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संपादकीय लेख


Volume-10, 9-10 June, 2018

 

कृषि और ग्रामीण क्षेत्र को सुदृढ़ करने के उपाय

गार्गी परसाई

किसानों की आय दोगुनी करना और गरीबों के जीवनस्तर को बेहतर बनाना मई, 2014 में सत्ता में आई नरेंद्र मोदी सरकार का घोषित लक्ष्य है और कृषि तथा ग्रामीण क्षेत्र को लेकर इसकी सभी पहलें इन्हीं विषयों को ध्यान में रखकर तैयार की गई हैं. इसके लिये लक्षित वर्ष 2022 है क्योंकि उसी वक्त राष्ट्र औपनिवेशिक शासन से भारत की आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ मनायेगा और प्रभावी तौर पर भी उतना समय अपेक्षित है, क्योंकि ज़मीनी स्तर पर इन्हें क्रियान्वित किया जाना है, विशेषकर इसलिये क्योंकि अधिकतर योजनाओं और कार्यक्रमों का कार्यान्वयन राज्य सरकारों के हाथों में है.

शुरूआती वर्ष 2014 और 2015 के सूखा प्रभावित होने के परिणामस्वरूप, कृषि क्षेत्र में परेशानी देखी गयी. सरकार महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजग़ार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (एनएफएसए) को सक्रिय बनाये रखते हुए अपने सुधारोन्मुख प्रयासों के तहत, महत्वाकांक्षी योजनाएं जैसे कि मंडियों को ई-मार्किटस के साथ जोडऩा, नीम कोटेड यूरिया, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, कुक्कुट और डेयरी क्षेत्र में किसान क्रेडिट काडर््स, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, किसान उत्पादक संगठनों, उज्ज्वला योजना, संपूर्ण ग्रामीण विद्युतीकरण और स्वच्छ भारत अभियान को आगे लेकर आई.

ज़्यादातर योजनाएं जैसे कि खाद्य सब्सिडी, गैस सब्सिडी, विधवाओं के लिये पेन्शन और अन्य भुगतान शून्य-बेलैंस जन धन योजना खातों में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के जरिये लगातार संबद्ध किये जा रहे हैं. महिलाओं को वित्तीय समावेशन योजनाओं के केंद्रबिंदु में रखा जाता है. पूर्व के वर्षों की तुलना में समाज कल्याण योजनाओं को मोदी सरकार ने सबका साथ, सबका विकासके तहत लक्षित बनाया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में 2022-23 तक किसानों की आय दोगुणा करने के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम की घोषणा की थी. अप्रैल, 2016 में सरकार ने किसानों की आय दोगुना करने के लिये एक रोड-मैप का सुझाव देने के लिये अतिरिक्त सचिव अशोक डलवाई की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया. जबकि 2012-13 में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय के अध्ययन में एक किसान की औसत घरेलू मासिक आय कऱीब 6498 रु. प्रति माह पाई गई थी, डलवाई पैनल की गणना में 2015-16 में इसका औसत 8058 रु. प्रति माह होने का अनुमान लगाया गया और सिफारिश की कि अगले सात वर्षों में किसानों की आय दोगुना करने के लिये इसमें अनुमानित 10.4 प्रतिशत की वृद्धि होनी चाहिये.

इससे पहले  कृषि 2022-किसानों की आय दोगुणा करनाविषय पर कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में श्री मोदी ने अपनी रणनीति का उल्लेख किया. उनके द्वारा उल्लिखित कदमों में; मृदा स्वास्थ्य कार्डों के प्रयोग से किसानों के लिये खेती पर आने वाली लागत में कमी लाना; लागत जमा 50 प्रतिशत वृद्धि फार्मूला के जरिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी; कृषि मंडियों और ग्रामीण हाटों में सुधार; उचित भण्डारण के जरिए कटाई उपरांत होने वाली बर्बादी में कमी लाना; संभारतंत्रय खाद्य प्रसंस्करण और ग्रीन-टॉप (टमाटर, प्याज और आलू) का कार्यान्वयन और ब्लू: आर्गेनिक और स्वीट क्रांति में विविधता के जरिए किसानों की पूरक आय शामिल हैं तथा खाद्य प्रसंस्करण भी हाल में इसका केंद्र बिंदु बन गया है.

