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संपादकीय लेख


Volume-44, 27 January-2 February, 2017

 
भारत-इस्राइल संबंध नई ऊंचाइयों पर

डॉ. विवेक कुमार मिश्रा

‘‘मेरा यह मानना है कि इस्राइल और भारत की सफलताओं का राज़ एक ही है, और वह है -परम्परागत मूल्यों और नवाचार का संयोजन. जो बातें हमें एकजुट करती हैं उनमें सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हमारे बीच लोकतंत्र के प्रति वचनबद्धता का विशेष संबंध है.’’
-नेतन्याहू 
(16 जनवरी, 2018 को नई दिल्ली में रायसीना डायलॉग को संबोधित करते हुए).
 
इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू भारत के साथ आपसी संबंधों को सुदृढ़ बनाने की मंशा के साथ छह दिन की सरकारी यात्रा पर 14 जनवरी, 2018 को नई दिल्ली पहुंचे. एरियल शैरोन के बाद भारत की यात्रा करने वाले वे इस्राइल के दूसरे प्रधानमंत्री हैं. उनकी यात्रा का महत्व इस बात से रेखांकित होता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अतिरिक्त शिष्टाचार दिखाते हुए दिल्ली हवाई अड्डे पर उनकी अगवानी करने पहुंचे. उन्होंने गले मिल कर प्रधानमंत्री नेतन्याहू का गर्म जोशी से स्वागत किया.
15 जनवरी 2018 को संयुक्त संवाददाता सम्मेलन
इस्राइल के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की 25वीं वर्षगांठ के अवसर पर हुई. इससे छह महीने पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस्राइल की यात्रा की थी, जो किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की इस यहूदी राष्ट्र की पहली यात्रा थी.
संयुक्त वक्तव्य के संदर्भ में यह उल्लेखनीय है कि रक्षा निर्यात के मामले में भारत इस्राइल का सबसे बड़ा निर्यात लक्ष्य है और भारत के लिए इस्राइल हथियारों का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत है. इन बातों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि दोनों देशों के संबंध आज नई ऊंचाइयां हासिल करने की दृष्टि से पहले की तुलना में सर्वाधिक संतुलित दिखायी देते हैं. संयुक्त संवाददाता सम्मेलन का महत्व इस बात से परिलक्षित होता है कि इस्राइली प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री को यह कहा कि ‘‘आप क्रांतिशब्द के सही अर्थ में एक क्रांतिकारी नेता हैं.’’ नेतन्याहू ने आगे कहा कि ‘‘आपके नेतृत्व और हमारी भागीदारी की बदौलत कुछ भिन्न घटित हो रहा है. आप इस भव्य स्थिति को उज्ज्वल भविष्य में रूपांतरित कर रहे हैं और आपने इस्राइल और भारत के संबंधों में क्रांति ला दी है.’’ नेतन्याहू का वक्तव्य इस बात का स्पष्ट संकेत है कि दोनों देश आज संबंधों के एक नए युग में प्रवेश कर रहे हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ने भी नेतन्याहू की यात्रा की प्रशंसा करते हुए यह कहा कि ‘‘भारत और इस्राइल के बीच मैत्री के सफर में यह एक ऐतिहासिक क्षण है, जिसका लंबे अरसे से इंतज़ार था.’’ उन्होंने कहा कि नेतन्याहू के रूप में उन्हें एक ‘‘एक ऐसा समकक्ष मिला है, जो भारत- इस्राइल संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के प्रति समान रूप से वचनबद्ध है.’’
इस्राइल के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा के दौरान हस्ताक्षर किए गए समझौता ज्ञापन/समझौते (15 जनवरी, 2018, विदेश मंत्रालय) 
दोनों देशों के बीच बातचीत के बाद भारत और इस्राइल ने 9 समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जिनमें तेल और गैस तथा साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग के बारे में दो समझौता-ज्ञापन और मैटल-एयर बैटरियों तथा सौर ताप प्रौद्योगिकियों के बारे में इंडियन ऑयल तथा इस्राइल की दो कंपनियों के बीच दो आशय पत्र पर हस्ताक्षर होना शामिल है.
