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संपादकीय लेख


Volume-4, 28 April-4 May, 2018

 

गोल्ड कोस्ट में भारत की उपलब्धियां

विधांशु कुमार

प्रसिद्ध बेसबॉल खिलाड़ी योगी बेर्रा ने एक बार कहा था कि ‘‘खेल ९० प्रतिशत मानसिक होते हैं और १० प्रतिशत शारीरिक’’। बेर्रा ने बड़ी सटीक बात कही थी और उनके कथन से इस बहस को बल मिला था कि खेलों में मानसिकता का कितना महत्व है और शारीरिक कौशल कितना आवश्यक है? प्रशिक्षक, खेल वैज्ञानिक और विशेषज्ञ इस निष्कर्ष की ओर पहुंच रहे हैं कि जिस तरह से खेलों में कठिनाइयां बढ़ रही हैं और प्रतिस्पर्धा अपने चरम पर पहुंच गई है, उसे देखते हुए सफलता प्राप्त करना शारीरिक प्रयास की बजाए मानसिक और बौद्धिक अधिक हो गया है।
क्या चीज है, जो किदाम्बी श्रीकांत को अन्य की तुलना में बेहतर बैडमिंटन खिलाड़ी बनाती है? अथवा क्या बात है कि विराट कोहली अधिकतर अन्य खिलाडिय़ों से बेहतर क्रिकेटर हैं? प्रतिभा के संदर्भ में, केवल उसैन बोल्ट जैसे असाधारण प्रतिभाशाली ही अन्य की तुलना में अलग हैं। लंबे समय तक काम करने की बौद्धिक क्षमता, उम्मीद कभी न छोडऩा, बुद्धिमतापूर्वक खेलना, सीमाओं को पार करना आदि ऐसे गुण हैं, जो चैम्पियन को अन्य खिलाडिय़ों से अलग बनाते हैं। खेल उन बाधाओं को पार करने पर निर्भर करते हैं, जो शारीरिक की बजाए मानसिक अधिक होती हैं।
मैनचेस्टर में एक शीत दोपहर का समय था, जब भारतीय महिला हॉकी टीम ने एक बड़ी बाधा पार की। मैनचेस्टर राष्ट्रमंडल खेलों में २००२ में हॉकी के फाइनल में भारतीय महिलाओं ने दशकों बाद पहली बार इंग्लैंड को हरा कर स्वर्ण पदक जीता था। भारत ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की थी। मैनचेस्टर राष्ट्रमंडल खेलों में उस समय तक का सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए भारत ने तीस स्वर्ण पदक जीते थे। उसकी इस सफलता की झलक, हालांकि छोटे पैमाने पर ही सही, समवर्ती एशियाई खेलों और ओलिम्पिक खेलों में भी दिखाई दी। मैनचेस्टर ने यह भरोसा कायम किया कि भारत बहु-आयामी खेल प्रतिस्पर्धाओं में बेहतर प्रदर्शन कर सकता है।
गोल्ड कोस्ट में २०१८ के राष्ट्रमंडल खेलों में भी भारत ने एक और बाधा पार की। पदकों की संख्या के संदर्भ में वह भले ही उत्कृष्ट न हो, परंतु वास्तव में यह राष्ट्रमंडल खेलों में भारत का अब तक का सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शन है।
गोल्ड कोस्ट में छाया तिरंगा
सबसे पहले हम राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के बेहतर निष्पादन पर एक नजऱ डालते हैं। मैनचेस्टर (२००२) भारत के लिए एक बड़ी कामयाबी थी, जब उसने कुल ६९ पदक जीते, जिनमें ३० स्वर्ण, २२ रजत और १७ कांस्य पदक शामिल थे।
पदकों की संख्या की बात करें, तो २०१० के दिल्ली खेलों में भारत ने खुद की मेजबानी में सबसे अधिक पदक हासिल किए थे। भारतीय दल ने कुल १०१ पदक जीते, जिनमें ३८ स्वर्ण, २७ रजत और ३६ कांस्य पदक शामिल थे।
उसकी तुलना में गोल्ड कोस्ट में भारतीय एथलीटों ने ६६ पदक जीते, जिनमें २६ स्वर्ण पदक और २०-२० रजत और कांस्य पदक शामिल थे।
आप कह सकते हैं कि आंकड़ों की दृष्टि से तो इसे सर्वोत्कृष्ट नहीं कहा जा सकता, फिर हम ऐसा दावा क्यों कर रहे हैं?
