रोज़गार समाचार
सदस्य बनें @ 530 रु में और प्रिंट संस्करण के साथ पाएं ई- संस्करण बिल्कुल मुफ्त ।। केवल ई- संस्करण @ 400 रु || विज्ञापनदाता ध्यान दें !! विज्ञापनदाताओं से अनुरोध है कि रिक्तियों का पूर्ण विवरण दें। छोटे विज्ञापनों का न्यूनतम आकार अब 200 वर्ग सेमी होगा || || नई विज्ञापन नीति ||

संपादकीय लेख


Volume-8, 26 May-1 June, 2018

 

प्रधानमंत्री जन-धन योजना
सामाजिक क्रांति का संवाहक कार्यक्रम


डॉ. अश्विनी महाजन

जेएएमत्रिनीति इस बात का उत्कृष्ट उदाहरण है कि प्रौद्योगिकी हर व्यक्ति के जीवन में किस तरह परिवर्तन ला सकती है. मई 2014 में जब श्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में देश की बागडोर संभाली, तो उस समय अर्थव्यवस्था एक कठिन दौर से गुजर रही थी. एक तरफ विकास दर धीमी पड़ गई थी और दूसरी तरफ महंगाई आसमान छू रही थी. नई सरकार के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण स्थिति थी. एक ऐसा देश, जिसमें अधिसंख्य लोग निर्धन हों, खाद्य सुरक्षा एक प्रमुख चिंता का विषय रहा है और इसके लिए भारी खाद्य सब्सिडी आवश्यक है. अगर इस समस्या का समाधान सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिए करने का प्रयास किया जाता है, तो सरकारी खर्च में बेतहाशा वृद्धि करनी पड़ती है. पूर्ववर्ती योजना आयोग के अनुसार लक्षित लाभार्थियों को यदि प्रति लाभार्थी एक रुपया सब्सिडी अंतरित की जाती है, तो सरकार को 3.85 रुपये खर्च करने पड़ते हैं.
इसी प्रकार, हालांकि पेट्रोल और डीज़ल के मूल्यों को प्रशासनिक नियंत्रण से मुक्त करके डीज़ल सब्सिडी में भारी कमी आई, परंतु रसोई गैस सब्सिडी पर खर्च की जाने वाली राशि अभी भी भारी भरकम है. सब्सिडियां हालांकि किसी भी कल्याणकारी राज्य का अनिवार्य अंग होती हैं, परंतु सबसे बड़ी चिंता इस निमित्त दी जाने वाली राशि के लीकेज को लेकर थी, जिसे किसी भी कीमत पर रोकना अत्यंत आवश्यक था, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सब्सिडी वास्तविक लाभार्थियों तक पहुंचे.
एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा यह था कि बड़ी संख्या में ऐसे निर्धन परिवार (अत्यंत सीमित संसाधनों वाले) थे, जो अभी तक बैंकिंग प्रणाली से अछूते थे. वित्तीय समावेशन के लिए प्रथम कार्य यह था कि बिना किसी जमा राशि की शर्त के (जीरो बैलेंस) उनके बचत बैंक खाते खोलना. यह कार्य सरकार के एक कार्यक्रम के जरिए संभव किया गया, जिसे प्रधानमंत्री जन-धन योजना’ (पीएमजेडीवाई) का नाम दिया गया.
सरकारी सब्सिडी के लक्षित अंतरण के लिए यह परम आवश्यक था कि सरकार से सब्सिडी प्राप्त करने वाले सभी लाभार्थियों के बैंक खाते हों. इसी तरह यदि वित्तीय सम्प्रेषण आधुनिक व्यापार का अनिवार्य हिस्सा है, तो निर्धन वर्ग के लिए भी वे समान रूप से अनिवार्य हैं ताकि वे अपने प्रियजनों को धन का हस्तांतरण कर सकें. अब चूंकि देश में टेली-डेंसिटी यानी सुदूर-गहनता में काफी सुधार हो चुका है, अत: जन-साधारण के  लिए धन हस्तांतरण करना एक क्लिक मात्र से संभव हो गया है.
