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संपादकीय लेख


Volume-40, 30 December-5 January, 2017

 
राष्ट्र-निर्माण में युवाओं की भागीदारी

प्रोफेसर एस.के. कटारिया

कोई भी महान देश अपनी जिम्मेदारियों को अनदेखा नहीं कर सकता. आज छोडी गई जिम्मेदारियां कल अत्यधिक गंभीर संकट के रूप में सामने आ खड़ी होती हैं.

गैराल्ड फोर्ड

आज, राष्ट्र का, विश्व-छवि वाले एक सशक्त राष्ट्र के रूप में निर्माण करने के प्रति वचनबद्ध होने का समय आ गया है और ऐसा केवल युवा-वर्ग की भागीदारी से ही किया जा सकता है. कोई भी राष्ट्र अपनी आकांक्षाएं एवं सपने युवा-वर्ग हों संपूर्ण तथा उत्साहपूर्ण योगदान से पूर्ण एवं साकार कर सकता है. प्रत्येक देश का इतिहास बेहतर मानवीय जीवन के लिए युवा-वर्ग द्वारा प्रारंभ एवं निष्पादित की गई अनेक क्रांतियों तथा सामाजिक-आर्थिक एवं राजनीतिक-प्रशासनिक परिवर्तनों का साक्षी है. राष्ट्रशब्द का प्रयोग किसी प्रभु-राज्य या कई अन्य भावात्मक तथा अप्रकट धारणाओं वाले किसी राष्ट्र के लिए किया जा रहा है, राष्ट्र निर्माण एक ऐसी प्रक्रिया है जो राष्ट्रों, उनकी सरकारों को बनाती है, उसके प्राधिकार को वैध बनाती है और राष्ट्रीय पहचान सुनिश्चित करती है. भारत जैसे देश, जो एक तरफ तो औपनिवेशिक शासन के अधीन और दूसरी ओर सामाजिक, सांस्कृतिक तथा भौगोलिक राजनीतिक विषमताओं वाला रहा है, को राष्ट्र निर्माण के अधिक संघटित प्रयासों की आवश्यकता है. राष्ट्र-निर्माण, कुछेक वर्षों की प्रक्रिया नहीं होती है. वास्तव में राष्ट्र निर्माण में कई दशक और कई बार तो शताब्दियां लग जाती है. इसी तरह यह कार्य समाज के किसी एक या कुछ वर्गों का दायित्व नहीं होता बल्कि इसमें सभी आयु समूह के प्रत्येक नागरिक तथा प्रत्येक वर्ग शामिल होते हैं. किन्तु इसमें कोई संदेह नहीं है कि अपनी शारीरिक एवं मानसिक शक्ति के आधार पर युवा राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया में अधिक प्रभावी और विश्वसनीय भूमिका निभाते हैं. और इसीलिए बेजांमिन डिजरेली का कहना है कि ‘‘किसी भी देश के युवा भावी पीढ़ी के ट्रस्टी होते हैं’’.
राष्ट्रीय युवा नीति, २०१४
भारत ने अपनी पहली युवा नीति १९८५ में बनाई थी और उसी वर्ष एक पृथक युवा कार्य एवं खेल मंत्रालय सृजित किया गया. प्रथम राष्ट्रीय युवा नीति को २००३ में एक नई नीति द्वारा बदला गया. सार्वभौमिकरण तथा सूचना, संचार एवं प्रौद्योगिकी क्रांति के विश्व-व्यापी परिवेश में २०१४ में एक नई राष्ट्रीय युवा नीति लागू की गई.
राष्ट्रीय युवा नीति, २०१४ का ध्येय ‘‘युवाओं को उनके सामथ्र्य की प्राप्ति में पूर्णत: शक्ति सम्पन्न बनाना अैर उनके माध्यम से भारत को राष्ट्र-समुदाय में उसके असली स्थान पर आसीन करना है.’’ भारत सरकार का मानना है कि युवा विकास का मात्र निश्चेष्ट प्राप्तकर्ता न हो कर उसका सक्रिय वाहक/प्रेरक होना चाहिए. राष्ट्रीय युवा नीति, २०१४ में भारतीय युवा के वास्तविक विकास के लिए निम्नलिखित महत्वपूर्ण एवं उप-क्षेत्रों का ध्यान रखा गया है:-
क. एक उपयोगी कार्य बल का सृजन करना
*शिक्षा
*उद्यमशीलता
*रोज़गार एवं कौशल विकास
ख.एक सशक्त एवं स्वस्थ पीढ़ी का विकास
*स्वास्थ्य एवं स्वस्थ जीवन शैली
*खेल
ग. सामाजिक मूल्यों का मन : स्थापन और समाज सेवा को बढ़ावा देना.