मार्क ट्वेन ने एक बार कहा था ‘‘अधिकतर लोग आंकड़ों को इस तरह देखते हैं, जैसे एक शराबी लैम्प पोस्ट का इस्तेमाल करता है; वह रोशनी से अधिक सहारे के लिए उसे प्रयोग करता है’’। हां, संख्या असत्य नहीं है, परंतु, सही तस्वीर जानने के लिए आपको आंकड़ों मात्र से परे जाकर देखना होगा।
गोल्ड कोस्ट में भारत की सफलता की कहानी बड़ी ठोस है। पिछले प्रदर्शनों या सफलताओं की तुलना में भारत का यह निष्पादन इसलिए बेहतर है, क्योंकि भारत ने अधिक खेलों में पदक जीते।
मैनचेस्टर में भारत ने 30 स्वर्ण पदक जीते थे, जो केवल निशानेबाजी, भारोत्तोलन, कुश्ती, मुक्केबाजी और हॉकी से संबंधित थे। इसकी तुलना में गोल्ड कोस्ट में भारत ने सात प्रतिस्पर्धाओं यानी निशानेबाजी, भारोत्तोलन, कुश्ती, मुक्केबाजी, टेबल टेनिस, बैडमिंटन और एथलेटिक्स में जीत दर्ज की।
यह भी है कि भारत ने मैनचेस्टर में जिन मुकाबलों में पदक जीते थे, उनमें से कुछ खेल अब वैश्विक प्रतिस्पर्धाओं में शामिल नहीं किए जाते हैं। उदाहरण के लिए निशानेबाजी में युगल प्रतिस्पर्धाओं में अब पदक नहीं दिए जाते हैं। मैनचेस्टर खेलों में भारत ने २५ स्वर्ण पदक अकेले निशानेबाजी और भारोत्तोलन में जीते थे। इनमें से अधिकतर पदक उन खेलों में जीते गए थे, जो उसके बाद से बंद हो चुके हैं।
गोल्ड कोस्ट में भारतीय खिलाडिय़ों ने कुछ खेल मुकाबलों में विश्व के चोटी के खिलाडिय़ों को हरा कर पदक जीते। हम यहां कुछ खिलाडिय़ों के शानदार प्रदर्शन का उल्लेख करना चाहेंगे।
मीराबाई चानू
राष्ट्रमंडल खेलों में एस. मीराबाई चानू ने किसी भी भारतीय खिलाड़ी की तुलना में सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शन किया।
चानू ने ४८ किलोग्राम वर्ग में अपने ही व्यक्तिगत रिकार्ड को बेहतर किया और राष्ट्रमंडल खेलों में नया रिकॉर्ड कायम किया। इन खेलों में चानू के प्रभुत्व का इस बात से पता चलता है कि उसने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी की तुलना में २६ किलोग्राम भार अधिक उठाया। चानू का प्रदर्शन इसलिए भी सराहनीय था कि समान प्रयास के जरिए उसने रियो में पिछले ओलिम्पिक खेलों में रजत पदक हासिल किया था। चानू का कहना है कि वह अब एशियाई खेलों में और भी कठिन चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित कर रही है और अंतत: वह २०२० में तोक्यो ओलम्पिक्स में पदक जीतने की इच्छुक है। २३ वर्षीय चानू मणिपुर से सम्बद्ध है।
टेबल टेनिस
परंपरागत रूप में भारतीय खिलाडिय़ों ने निशानेबाजी, भारोत्तोलन और कुश्ती की प्रतिस्पर्धाओं में बेहतर प्रदर्शन किया है। गोल्ड कोस्ट में भी भारत ने आधे से अधिक पदक इन्हीं प्रतिस्पर्धाओं में जीते। पदक तालिका से पता चलता है कि भारत ने निशानेबाजी में १६ पदक (७ स्वर्ण, ४ रजत और ५ कांस्य), कुश्ती में ९ पदक (५ स्वर्ण, २ रजत और २ कांस्य पदक) जीते।