सब्सिडियों के लक्षित वितरण के लिए लाभार्थियों की पहचान एक बड़ा मुद्दा है, जिसके समाधान में आधारअत्यंत मददगार रहा है. इस तरह जन-धन बैंक खातों को आधार और मोबाइल टेलीफोन के संदर्भ में देखने की आवश्यकता है, जो वित्तीय समावेशन और सब्सिडी के लक्षित वितरण को समेकित रूप में समझने का एक तरीका है. इस तरह जन-धन खाते (जे), आधार (ए) और मोबाइल टेलीफोन (एम) की त्रिमूर्ति क्रांतिकारी सिद्ध हुई है.
पीएमजेडीवाई
पीएमजेडीवाई यानी प्रधानमंत्री जन-धन योजना का उद्देश्य समाज के उपेक्षित वर्गों, कमजोर तबकों और निम्न आय समूह के लोगों की बुनियादी बैंकिंग जैसी वित्तीय सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करना, बचत बैंक खातों, जरूरत के मुताबिक बैंक ऋण तक उनकी पहुंच कायम करना और उन्हें धन सम्प्रेषण, बीमा और पेंशन सुविधा जैसे लाभ प्रदान करना है. इन सभी लक्ष्यों का उल्लेख कार्यक्रम संबंधी दस्तावेज में किया गया है. उल्लेखनीय है कि इनमें से अधिकतर खाते राष्ट्रीयकृत बैंकों में खोले गए हैं. शून्य शेष खातों का प्रावधान हालांकि पहले भी रहा है, लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने कभी ऐसे खाते खोलने की पहल नहीं की. यह कार्य तभी संभव हुआ, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे एक अभियान के रूप में शुरू किया और बैंकों को निर्देश जारी किए गए कि वे बड़े पैमाने पर ऐसे खाते खोलें. उल्लेखनीय है कि इस कार्यक्रम के पहले ही दिन 1.5 करोड़ खाते खोले गए. यह अपने आप में विश्व कीर्तिमान है.
अधिक समय तक शून्य शेष नहीं
हालांकि शुरू में बैंकों को शून्य शेष के साथ जन-धन खाते खोलने की अनुमति दी गई थी, लेकिन ये खाते अभी तक शून्य शेष वाले नहीं बने रहे. इन खातों में करीब 81 हजार करोड़ रुपये जमा हो चुके हैं, जो उत्साहवर्धक बात है. जन-धन खातों में जमा राशि और लेनदेन और रुपे कार्ड (देशी डेबिट कार्ड) के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए पीएमजेडीवाई कार्यक्रम में यह प्रावधान किया गया है किक्व अगर रूपे कार्डधारक ने बैंक शाखा, बैंक मित्र, पेटीएम, पीओएस, ई-कॉमर्स आदि पर न्यूनतम एक सफल वित्तीय अथवा गैर-वित्तीय ग्राहक प्रेरित लेनदेन किया होगा, तो उसे व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा लाभ प्रदान किया जाएगा. कार्यक्रम के अंतर्गत 6 महीने तक बैंक खाते का संतोषजनक प्रचालन करने के बाद पांच हजार रुपये की ओवर ड्राफ्ट यानी ऋण सुविधा प्रदान की जाएगी. पीएमजेडीवाई के तहत जमा राशि पर ब्याज अर्जित करने के अलावा लाभार्थी को एक लाख रुपये के दुर्घटना बीमा और तीस हजार रुपये का जीवन बीमा लाभ प्रदान किया जाता है. यह भी प्रावधान है कि सरकारी कार्यक्रमों के लाभार्थियों को इन खातों में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) की सुविधा प्रदान की जाएगी. चेकबुक सुविधा को छोड़ कर जन-धन बैंक खातों के साथ संभवत: सभी बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं. अन्य बैंक खातों से इन बैंक खातों में धन सम्प्रेषण की सुविधा भी दी गई है.
