल थे. महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर रहा और उसने कुल 110 पदक जीते जबकि 94 पदक जीतकर दिल्ली ने तीसरा स्थान प्राप्त किया.
खेलो इंडिया स्कूल खेलों में प्रतिस्पर्धा की गुणवत्ता सर्वोच्च दर्जे की रही. सबसे ज्यादा उत्साहवर्धक बात यह थी कि खेलो इंडिया के कुछ चैम्पियनों ने आगे चलकर राष्ट्रमंडल खेलों समेत कई अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी नाम कमाया.
खेलो इंडिया स्कूल खेलों में मनु भाकर (शूटिंग) और श्रीहरि नटराज (तैराकी) ने कई रिकॉर्ड तोड़ और सरकार के इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम के माध्यम से चैम्पियन के रूप में उभर कर सामने आये. 
मनु ने 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में नया राष्ट्रीय रिकार्ड कायम किया. नटराज ने भी बैक स्ट्रोक में राष्ट्रीय रिकॉर्ड ध्वस्त किया और इस तरह खेलों इंडिया प्रतियोगिता में कुल 6 स्वर्ण और एक रजत पदक जीते.
मनु और नटराज को अपनी शानदार उपलब्धियों की बदौलत ऑस्ट्रेलिया में राष्ट्रमंडल खेलों में जगह मिली और वहां भी उन्होंने निराश नहीं किया. नटराज ने 50 मीटर बैकस्ट्रोक तैराकी स्पर्धा में अपने ही रिकॉर्ड में सुधार किया और सेमीफाइनल तक पहुंचने में कामयाबी पायी मगर फाइनल में पहुंचने से रह गये. 
इस बीच मनु भाकर ने ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के लिए पहला स्वर्ण पदक जीता. मनु ने 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में नया राष्ट्रमंडल खेल रिकॉर्ड बनाया और कई हीना सिद्धू समेत कई वरिष्ठ शूटरों को पछाड़ दिया. भाखर को भारत के भविष्य के शूटिंग स्टार के रूप में देखा जा रहा है.
खोखो इंडिया - उन्नति की ओर
सरकार की इस महत्वपूर्ण खेल प्रतिस्पर्धा में कामयाबी हासिल करने की बड़ी महत्वाकांक्षी परियोजना है. केन्द्रीय खेल और युवा कार्य मंत्री श्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने कहा है कि इसके लिए धन की कोई कमी नहीं है. मंत्रालय ने भविष्य में सबसे निचले यानी सामुदायिक स्तर पर और अधिक संख्या में प्रशिक्षकों को प्रशिक्षण देने की योजना बनायी है ताकि वे सही तरह से प्रशिक्षण उपलब्ध करा सकें. खोखो इंडिया पहल से लड़कियों को जोडऩे की योजना भी बनायी गयी है. इसके पीछे सोच यह है कि समाज में व्यवहार संबंधी और अधिक परिवर्तन लाया जाए और देश में खेल-कूद की असली संस्कृति का विकास हो.  
मंत्रालय एक मोबाइल एप का विकास भी कर रहा है जिससे आस-पास के खेल के मैदानों, खेल सुविधाओं, आदि के बारे में जानकारी हासिल की जा सकेगी. साथ ही अपने खेल में कैसे सुधार लाया जाए इसके बारे में भी इस एप से जानकारी प्राप्त की जा सकेगी. यह मोबाइल एप कहां खेलेंऔर कैसे खेलेंकी कमी को दूर करेगा. इसके जरिए यह भी पता लगाया जा सकेगा कि सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की खेल सुविधाएं कहां पर स्थित हैं. इसमें विभिन्न खेलों को खेलने के तरीकों के बारे में कैसे खेलें वीडियोभी उपलब्ध रहेंगे.
