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संपादकीय लेख


Volume-11, 16-22 June, 2018

योग की बढ़ती प्रासंगिकता

डॉ. डेविड फ्राले

2015 में योग को संयुक्त राष्ट्र की अंतर्राष्ट्रीय मान्यता मिलने के साथ ही इस बार 2018 में चौथा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा है. अब यह एक महत्वपूर्ण वैश्विक कार्यक्रम और समूचे भारत में एक विशेष दिवस का रूप ले चुका है. हर साल योग इसके अध्ययन और अभ्यास तथा स्कूलों, व्यवसायों तथा जीवन के तमाम हिस्सों में प्रसार की अतिरिक्त प्रगति को दर्शाता है. इस गति को बनाये रखना महत्वपूर्ण है क्योंकि योग मानवीय जीवन को जागरूकता के उच्चतर स्तर में बदलने की महत्वपूर्ण कुंजी को धारण करता है.
भारत एक देश मात्र नहीं है, बल्कि एक महान धार्मिक सभ्यता है जिसकी जड़ें प्राचीन समय से योग अभ्यास और योग दर्शन में निहित हैं. इसके पीछे महान योगियों और ऋषि-मुनियों तथा उनके उच्च आदर्शों की विशेष भूमिका रही है. ध्यान की मुद्रा में बैठे गुरू अथवा देवता, भगवान शिव हों या महात्मा बुद्ध, भारत की प्रमुख कला अथवा चित्रकला है जो कि संपूर्ण एशिया और विश्व में फैली है.
योग दुनिया के लिये भारत की महान सभ्यता का उपहार है और भारत के लिये अपनी योगिक मौलिकताओं का प्रसार जारी रखना महत्वपूर्ण है. योग किसी न किसी रूप में स्थानीय ग्राम स्तर से लेकर व्यापक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक भारत की संपूर्ण संस्कृति में मौजूद है. इसमें संगीत, नृत्य, कला, विज्ञान, चिकित्सा, दर्शन, राजनीति और अर्थशास्त्र तथा धार्मिक क्षेत्र में योग का प्रभाव मौजूद है जिसके इर्द-गिर्द हमेशा योग की मौजूदगी रहती है. कार्य कुशलता, अवधारणा फोकस, ऊर्जा दिशा, प्रयास दृढ़ता और उपलब्धि की उत्कृष्टता के साथ-साथ आंतरिक मानसिक संतुलन आदि सभी योग के पहलु हैं. योग के ऐसे दृष्टिकोण जीवन में हमारी प्रगति और विकास में सहायक होते हैं और हमारी उच्चतम व्यक्तिगत और मानवीय क्षमता को प्रदर्शित करते हैं.
योग के सभी पहलु साथ-साथ चलने चाहियें. हमारा शरीर देवताओं का एक मंदिर है जो कि हमारी स्वयं की आंतरिक चेतना होती है. जो कुछ भी हम करते हैं उसकी लौकिक क्रम में उचित भूमिका होनी चाहिये.
योग जीवन, स्व-शिक्षा और चरित्र निर्माण के मार्ग के तौर पर महत्वपूर्ण है. यह हमारे ध्यान,  विचारों और भावनाओं के नियंत्रण सहित शरीर, समझ और मस्तिष्क के उचित इस्तेमाल और नियंत्रण में सहायक होता है. योग हमारी दिनचर्या और हमारी शिक्षा प्रणाली तथा हमारे जीवन की संपूर्ण शिक्षण प्रक्रिया का अभिन्न भाग होना चाहिये, जब से हम युवा हो जाते हैं. जीवन की सभी चुनौतियों के लिये हमें तैयार करने के लिये एक योगिक अनुशासन का होना जरूरी है.