मोबाइल बैंकिंग
स्मॉर्ट फोन का इस्तेमाल करते हुए बैंक लेनदेन संचालित करना हालांकि कोई नई बात नहीं है, परंतु यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि पीएमजेडीवाई खाताधारक भी खाते में शेष राशि का पता लगाने और सामान्य मोबाइल फोन के जरिए धन अंतरण करने जैसी सुविधा का लाभ उठा सकते हैं. इससे बैंकिंग लेनदेन आम लोगों के लिए अधिक आरामदेह बन गया है.
प्रत्यक्ष लाभ अंतरण
हम यह बात भलीभांति जानते हैं कि सामाजिक दृष्टि से कल्याणकारी राज्य होने के नाते सरकार आम लोगों, विशेषकर समाज के कमजोर वर्गों को विभिन्न प्रकार की सब्सिडी प्रदान करती है. अतीत में अनाज और अन्य खाद्य वस्तुएं सार्वजनिक वितरण प्रणाली अथवा राशन की दुकानों के जरिए वितरित की जाती थीं. इसी तरह रसोई गैस पर सब्सिडी दी जाती है, जिसके लिए तेल कंपनियों को अधिदेशित किया जाता है कि वे कमतर मूल्य पर रसोई गैस बेचें. इसके लिए सब्सिडी की समान राशि सरकार तेल कंपनियों को प्रदान करती है. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम - मनरेगा के अंतर्गत ठेकेदारों के माध्यम से दिहाड़ी का भुगतान किया जाता था. वृद्धावस्था पेंशन और अन्य समाज कल्याण कार्यक्रमों के लाभ भी सरकारी नेटवर्क या एजेंटों के जरिए वितरित किए जाते थे. इनमें से अधिकतर लाभ पूर्ण रूप में लाभार्थियों तक नहीं पहुंच पाते थे. जन-धन बैंक खाते खुलने से समस्या का समाधान हो गया है. वास्तविक लाभार्थियों को बिना किसी  लीकेज के प्रत्यक्ष लाभ अंतरित करने हेतु सरकार के लिए दो चीजें आवश्यक हैं. प्रथम, बैंक खाता, जहां सरकार लाभ को भेज सके और दूसरा लाभार्थियों की पहचान करना, ताकि लाभ अंतरण में किसी प्रकार का दोहराव न हो.
बड़ी संख्या में शून्य शेष के साथ जन-धन खाते खोलने के बाद अन्य महत्वपूर्ण अपेक्षा यह थी कि लाभार्थियों की पहचान की जाए. पिछली यूपीए सरकार ने आधारकी शुरूआत की थी. इसका अर्थ है, उंगलियों की छाप और आंख की पुतलियों को स्कैन करते हुए देश के सभी नागरिकों को 12 अंकों की विशिष्ट पहचान संख्या प्रदान की जाए. परंतु, संसद में आधार विधेयक पारित न हो पाने के कारण इसे कानूनी दर्जा नहीं दिया जा सका.
2016 के बजट सत्र में संसद ने आधार’ (वित्तीय एवं अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं की लक्षित डिलिवरी) विधेयक को एक धन विधेयक के रूप में पारित किया. आधार’ (वित्तीय एवं अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं की लक्षित डिलिवरी) विधेयक का सुरक्षित पारित किया जाना परिवर्तनकारी कदमसिद्ध हुआ. यह प्रावधान किया गया कि सभी निवासियों (बच्चों सहित) को आधार कार्डपर 12 अंकों की विशिष्ट पहचान संख्या प्रदान की जाए. सरकार यह समझती है कि आधार एक बेहतर माध्यम है, क्योंकि निवासियों की विशिष्ट पहचान (यूआईडी) की मदद से वित्तीय सब्सिडियां और अन्य सरकारी सेवाएं अधिक सक्षमतापूर्वक लक्षित व्यक्ति तक पहुंचाई जा सकती हैं. यह भी महसूस किया गया कि समुचित सांविधिक प्रावधानों के जरिए गोपनीयता पर हमले की आशंकाएं दूर की जा सकती हैं. परंतु, उन्हें यह बात अवश्य समझनी चाहिए कि आधार विधेयक 2010’ और आधार’ (वित्तीय एवं अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं की लक्षित डिलिवरी) विधेयक 2016, हालांकि एक समान लगते हैं, परंतु, वास्तव में दोनों के बीच अनेक भिन्नताएं हैं.