श्री मोदी ने ‘‘प्रति बूंद, अधिक फसल’’ की अवधारणा पर ज़ोर देते हुए कहा कि सरकार का फोकस किसानों की अपनी उत्पादन लागत को कम करने में मदद के लिये सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने पर है. 99 सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने की योजना है जिसके लिये सरकार ने अतिरिक्त 80,000 करोड रु. का प्रावधान किया है.

मृदा स्वास्थ्य कार्ड से रासायनिक खादों के इस्तेमाल में 8-10 प्रतिशत की कमी आई है जबकि उत्पादन 5-6 प्रतिशत बढ़ा है.

पिछले चार वर्षों में क्षेत्र के लिये बजटीय आबंटन में लगभग 75 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और यह 2,11694 करोड़ रु. हो गया है. इसके अलावा वर्ष 2017-20 के लिये सूक्ष्म सिंचाई के लिये 5,000 करोड़ रु. और डेयरी प्रसंस्करण एवं अवसंरचना कोष (डीआईडीएफ) दो वित्तीय कोष सृजित किये गये हैं.

इसके अलावा, 2018-19 के बजट में 10,000 करोड़ रु. के मत्स्य और जलजीव अवसंरचना विकास कोष तथा पशुपालन अवसंरचना विकास कोष तथा 2000 करोड़ रु. की राशि के कृषि मंडी विकास कोष की घोषणा की गई है.

सरकार ने पिछले तीन वर्षों में किसानों के लिये सांस्थानिक ऋणों की उपलब्धता 8 लाख करोड़ रु. से बढ़ाकर 11 लाख करोड़ रु. कर दी है. एक नई ग्राम परियोजना के अधीन किसानों को 2200 ‘ग्रामीण हाटोंसे जोड़ा जायेगा जिन्हें उचित उन्नत अवसंरचना प्राप्त होगी. कृषि उत्पाद विपणन समितियों और ई-नैम को आपस में जोड़ा जायेगा.

यह अवश्य समझ लेना चाहिये कि देश की आधी जनसंख्या ग्रामीण भारत में कृषि और संबद्ध गतिविधयों पर निर्भर है, भारत की अर्थव्यवस्था कृषि क्षेत्र से निकट से जुड़ी है तथा 60 प्रतिशत कृषि वर्षा पर आधारित है और क्षेत्र का विकास मुख्यत: मानसून पर निर्भर करता है.

सरकार को अपने शासन के पहले दो वर्षों 2014 और 2015 में कम मानसून वर्षा और खरीफ के उत्पादन में कमी का सामना करना पड़ा. परंतु चौथे वर्ष अर्थात् 2017-18 में, दक्षिण पश्चिम मानसून के सामान्य रहने से खाद्यान्न के उत्पादन में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई और 2017-18 के लिये हाल में जारी प्रमुख फसलों के उत्पादन के दूसरे अग्रिम अनुमानों में खाद्यान्नों का उत्पादन 279.51 मिलियन टन होने की आशा जताई गई जो कि एक रिकार्ड है. इसमें से गेहूं का उत्पादन 96.61 मिलियन टन होने और धान 111.52 मिलियन टन होने की आशा है. मोटे अनाजों का उत्पादन 44.87 मिलियन टन रहने और दालों का उत्पादन 24.51 मिलियन टन होने की आशा व्यक्त की गई है जो कि अब तक का उच्चतम है. खेती और संबद्ध क्षेत्र में वृद्धि जो 1991-92 से 2013-14 तक 3.2 प्रतिशत या इससे कम प्रतिशत पर स्थिर बनी हुई थी, इसमें 2016-17 में 4.1 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है.