चुस्ती की चुनौती
प्रधानमंत्री के सुयोग्य नेतृत्व में खेल मंत्रालय ने कई अनोखे कार्यक्रम तैयार किये हैं जिनके दूरगामी परिणाम होंगे. युवा कार्य और खेल मंत्री कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने फिटनेस चैलेंजनाम का एक अभिनव कार्यक्रम की शुरूआत की है. खेल-कूद बिरादरी में श्री राठौड़ के प्रति बड़ा आदर भाव है क्यों कि वह खुद ओलिम्पिक पदक विजेता रहे हैं. उन्होंने अपना एक वीडियो ट्वीट किया है जिसमें वे पुश अप कसरत कर रहे हैं. उन्होंने लोगों से आग्रह किया है कि वे भी अपने फिटनेस वीडियो शूट करें और उन्हें अपने मित्रों को टैग करें. उन्होंने अपना वीडियो भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली को टैग किया जिन्होंने चुनौती को स्वीकार करते हुए अपना वीडियो भी पोस्ट किया. कोहली ने अपना वीडियो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी टैग किया जिन्होंने चुनौती स्वीकार की. प्रधानमंत्री ने भी देशवासियों से अनुरोध किया कि वे इस अभियान में शामिल हों. कुछ ही समय में यह सोशल मीडिया पर एक बड़ा प्रकरण बन गया. थोड़े से वक्त में Ò# Hum Fit Toh India Fit’ (हम फिट तो इंडिया फिट) वायरल हो गया और विभिन्न सोशल मीडिया मंचों पर इसकी झलक दिखाई देने लगी.   
आईपीएल के फाइनल में एक अनोखा विज्ञापन दिखाया गया जिसमें प्रधानमंत्री और अन्य वरिष्ठ नेता बॉलीवुड और खेल सितारों के साथ फिटनेस चुनौती उठाते दिखाई दे रहे हैं और लोगों को कुछ कसरत करने को कह रहे हैं.
तब से रोज़ाना हजारों वीडियो अपलोड किये जा रहे हैं और यह मुहीम एक जनांदोलन में परिवर्तित हो गयी है. विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों के लोग, जिनमें हर आयुवर्ग के महिला और पुरुष शामिल हैं, फिटनेस चैलेंज में भाग ले रहे हैं. इसने एक ऐसी चिनगारी को जन्म दिया है जिसका पूरा-पूरा फायदा उठाने के लिए जरूरी है कि लोग अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी में फिटनेस को स्थान दें और इसे महज वीडियो पोस्ट तक सीमित न रहने दें. 
टारगेट ओलिम्पिक पोडियम  (टॉप)
सरकार एक कार्यक्रम भी चला रही है जिसका उद्देश्य ओलिम्पिक खेलों में और अधिक संख्या में भारतीय खिलाडिय़ों को विजेता मंच पर पहुंचते देखना है. इस कार्यक्रम का नाम टारगेट ओलिम्पिक पोडियम’ (टॉप) रखा गया है. इसका शुभारंभ 2014 में युवा कार्य और खेल मंत्रालय ने किया. 
इस कार्यक्रम का उद्देश्य 2016 और 2020 के ओलिम्पिक खेलों के लिए पदकों की संभावनाओं का पता लगाना और खिलाडिय़ों को प्रशिक्षण में मदद करना है. इसके पहले चरण में सात खेलों - एथेलिटिक्स, तीरंदाजी, बैडमिंटन, मुक्केबाजी, शूटिंग, कुश्ती और यॉटिंग की पहचान की गयी है.
करीब 100 खिलाडिय़ों को इस चरण में चुना गया है और उन्हें भारत और विदेशों में चोटी के संस्थानों में प्रशिक्षण के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध करायी गयी है.
इस कार्यक्रम के लिए खिलाडिय़ों का चयन करने वाली कमेटी का पुनर्गठन किया गया है और 2017 में अभिनव बिंद्रा को इसका नया अध्यक्ष बनाया गया है. दस सदस्यों वाली इस कमेटी में शामिल अन्य प्रमुख खिलाडिय़ों में पी.टी. उषा, प्रकाश पादुकोण, अंजली भागवत और कर्नम मल्लेश्वरी शामिल हैं. 