योग का उदय मूलत: प्रकृति से होता है और यह हमें पृथ्वी तथा समूचे ब्रह्माण्ड में सौहार्द से रहने की शिक्षा देता है. यह कोई मानवनिर्मित अथवा ऐतिहासिक खोज नहीं है बल्कि लौकिक जीवन में एकजुटता का जरिया है. योग स्वाभाविक रूप से पारिस्थितिकीय प्रयोजन है और पारिस्थितिकीय जागरूकता, पर्यावरण के प्रति चिंता, पृथ्वी और इसकी सभी रचनाओं, छोटे और बड़ों के सम्मान को बढ़ावा देता है. यह हमारे एक ऐसे ग्रह का दृष्टिगोचर स्वरूप है जिसमें हम दुनिया को सघर्षरत देशों और समुदायों में बंटे हुए नहीं, बल्कि पूर्णता के साथ देखते हैं.
योग के विभिन्न पहलु
परंपरागत योग के सभी आठ अंगों का एक विशेष मूल्य और प्रासंगिकता है. हम इस संभावना की व्यापक समझ की संक्षेप में चर्चा करेंगे कि योग हमारे लिये क्या कुछ कर सकता है.
योग की शुरूआत हमारी प्रवृत्ति और व्यवहार में योगिक मूल्यों और सिद्धांतों से होती है जिसका आशय दयालुता, करुणा, नम्रता, सम्मान, साहस और बिखराव से है. योग की अपनी विशिष्ट धार्मिक यम और नियम की एक संहिता है, धार्मिक जीवन के सिद्धांत और अभ्यास हैं. यह मानवीय मूल्यों का आदर्श आधार है जिनका हमें युवावस्था की शुरूआत से ही जीवन में समावेश कर लेना चाहिये.
यमों के बारे में एक तीव्र अवलोकन:
 दुनिया में अहिंसा या क्षति न पहुंचाने की प्रवृत्ति घट रही है. अपने विचारों में सत्यता अथवा सच्चाई को बढ़ावा देना, शब्द और गहराई, ब्रह्मचर्य अथवा अपनी भावनााओं और शारीरिक इच्छाओं पर नियंत्रण, असत्यता अथवा अपने लिये कुछ भी अपमानजनक, अपरिग्रह अथवा किसी चीज की तृष्णा नहीं होना जो कि अन्य लोगों के पास है, ऐसी बातें मन और हृदय में स्पष्टता तथा सौहार्द लेकर आती हैं.
नियमों के बारे में एक तीव्र अवलोकन
तप अथवा आत्मानुशासन और आत्म-नियंत्रण, स्वाध्याय अथवा महान गुरुओं के बारे में स्व-अध्ययन और उनके कार्यों का अध्ययन, ईश्वर प्राणिधन अथवा हमारे भीतर तथा आसपास स्वयं को प्रभु के ध्यान में लगाना, विचारों, शब्दों और कथन में सोच अथवा शुद्धता और अपने भीतर संतोष अथवा संतुष्टि का समावेश करना. जीवन जीने के ये धार्मिक मार्ग न केवल योग के आधार हैं बल्कि ये इसके लक्ष्य का भी एक स्वरूप हैं. ऐसे योगिक मूल्य इस बात की गारंटी प्रदान करते हैं कि हम सत्यनिष्ठा का एक अर्थपूर्ण जीवन रखते हैं. वे स्कूलों के लिये आदर्श मूल्य आधारित शिक्षा का स्वरूप हैं.
योग का अगला पहलु लोकप्रिय आसन हैं जो कि शरीर को शक्ति, लचीलापन, शुद्धता और शांति प्रदान करने, तनाव और दबाव को दूर करने, प्रसार तथा हिलने-ढुलने की बाधाओं और कठिनाइयों को दूर करने के व्यायाम का हिस्सा होते हैं. योग आसन शरीर को पूर्ण आराम प्रदान करने में सहायक होते हैं ताकि हम एक मज़बूत स्थिति में पहुंच सकें और हमारी आंतरिक ऊर्जा तथा जागरूकता तक पहुंच कायम कर सकें. वे पृथ्वी के साथ हमारा सौहार्द और संपूर्ण जीवन में समर्थन और पोषण की उसकी योग्यता को हासिल करने में सहायता प्रदान करते हैं. यदि
हम रोज़मर्रा के व्यायाम में योग को अपना हिस्सा बना लेते हैं, किसी जिम में जाने की बजाय हम बेहतर शारीरिक स्वास्थ्य, क्षमता और सक्षमता को प्राप्त करेंगे जो कि हमारे लिये आंतरिक शांति भी लेकर आयेगी. 