संयुक्त वक्तव्य की मुख्य बातें
दोनों नेताओं ने एक संयुक्त बयान जारी किया जिससे दोनों देशों के बीच ‘‘कार्यनीतिक भागीदारी’’ की पुष्टि होती है. संयुक्त वक्तव्य में कहा गया कि दोनों प्रधानमंत्री इस बात पर सहमत हैं कि आपसी व्यापार एवं निवेश की क्षमताओं के पूर्ण दोहन के लिए नए प्रयासों की आवश्यकता है और यह निर्णय किया गया कि आपसी बातचीत का अगला दौर अगले महीने इस्राइल में आयोजित किया जाएगा. दोनों प्रधानमंत्रियों ने निजी क्षेत्र से कहा कि वे ‘‘मेक इन इंडिया’’,  ‘‘स्टार्ट अप इंडिया’’ और ‘‘डिजिटल इंडिया’’ जैसे भारत के प्रमुख कार्यक्रमों सहित दोनों देशों में निवेश  के अवसरों की सक्रिय रूप से खोज करें. संयुक्त वक्तव्य में निम्नांकित क्षेत्रों को प्राथमिकता दी गई.
रक्षा क्षेत्र: 
संयुक्त वक्तव्य में यह बात उजागर की गई कि इस्राइली कंपनियां ‘‘मेक इन इंडिया’’ कार्यक्रम के तहत रक्षा क्षेत्र में भारतीय कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यम लगाने के लिए तैयार हैं. वे इस बात को महत्वपूर्ण समझती हैं कि संयुक्त उद्यमों और प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण सहित संयुक्त विनिर्माण और साथ ही रक्षा क्षेत्र में अनुसंधान और विकास की दिशा में अधिक व्यापार मॉडल और भागीदारी विकसित करने की आवश्यकता है. उन्होंने रक्षा मंत्रालयों से कहा कि वे सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी के साथ 2018 में विचार-विमर्श के आयोजन करें ताकि रक्षा उद्योग में व्यवहार्य, टिकाऊ और दीर्घावधि के सहयोग का आधार तैयार किया जा सके.
आतंकवाद
प्रधानमंत्री मोदी और इस्राइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने जोर देकर कहा कि आतंकवादी गतिविधियों को किसी भी आधार पर उचित नहीं ठहराया जा सकता. उन्होंने आतंकवादियों, आतंकवाद को मदद करने, प्रोत्साहन देने, धन उपलब्ध कराने तथा आतंकी गिरोहों को पनाह देने वालों के खिलाफकठोर उपाय करने पर भी जोर दिया. दोनों नेताओं ने आतंकवाद को भारत और इस्राइल की शांति और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा करार दिया. उन्होंने इस बार पर संतोष व्यक्त किया कि होमलैंड और पब्लिक सिक्योरिटी पर संयुक्त कार्य दल की अगली बैठक फरवरी 2018 को होगी. उन्होंने साइबर आतंकवाद समेत आतंकवाद से निपटने में विस्तृत सहयोग को रेखांकित करते हुए भारत और इस्राइल के बीच साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया जाने का स्वागत किया.
प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने सुरक्षा सम्मेलन में बताया, ‘‘जिन्दगी जीने के हमारे तरीके को चुनौती दी जा रही है, खास तौर पर आधुनिकता की हमारी चाह को और नवसृजन की हमारी चाह को कट्टर इस्लाम तथा चारों और फैले इसके गिरोहों की ओर से चुनौती मिल रही है.’’ उन्होंने कहा कि ‘‘इस्राइल और भारत दोनों ने लम्बे समय से उग्र इस्लामिस्टों का मुकाबला किया है. इस्राइल ने गाजा और मिस्र के सिनाई क्षेत्र में और भारत ने पाकिस्तान की ओर से इस तरह के आतंक को झेला है.’’ श्री नेतन्याहू ने बताया कि उन्होंने अपनी इस यात्रा के दौरान भारतीय नेताओं से इस बात पर चर्चा की कि ‘‘सभ्यता के क्षेत्र में, सुरक्षा के क्षेत्र में और तमाम अन्य क्षेत्र में दोनों देशों को कैसे आगे ले जाया जा सकता है’’. इससे आतंकवाद को लेकर इस्राइल के प्रधानमंत्री के सरोकार का पता चलता है क्योंकि उनका देश भी भारत की ही तरह लम्बे समय से आतंक का सामना कर रहा है.