पिछले दो वर्षों में खेती के क्षेत्र में मोदी सरकार की सबसे बड़ी सफलता दालों के उत्पादन में हुई महत्वपूर्ण वृद्धि है. जब भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार ने कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की सरकार से 2014 में सत्ता संभाली थी, दालों का उत्पादन 19.25 मिलियन टन था. यहां तक कि इससे पहले के वर्ष (2012-13) में यह 18.34 मिलियन टन था जबकि तुर, चना और मूंग के मूल्य प्रति किलोग्राम 180 रु. तक पहुंच गये थे जिससे बड़ी मात्रा में आयात करना पड़ रहा था. मोदी सरकार ने दालों के लिये एक मिशन का गठन किया और थोक स्टॉक का सृजन किया  जो धीरे धीरे बढ़ाकर 1.5 लाख टन से 20 लाख टन कर दिया गया. 2017-18 तक रिकॉर्ड उत्पादन के साथ सरकार ने निर्यात पर प्रतिबंध को हटा लिया और घरेलू आपूर्ति के विस्तार के लिये आयात पर मात्रात्मक प्रतिबंध लागू कर दिया. अब यही रणनीति खाद्य तेलों में हासिल करने की है जिसके लिये बड़े पैमाने पर आयात किये जाने से विदेशी मुद्रा खचऱ् करनी पड़ती है.

वित्त मंत्री, अरुण जेटली ने 2018 के बजट में किसानों के ऋणों को माफ  करने और उनके हाथों में अतिरिक्त आय जुटाने में समर्थता के वास्ते आगामी खरीफ  फसल के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में उत्पादन लागत के डेढ़ गुणा तक वृद्धि का ऐलान किया.

कई राज्य सरकारों, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक ने लघु और सीमांत किसानों के लिये सीमित ऋण माफी की घोषणा कर दी. इसके अलावा मध्य प्रदेश और हरियाणा सरकारों ने एक योजना की शुरूआत की है जिसमें किसानों को भुगतान किये गये मूल्य और एमएसपी के अंतर का भुगतान किया जाता है. केंद्र सरकार भी जब मंडी में जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं के दाम अत्यधिक गिर जाते हैं, किसानों के अतिरिक्त उत्पादन की खरीद के लिये हस्तक्षेप करती है.

जो भी हो, रबी और खरीफ  के मौसम में उगाई जाने वाली 23 वस्तुओं का आय उन्मुख न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा, अधिसूचित एमएसपी पर फसल की खरीद के लिये खऱीद केंद्रों की स्थापना, तीव्र और प्रत्यक्ष भुगतान, कटाई उपरांत जल्दी खऱाब होने वाली फसलों की बर्बादी रोकने, अनाजों के भण्डारण और विश्वनीय बाज़ार उपलब्ध कराने तथा एक स्थाई निर्यात और आयात नीति आदि किसानों की आय बढ़ाने की दिशा में उठाये गये महत्वपूर्ण कदम हैं.

ग्रामीण विकास क्षेत्र में सरकार ने बुनियादी ढांचे में सुधार करने, सडक़ संपर्क में सुधार करने, पेयजल और स्वच्छता तथा शौचालयों के निर्माण और ग्रामीण विद्युतीकरण के जरिए पंचायत दृष्टिकोण को अपनाया है.

अत:, राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान के अधीन 484 जिलों में 16850 गांवों को गऱीबी की रेखा से नीचे की महिलाओं को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन उपलब्ध कराने के लिये उज्ज्वला योजना सहित सात योजनाओं का आगाज़ किया है. अभी तक 3.78 करोड़ नये कनेक्शन दिये जा चुके हैं जिनमें से 44 प्रतिशत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को दिये गये हैं. अन्य योजनाओं में सौभाग्य बिजली योजना, उजाला स्कीम, प्रधानमंत्री की जन धन योजना (जिसके तहत 31.52 करोड़ शून्य बेलैंस खाते खोले गये हैं), प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (5.22 करोड़ लोगों को प्रति वर्ष 330 रु. के प्रीमियम पर जीवन बीमा प्रदान किया गया), प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना जिसमें दुर्घटना से होने वाली मौतों को शामिल किया गया है (12 रु. प्रति वर्ष के प्रीमियम पर 25 लाख लोगों का बीमा किया गया) और मिशन इंद्रधनुष शामिल हैं.

