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संपादकीय लेख


Volume-53, 31 March-6 April, 2018

 

उत्तर पूर्व-एक्ट ईस्ट पॉलिसी का केंद्र बिंदु

अनुलेखा गरिगिपति

 भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र में असम, मेघालय, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम, नगालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम शामिल हैं. भारत के सुदूरवर्ती पूर्वी छोर में स्थित यह क्षेत्र भिन्न-भिन्न स्वदेशी समुदायों का गृह है जिनकी विविध जीवनशैली और रीति रिवाज हैं. उत्तर पूर्वी क्षेत्र भारत के कऱीब 8 प्रतिशत क्षेत्र में फैला है तथा देश की लगभग 3 प्रतिशत जनसंख्या यहां रहती है.

भारत की अपने पड़ौसियों से लगती 6 अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं में से उत्तर पूर्वी क्षेत्र, पाकिस्तान को छोडक़र, सभी से सटा हुआ है. उत्तर पूर्वी क्षेत्र 5 एशियाई देशों नामत:-नेपाल, भूटान, चीन, बंगलादेश और म्यामांर से घिरा है.

भारत का उत्तर पूर्वी क्षेत्र सार्क और आशियान के मध्य अभिसरण बिंदु है. यही वजह है कि जहां सार्क का अंतिम छोर है वहीं से आसियान की शुरूआत होती है और इस तरह यह क्षेत्र रणनीतिक और स्थलाकृतिक तौर पर बहुत महत्वपूर्ण है. भारत का उत्तर पूर्वी क्षेत्र इसके समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों के लिये जाना जाता है क्योंकि इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की जैव विविधता, जैविक ईंधन, कोयला पत्थर, वन्य संसाधनों के साथ-साथ वनस्पतियों की भरमार है. उत्तर पूर्वी क्षेत्र में भारत की 30 प्रतिशत से अधिक वनस्पतियां हैं तथा देश की कुल जल संपदा का 30 प्रतिशत से अधिक यहां है.

उत्तर पूर्वी भारत सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, भौगोलिक और ऐतिहासिक विविधताओं से परिपूर्ण है. इन विविधताओं के परिणामस्वरूप क्षेत्रों के बीच और परस्पर एकता और संचय का अभाव रहा है. देश के किसी अन्य क्षेत्र अथवा प्रांत की तरह उत्तर पूर्व भी कुछेक घरों में बुनाई, धातु कार्य, दस्तकारी आदि के साथ-साथ मुख्यत: कृषि आधारित समाज था. अंग्रेजों ने उत्तर पूर्व क्षेत्र को अन्य के मुकाबले बहुत देरी से और वह भी चरणबद्ध रूप से और जनजातीय लोगों के सामाजिक आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन में कम दखलंदाज़ी के साथ एकजुट किया जो कि सांस्कृतिक और भाषायी दृष्टि से अलग-थलग रहे. वे केवल वृक्षारोपण, चाय की खेती, इमारती लकड़ी, खनिजों और कच्चे तेल जैसे वन्य उत्पादों में ही रुचि रखते थे. उत्तर पूर्वी क्षेत्र के समृद्ध तेल भण्डारों के दोहन के लिये देश की पहली तेल रिफ़ाइनरी डिगबोई, असम में स्थापित की गई. अंग्रेज़ों ने उत्तर पूर्व की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों को सुधारने के लिये बहुत ही कम काम किया. अत: ब्रिटिश सरकार ने क्षेत्र के आर्थिक विकास के लिये कुछ भी योगदान नहीं किया. मुगलों का भी इस क्षेत्र पर प्रभाव नहीं हुआ क्योंकि वे अपने सभी प्रयासों में इस क्षेत्र को अपने साथ जोडऩे, इस पर नियंत्रण करने और अपना शासन कायम करने में असफल रहे जिससे उत्तर पूर्वी क्षेत्र का उनके साम्राज्य की मुख्य भूमि के साथ संपर्क नहीं हो सका.

भौतिक अवसंरचना का अभाव, अंतर-क्षेत्रीय संघर्ष, जातीय संघर्ष और उपद्रव ने यहां सार्वजनिक और निजी निवेश को रोकने का काम किया, जिससे पिछड़ेपन का वातावरण बना रहा. राजनीतिक तौर पर देश का पूर्वी मोर्चे पर विघटन तथा तत्कालीन सरकारों द्वारा उत्तर पूर्वी क्षेत्र को नजऱअंदाज करना तथा इनकी कुछेक अहितकर नीतियों ने उत्तर पूर्वी क्षेत्र को अपने प्राकृतिक बाज़ारों से वंचित कर दिया. उदारीकरण की बयार जो कि 1991 में देश भर में शुरू हो चुकी थी, से भी समान कारणों से उत्तर पूर्व लाभान्वित नहीं हो सका. यद्यपि बाद में यह देखने में आया कि उत्तर पूर्वी क्षेत्र को भारत की मुख्य भूमि के साथ जोडऩे के प्रयास किये जा रहे हैं और इसके पूर्व तथा दक्षिण पूर्व एशिया के साथ भौगोलिक नज़दीकियों के कारण भारत की पूर्व की ओर देखो नीति में उत्तर पूर्वी क्षेत्र के व्यापक योगदान की संभावना के बारे में बातें की जाने लगीं.

