रोज़गार समाचार
सदस्य बनें @ 530 रु में और प्रिंट संस्करण के साथ पाएं ई- संस्करण बिल्कुल मुफ्त ।। केवल ई- संस्करण @ 400 रु || विज्ञापनदाता ध्यान दें !! विज्ञापनदाताओं से अनुरोध है कि रिक्तियों का पूर्ण विवरण दें। छोटे विज्ञापनों का न्यूनतम आकार अब 200 वर्ग सेमी होगा || || नई विज्ञापन नीति ||

संपादकीय लेख


Editorial Article

खादी: स्वतंत्रता परिधान से फैशन परिधान तक

प्रतिभा मिश्रा

खा  दीका अर्थ है ऐसा कपड़ा जो हाथों द्वारा काता और हाथ से बुना जाता है। महात्मा गांधी ने खादी को राष्ट्रीयता, आत्म निर्भरता और समानता के प्रतीक के रूप में स्थापित किया। 1918 में उन्होंने जब पहली बार खादी आंदोलन की शुरूआत की, गांधीजी ने हाथों से बुने जाने वाले इस कपड़े की परिकल्पना गरीब जनता के लिए आय के एक साधन के रूप में की, किंतु 1934-35 के आसपास उन्होंने - उनके स्वदेशी’ (देश में निर्मित उत्पादों का इस्तेमाल) तथा स्वराज’ (स्व-शासन के इस्तेमाल) आंदोलनों के भाग के रूप में -व्यक्ति के स्वयं के लिए खादी की वकालत करना शुरू किया। घूमता हुआ चरखा जो गरीबी और पिछड़ेपन की निशानी माना जाता था उसकी प्रतिष्ठा स्वावलंब और अंहिसा के प्रतीक के रूप में बढ़ गई तथा इसने भारत के स्वतंत्रता आंदोंलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

जब हम खादी को बढ़ावा देते हैं, हम कई स्तरों पर भारत की सामाजिक समस्याओं पर ध्यान देते हैं । ग्रामीण, जैसा कि अपने उपयोग के लिए खादी कातते हैं, वो पौधा लगा सकते हैं और धागे के उत्पादन के लिए कच्चे माल की खेती कर सकते हैं, छोटी सी पूंजी अथवा लागत में चरखा भी आसानी से बनाया जा सकता है तथा गांव के सभी पुरुष एवं महिलाएं कातना और बुनना सीख सकती हैं।    

गांधीजी दूरदर्शी थे।  उन्होंने खादी की क्षमता तथा देश में किस प्रकार से राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तन के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है, इसे पहचाना था।

ग्रामीणों के लिए एक व्यवसाय के रूप में खादी

कृषि प्रधानत: मौसमों पर निर्भर होती है। शुष्क अवधि के दौरान, जो कि लगभग चार महीनों की होती है, अधिकांश कृषक खाली बैठे होते हैं तथा उनके पास आजीविका हेतु अधिक काम नहीं होता है। चरखा  चलानाअच्छा कार्य है क्योंकि यह आसानी से सीखा जा सकता है, सुलभ व्यवसाय है तथा इसमें बहुत कम पूंजी अथवा लागत की आवश्यकता होती है। 

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान, गांधीजी ने यह गौर किया कि सारा कच्चा माल भारत से इंग्लैंड भेजा जाता है और बने हुए मंहगे कपड़े के रूप में आयातित होता है। स्थानीय जनसंख्या कार्य के अवसरों में कमी से जूझ रही थी तथा उनके द्वारा कमाए जा सकने योग्य लाभ से वंचित हो रही थी।

खादी के घरेलू उपयोग में वृद्धि ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था में तेजी लाने तथा तैयार रोज़गार सृजित करने के बेहतरीन तरीकों में से एक है। खादी उत्पादन से लेकर इसे पहनने तक का संपूर्ण चक्र अल्प-दक्ष लोगों को रोजग़ार देता है। कृषक कपास के उत्पादन तथा इसकी बिक्री से पैसे कमाते हैं। इसके उपरांत जो इसे कातते, बुनते तथा इसकी रंगाई करते हैं तथा सबसे अंत में दर्जी जो इस वस्त्र से कपड़ा काटते और सिलते हैं।