कृषि क्षेत्र की तरह ग्रामीण विकास के लिये व्यय को भी ‘‘गऱीबी मुक्त ग्राम पंचायतों’’ के लिये 2013-14 में रु. 59630 करोड़ से 2016-17 में रु. 95099 करोड़ की करीब 62 प्रतिशत की वृद्धि की गई है. 2017-18 में मंत्रालय का 1,05,448 करोड़ रु. व्यय करने का लक्ष्य है.

2014 और 2017 के बीच प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना और मनरेगा के अधीन करीब 813.76 करोड़ मानव दिवस रोजग़ार सृजित किये गये. 2018 तक प्रधानमंत्री आवास योजना के अधीन एक करोड़ आवासों का निर्माण किया जायेगा जबकि 2.41 करोड़ आवासों को सहायता के लिये लक्षित किया गया है. आवास योजना के अधीन 2016-17 के दौरान 32,14,506 आवासों का निर्माण किया गया. मनरेगा के तहत आबंटन 2013-14 में रु. 33,000 करोड़ से बढ़ाकर 2018-19 में 55,000 करोड़ रु. कर दिया गया. महिलाओं की भागीदारी 2016-17 में सबसे अधिक रही.

ग्रामीण क्षेत्र में सरकार की सबसे सुदृढ़ उपलब्धियों में 3.8 करोड़ गरीब महिलाओं को एलपीजी कनेक्शन उपलब्ध करवाते हुए उज्ज्वला योजना के अधीन ग्रामीण महिलाओं के लिये धुआं मुक्त रसोई सुनिश्चित करना है. इसका लक्ष्य 8 करोड़ का है. इसके अलावा सभी गांवों का विद्युतीकरण पूरा करना एक अन्य लक्ष्य है.

प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना के तहत 2014 में 56 प्रतिशत से बढ़ाकर अब 82 प्रतिशत की वृद्धि की गई है. औसत सडक़ निर्माण की गति 2013-14 में 69 कि.मी. प्रति दिन से बढ़ाकर 134 कि.मी. कर दी गई है.

असंगठित क्षेत्र के लिये अटल पेन्शन योजना के अधीन 80 लाख लोगों का नामांकन किया गया और 2.23 लाख वरिष्ठ नागरिकों को प्रधानमंत्री वय वंदना योजना के अधीन शामिल किया गया है. प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के अधीन अब तक 366 चिन्हित योजनाओं के लिये बैंक खातों में  2,64,113 करोड़ रु. नकद अंतरित किये गये हैं. मां और बच्चे का अच्छा स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिये प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत 12,900 से अधिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर 1.16 करोड़ एंटी-नेटल जांच की गई हैं. इन सबके अलावा मुद्रा बैंक के अधीन निधियों की उपलब्धता ने उद्यमियों को निधियों का लाभ लेने के लिये प्रोत्साहित किया है.

ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम में लोगों की भागीदारी की सही भावना प्रतिबिंबित होती है. कार्यक्रम के तौर पर इसे उच्च प्राथमिकता दी गई है और ग्रामीण विकास मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार अक्तूबर, 2014 से लेकर 7.1 करोड़ शौचालयों का निर्माण किया जा चुका है. इसका अर्थ है कि भारत में ग्रामीण स्वच्छता कवरेज 2014 में 39 प्रतिशत के मुकाबले अब 83 प्रतिशत से अधिक हो गई है.

उल्लेखनीय रूप से गंगा नदी के किनारे के सभी गांवों को नमामि गंगे कार्यक्रम के अधीन खुले में शौच से मुक्त कर दिया गया है.

(लेखक नई दिल्ली-स्थित एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनसे ई-मेल के जरिए संपर्क किया जा सकता है) लेखक के विचार अपने हैं.