1991 में आरंभ हुई भारत की पूर्व की ओर देखो की नीति को भारत के संदर्भ में दुनिया के समक्ष एक रणनीतिक बदलाव के तौर पर चिन्हित किया गया. यह मात्र विदेशी आर्थिक नीति मात्र नहीं है, यह वैश्विक अर्थव्यवस्था में दुनिया में भारत के स्थान के भारतीय विजऩ में रणनीतिक बदलाव भी है. यह पूर्व की ओर देखा नीति, जिसे उन्नत करके 2014 में एक्ट ईस्ट नीति कर दिया गया, आसियान और पूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के साथ इसके संबंधों में गहनता और मज़बूती के लिये एक मंच के तौर पर काम करती है. यह नीति एक प्रकार से पिछड़े उत्तर पूर्वी क्षेत्र को व्यापक विकास के लाभ प्रदान कर सकती है. यह भारत को क्षेत्रीय शक्ति के तौर पर पहचान दिला सकती है. यह चीन की साम्राज्यवादी सर्वोच्चता के डिज़ाइन का कड़ा मुकाबला कर सकती है. इससे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सदस्यता के भारत के दावे को और मज़बूती मिलेगी. यह चीन के अपने समुद्री रेशम मार्ग और एक बैल्ट एक मार्ग की पहल के जरिये भारत को घेरने की नीति का मुकाबला करेगी.

एक्ट ईस्ट नीति पर कार्रवाई करते हुए इसका सक्रिय केंद्र बिंदु केवल उत्तर पूर्वी क्षेत्र होगा. यह आर्थिक हब 40 प्रतिशत से अधिक वैश्विक जनसंख्या की आवश्यकता की पूर्ति करेगी और उसे प्रभावित करेगी. उत्तर पूर्व भारत न केवल भारत, चीन, नेपाल, भूटान, बंगलादेश और आसियान देशों के मध्य आर्थिक केंद्र अथवा व्यापार का जंक्शन होगा बल्कि इसमें अपनी जलविद्युत क्षमता के साथ अपने पड़ौसियों की ताकत का दोहन करते हुए अतिरिक्त राजस्व सृजन करने की भी क्षमता है.  जबकि देश की 75 प्रतिशत जल विद्युत क्षमता के लिये हिमालय नदी प्रणाली-इंडस-गंगा-ब्रह्मपुत्र से हासिल करने का दावा किया जाता है, इसका 50 प्रतिशत से अधिक ब्रह्मपुत्र और इसकी सहायक नदियों से प्राप्त होता है. अत: यह कहना उचित होगा कि उत्तर पूर्व क्षेत्र भारत का भविष्य का ऊर्जा भण्डारगृह है और वह भी स्वच्छ तथा पर्यावरण अनुकूल ऊर्जा के संदर्भ में है, यह कहना उचित होगा कि केंद्र ने पारिस्थितिकी रूप से अशक्त अरूणाचल प्रदेश की देश के पावरहाउस के तौर पर पहचान की है. केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) और निजी विद्युत डेवलपर्स के एक अनुमान के अनुसार चीन से सटे इस राज्य में 57000 मेगावाट जलविद्युत के उत्पादन की क्षमता है.

उत्तर पूर्वी क्षेत्र के लिये इसके पिछड़ेपन की पृष्ठभूमि में एक बड़े संतोष की बात यह है कि इसके मानव विकास संकेतक लगातार औसतन उच्च रहे हैं. क्षेत्र ने सामाजिक क्षेत्र में और इससे अधिक साक्षरता के क्षेत्र में भी अच्छा काम किया है. महिला साक्षरता के क्षेत्र में विशेष तौर पर राष्ट्रीय औसत की तुलना में काफी प्रगति हुई है.