भारत-इस्राइल औद्योगिक अनुसंधान और विकास तथा प्रौद्योगिकीय नवसृजन निधि:
दोनों नेताओं ने भारत-इस्राइल औद्योगिक अनुसंधान और विकास तथा प्रौद्योगिकीय नवसृजन निधि के शुभारंभ की सभी औपचारिकताएं पूरी होने का भी स्वागत किया. इसकी शुरुआत जुलाई 2017 में प्रधानमंत्री मोदी की इस्राइल यात्रा के समय हुई थी जो दोनों देशोंं के बीच 1992 में राजनयिक संबंधों की स्थापना के बाद से वहां का दौरा करने वाले पहले शासनाध्यक्ष थे. यह परियोजना 4 करोड़ डालर की एक पहल है जिसके माध्यम से औद्योगिक विकास के क्षेत्र में टेक्नोलाजी संबंधी नवसृजन और अनुसंधान व विकास के उद्देश्य से की गयी है. इसका एक और मकसद भारत और इस्राइल के आविष्कारकों के बीच जल संरक्षण, गंदे पानी के खेतों में उपयोग और समुद्री पानी का खारापन दूर करने जैसे क्षेत्रों में रणनीतिक साझेदारी कायम करना भी है.
मानव संसाधन विकास पर जोर:
भारत-इस्राइल समझौतों का मुख्य जोर तेल और गैस उद्योग और साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग पर था. इसके अलावा ऊर्जा के क्षेत्र में संयुक्त आर्थिक उपक्रमों की स्थापना पर भी जोर दिया गया. दोनों देशोंं की उच्च शिक्षा संस्थाओं ने ज्ञान के विनिमय को सुगम बनाने के लिए समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये. भारत-इस्राइल द्विपक्षीय साझेदारी तीन स्तंभों पर आधारित है जिनपर प्रधानमंत्री मोदी ने विषेश रूप से ध्यान केन्द्रित किया.
1. पहला कृषि, विज्ञान और टेक्नोलाजी तथा सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग के मौजूदा स्तंभों को सुदृढ़ करके ऐसा किया जा सकता है.
2. द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने का दूसरा तरीका है ‘‘सहयोग के कम ज्ञात क्षेत्रों जैसे तेल और गैस, साइबर सुरक्षा, फिल्म और स्टार्ट अप्स’’ में सहयोग मजबूत किया जाए.
3. संबंध सुदृढ़ करने का तीसरा तरीका, श्री मोदी के अनुसार यह है कि एक दूसरे देश में लोगों के आने-जाने को आसान बनाया जाए. प्रधानमंत्री ने कहा कि हम इस्राइल के साथ एक-दूसरे के यहां आने-जाने और काम करने को आसान बनाने के लिए कार्य कर रहे हैं और लम्बी अवधि के लिए काम करने की इजाजत देने के बारे में भी बात जारी है. भारत और इस्राइल के लोगों को और पास लाने के लिए इस्राइल में बहुत जल्द भारतीय सांस्कृतिक केन्द्र खोला जाएगा. दोनों देशों ने हर साल विज्ञान से संबंधित विशयों के 100 युवा विद्यार्थियों को एक-दूसरे के यहा भेजने की शुरुआत करने का फैसला किया है.
इस्राइल के लिए भारत क्यों महत्वपूर्ण है.
भारत इस्राइली हथियारों का सबसे बड़ा आयोतक है. ‘‘भारत और इस्राइल के बीज द्विपक्षीय व्यापार 1992 में 2 करोड़ डालर था जो 2014 में बढक़र 4.52 अरब डालर हो गया.’’ इस समय इस्राइल रक्षा उपकरणों और हथियारों की सप्लाई में तीसरा सबसे अहम सहयोगी है और उसकी गिनती अमेरिका और रूस के बाद होती है. कृषि टेक्नोलाजी, जल प्रबंधन और कुशल प्रविधियों के निर्यात की दृष्टि से भारत बहुत बड़ा बजार है और उसे वैश्विक मौजूदगी वाले किसी मजबूत लोकतांत्रिक राष्ट्रों के साथ सामरिक साझेदारी की जरूरत है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बेहद कम लागत पर कई उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण से बड़ा सम्मान अर्जित कर लिया है. इसने इस्राइली अंतरिक्ष एजेंसी आईएसए समेत विश्व के कई देशोंं के अंतरिक्ष संगठनों को सहयोग और समझौतों के जरिए इसरो के काफी करीब ला दिया है. इस समय भारत-इस्राइल संबंध दोनों ही देशोंं की सरकारों के लिए एकसमान अहमियत रखते हैं. येरुशलम को इस्राइल की राजधानी की मान्यता देने के अमेरिका के फैसले को वापस लेने के बारे में संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रस्ताव को भारत के समर्थन से पता चलता है कि भारत विभिन्न पक्षों और हितों के बीच संतुलन बनाना जारी रखेगा और जब भी किसी बहुपक्षीय मंच में वोट देने की रणनीति का सवाल उठेगा, कोई आमूल बदलाव वाला कदम नहीं उठाएगा.