*सामाजिक मूल्यों को बढ़ावा देना
*सामुदायिक आबद्धता
घ. भागीदारी एवं नागरिक वचनबद्धता सुगम बनाना
*राजनीति एवं सुशासन में भागीदारी
*युवा अनुबंध
ड. जोखिम में युवा का समर्थन तथा सभी के लिए साम्यिक अवसर सृजित करना
*समावेशन
*सामाजिक न्याय
युवा-समृद्धि के उक्त उल्लिखित ११ प्राथमिकता क्षेत्र सीधे मानव संसाधन विकास से जुड़े हैं जो अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड इमेज वाले एक सशक्त राष्ट्र को सुनिश्चित करते हैं. स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया सहित भारत सरकार की वर्तमान नीतियां, कार्यक्रम एवं योजनाएं कला, संस्कृति एवं खेल के माध्यम से राष्ट्रीय एकीकरण
अनेकता में एकता सदियों से भारतीय सभ्यता और संस्कृति की मूल विशेषज्ञता रही है. इसी तरह कोई भी व्यक्ति हमारी समृद्ध एवं मोहक लोककला, लोक संगीत, मूल संस्कृति, अतुल्य आध्यात्मिक शक्ति, सामाजिक एवं मानवीय मूल्यों तथा स्वतंत्र ग्रामीण शैली को आसानी से पहचान सकता है, मजे की बात तो यह है कि भारतीय समाज में कला, संस्कृति, खेल एवं अध्यात्मवाद का सम्पूर्ण मानव विकास में एक अद्वितीय/विशिष्ट स्थान था.
भारतीय रेल एवं भारतीय सशस्त्र बलों ने राष्ट्रीय एकीकरण और एक राष्ट्र की भावना में अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. हाकी, हिंदी सिनेमा, आकाशवाणी, दूरदर्शन और क्रिकेट आदि ने भी हाल ही के दशकों में यह कार्य एक व्यापक पैमाने पर किया है. छोटे शहरों और दूर-दराज के गांवों के युवा खिलाड़ी भारतीय खेल जगत की छवि में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सफलतापूर्वक बदलाव ला रहे हैं. उपलब्धियां, पहचान/मान्यताएं और एक विश्वसनीय छवि अंतत: राष्ट्र निर्माण में सहायता करती है. चूंकि खेल गतिविधियों  में जोश, ऊर्जा, उत्साह एवं साहस
निवार्यत: आवश्यक होते हैं, इसलिए ये कार्य युवा से जुड़े होते हैं.
खेल, स्काउटिंग तथा गाइडिंग, नेहरू युवा केन्द्र, एनसीसी एवं एनएसएस और युवा उत्सव आदि सहित छात्रों के पाठ्येत्तर कार्यकलाप देश के विभिन्न राज्यों से आने वाले युवकों के साथ सांस्कृतिक एवं शैक्षिक पारस्परिक प्रभाव का मंच होते हैं.
युवा के मूलभूत कर्तव्य
सरदार स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों के बाद और भारत के संविधान के ४२वें संशोधन के माध्यम से १९७६ में भारत के संंविधान में एक नया अनुच्छेद-५१ ए शामिल किया गया था. नागरिकों को मूलत:१० मूलभूत कर्तव्य दिए गए थे. यह संवैधानिक प्रावधान कहता है कि प्रत्येक भारतीय नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि -
(क) संविधान का पालन करें, इसके आदर्शों और संस्थाओं, राष्ट्रीय ध्वज तथा राष्ट्रीय गीत का सम्मान करें.
(ख) हमारे राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित करने वाले महान आदर्शों का सम्मान और पालन करें.
(ग) भारत की प्रभुसत्ता, एकता एवं अखंडता को बनाए रखें और उसकी रक्षा करें.
(घ) देश की रक्षा करें और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र सेवा करें.
(ड) धार्मिक, भाषायी और क्षेत्रीय या प्रांतीय वैविध्यताओं से ऊपर उठकर भारत के सभी नागरिकों में मैत्री एवं भाईचारे की भावना को बढावा देना, महिलाओं के सम्मान के प्रति अनादर के आचरण का परित्याग करना.
(च) हमारी सम्मिश्रित संस्कृति की समृद्ध विरासत का सम्मान करना एवं रक्षा करना.
(घ) वनों, झीलों, नदियों और वन्य जीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करना और उसमें सुधार लाना, तथा जीव जंतुओं के प्रति दया-भाव रखना.
(ज) वैज्ञानिक स्वभाव, मानवतावाद तथा ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करना.
(झ) सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा करना तथा हिंसा का त्याग करना.