भारत में मुश्किल से कोई अन्य क्षेत्र है जिसे आर्थिक विकास और स्थिरता हासिल करने के लिये अधिक अनुकूल माना गया है, जैसा कि उत्तर पूर्व है. बांस सामान्यत: न केवल भारत में और विशेषकर उत्तर पूर्व में सांस्कृतिक महत्व रखता है, बल्कि यह सर्वाधिक उपज वाला नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन है. बांस में एक व्यापारिक वस्तु के तौर पर समावेशी विकास और स्थिरता में योगदान की उत्कृष्ट संभावनाएं हैं जिसका प्रमुख उपभोक्ता कागज और लुग्दी उद्योग और निर्माण क्षेत्र है. हालांकि भारत 45 प्रतिशत वैश्विक बांस वृद्धि को धारण करता है, वैश्विक बांस व्यापार और वृद्धि में इसकी हिस्सेदारी 5 प्रतिशत से कम है. हरित सोनाकहलाने वाला बांस मुख्यत: एक प्रकार का घास होता है. परंतु 90 वर्षों से इसके वृक्ष के तौर पर वर्गीकरण ने उत्तर पूर्व में, जो कि भारत के बांस का 67 प्रतिशत उत्पादन करता है, इसके वाणिज्यिक दोहन को रोका गया, जबकि चीन एकमात्र देश है जिसके पास बांस के आनुवंशिक संसाधन हैं. हाल के बजट में पुनर्गठित राष्ट्रीय बांस मिशन के लिये 1290 करोड़ रु का आबंटन किया गया है जिससे बांस आधारित उद्योगों का   खाद्य प्रसंस्करण से निर्माण क्षेत्र के लिये महत्व बढ़ा है.

वर्तमान सरकार के नारे ‘‘सब का साथ, सब का विकास‘‘ के साथ इसनेे उत्तर पूर्वी क्षेत्र के विकास की प्रतिबद्धता को फिर दोहराया है जो कि विभिन्न ऐतिहासिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और भौगोलिकीय कारणों से अलग-थलग पड़ा रहा है. यह बात भी दिल को छूने वाली है कि उत्तर पूर्वी राज्यों ने भी केंद्र की प्रतिबद्धता और पहलों की प्रशंसा करना आरंभ कर दिया है. त्रिपुरा और मेघालय में हाल के चुनाव परिणामों और इससे पहले असम और मणिपुर के चुनावी नतीजों को केंद्र के विकास एजेंडा की उत्तर पूर्वी क्षेत्र द्वारा स्वीकृति माना जा सकता है.

उत्तर पूर्वी क्षेत्र में आईटीईएस, चाय आधारित उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, कच्चा तेल और प्राकृतिक गैस, पेट्रोरसायन आधारित उद्योग, कृषि एवं वन, वस्त्र और हस्तशिल्प उद्योग जैसे उद्योगों के लिये काफी व्यवहार्यता और स्थिरता की बराबर की संभावनाएं हैं. ये सभी श्रम सघन उद्योग होने से अंतत: रोजग़ार का सृजन होगा.

गुवाहाटी, असम में आयोजित उद्यमियों के एक सम्मलेन में सीआईआई ने कहा कि ‘‘प्राकृतिक संसाधानों और मानव संसाधनों की गुणवत्ता के व्यापक पूल पर विचार करने के लिये बहुत थोड़ा समय है, उत्तरपूर्व भारत में एक महत्वपूर्ण निवेश गंतव्य और व्यापार और व्यवसाय का केंद्र होने की क्षमता रखता है. हाल में असम में निवेशकों के लिये प्रस्तुत भू-स्थैतिक लाभों पर प्रकाश डालने के लिये एडवांटेज-असम-ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट-2018 का आयोजन भी गुवाहाटी में किया गया था. समूचे सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत की विकास गाथा को उत्तर पूर्वी क्षेत्र के संतुलित और तीव्र विकास से और ऊर्जा मिलेगी.

उत्तर पूर्वी क्षेत्र का यह क्रांतिकारी आर्थिक विकास तभी संभव है यदि एक्ट ईस्ट पॉलिसी पर दृढ़ता और तेज़ी के साथ काम किया जाये. हमारी गति से चीन के लिये चौंकाने वाली स्थिति होनी चाहिये और देश के प्रत्येक पणधारी तथा आर्थिक भागीदार को दूरदृष्टि के साथ इस पर काम करना चाहिये. इसके लिये पूर्व शर्त यह है कि सब को प्रादेशिक विवादों, जातीय घृणा, उपद्रव जैसे तुच्छ मुद्दों का त्याग कर देना चाहिये. हमारे राजनीतिक दलों, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दोनों को तुच्छ राजनीतिक और चुनावी फायदों से ऊपर उठ जाना चाहिये और इस महान कार्य के लिये मिलजुलकर काम करना चाहिये.

(लेखक राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय, कोलकाता, सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय, भारत सरकार में कार्यरत हैं.)