इसके आगे, प्राणायाम और योगिक श्वसन हमें शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की ऊर्जा प्रदान करने के लिये बहुत ही महत्वपूर्ण हैं. सभी उपचार प्राण और प्राणायाम की शक्ति के जरिए आते हैं जो कि हमारे सरल और प्रत्यक्ष तरीके से विकास में सहायक होते हैं.
जो प्राण की इस शक्ति को विकसित कर लेता है वह सभी के लिये प्राकृतिक उपचारी और प्रेरणा का स्रोत बन जाता है. अपने जीवन में शक्ति के सच्चे स्रोत के तौर पर प्राण की ऊर्जा को विकसित करना न भूलें. जबकि हमारे यौवन में बहुत ही ऊर्जा होती है, परंतु  हम आसानी से नष्ट भी कर देते हैं और परेशानी या थकावट महसूस करते हैं. प्राणायाम उत्कृष्ट संभव तरीके से अपनी ऊर्जा के संयोजन में हमें सहायता प्रदान करता है.
इसके बाद प्रत्याहार अथवा अपनी आंतरिक इंद्रियों पर नियंत्रण के जरिए योग हमें इस बात की जानकारी प्रदान करता है कि किस तरह हम अपनी इंद्रियों का प्रयोग करते हैं. हमारी इंद्रियां सामान्यत: बाह्य परिस्थितियों की तरफ जाती हैं और हमारी ऊर्जा की बर्बादी का कारण बनती हैं तथा बाहरी दुनिया पर केंद्रित हो जाती हैं.
आयुर्वेद भी हमें इस बात की शिक्षा देता है कि इंद्रियों का गलत इस्तेमाल भी बीमारी का एक प्रमुख कारण होता है, विशेषकर इस बात के पीछे दौडऩा कि हमें क्या अच्छा या स्वादिष्ट महसूस होता है, बजाय कि वास्तव में हमारे लिये अच्छा और उपयुक्त क्या है. हमें अवश्य स्मरण रखना चाहिये कि इंद्रियां हमारे उपकरण हैं और हमें उन्हें जो हम करना चाहते हैं उसके लिये मज़बूर नहीं करना चाहिये. लघु अवधि में जो हमें खुशी दे रहा होता हैं वह हमें सदा के लिये खुश नहीं रख सकता अथवा दीर्घावधि में हमें बेहतर अनुभव नहीं करा सकता है. यदि हम अपनी इंद्रियों का ध्यानपूर्वक इस्तेमाल करते हैं तो वह हमें प्रकृति के असीमित सौंदर्य का दर्शन करा सकती हैं जो कि किसी मीडिया स्क्रीन से कहीं अधिक हृदयग्राही हो सकता है.
योग के ये अभ्यास मन में कार्यरत योगिक क्रियाओं का स्थान ले लेते हैं. एकाग्रता के योग व्यायाम हमारी ध्यान की शक्ति का विकास करने में सहायता करते हैं जो सभी प्रकार की शिक्षाओं का आधार होता है. आज के दिन हम अनेक प्रकार की समस्याओं और हमारे आसपास की बाधाओं से ग्रसित होते हैं जो कि सूचना प्रौद्योगिकी के युग में प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं.