(ञ) व्यक्तिगत तथा सामूहिक कार्य-कलाप के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता लोने के प्रयास करना, ताकि राष्ट्र प्रयासों और उपलब्धि के उच्चतर शिखर की ओर निरंतर अग्रसर हो सके.
वर्ष २००२ में, ८६वें संवैधानिक संशोधन के माध्यम से संविधान में एक नया मूलभूत कर्तव्य जोड़ा गया. निम्नलिखित को भारतीय नागरिकों के ग्यारहवें कर्तव्य के रूप में जोड़ा गया :-
अभिभावक या संरक्षक ६ वर्ष से १४ वर्ष तक की आयु के अपने बच्चों को शिक्षा का अवसर देंगे.
ये मौलिक कर्तव्य राष्ट्र-निर्माण, राष्ट्रीय एकीकरण, प्रशासन के प्रजातंत्रीकरण, सुशासन, धारणीय विकास और ज्ञानपूर्ण समाज की प्रक्रिया को सीधे प्रभावपूर्ण बनाते हैं. शिक्षित एवं समर्पित युवा इन मौलिक कर्तव्यों का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित कर सकते हैं.
वैज्ञानिक प्रवृत्ति एवं युवा
जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है. एक वैज्ञानिक प्रवृत्ति का विकास करना भारत के प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य है. भारत प्रत्येक वर्ष २८ फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस भी मनाता है.
(यह दिन २८ फरवरी को नोबल पुरस्कार विजेता सर सीवी रमन की ‘‘रमन प्रभाव’’ की खोज को समर्पित है), ताकि सामान्यत: समाज में और विशेष रूप से युवा वर्ग में वैज्ञानिक प्रवृत्ति को बढावा दिय जा सके. यह बड़े पैमाने पर माना एवं स्वीकार किया जाता है कि वैज्ञानिक प्रवृत्ति किसी व्यक्ति और समाज की जीवन शैली है जो एक वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग करती है जिसमें प्रश्न पूछना, भौतिकीय वास्तविकता, परीक्षण, तथ्यों का एक प्रणालीबद्ध तरीके से अनुमान लगाना, विश्लेषण तथा संचार करना निहित है. इसमें तत्वत: तर्क अनुप्रयोग शामिल होता है. वाद-विवाद, विचार विमर्श एवं विश्लेषण किसी वैज्ञानिक प्रवृत्ति के मुख्य भाग होते हैं और औचित्य, समानता एवं जनतंत्र इसके घटक होते हैं.  तथा कथित धार्मिक एवं कपटी बाबाओं का तेजी से फैलाव, सांप्रदायिक दंगों, जातीय हिंसा, सडक़ छाप डाक्टरों पर अति विश्वास आदि घटनाएं हमारे शिक्षित व्यक्तियों के अवैज्ञानिक समाज के कुछ उदाहरण हैं.
सार्वभौमिकरण के समुह, स्टॉक बाजार में उतार-चढ़ाव, आर्थिक मंदी, उग्रवादियों और आतंकवादियों द्वारा धमकियों एवं हिंसा, निरंतर प्राकृतिक एवं मानव निर्मित आपदाओं और विलासमय जीवन के प्रति आकर्षण ने लोगों को ज्योतिषियों पर विश्वास करने एवं उनसे सम्पर्क करने के लिए मजबूर कर दिया है. मानव सभ्यता एवं संस्कृति के इतिहास के पन्ने प्रमाणित करते हैं कि कोई भी क्रांति या बड़ा परिवर्तन युवा वर्ग की सक्रिय भागीदारी के बिना नहीं आया है. इसलिए, समय की यही मांग है कि युवाओं को वैज्ञानिक प्रवृत्ति का विकास करने के प्रति संवेदनशील बनाया जाए और प्रक्रिया के स्पष्ट कारण भी हैं. सर्वप्रथम, युवा परिवर्तनशील एवं उदार होता है और प्रत्येक सुधार तथ्य के साथ प्रारंभ किया जाता है कि परिवर्तन जरूरी है. स्वीकृति रद्दकरण (अस्वीकृति) या प्रतिरोध का विलोम होती है. दूसरे, आज का युवा आने वाले कल का जिम्मेदार अभिभावक और नागरिक होता है जिससे समाज में विभिन्न अन्य महत्वपूर्ण भूमिकाएंं निभाने की आशा की जाती है. तीसरे, युवा में समाज में एक अच्छे, उचित तर्कसम्मत बदलाव लाने की ऊर्जा, उत्साह एवं महत्वाकांक्षा होती है. चौथे, युवा हमेशा प्रौधोगिकी के निकट संपर्क में रहा है और प्रत्येक प्रौधोगिकी वैज्ञानिक प्रवृत्ति को तत्वत: प्रमाणित करती है. वास्तव में सुशासन एक अच्छे एवं वैज्ञानिक समाज पर अत्यधिक निर्भर हो रहा है. जार्ज बनार्ड शॉ का कथन है-‘‘यह कार्य युवा वर्ग वृद्ध के लिए, उन्हें अचंभित करने एवं उन्हें अद्यतन रखने के लिए कर सकता है’’.