भारत को किस तरह फायदा होगा.
अब तक भारत-इस्राइल संबंध केवल प्रतिरक्षा और सुरक्षा सहयोग पर आधारित था जिसके अंतर्गत दोनों देशोंं के बीच कई वर्षों तक सामरिक साझेदारी रही. लेकिन अब दोनों देश उससे आगे बढ़ गये हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि ‘‘हमने भारतीय नौकरशाही में लालफीताशाही को काफी कम कर दिया है ताकि इस्राइली कंपनियां यहां आ सकें और निवेश कर सकें तथा संयुक्त उत्पादन सुविधाओं की स्थापना कर सकें’’. उनका यह वक्तव्य अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस्राइल टेक्नोलाजी के क्षेत्र में असाधारण क्षमताओं वाला भले ही हो, मगर वह एक छोटा सा देश है जबकि भारत एक बहुत बड़ा बाजार है. संयुक्त उत्पादन सुविधाओं की स्थापना के लिए यहां अनुकूल माहौल है. भारत यात्रा पर आने वाले इस्राइली पर्यटकों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है. इसका कारण यह है कि भारत दुनिया के उन गिने-चुने देशोंं में शामिल है जहां इस्राइली (यहूदी) दूर-दराज इलाकों में भी अपने-आपको पूरी तरह सुरक्षित महसूस करते हैं. यही वजह है कि इस्राइली भारत में एक-दो सप्ताह के लिए नहीं आते बल्कि कभी-कभी तो वे यहां महीनों तक रहते हैं. पर्यटनक्षेत्र दोनों देशों  के बीच सहयोग का बड़ा महत्वपूर्ण क्षेत्र बनता जा रहा है. इसी लिए दोनों देशों ने हवाई यातायात के बारे में समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं ताकि पर्यटन को बढ़ावा मिले.
कृषि के क्षेत्र में इस्राइल ने ऐसी टेक्नोलाजी विकसित कर ली है जिसमें वह अपने सीमित संसाधनों को अधिकतम उपयोग करता है. जल संसाधन प्रबंध, ड्रिप सिंचाई और समुद्र के पानी के खारेपन को दूर करने के लिए इस्राइल द्वारा विकसित टेक्नोलाजी तक भारत की पहुंच से हमें अपनी उत्पादकता में काफी सुधार का मौका मिल जाएगा. दो देशों के बीच केवल प्रतिरक्षा और सुरक्षा पर आधारित समझौतों से लम्बे समय तक चलने वाले संबंध नहीं बन सकते. ऐसे संबंध तो विक्रेता और खरीदार के ढांचे में सीमित रह जाते हैं. यही वजह है कि प्रतिरक्षा और सुरक्षा (साइबर सुरक्षा को छोडक़र)का संयुक्त वक्तव्य में जिक्रतक नहीं हुआ. भारत और इस्राइल अब सामरिक साझेदारी के युग में प्रवेश कर रहे हैं जहां मात्रा और गुणवत्ता दोनों ही बड़ा मायने रखते हैं. इन दोनों मानदंडों पर इस्राइल ‘‘मजबूत’’ सामरिक सहयोगी के तौर पर खरा उतरता है.   
निष्कर्ष
नेताओं के बीच वैचारिक समानता, साझा विश्वदृष्टि और व्यक्तिगत सौहाद्र्र के किस्सों से परे भारत और इस्राइल के बीच नयी साझेदारी उभर कर सामने आयी है और इसने पिछले 25 वर्षों में बड़े सशक्त तरीके से अपने आप को स्थिर कर लिया है. इसका कारण यह है कि यह बड़े अनोखे तरीके से विराजनीतिकृत, विकेन्द्रित और तकनीकी तरह की है. आज की जमीनी वास्तविकताएं दुनिया के तेजी से विकासोन्मुख देशों को आर्थिक व्यवहारवाद की नीति का अनुसरण करने को विवश कर रही है. भारत-इस्राइल संयुक्त वक्तव्य का प्रमुख नतीजा यह हुआ है कि अब दोनों देशों के संबंध प्रतिरक्षा और सुरक्षा के दायरों तक सीमित नहीं रह गये हैं.
(लेखक गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा, उत्तर प्रदेश के स्कूल ऑफ ह्यूमैनिटीज एंड सोशल साइंसेज में शैक्षिक संकाय के सदस्य हैं.)