जबकि अनेक रुचियां रखना अच्छा होता है, यह भी महत्वपूर्ण होता है कि हम विभिन्न प्रकार की ऊर्जाओं से अवगत होते हैं जो हम अपने जीवन में ला रहे होते हैं. आज हमारा बड़ा ध्यान मीडिया और प्रौद्योगिकी के प्रभाव से ग्रसित है. योग हमें इस बात की दिशा में शिक्षित करता है कि हमें बाहरी प्रभावों में कहां और कब आना चाहिये. युवावस्था में यह बहुत ही महत्वपूर्ण होता है ताकि हम दूसरे लोगों अथवा सामाजिक दबावों में न आयें और यह फैसला कर सकें कि वास्तव में हमारे लिये क्या करना सही होगा.
योग का मूल तत्व और सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यवहार, जो कि इन मूलभूत विषयों में निहित होता है, वह ध्यान है. यह हमें न केवल बाहरी दुनिया के साक्ष्य और अवलोकन की शिक्षा प्रदान करता है बल्कि इस बात से भी अवगत कराता है कि हमारे खुद के मन में क्या चला रहा है और उसका भी उतना ही महत्व है. जो कुछ भी हम ध्यानपूर्वक अपने ध्यान में लगायेंगे इससे हमारे स्वयं के विचारों से संबंधित सभी प्रकार की
प्रकृति को लेकर हमारी आंतरिक बातें उजागर होंगी. ध्यान, हालांकि इसके लिये यह अपेक्षित नहीं होता जो कुछ हम वास्तव में कर रहे होते हैं, हमारे जीवन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण गतिविधि होती है और यह हमारे जीवन के उद्देश्य, दिशा
और लक्ष्य की उत्कृष्ट समझ पाने में सहायता करता है. यद्यपि ध्यान उबाऊ हो सकता है परंतु यह सभी मनोवैज्ञानिक लगावों से ऊपर उठने का उत्कृष्ट मार्ग है. यह किसी भी स्वस्थ जीवनचर्या का हिस्सा होना चाहिये.
योग का अंतिम लक्ष्य हमें समाधि की स्थिति अथवा एकात्मक जागरूकता की स्थिति में ले जाना है जिसमें उच्ततम प्रेरणा, रचनात्मकता, खुशी और शांति का अनुभव होता है. सच्ची शांति भीतर से आती है और यह अंतहीन होती है. जो खुशी बाहर से आती है यद्यपि मोहक होती है परंतु यह खुशी का वास्तविक स्रोत कभी नहीं बन सकती है. शरीर में सौहार्द, इंद्रियों, मन और प्राण में संतुलन बिठाकर योग हमें इस आनंद की शांति में पहुंचा देता है ताकि हम सभी के साथ सच्ची खुशी और खुशहाली को बांट सकें. यदि हम इसकी खोज कर इसे उस वक्त अपना लेते हैं, जब हम युवा होते हैं, आंतरिक आनंद को हम शेष जीवन के लिये संजो कर रख
सकते हैं.
आयुर्वेद: योगिक उपचार परंपरा
आयुर्वेद और योग अलग-अलग नहीं हैं बल्कि प्राचीनकाल से ही एक दूसरे से संबद्ध विषय क्षेत्र हैं. आयुर्वेद भारत की शरीर और मन की प्राकृतिक उपचार परंपरा है जिसमें योग के सिद्धांतों और दर्शन को लिया जाता है और शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दोनों स्तरों पर स्वास्थ्य और चिकित्सा के क्षेत्र में लागू किया जाता है. उसी गुरु पतंजलि ने जिन्होंने योग की शिक्षा दी थी, आयुर्वेद की भी शिक्षा दी. जबकि योग साधना और आत्मानुभूति की वैदिक पद्धति है, आयुर्वेद चिकित्सा, सही जीवन और आत्म-उपचार की वैदिक पद्धति है. दोनों ही स्वाभाविक रूप से साथ-साथ चलती हैं.