इस कमेटी का उद्देश्य 2020 और 2024 के ओलिम्पिक खेलों के लिए खिलाडिय़ों का पता लगाना और उन्हें मदद करना है. जाने-माने खिलाडिय़ों को इस कार्यक्रम में जोड़े जाने और कुछ खास क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित करने की नीति से ओलिम्पिक खेलों की पदक तालिकाओं में भारत की स्थिति में सुधार होने की संभावना है. वर्तमान खेल मंत्री श्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ स्वयं भी ओलिम्पिक पदक विजेता रहे हैं और खेल प्रेमियों को उनसे बड़ी आशाएं हैं.
बढ़ता खेल उद्योग
दुनिया के कई देशों ने खेल अर्थव्यवस्था का भरपूर फायदा उठाया है. खेल-कूद कई अरब डालर लागत वाला वैश्विक उद्योग है और इस उद्योग का कारोबार करीब 600 अरब डालर होने का अनुमान लगाया गया है. लेकिन इस कई अरब डालर के उद्योग में भारत का योगदान केवल 2 अरब डालर का ही है. 
भारत सरकार ने कमियों की पहचान कर ली है. सरकार चाहती है कि देश में खेल उद्योग का भी विस्तार हो क्योंकि यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें भारत ने वैसा प्रदर्शन नहीं किया है जैसा वह कर सकता था.
सरकार का मानना है कि खेल-कूद में सक्रिय भागीदारी और अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में पर्याप्त संख्या में मैडल जीतकर देश में खेल उद्योग के लिए माहौल को बेहतर बनाया जा सकता है.
केरल में विश्व स्तरीय सिंथैटिक ट्रैक का वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था कि खेल संस्कृति के विकास से देश की खेल अर्थव्यवस्था के विकास में मदद मिल सकती है. उन्होंने कहा कि खेल-कूद से प्रोफेशनल लीग, खेल-कूद विज्ञान, खेल उपकरण और मैदान, खेल औषधि, खेल वस्तुओं, खेल कर्मचारियों, पौष्टिक आहार, कौशल विकास तथा खेल प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर उत्पन्न किये जा सकते हैं.
बड़ी स्पर्धाओं में भारत का प्रदर्शन
विभिन्न खेलों और कई देशों वाली प्रतियोगिताओं में भारत का प्रदर्शन लगातार सुधर रहा है और बीते वर्षों में कार्यनिष्पादन में सुधार का स्पष्ट रुझान उभर कर सामने आया है. 2008-2012 तक की अवधि में अगर 2014-15 को छोड़ दिया जाए तो भारत की उपलब्धियों में स्पष्ट सुधार देखा जा सकता है.
1990 में बीजिंग एशियाई खेलों में कबड्डी में एकमात्र कांस्य पदक प्राप्त कर दयनीय प्रदर्शन करने और 2014 के इंचेओन में एशियाई खेलों में आठवां स्थान हासिल करने के बाद से अब तक भारत कई मंजिलें पार कर चुका है. 19 सितंबर से 4 अक्तूबर 2014 तक आयोजित इंचेओन एशियाई खेलों में भारत ने 11 स्वर्ण, 10 रजत, और 36 कांस्य पदक प्राप्त किये और इस तरह कुल 57 पदक जीते. मगर यह 2010 में चीन के ग्वांझाऊ में आयोजित एशियाई खेलों में भारत के प्रदर्शन की तुलना में कम है जहां भारत ने कुल 65 पदक जीतकर छठा स्थान हासिल किया. इंडोनेशिया के जकार्ता और पेलम्बांग में होने वाले आगामी एशियाई खेलों में भारतीय खिलाड़ी अपने प्रदर्शन को और बेहतर करने की उम्मीद कर रहे हैं. 