हस्त श्रम की गरिमा को स्थापित करना भारतीय समाज ने हस्त श्रम को हमेशा कमतर रूप में देखा है। गांधीजी ने देश तथा गरीबों के प्रति कर्तव्य के रूप में प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम एक घंटा चरखा चलाने के लिए कहा था। उन्होंने इसे भारतीय लोगों की जीवन प्रणाली के रूप में स्थापित करने की कोशिश की।

दिनांक 22 सितंबर 1927 के यंग इंडिया में दर्ज महात्मा के शब्दों में-‘‘यदि हमारे भीतर खादी की भावनाहोगी, हम जीवन के हर पहलू में सादगी से परिपूर्ण होंगे। खादी भावनाका अभिप्राय है- असीम धैर्य। जो खादी के उत्पादन के बारे में कुछ भी जानते हंै वे जानते हैं कि इसे कातने और बुनने वालों को अपने कार्य में कितना धैर्य रखना पड़ता है और इसी प्रकार हमें भी स्वराज का धागाबुनते हुए धैर्य रखना होगा। खादी भावनाका अर्थ समान असीम विश्वास से भी है। यदि धागा कातते हुए इसे कातने वाला थोड़ा भी कातता है, जब इसे समग्र रूप में देखते हैं तो यह भारत के प्रत्येक व्यक्ति के कपड़े के लिए काफी होगा। इसी प्रकार हमें सत्य और अंहिसा में असीम विश्वास होना चाहिए जो अंतत: हमारे रास्ते की सभी कठिनाईयों पर विजय प्राप्त कर लेगा’’

खादी भावना का अर्थ है पृथ्वी पर प्रत्येक मनुष्य के साथ भाईचारा या भ्रातृभाव। इसका अर्थ यह हुआ कि ऐसी किसी भी वस्तु का पूर्णत: परित्याग जिससे हमारे संगी-साथियों को हानि होने की संभावना हो, और यदि हम यह भावना अपने करोड़ों देश-वासियों में सिंचित कर सकें तो हमारे इस भारत देश की स्थिति कितनी सुखद होगी। राष्ट्रपिता के ये विचार, आज जब भारत अपनी स्वतंत्रता का सत्तरवां वर्ष शानदार ढंग से मना रहा है, हमारे कानों में गूंज रहे हैं।

खादी के स्वास्थ्य एवं सामाजिक लाभ:

खादी प्राकृतिक रेशे (विशेष रूप से सूत) से बनती है। यह छिद्रयुक्त होती है भारत की जलवायु के लिए उपयुक्त और पारिस्थितिकी के पर्याप्त अनुकूल होती है। सूती कपड़ा स्वास्थ्य के लिए, विशेष रूप से ऐसे व्यक्तियों जो चर्मरोग की समस्या से ग्रस्त होते हैं, के लिए अच्छा होता है।

स्वतंत्रता आंदोलन के समय यह, गांधी दर्शन में विश्वास रखने वाले व्यक्तियों के प्रतीक के रूप में प्रसिद्ध हुआ। आज, भी यह अपनी पहचान बनाए हुए हैं। चंूकि यह पारम्परिक रूप से सादगीपूर्ण एवं सदाचारी जीवन-शैली से जुड़ी है, और गरीबों के उत्थान में सहायक है इसलिए इसका उपयोग, आपके द्वारा समझे जाने वाले महत्व को दर्शाता है।

खादी भावनाजीवन के सभी क्षेत्रों में सादगी से संबंधित है। यह असीम-धैर्य का प्रतीक है। कताई-बुनाई करने वाले जानते हैं कि इन व्यवसायों में किसी को कितना धैर्य रखना होता हैं। इसलिए, गांधीजी ने कहा था कि जब आप कताई करते है तो स्वराज सूत्रबुन रहे हैं। यह दर्शाता है कि आप सत्यएवं अहिंसामें विश्वास रखते हैं और आपका अडिग- वसुधैव कुटुम्बकम्’(विश्व एक परिवार है) में अटूट विश्वास है।