परंतु एक नया खेल, जिसने भारत को प्रतिष्ठा दिलाई, टेबल टेनिस था। भारतीय खिलाडिय़ों ने टेबल टेनिस में ८ पदक जीते, जो अपने में रिकॉर्ड है। इनमें ३ स्वर्ण, २ रजत अैर ३ कांस्य पदक शामिल थे। १९३० के बाद से राष्ट्रमंडल खेलों में भारत ने पिछले खेलों तक टेबल टेनिस में कुल १२ पदक जीते थे, लेकिन अकेले गोल्ड कोस्ट में भारत ने ८ पदक जीते।
मणिका बत्रा सबसे सफल भारतीय खिलाड़ी रही, जिन्होंने गोल्ड कोस्ट राष्ट्रमंडल खेलों में टेबल टेनिस में २ स्वर्ण पदक, १ रजत और १ कांस्य पदक जीता। बैडमिंटन की ही तरह, जहां भारतीय खिलाडिय़ों ने चीन और जापान जैसे पॉवर हाउसों को चुनौती दी, टेबल टेनिस में भी भारत ने बेहतरीन सफलता हासिल की।
युवा निशानेबाज
निशानेबाजी में भारत का भविष्य सुरक्षित है, क्योंकि गोल्ड कोस्ट में युवा भारतीय निशानेबाजों ने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।
सबसे पहले, १६ वर्षीय मनु भाकर ने स्वर्ण पदक जीत कर सबका ध्यान आकर्षित किया। भाकर ने स्वर्ण पदक के लिए १० मीटर एयर पिस्टल मुकाबले में अधिक सधी हुई अपने ही देश की निशानेबाज हिना सिद्धू को पराजित किया। इस उपलब्धि के साथ भाकर राष्ट्रमंडल खेलों में सबसे कम उम्र में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय खिलाड़ी भी बनीं।
लेकिन उसका रिकॉर्ड मात्र एक सप्ताह तक ही कायम रह पाया। इस बार १५ वर्षीय अनीश भानवाला ने कीर्तिमान स्थापित करने वाले अपने प्रदर्शन से सबको चकित कर दिया। अनीश ने २५ मीटर रेपिड फायर पिस्टल मुकाबले में स्वर्ण पदक जीता और राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाला सबसे कम उम्र का भारतीय खिलाड़ी बना। भारत ने निशानेबाजी में अपनी जीत का सिलसिला जारी रखा और ७ स्वर्ण पदकों सहित कुल १६ पदक जीते।
युवाओं के अलावा अनुभवी निशानेबाजों हिना सिद्धू और तेजस्विनी ने भी स्वर्ण पदक जीते। हिना ने २५ मीटर के मुकाबले में स्वर्ण पदक जीत कर भाकर से हारने की अपनी क्षति पूरी की, जबकि तेजस्विनी ने भी एक स्वर्ण और एक रजत पदक जीत कर शानदार प्रदर्शन किया।
बैडमिंटन
यह अधिक पुरानी बात नहीं है जब भारतीय खिलाडिय़ों को इस खेल में पिछलग्गू समझा जाता था। प्रकाश पादुकोण, गोपीचंद या अत्यंत प्रभावशाली सायना नेहवाल और पी.वी. सिंधु जैसे खिलाडिय़ों के जरिए भारत ने यदाकदा विश्व चैम्पियनशिप जीती थी। लेकिन भारत कभी एक ऐसी टीम के रूप में नजर नहीं आया जो खेलों में अपना प्रभाव दिखा सके। यह प्रवृत्ति गोल्ड कोस्ट में बदलती नजर आई। भारतीय बैडमिंटन दस्ता ६ पदक जीतने के साथ सर्वोत्कृष्ट टीम के रूप में उभर कर सामने आया।
सायना नेहवाल ने फाइनल में अपने ही देश की पी.वी. सिंधु को हरा कर स्वर्ण पदक जीता। यह भी पहला अवसर था जब भारत ने सात्विक साइराज रंकीरेड्डी और चिराग शेट्टी के जरिए पुरुषों के डबल्स में स्वर्ण पदक जीता।
किदाम्बी श्रीकांत को रजत पदक से संतोष करना पड़ा, लेकिन उन्होंने सर्वोत्कृष्ट खिलाडिय़ों में से एक प्रसिद्ध खिलाड़ी ली चोंग वेई के समक्ष कड़ी चुनौती पेश की।