आयुर्वेद से हमें शिक्षा मिलती है कि हमारी उत्कृष्ट औषधि भोजन होता है जो हम खाते हैं, वह प्राकृतिक, सामंजस्यपूर्ण, सात्विक और प्राणों से परिपूर्ण होना चाहिये. आयुर्वेद से हमें शिक्षा मिलती है कि जिस प्रकार हमें रोज़मर्रा भोजन की जरूरत होती है, अपनी दैनिक औषधियों की आवश्यकता है, जो हमें ऊर्जा के अधिक शक्तिशाली और पोषक स्वरूप प्रदान करती हैं. आयुर्वेद हमें बहुत से अन्य महत्वपूर्ण स्वास्थ्य संबंधी दिशा-निर्देश और उपचार उपलब्ध कराता है जो कि हमारे प्राकृतिक स्वभाव तथा व्यक्तिगत बनावट पर आधारित होता है जिसके लिये इसके स्वयं की निर्धारक पद्धतियां
होती हैं.
योग और आयुर्वेद हमें शिक्षा देते हैं कि प्राण का एक शक्तिशाली उपचार बल होता है जो कि हम सब में होता है, और यह प्रकृति के प्राण अथवा उपचार बल से भी जुड़ा होता है. यदि हम प्राण और श्वास के रहस्य को जान लेते हैं तो हम अपना उपचार कर सकते हैं. दीर्घकालीन स्वास्थ्य और जीवनशक्ति सुनिश्चित    करने के लिये युवावस्था से ही एक आयुर्वेदिक जीवनचर्या रखना उत्कृष्ट मार्ग है.
निष्कर्ष:
लौकिक स्तर पर योग
योग हमें सिखाता है कि ब्रह्माण्ड चेतना की रोशनी का स्वरूप है-पदार्थ के पीछे ऊर्जा होती है, ऊर्जा के पीछे बुद्धिमत्ता है और बुद्धिमत्ता के पीछे चेतना है.
हम सबमें चेतना का एक प्रकाश है जो कि असीमित, व्यापक और अमिट है. ब्रह्माण्ड का यह योगिक परिदृश्य चेतना का ब्रह्माण्ड विज्ञान है जिसकी आधुनिक भौतिकी से तुलना की जा सकती है क्योंकि इसने समय और स्थान की बाधाओं को तोड़ डाला है, यही इसका परिचय है.
यह महत्वपूर्ण है कि हम एक योगिक जीवनचर्या को अपनायें और युवावस्था से ही एक दैनिक योग अभ्यास को अपनायें, ताकि यह हमारी नियमित दिनचर्या का हिस्सा और प्राकृतिक कार्रवाई का मार्ग बन जाये. योग को सुबह और शाम योग आसनों, प्राणायाम और ध्यान के जरिए हमारे जीवन के साथ जोडऩा आसान है, जिसे विशेष समयानुसार पुन: अभ्यास अथवा लंबे योग सत्रों में विस्तारित किया जा सकता है, परंतु इसके लिये नियमित      संकल्प की आवश्यकता होती है.
योग जो कुछ भी आप बेहतर करना चाहते हैं, उसमें आपकी सहायता कर सकता है, चाहे यह कार्य, कला, शिक्षण हो अथवा सौंदर्य और जीवित रहने की सोच हो. महत्वपूर्ण बात यह है कि योग जीवन का एक हिस्सा होना चाहिये. तब योग आपके जीवन को निर्देशित कर सकता है और जो कुछ भी आप करते हैं, उन सभी क्षेत्रों में महान समरसता लेकर आ सकता है. योग      ब्रह्माण्ड में एक अद्भुत खोज है जिसका हमारे जीवन में उच्चतम स्थान होना चाहिये. इसके फायदे असीमित हैं. जितना शीघ्र हम अपने जीवन को योग को समर्पित करेंगे, उतना ही शीघ्र हमारा जीवन अधिक परिपूर्ण और सब के लिये मददगार बनकर उभरेगा.
(लेखक को पंडित वामदेव के नाम से, पद्म पुरस्कार से सम्मानित और हिंदू धर्म के महान विद्वान के तौर पर भीजाना जाता है. वह सांता फे, न्यू मैक्सिको में अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ वैदिक स्टडीज़ के संस्थापक और निदेशक हैं.
ई-मेल:pvshastri@aol.com ट्विटर @davidfrawleyved)