खादी भारत की हस्तशिल्प और इससे जुड़े उद्योग को पोषित करने की हमारी भावना को भी दर्शाती है। आयातित मदों पर हमारी निर्भरता कम हो रही है। हम स्वदेशी (भारत में निर्मित) मदों का उपयोग करने के लिए अधिक सजग हो गए हैं और इससे हमें आत्म-निर्भर अर्थ व्यवस्था की दिशा में आगे बढऩे में सहायता मिली है।

अब प्रवृत्ति पुन: बदल रही है। खादी फैशन के रूप में उभरी है और भारत तथा विदेश में सौंदर्य उद्योग के साथ तेजी से अपनी जड़ें मजबूत कर रही है।

खादी फैशन उद्योग

खादी अब केवल गरीबों का परिधान नहीं रह गया है। डिजाइनरों द्वारा कुछ परिवर्तन के साथ आज यह एक शैली बन गई है। आज खादी न केवल भारत की स्वतंत्रता और भारतीय मूल्यों का प्रतीक है, बल्कि यह गर्व और विकास का भी प्रतीक है। नई बुनाई तकनीकों तथा नवप्रवर्तित खादी मिश्रण का उपयोग इसे समसामयिक रूप देने के लिए, किया जा रहा है। लेक्मे फैशन वीक और विल्स लाइफ स्टाइल इंडिया फैशन वीक जैसी भारत की सब से बड़ी फैशन  प्रदर्शनियों में हम डिजाइनरों को खादी कलेक्शन सफलतापूर्वक प्रस्तुत करते हुए भी देखते हैं। राहुल मिहरा, आनंद काबरा, रितु कुमार और सव्यसाची मुखर्जी जैसे प्रख्यात डिजाइनर खादी का व्यापक प्रयोग करते हैं।

शुद्ध खादी सूती एवं खादी सिल्क के अतिरिक्त मनुष्य द्वारा निर्मित पारिस्थितिकी के अनुकूल रेशों जैसे टीन्सऔर मॉडलसहित उनके ब्लेंड और खादी-विस्कोस ब्लेंडस का डिजाइनरों ने सम-सामयिक भारतीय परिधान तथा वेस्टर्न कट्स दोनों के लिए एक आदर्श वस्त्र के रूप में खुले हृदय से मिश्रण किया है। ये आधुनिक फैशन डिजाइनर प्राय: हाथ से बुने कपड़ों को प्रसिद्ध मूवमेंट पारिस्थितिकी अनुकूलता एवं ग्रामीण अधिकारिता से जोड़ते हैं। स्वतंत्रता के ७० वर्ष बाद और गांधी जी द्वारा प्राचीन पद्धति के कपड़े की प्रथम बुनाई के लगभग ९२ वर्ष बाद खादी की दुनिया बदल रही है। विभिन्न प्रकार के डिजाइन एवं कपड़े की सुधरी  हुई किस्म ने इसे विश्व-विद्यमान बना दिया है।

डेनिश टैक्सटाइल डिजाइनर बेस नेल्सन ने पेरिस में अपने स्टोर का नाम खादी रखा है। क्रिश्टिना किम अपने हाट लेवल डोसाके लिए इसी का इस्तेमाल करती है। इसने प्रसिद्ध स्टार वार्स मूवीज में भी इसे बनाया है। स्वतंत्रता परिधान से लेकर फैशन प्रदर्शनी तक खादी निश्चित रूप से महत्वपूर्ण रही है।

इसकी शिष्टता एवं सादगी ने इसे विशिष्ट वर्ग का प्रतीक बना दिया है। इसके अलावा, अनेक व्यक्ति ऐसे हैं, जो इसे इसके न्यूनतमवादी रूप एवं गहन गांधी रुचिबोध के लिए सराहते हैं। बिहार में अंसारी आर्टिसन्स द्वारा किए गए सॉफ्ट पेस्टल्स और राजकोट आधारित सौराष्ट्र रचनात्मक समिति द्वारा २००० के प्रारंभ में प्रस्तुत की गई खादी डेनिम खादी फैशन की विशिष्टता बनी हुई है।