चुनौतियां एवं बाधाएं :
लोक प्रशासन के प्रसिद्ध विद्धान फ्रेड डब्ल्यू रिग्स ने विकासशील समाज को एक साला मॉडलके रूप में अंकित किया है जो मुख्य रूप से रीतिवाद, विजातियता और कार्यों तथा नियोजन से लदा हुआ है, भारतीय संक्रमण कालीन समाज की धर्म, भाषा, क्षेत्र, जाति, वर्ग, लिंग तथा अन्य सामाजिक, आर्थिक मामलों के अवरोधों तथा वर्जनों से ग्रस्त है. क्षेत्रीय असंतुलन, नीति निर्माताओं के लिए गंभीर संकट है.
भारतीय युवा विकास सूचकांक एवं रिपोर्ट-२०१७ (१३ नवंबर २०१७ को जारी) से स्पष्ट होता है कि भारत के राज्यों में विभिन्न मानव विकास संकेतकों के बीच एक बहुत बड़ा अंतराल है. आमतौर पर यह माना एवं अनुभव किया जाता है कि भारतीय हमेशा स्वयं को श्रेष्ठ नीति, योजना एवं विधि निर्माता के रूप में प्रमाणित करते हैं, किंतु जब इसे चरितार्थ करने के समय वे दुखती रग स्थिति का सामना करते हैं. यदि हम देश में विज्ञान एवं प्रौधोगिकी क्षेत्र की प्रगति की ओर देखें तो यह हमारे लिए कल्पनातीत है और सामाजिक क्षेत्र अभी भी उपेक्षित है.
यदि हम राष्ट्र-निर्माण में युवा की सकारात्मक एवं प्रभावी भूमिका सुनिश्चित करना चाहते हैं तो प्रारंभ में निम्नलिखित चुनौतियों की ओर ध्यान देना होगा:
१. अति जनसंख्या तथा उच्च वृद्धि दर
२. बेरोज़गारी और शिक्षित युवा की कम नियोजनीयता.
३. अवैज्ञानिक प्रवृत्ति तथा कम होती आम समझ.
४. जातियता.
५. लिंग भेदभाव
६.सामुदायिक एवं धार्मिक मामले
७. क्षेत्रीय एवं सामाजिक आथर््िाक असंतुलन
८. गरीबी एवं वाम अतिवाद
९. खराब स्वास्थ्य एवं निम्न रोग प्रतिरक्षा
१०. नशे की लत (सामाजिक मीडिया एडिक्शन सहित)
क्या आप मान सकते हैं कि मोबाइल पर सैल्फीलेते समय या सेल फोन पर बात करने के दौरान सडक़ या रेलवे लाइन पार करते समय प्रत्येक वर्ष लगभग २७०० युवा अपनी जान गंवा देते हैं. विश्व में यह दर सबसे अधिक है. ऑनलाइन चैटिंग के लिए सेल फोन, डैस्कटॉप या लैपटॉप के निरंतर प्रयोग के कारण हो रही बीमारियों की बड़ी फेहरिस्त है. सामाजिक मीडिया के उपयोग और ऑनलाइन बने रहने ने युवा वर्ग के स्वास्थ्य, नित्य कर्म, संबंधों, रचनात्मकता, अनुशासन तथा लेखन-पठन आदतों को भी क्षति पहुंचाई है. वे मानव जीवन के कटु एवं वास्तविक पहलुओं से अनभिज्ञ होते जा रहे हैं.
जब कभी भी, हम भारतीय युवा की शक्ति एवं संभावनाओं के बारे में सोचते हैं. हमें हमेंशा भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि के निर्माण एवं उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम समय में निराश भारतीय समाज में आशा जगाने में योगदान करने वाले स्वामी विवेकानंद जी याद आते हैं. उन्होंने कहा था कि -‘‘मुझे अपने देश और विशेषरूप से अपने देश के युवा पर विश्वास है ..............आपमें सभी शक्तियां निहित हैं, आप कुछ भी और सब कुछ कर सकते हैं, उसमें आस्था रखें. यह न माने कि आप कमजोर हैं, खड़े हों और स्वयं में निहित दैवत्व को अभिव्यक्त करें. इसलिए, उठें, जागें तब तक डटे रहें जब तक कि लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता’’.
(लेखक लोक प्रकाशन विभाग, मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय, उदयपुर में प्रोफेसर हैं) ई-मेल:  skkataria64@rediffmail.com