भारत को छठा पदक अश्विनी पोनप्पा और एस. रेड्डी की जोड़ी ने दिलाया। भारतीय खिलाडिय़ों को एशियाई खेलों में भी कठिन चुनौतियां का सामना करना होगा, जहां उनका सामना चीनी और जापानी खिलाडिय़ों से होना है।
एम.सी. मैरीकोम
एम.सी. मैरीकोम ने उम्र को धता बताते हुए एक बार फिर स्वर्ण पदक जीत कर अपने आलोचकों का मुंह बद कर दिया। मैरीकोम के शानदार खेल जीवन में एक और उपलब्धि उस समय जुड़ गई, जब उसने राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली प्रथम भारतीय महिला मुक्केबाज बनने का गौरव प्राप्त किया। मैरीकोम की सफलता का महत्व इस बात में भी है कि अपने पहले और संभवत: अंतिम, राष्ट्रमंडल खेलों में उसने अंतिम मुकाबले में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए उत्तरी आयरलैंड की क्रिस्टिना ओ हारा को पांच-शून्य से हराया। वरिष्ठ खिलाड़ी मैरीकोम ने २२ वर्षीय ओ हारा को बुरी तरह पराजित किया।
नीरज चोपड़ा
पी.टी. ऊषा के संन्यास लेने के बाद कोई भारतीय एथलीट अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनके समान प्रदर्शन नहीं कर पाया। यह स्थिति २०१६ में उस समय परिवर्तित हुई, जब एक युवा भारतीय नीरज चोपड़ा ने भाला फेंक में जूनियर स्तर पर विश्व चैम्पियनशिप जीती।
नीरज से बड़ी उम्मीद की जा रही थी, क्योंकि ट्रैक एंड फील्ड मुकाबले में किसी भारतीय खिलाड़ी द्वारा विश्व कीर्तिमान स्थापित करना एक दुर्लभ उपलब्धि रही है। परंतु, नीरज को उस समय थोड़ी कठिनाई महसूस हुई जब उसे सीनियर्स की प्रतिस्पर्धा में भाग लेना पड़ा। लोगों ने उसे वन-डे वंडर कहना शुरू कर दिया। गोल्ड कोस्ट में नीरज चोपड़ा ने बेहतरीन रणनीति अपनाते हुए प्रत्यक्ष विश्व रिकॉर्ड कायम किया। भाला फेंक की उच्च तकनीकी प्रतिस्पर्धा में नीरज ने फाइनल मुकाबले में ८६.४७ मीटर दूरी पर भाला फेंक कर स्वर्ण पदक जीता।
निराशा
सभी उत्कृष्ट प्रदर्शनों के बीच हॉकी जैसे परंपरागत खेल में कुछ निराशा भी हाथ लगी, जहां भारत कोई पदक नहीं जीत पाया। भारत कांस्य पदक के मुकाबले में इंग्लैंड से हार गया और निराशाजनक ढंग से चौथे स्थान पर रहा। भारत ने पिछले दो राष्ट्रमंडल खेलों में हॉकी में स्वर्ण पदक जीता था। इसे देखते हुए भारतीय दर्शकों को कुछ निराशा जरूर हुई।
गोल्ड कोस्ट में हुई प्रतिस्पर्धाओं ने बहु-आयामी खेलों की दृष्टि से भविष्य के लिए उम्मीदों को जन्म दिया है। परंतु वास्तविक चुनौती एशियाई खेल और अंतत: ओलिम्पिक खेलों में सामने आएगी। ये ऐसे खेल हैं, जहां मुकाबला अधिक कठिन होता है लेकिन भारत के लिए आशा की किरण यह है कि राष्ट्रमंडल खेलों का प्रदर्शन आगामी एशियाई और ओलम्पिक खेलों में सफलता का आधर बनेगा। गोल्ड कोस्ट से भारत का यह विश्वास बढ़ा है कि वह खेलों में अधिक ऊंचाइयां हासिल कर सकता है।
(लेखक एक वरिष्ठ खेल समीक्षक हैं। ईमेल: vidhanshu.kumar@gmail.com)