रितु कुमार जैसी क्लासिस्ट का कथन है कि खादी किसी भी अन्य भारतीय वस्त्र की तुलना में अधिक परिस्थितिकी अनुकूल है और इसका मेटी टेक्सचर हल्की वेशभूषा के साथ आकर्षक दिखता है, वे इसकी वर्सिटिलिटी में विश्वास रखते हैं। इसमें न केवल एथनिक झलक है, बल्कि उपयुक्त एसेसरी के साथ एक विशिष्ट फैशन की स्थिति भी ले लेती है।

खादी का उपयोग कपड़े बनाने तक सीमित नहीं है। सुंदरता से बनाए गए खादी ब्लेंड्स गृह सज्जा (जैसे कुशन कवर एवं सोफा कवर) तथा जूतों एवं अन्य शिल्पों के निर्माण में भी लोकप्रिय हो रहे हैं। टाइल कंपनियां सोम्बर ह्यूड टाइल्स की एक खादी लाइन भी बनाती है।

खादी का बदलता रूप

पिछली शताब्दी के चौथे दशक के अंतिम हिस्से में खादी को ब्रिटिश कपड़ा मिलों के विरुद्ध स्वदेशी आंदोलन के एक प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया था। हालांकि जब ऐसी राष्ट्रीयता की सोच पुरानी हो जाने के दौर में हाथ से बुने रेशे को खादी ग्रामोद्योग भवनों और सरकार द्वारा संचालित टेक्सटाइल इम्पोरियम के माध्यम से फूलने-फलने का अवसर मिला।

वर्ष २००१ में तत्कालीन लघु उद्योग मंत्री वसुंधरा राजे ने रोहित बल और मालिनी रमानी जैसे डिजाइनरों को आगे लाकर खादी उद्योग को पुनर्जीवित करने का निर्णय लिया है। नये डिजाइनरों के आने से खादी के कारोबार में तेजी आई और इसके परिणामस्वरूप खादी कुर्ते, कुर्तियां, जैकेट, धोती, साडिय़ां और अन्य परिधान युवाओं की पसंद में शुमार हो गए। खादी के परिधानों में सिलेे-सिलाये वस्त्र लोगों की पसंद बन गए तथा भारत के प्रमुख महानगरों में खादी के विशेष स्टोर खुलने शुरू होने लगे।

वर्ष २००९-१० में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार खादी उद्योग में तेजी आने के बावजूद खादी के बाजार में गिरावट दर्ज की गई थी। वर्ष २००८ से २००९ के बीच भारत में उत्पादित खादी की कीमत ५८५।२५ करोड़ रुपये से घट कर ४८४।४५ करोड़ रुपये हो गई। जबकि इसकी बिक्री में ४० करोड़ रुपये की वृद्धि हुई।

हालांकि खद्दर अधिनियम १९५० के अनुसार नकली खादी बेचना एक दंडनीय अपराध है, किंतु खादी रेशे की गुणवत्ता से संबंधित कोई मानकीकरण नियमावली और नियमन नहीं थे। इसके परिणामस्वरूप देशभर में बड़ी संख्या में खादी भंडार खुल गए, जिसमें खादी के नाम पर कोई भी हैंडलूम कपड़ा बेचा जा रहा था। इसके अलावा, खादी को लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से डिजाइनरों के प्रवेश से लाल फीताशाही से जुड़ी शिकायतें प्राप्त होने लगी, जिसे सरकारी कार्यालय प्रभावित होने लगे थे।