आधार विधेयक 2016 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति देश में 182 दिन या उससे अधिक समय तक रहता है, तो वह आधार कार्डप्राप्त करने का हकदार है. इस विधेयक के अनुसार सरकार से सब्सिडी अथवा सेवा प्राप्त करने के हकदार व्यक्ति के पास आधार कार्डअवश्य होना चाहिए, अथवा उसने इसके लिए आवेदन कर दिया हो. यह प्रावधान आधार विधेयक 2010 में नहीं थे. आधार विधेयक 2016 के अनुसार आधार संख्या धारक की उंगलियों के निशानों और आंखों की पुतलियों की छाप को कानून द्वारा निर्दिष्ट प्रयोजनों को छोड़ कर अन्यत्र सार्वजनिक रूप में  प्रकाशित या प्रदर्शित नहीं किया जाएगा. किसी व्यक्ति की पहचान प्रमाणित करते समय यूआईडी प्राधिकारी आंखों की पुतली के स्कैन और उंगलियों की छाप से संबंधित जानकारी प्रमाणन के लिए अनुरोध करने वाली किसी संस्था को व्यक्त नहीं करेगा. ये सभी प्रावधान आधार विधेयक 2010 में नहीं थे. अत: यह कहा जा सकता है कि आधार विधेयक 2016 में गोपनीयता संबंधी चिंताओं का समाधान किया गया है.
प्रारंभ में जब आधार कार्डकी धारणा सामने लाई गई और बाद में जब भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) को सांविधिक मान्यता दी गई, तो उसके उपयोग के बारे में कोई स्पष्टता नहीं थी. आम लोगों के लिए पहचान पत्रक प्राप्त करने का यह एक आसान तरीका मात्र था. नागरिकता के प्रमाण के बिना आधार कार्डआसानी से उपलब्ध होने को देखते हुए ऐसी आशंकाएं व्यक्त की गई कि यह कार्ड विदेशी घुसपैठियों (विशेष रूप से बांगलादेशियों) को वैधता प्रदान करेगा.
तकनीक और पीएमजेडीवाई की बदौलत सब्सिडी और अन्य सेवाओं के लाभ अब सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में अंतरित करना संभव हो गया है और इस कार्य में लागत भी अधिक नहीं आती है. अतीत में बैंक खाता खोलने में कठिनाइयों और न्यूनतम शेष की शर्त के कारण निर्धन व्यक्ति बैंक खाता खोल पाने में असमर्थ था. परंतु, जन-धन योजना के तहत बड़ी संख्या में नए बैंक खाते खोले गए, जिनमें शून्य शेष की सुविधा प्रदान की गई. निकट भविष्य में सबके लिए आधार संभव हो सकेगा, विशेषकर आधार विधेयक 2016 के पारित होने से इस कार्य में मदद मिलेगी. सभी परिवारों को बैंक खातों की कवरेज में शामिल किए जाने से अब यह आसान हो गया है कि लक्षित आबादी तक सीधे लाभ अंतरित किए जा सकते हैं. इस कार्यक्रम से अरबों रुपये की बचत होगी, क्योंकि रसोई गैस सब्सिडी, खाद्य सब्सिडी, मनरेगा के तहत मजदूरी और अन्य लाभ अब बिना किसी लीकेज के सीधे लाभार्थियों तक पहुंचेंगे.
(लेखक पीजी डीएवी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में असोसिएट प्रोफेसर हैं. ईमेल:ashwanimahajan@rediffmail.com