राष्ट्रमंडल खेलों में भारत का बेहतरीन प्रदर्शन 2010 में रहा जब देश ने कुल 101 पदक जीते जिनमें 38 स्वर्ण, 27 रजत और 36 कांस्य पदक भी शामिल थे. भारत पदक तालिका में पदकों की कुल संख्या की दृष्टि से दूसरे स्थान पर यानि ऑस्ट्रेलिया के बाद रहा. मगर 2014 में भारत के प्रदर्शन में कुछ गिरावट दिखाई दी और उसे 15 स्वर्ण, 30 रजत और 19 कांस्य पदकों से ही संतोष करना पड़ा. इसके बाद हाल में ऑस्ट्रेलिया में संपन्न राष्ट्रमंडल खेलों में भारत ने 66 पदक जीते जिनमें से 26 स्वर्ण, 20 रजत और 20 कांस्य पदक शामिल थे. 
उधर 2012 के लंदन ग्रीष्मकालीन ओलिम्पिक्स में भी पदक जीतने के लिहाज से भारत ने अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए कुल 6 पदक जीते जिनमें 2 रजत और 4 कांस्य पदक शामिल थे. 2008 में अभिनव बिन्द्रा के स्वर्ण पदक के बाद भारत को कोई स्वर्ण पदक नहीं मिल पाया है. उससे पहले भारतीय हॉकी टीम ने विभिन्न ओलिम्पिक प्रतियोगिताओं में 8 स्वर्ण पदक हासिल किये थे. 2016 के रियो ओलिम्पिक में भारत एक रजत और एक कांस्य सहित केवल दो पदक हासिल कर पाया था.
भारत को उम्मीद है कि सरकार, खेल संघों, खिलाडिय़ों और खेल प्रशिक्षकों के लगातार प्रयासों से आने वाले खेलों में भारत के नतीजों में सुधार होगा. 2018 के राष्ट्रमंडल खेल सुधार की ओर अच्छा संकेत देते हैं और उम्मीद करनी चाहिए कि एशियाई खेलों और तोक्यो ओलिम्पिक्स में भी भारत अच्छे नतीजे लेकर आएगा.
बहुआयामी स्पर्धाओं को छोडक़र भारतीय खिलाडिय़ों ने बैडमिंटन और शूटिंग में शानदार सुधार किया है और टेबल टेनिस, एथलेटिक्स तथा शतरंज आदि में भी स्पष्ट सुधार नजर आता है.
टारगेट ओलिम्पिक पोडियम जैसे कार्यक्रमों का मकसद पदक तालिकाओं में भारत की स्थिति को सुधारना है और इन सब प्रयासों के अच्छे नतीजे दिखाई भी देने लगे हैं.  
निष्कर्ष 
सबसे अधिक प्रसन्नता की बात तो यह है कि वर्तमान सरकार देश में खेल संस्कृति के विकास के लिए प्रयत्नशील है. इसके लिए उसने दो सूत्री नीति अपनायी है- पहला, लोगों को खेल-कूद में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करना; और दूसरा, भारत को अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में अधिक पद दिलवाने में मदद करना. निस्संदेह देश में खेलकूद के बारे में जागरूकता की कमी की समस्या के समाधान का भी यह सही तरीका है. भारत को खेल-कूद के क्षेत्र में अग्रणी देश बनाने के लिए खेलों को चंद अत्यधिक महत्वाकांक्षी लोगों की गिरफ्त से छुड़ाना होगा और आम जनता को इससे जोडऩा होगा. जब अधिक से अधिक संख्या में लोग खेल-कूद में भाग लेने लगेंगे तो अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में कम पदक जीतने की समस्या अपने आप ही हल हो जाएगी. सरकार का जोर सिर्फ जीतने पर नहीं है बल्कि वह एक फिट इंडिया का भी निर्माण करना चाहती है. एक अच्छी बात यह है कि इसके लिए अंतत: सही प्रयास किये जा रहे हैं. भारत ने वह लंबी यात्रा शुरू कर दी है जिसका आगे चलकर बड़ा फायदा होगा, न सिर्फ  खेल-कूद के क्षेत्र में बल्कि राष्ट्र के समग्र विकास और उसकी उन्नति में भी. 
लेखक नई दिल्ली स्थित खेल पत्रकार हैं. ई-मेल: vidhanshu. kumar@gmail.com