फैब इंडिया (जॉन विलियम बिस्पेल) और अनोखी (फेथ और जॉन सिंह का स्वामित्व) जैसे खादी के अंतर्राष्ट्रीय सरोकारों के बल पर इस रेशे को काफी बढ़ावा मिला। वर्ष २०११ में वस्त्र उद्योग में क्रांति की सूत्रपात करने वाली रीता कपूर चिश्ती ने नौ राज्यों में खादी-द फैब्रिक ऑफ फ्रीडमनामक प्रदर्शनी आयोजित की, जिसमें उन्होंने खादी के १०८ किस्मों को दर्शाया। वर्ष २०१३ में डिजाइनर गोविंद के खादी कूल कलेक्शन में प्रिंटों, एप्लीक वर्क, जिप्परों, मिरर वर्क, रेशे के साथ उजले, काले, पीले, नारंगी, गहरे गुलाबी, लाल और हरे पत्थरों की सजावट के विभिन्न प्रकारों का इस्तेमाल किया गया था।

खादी इतनी जल्दी अप्रचलित होने वाली नहीं है। और सरकार अब खादी को एक बार पुन: बढ़ावा देने के लिए पुरजोर प्रयास कर रही है। अपने प्रथम मन की बातरेडियो कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था हमें खादी के इस्तेमाल को बढ़ावा अवश्य देना चाहिए। खादी की कम से कम एक वस्तु अवश्य खरीदें। यदि आप खादी खरीदते हैं तो आप एक गरीब के घर में समृद्धि का दीपक जलाते हैं।यह माना जाता है कि प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य से खादी उत्पादों की बिक्री में यकायक वृद्धि हो गयी है।

आज अपारम्परिक रंगों (जैसे नीला, पीला तथा हल्के पिंक) में सौम्य एवं साधारण मोदी कुर्ताचूड़ीदार पायजामा तथा मोदी जैकेट पहनना एक चलन बन गया है। आम भारतीयजनों से लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा तक सभी की पसंद में खादी का एक उत्पाद अवश्य है। शिक्षक दिवस के अवसर पर एक छात्र ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय परिधान के ब्रांड अम्बेस्डरके रूप में प्रशंसा की थी।

सरकार ने खादी के प्रोत्साहन हेतु ठोस कार्रवाई भी की है। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम खादी-डेनिम वस्त्रों के निर्माण एवं विक्रय को बढ़ावा देने के लिए पहल कर चुका है। खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (के।वी।आई।सी।) खादी के लिए महानायक अमिताभ बच्चन को ब्रांड अम्बेसडरबनाने हेतु पहल कर चुका है, जिन्होंने अपनी सेवाओं के लिए कोई शुल्क नहीं लिया था।

वस्त्र क्षेत्र के २५००० सशक्त कार्यबल में लगभग ८२' महिलाएं हैं, जो विशेषकर ग्रामीण कारीगर हैं। इसलिए खादी तथा सामान्य वस्त्र को बढ़ावा दिये जाने को महिलाओं तथा गरीबों को सशक्त बनाने के माध्यम के रूप में देखा जा सकता है। नई सरकार द्वारा वस्त्र उद्योग के लिए हाल में घोषित किये गये रु।६००० करोड़ के विशेष पैकेज से आगामी कुछ वर्षों में लगभग एक करोड़ रोज़गार सृजित होने की आशा है। भारतीय नौसेना खादी वर्दी प्रचलित कर चुकी है, एयर इंडिया अपनी अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों पर सुविधा किट के लिए खादी उत्पादों का प्रयोग करने हेतु निर्णय ले चुकी है और उत्तराखंड का डाक विभाग अपने कर्मचारियों के लिए खादी सूती तथा ऊनी परिधानों का आदेश दे चुका है। विख्यात फैशन डिजाइनर रितु बेरी खादी के पक्ष में कहती हैं कि वर्ष में एक दिन खादी दिवसके रूप में घोषित किया जाना चाहिए। ताकि प्रत्येक व्यक्ति को खादी पहनने के लिए प्रेरित किया जा सके। उनका सुझाव है कि होटलों, अस्पतालों तथा कारपोरेट सभी जगह खादी वर्दी को लोकप्रिय बनाया जा सकता है।

खादी खरीदें। खादी पहनें। खादी को बढ़ावा दें।

 

(लेखिका एक स्तंभकार हैं और अनेक समाचारपत्रों के लिए लिखती हैं। ईमेल:www.pratibhatana@gmail.com)